Chapter Navigation :    1   2   3   4   5   6   7   8   9  10  11  12  13  14  15  16  17  18
Verses :  1  2  3  4  5  6  7  8  9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35
36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55

अध्याय ग्यारह / Chapter Eleven

।11.1।
अर्जुन उवाच
मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ ।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥ १ ॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच - अर्जुन बोले
मदनुग्रहाय - केवल मेरे पर कृपा करने के लिये ही
परमं - परम
गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ - गोपनीय अध्यात्म जानने के लिए
यत्त्वयोक्तं - आपने जो कहा
वचस्तेन - वचन
मोहोऽयं - यह मोह
विगतो - नष्ट हो गया है
मम - मेरा
भावार्थ/Translation
   अर्जुन बोले - केवल मेरे पर कृपा करने के लिये ही आपने परम गोपनीय अध्यात्म समझाने के लिए जो वचन कहे, उससे मेरा यह मोह नष्ट हो गया है ।11.1।

   ਅਰਜੁਨ ਬੋਲਿਆ - ਕੇਵਲ ਮੇਰੇ ਉੱਤੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਣ ਲਈ ਹੀ ਤੁਸੀਂ, ਪਰਮ ਗੁਪਤ ਅਧਿਆਤਮ ਸੱਮਝਾਉਣ ਲਈ ਜੋ ਵਚਨ ਕਹੇ, ਉਸ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਇਹ ਮੋਹ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ।11.1।

   Arjuna said, To show kindness to Me, You have told me the most profound mystery concerning spirituality; by that, my delusion is dispelled.।11.1।

।11.2।
भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया ।
त्वतः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्‌ ॥ २ ॥

शब्दार्थ
भवाप्ययौ - उत्पत्ति और प्रलय
हि भूतानां - सम्पूर्ण प्राणियों की
श्रुतौ - सुना है
विस्तरशो - विस्तार से
मया - मैंने
त्वतः - आपसे
कमलपत्राक्ष - हे कमलनयन
माहात्म्यमपि - महिमा भी
चाव्ययम्‌ - अविनाशी भी

भावार्थ/Translation
   हे कमलनयन, सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति और प्रलय मैंने विस्तार से आप से ही सुना है और आपकी अविनाशी महिमा भी सुनी है ।11.2।

   ਹੇ ਕਮਲਨਇਨ, ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਅਤੇ ਪਰਲੋ ਮੈਂ ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ ਤੁਹਾਡੇ ਤੋਂ ਹੀ ਸੁਣੀ ਹੈ ਅਤੇ ਤੁਹਾਡੀ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਵਡਿਆਈ ਵੀ ਸੁਣੀ ਹੈ ।11.2।

   O Krishna, the origin and dissolution of beings have been heard by me in detail from You and also your undecaying glory.।11.2।

।11.3।
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर ।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥ ३ ॥

शब्दार्थ
एवमेतद्यथात्थ - जैसा कहते हो, वैसा ही है
त्वमात्मानं - आप अपने को
परमेश्वर - हे परमेश्वर
द्रष्टुमिच्छामि - देखना चाहता हूँ
ते रूपमैश्वरं - ईश्वरीय रूप को
पुरुषोत्तम - हे पुरुषोत्तम

भावार्थ/Translation
   हे परमेश्वर, आप अपने को जैसा कहते हो, वैसा ही है। हे पुरुषोत्तम, मैं आपके ईश्वरीय रूप को देखना चाहता हूँ ।11.3।

   ਹੇ ਰੱਬ, ਤੁਸੀ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜਿਸ ਤਰਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹੋ, ਉਹੋ ਜਿਹਾ ਹੀ ਹੈ । ਹੇ ਪੁਰਸ਼ੋਤਮ, ਮੈਂ ਤੁਹਾਡੇ ਰੱਬੀ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵੇਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ।11.3।

   O Supreme Lord, You are same as you described yourself. I wish to see your divine form.।11.3।

।11.4।
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो ।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्‌ ॥ ४ ॥

शब्दार्थ
मन्यसे - मानते हैं
यदि - यदि
तच्छक्यं - वह, संभव है
मया - मेरे द्वारा
द्रष्टुमिति - देखा जाना
प्रभो - हे प्रभो
योगेश्वर - हे योगेश्वर
ततो मे - तो
त्वं - आप
दर्शयात्मानमव्ययम्‌ - अपने अविनाशी स्वरूप का दर्शन कराइये

भावार्थ/Translation
   हे प्रभो, यदि आप मानते हैं कि मेरे द्वारा वह रूप देखा जाना संभव है, तो हे योगेश्वर, आप अपने अविनाशी स्वरूप का दर्शन कराइये ।11.4।

   ਹੇ ਪ੍ਰਭੋ, ਜੇਕਰ ਤੁਸੀ ਮੰਣਦੇ ਹੋ ਕਿ ਮੇਰੇ ਦੁਆਰਾ ਉਹ ਰੂਪ ਵੇਖਿਆ ਜਾਣਾ ਸੰਭਵ ਹੈ, ਤਾਂ ਹੇ ਯੋਗੇਸ਼ਵਰ, ਤੁਸੀ ਆਪਣੇ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਸਵਰੂਪ ਦਾ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਾਓ ।11.4।

   O Krishna, If you think that it is possible for me to see that form, then please show me Your Immortal and eternal form.।11.4।

।11.5।
श्रीभगवानुवाच पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः ।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥ ५ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान बोले
पश्य मे - मेरे देख
पार्थ - हे अर्जुन
रूपाणि - रूपों को
शतशोऽथ - अब सैकड़ों
सहस्रशः - हजारों
नानाविधानि - अनेक प्रकार के
दिव्यानि - अलौकिक
नानावर्णाकृतीनि च - अनेक वर्ण तथा अनेक आकृति वाले

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! अब तू मेरे सैकड़ों-हजारों अनेक प्रकार के और अनेक वर्ण तथा अनेक आकृति वाले अलौकिक रूपों को देख ।11.5।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਬੋਲੇ - ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਹੁਣ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਸੈਂਕੜੇ - ਹਜਾਰਾਂ ਅਨੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਅਤੇ ਅਨੇਕ ਵਰਣ ਅਤੇ ਅਨੇਕ ਆਕ੍ਰਿਤੀ ਵਾਲੇ ਨਿਰਾਲੇ ਰੂਪਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ।11.5।

   Shri krishna Said- O Arjuna, now you see hundereds and thousands of different froms of mine in different shapes, colors, kinds and opulences.।11.5।

।11.6।
पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा ।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥ ६ ॥

शब्दार्थ
पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ - आदित्यों, वसुओं, रुद्रों तथा अश्विनीकुमारों देखो
मरुतस्तथा - और मरुद्गणों को
बहून्यदृष्टपूर्वाणि - अनेक इसके पूर्व कभी न देखे हुए
पश्याश्चर्याणि - आश्चर्यों को देखो
भारत - हे अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन (मुझ में) आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, अश्विनीकुमारों और मरुद्गणों को देख, तथा अनेक इसके पूर्व कभी न देखे हुए आश्चर्यों को देख ।11.6।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ (ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ) ਆਦਿਤਯ, ਵਸੁ, ਰੁਦਰ, ਅਸ਼ਵਿਨੀਕੁਮਾਰਾਂ ਅਤੇ ਮਰੁਦਗਣਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖ, ਅਤੇ ਅਨੇਕ ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਦੇ ਨਾਂ ਵੇਖੇ ਹੋਏ ਆਸ਼ਚਰਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ।11.6।

   O Arjuna, See Adityas, Vasus, Rudras, Ashwin Brothers and Maruts in me. Also see many wonders never seen before.।11.6।

।11.7।
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्‌ ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि ॥ ७ ॥

शब्दार्थ
इहैकस्थं - इस में एक जगह स्थित
जगत्कृत्स्नं - सम्पूर्ण जगत को
पश्याद्य - अब देख
सचराचरम्‌ - चराचर सहित
मम देहे - मेरे शरीर में
गुडाकेश - हे अर्जुन
यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि - और भी जो कुछ देखना चाहता हो

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो सो देख ।11.7।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ! ਹੁਣ ਇਸ ਮੇਰੇ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਜਗ੍ਹਾ ਸਥਿਤ, ਚਰਾਚਰ ਸਹਿਤ, ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ ਨੂੰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵੀ ਜੋ ਕੁੱਝ ਵੇਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੋ ਸੋ ਵੇਖ ।11.7।

   O Arjuna, now see in me, the whole universe along with all moving and non-moving creation and also anything else you wish to see.।11.7।

।11.8।
न तु मां शक्यसे द्रष्टमनेनैव स्वचक्षुषा ।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्‌ ॥ ८ ॥

शब्दार्थ
न तु मां - तू मेरे को नहीं
शक्यसे - सकता
द्रष्टमनेनैव - देख
स्वचक्षुषा - अपनी आँखो से
दिव्यं - दिव्य
ददामि ते - तुझे देता हूँ
चक्षुः - नेत्र
पश्य - देख
मे योगमैश्वरम्‌ - ईश्वरीय सामर्थ्य

भावार्थ/Translation
   तू अपनी इस आँख से मेरे को नहीं देख सकता। इसलिये मैं तुझे दिव्य नेत्र देता हूँ, जिससे तू मेरे ईश्वरीय सामर्थ्य को देख ।11.8।

   ਤੂੰ ਆਪਣੀ ਇਸ ਅੱਖ ਨਾਲ ਮੈਨੂੰ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਲਈ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਅਲੋਕਿਕ ਨੇਤਰ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਜਿਸਦੇ ਨਾਲ ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਰੱਬੀ ਤਾਕਤ ਨੂੰ ਵੇਖ ।11.8।

   You cannot see Me with your present eyes. Therefore I give you divine eyes to see My supreme capabilities.।11.8।

।11.9।
संजय उवाच
एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः ।
दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्‌ ॥९ ॥

शब्दार्थ
संजय उवाच - सञ्जय बोले
एवमुक्त्वा - ऐसा कहकर
ततो - फिर
राजन्महायोगेश्वरो - हे राजन्, महायोगेश्वर
हरिः - भगवान् श्रीकृष्ण
दर्शयामास - दिखाया
पार्थाय - अर्जुन को
परमं - परम
रूपमैश्वरम्‌ - ऐश्वररूप

भावार्थ/Translation
   सञ्जय बोले -- हे राजन् ऐसा कहकर, महायोगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को परम ऐश्वररूप दिखाया ।11.9।

   ਸੰਜੈ ਬੋਲੇ - ਹੇ ਰਾਜਨ, ਇਹ ਕਹਿਕੇ, ਮਹਾਯੋਗੇਸ਼ਵਰ ਭਗਵਾਂਨ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ ਨੇ ਅਰਜੁਨ ਨੂੰ ਪਰਮ ਐਸ਼ਵਰਿਆ ਰੂਪ ਵਿਖਾਇਆ ।11.9।

   Sanjaya said: O King, having spoken thus, the Supreme Personality, shri Krishna, displayed His Supreme form to Arjuna.।11.9।

।11.10।
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्‌ ।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्‌ ॥ १० ॥

शब्दार्थ
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्‌ - अनेक मुख और नेत्रों से युक्त तथा अनेक अद्भुत दर्शनों वाले
अनेकदिव्याभरणं - बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त
दिव्यानेकोद्यतायुधम्‌ - बहुत से दिव्य शस्त्रों को उठाये हुये

भावार्थ/Translation
   उस अनेक मुख और नेत्रों से युक्त तथा अनेक अद्भुत दर्शनों वाले एवं बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त और बहुत से दिव्य शस्त्रों को उठाये हुये ।11.10।

   ਉਸ ਅਨੇਕ ਮੂੰਹ ਅਤੇ ਨੇਤਰਾਂ ਨਾਲ ਯੁਕਤ ਅਤੇ ਅਨੇਕ ਵਿਲੱਖਣ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਅਲੋਕਿਕ ਗਹਿਣਿਆਂ ਨਾਲ ਭਰੇ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਅਲੋਕਿਕ ਸ਼ਸਤਰਾਂ ਨੂੰ ਚੁੱਕੇ ਹੋਏ ।11.10।

   That form of unlimited mouths and eyes, unlimited wonderful visions. The form was decorated with many celestial ornaments and bore many divine weapons.।11.10।

।11.11।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्‌ ।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्‌ ॥ ११॥

शब्दार्थ
दिव्यमाल्याम्बरधरं - दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुये
दिव्यगन्धानुलेपनम्‌ - दिव्य गन्ध का लेपन किये हुये
सर्वाश्चर्यमयं - समस्त प्रकार के आश्चर्यों से युक्त
देवमनन्तं - अनन्त, परम देव
विश्वतोमुखम्‌ - सब तरफ मुखवाले

भावार्थ/Translation
   दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुये और दिव्य गन्ध का लेपन किये हुये एवं समस्त प्रकार के आश्चर्यों से युक्त अनन्त, परम देव और सब तरफ मुखवाले ।11.11।

   ਅਲੋਕਿਕ ਮਾਲਾ ਅਤੇ ਵਸਤਰਾਂ ਨੂੰ ਧਾਰਨ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸੁੰਦਰ ਗੰਧ ਦਾ ਲੇਪਨ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸਭ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਆਸ਼ਚਰਿਆਂ ਨਾਲ ਯੁਕਤ ਅਨੰਤ, ਪਰਮ ਦੇਵ ਅਤੇ ਸਭ ਪਾਸੇ ਮੁਖਵਾਲੇ ।11.11।

   Wearing divine garlands and apparel, anointed with divine perfumes, the all-wonderful, infinite with faces on all sides.।11.11।

।11.12।
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥ १२ ॥

शब्दार्थ
दिवि - आकाश में
सूर्यसहस्रस्य - हजारों सूर्यों के
भवेद्युगपदुत्थिता - उदय होने से
यदि भाः - जो प्रकाश होगा
सदृशी सा - के समान
स्याद्भासस्तस्य - प्रकाश, शायद
महात्मनः - परमात्मा के

भावार्थ/Translation
   आकाश में हजारों सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश होगा, वह उस परमात्मा के प्रकाश के समान शायद ही होगा ।11.12।

   ਅਕਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਹਜਾਰਾਂ ਸੂਰਜਾਂ ਦੇ ਇਕੱਠੇ ਚੜਣ ਨਾਲ ਜੋ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਹੋਵੇਗਾ, ਉਹ ਉਸ ਈਸਵਰ ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਸਮਾਨ ਸ਼ਾਇਦ ਹੀ ਹੋਵੇਗਾ ।11.12।

   If thousands of suns were to rise at once into the sky, their radiance might resemble the effulgence of the Supreme.।11.12।

।11.13।
तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥ १३ ॥

शब्दार्थ
तत्रैकस्थं - एक स्थान पर स्थित
जगत्कृत्स्नं - सम्पूर्ण जगत् को
प्रविभक्तमनेकधा - अनेक प्रकार से विभक्त हुए
अपश्यद्देवदेवस्य - देवों के देव श्रीकृष्ण के, देखा
शरीरे - शरीर में
पाण्डवस्तदा - अर्जुन

भावार्थ/Translation
   अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त हुए सम्पूर्ण जगत् को देवों के देव श्रीकृष्ण के शरीर में एक स्थान पर स्थित देखा ।11.13।

   ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਉਸ ਸਮੇਂ ਅਨੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਨਾਲ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ ਨੂੰ ਦੇਵਾਂ ਦੇ ਦੇਵ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਸਥਿਤ ਵੇਖਿਆ ।11.13।

   There, in the body of the Krishna, Arjuna then saw the whole universe resting in one, with its manifold divisions.।11.13।

।11.14।
ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः ।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥ १४ ॥

शब्दार्थ
ततः स - देखकर
विस्मयाविष्टो - चकित हुए
हृष्टरोमा - शरीर रोमाञ्चित हो गया
धनञ्जयः - अर्जुन
प्रणम्य - प्रणाम करके
शिरसा - मस्तक से
देवं - विश्वरूप देव
कृताञ्जलिरभाषत - हाथ जोड़कर बोले

भावार्थ/Translation
   वह देखकर चकित हुए अर्जुन का शरीर रोमाञ्चित हो गया। वे हाथ जोड़कर विश्वरूप देव को मस्तक से प्रणाम करके बोले ।11.14।

   ਉਹ ਵੇਖ ਕੇ ਹੈਰਾਨ ਹੋਏ ਅਰਜੁਨ ਦਾ ਸਰੀਰ ਰੋਮਾਞਚਿਤ ਹੋ ਗਿਆ। ਉਹ ਹੱਥ ਜੋੜ ਕੇ ਵਿਸ਼ਵਰੂਪ ਦੇਵ ਨੂੰ ਮੱਥਾ ਟੇਕ ਕੇ ਪਰਨਾਮ ਕਰਕੇ ਬੋਲਿਆ ।11.14।

   Then, astonished, his hair standing on end, Arjuna bowed his head and with folded hands began to pray to the Supreme.।11.14।

।11.15।
अर्जुन उवाच
पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्‍घान्‌ ।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्‌ ॥ १५ ॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच - अर्जुन ने कहा
पश्यामि - देख रहा हूँ
देवांस्तव - हे देव
देव देहे - देवों को
सर्वांस्तथा - समस्त, तथा
भूतविशेषसङ्‍घान्‌ - प्राणियों के विशेष विशेष समुदायों
ब्रह्माणमीशं - स्वामी ब्रह्मा जी
कमलासनस्थमृषींश्च - कमलासन पर स्थित, ऋषियों को
सर्वानुरगांश्च - सर्पों को, समस्त
दिव्यान्‌ - दिव्य

भावार्थ/Translation
   अर्जुन ने कहा - हे देव, मैं आपके शरीर में समस्त देवों को तथा अनेक प्राणियों के विशेष विशेष समुदायों को और कमलासन पर स्थित सृष्टि के स्वामी ब्रह्माजी को, ऋषियों को और दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ ।11.15।

   ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਹੇ ਦੇਵ, ਮੈਂ ਤੁਹਾਡੇ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਕੁਲ ਦੇਵਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਅਨੇਕ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮੁਦਾਇਆਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਕਮਲਾਸਨ ਉੱਤੇ ਸਥਿਤ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟਿ ਦੇ ਸਵਾਮੀ ਬਰਹਮਾ ਜੀ ਨੂੰ, ਰਿਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਅਲੋਕਿਕ ਸੱਪਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।11.15।

   Arjuna said, O Lord, I see all the demigods, all types and classes of beings. I see Brahma sitting on the lotus flower, as well as other great sages and divine serpents.।11.15।

।11.16।
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्‌ ।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥ १६ ॥

शब्दार्थ
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि - अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रों वाला देख रहा हूँ
त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्‌ - आपको सब ओर से अनन्त रूप
नान्तं न - न अन्त को
मध्यं न - न मध्य को
पुनस्तवादिंपश्यामि - न आदि को देख रहा हूँ
विश्वेश्वर - विश्वेश्वर
विश्वरूप - हे विश्वरूप

भावार्थ/Translation
   हे विश्वरूप, हे विश्वेश्वर आपको मैं अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रोंवाला तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देख रहा हूँ। मैं आपके न आदि को, न मध्य को और न अन्त को ही देख रहा हूँ ।11.16।

   ਹੇ ਵਿਸ਼ਵਰੂਪ, ਹੇ ਵਿਸ਼ਵੇਸ਼ਵਰ, ਤੁਹਾਨੂੰ ਮੈਂ ਅਨੇਕ ਹੱਥਾਂ, ਢਿੱਡਾਂ, ਮੁਖਾਂ ਅਤੇ ਨੇਤਰਾਂ ਵਾਲਾ ਅਤੇ ਸਭ ਪਾਸੇ ਅਨੰਤ ਰੂਪਾਂ ਵਾਲਾ ਵੇਖ ਰਿਹਾ ਹਾਂ । ਮੈਂ ਤੁਹਾਡੇ ਆਦਿ, ਵਿਚਕਾਰ ਅਤੇ ਅਖੀਰ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਪਾ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।11.16।

   O Cosmic Form, I see your boundless form on every side with many arms, stomachs, mouths and eyes: neither the end nor the middle nor also the beginning do I see, O Lord of the universe (Krishna).।11.16।

।11.17।
किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम्‌ ।
पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्‌ ॥ १७ ॥

शब्दार्थ
किरीटिनं - मुकुट
गदिनं - गदा
चक्रिणं च - चक्र
तेजोराशिं - तेज के पुंज
सर्वतो - सब ओर से
दीप्तिमन्तम्‌ - प्रकाशमान
पश्यामि त्वां - देखता हूँ, आपको
दुर्निरीक्ष्यं - कठिनता से देखे जाने योग्य
समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्‌ - प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, असीम

भावार्थ/Translation
   आपको मैं मुकुट, गदा और चक्र तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के पुंज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, कठिनता से देखे जाने योग्य और असीम देखता हूँ ।11.17।

   ਤੁਹਾਨੂੰ ਮੈਂ ਮੁਕਟ, ਗਦਾ ਅਤੇ ਚੱਕਰ ਅਤੇ ਸਭ ਵਲੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਮਾਨ ਤੇਜ ਦੇ ਪੁੰਜ, ਭੜਕੀਲੀ ਅੱਗ ਅਤੇ ਸੂਰਜ ਦੀ ਤਰਾੰ ਜੋਤੀ ਨਾਲ ਭਰਿਆ, ਕਠਿਨਤਾ ਨਾਲ ਵੇਖੇ ਜਾਣ ਲਾਇਕ ਅਤੇ ਅਸੀਮ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ ।11.17।

   I see you adorned with various crowns, clubs and discs and glowing form everywhere. Your form is infinite and difficult to see due to its glaring effulgence like blazing fire and radiance of the sun.।11.17।

।11.18।
त्वमक्षरं परमं वेदितव्यंत्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ ।
त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ॥ १८ ॥

शब्दार्थ
त्वमक्षरं - आप अनश्वरं
परमं - परम
वेदितव्यंत्वमस्य - जानने योग्य
विश्वस्य - इस जगत के
परं निधानम्‌ - परम आश्रय हैं
त्वमव्ययः - आप अविनाशी
शाश्वतधर्मगोप्ता - सनातन धर्म के रक्षक हैं
सनातनस्त्वं - सनातन हैं
पुरुषो मतो मे - पुरुष, मेरा मत है

भावार्थ/Translation
   आप ही जानने योग्य परम अक्षर परमात्मा हैं, आप ही इस जगत के परम आश्रय हैं, आप ही सनातन धर्म के रक्षक हैं और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं, ऐसा मेरा मत है ।11.18।

   ਤੁਸੀ ਹੀ ਜਾਣਨ ਲਾਇਕ ਪਰਮ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਈਸਵਰ ਹੋ, ਤੁਸੀ ਹੀ ਇਸ ਜਗਤ ਦੇ ਪਰਮ ਸਹਾਰੇ ਹੋ, ਤੁਸੀ ਹੀ ਸਨਾਤਨ ਧਰਮ ਦੇ ਰਖਿਅਕ ਹੋ ਅਤੇ ਤੁਸੀ ਹੀ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਸਨਾਤਨ ਪੁਰਖ ਹੋ, ਅਜਿਹਾ ਮੇਰਾ ਮਤ ਹੈ ।11.18।

   You are the Immutable, the supreme One to be known. You are the ultimate resting place of all this universe. You are inexhaustible, and You are the oldest. You are the maintainer of the eternal religion. This is my opinion.।11.18।

।11.19।
अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्‌ ।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्‌ ॥ १९ ॥

शब्दार्थ
अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं - आदि, मध्य और अन्त से रहित, अनन्त प्रभावशाली, अनन्त भुजाओंवाले
शशिसूर्यनेत्रम्‌ - चन्द्र और सूर्यरूप नेत्रों वाले
पश्यामि - देखता हूँ
त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा - प्रज्वलित अग्नि के समान मुखों वाले और अपने तेज से
विश्वमिदं - विश्व को
तपन्तम्‌ - तपाते हुए

भावार्थ/Translation
   आपको मैं आदि, मध्य और अन्तसे रहित, अनन्त प्रभावशाली, अनन्त भुजाओं वाले, चन्द्र और सूर्यरूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्नि के समान मुखों वाले और अपने तेज से विश्व को तपाते हुए देखता हूँ ।11.19।

   ਤੁਹਾਨੂੰ ਮੈਂ ਆਦਿ, ਵਿਚਕਾਰ ਅਤੇ ਅੰਤ ਤੋਂ ਰਹਿਤ, ਅਨੰਤ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ, ਅਨੰਤ ਭੁਜਾਵਾਂ ਵਾਲਾ, ਚੰਦ ਅਤੇ ਸੂਰਜ ਵਰਗੇ ਨੇਤਰਾਂ ਵਾਲਾ, ਭੜਕੀਲੀ ਅੱਗ ਦੇ ਸਮਾਨ ਮੁਖਾਂ ਵਾਲਾ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਤੇਜ ਨਾਲ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਤਪਾਉੰਦੇ ਹੋਏ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ ।11.19।

   You are without origin, middle or end. Your glory is unlimited. You have numberless arms, and the sun and moon are Your eyes. I see You with blazing fire coming from Your mouth, warming this universe by Your radiance.।11.19।

।11.20।
द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः ।
दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदंलोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्‌ ॥ २० ॥

शब्दार्थ
द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं - यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का अन्तराल
हि व्याप्तं - परिपूर्ण हैं
त्वयैकेन - एक आपसे ही
दिशश्च - दिशाएँ
सर्वाः - सम्पूर्ण
दृष्ट्वाद्भुतं - देखकर, अद्भुत
रूपमुग्रं - उग्ररूप को
तवेदंलोकत्रयं - आपके इस, तीनों लोक
प्रव्यथितं - व्यथित
महात्मन्‌ - हे महात्मन्

भावार्थ/Translation
   हे महात्मन्, यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का अन्तराल और सम्पूर्ण दिशाएँ एक आप से ही परिपूर्ण हैं। आपके इस अद्भुत और उग्ररूप को देखकर तीनों लोक व्यथित हो रहे हैं ।11.20।

   ਹੇ ਮਹਾਤਮਾ, ਇਹ ਸਵਰਗ ਅਤੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਵਿੱਚ ਦਾ ਅੰਤਰਾਲ ਅਤੇ ਸੰਪੂਰਣ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਸਿਰਫ ਤੁਹਾਡੇ ਨਾਲ ਹੀ ਭਰਿਆ ਹੈ । ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਅਨੌਖੇ ਅਤੇ ਉਗਰ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਤਿੰਨੋ ਲੋਕ ਦੁਖੀ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ।11.20।

   O Krishna, This space between the earth and the heaven and all the directions are filled by you alone; having seen your wonderful and terible form, the three worlds are perturbed.।11.20।

।11.21।
अमी हि त्वां सुरसङ्‍घा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्‍घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥ २१ ॥

शब्दार्थ
अमी हि - वे ही
त्वां सुरसङ्‍घा - देवताओं के समूह, आप में
विशन्ति - प्रवेश करते हैं
केचिद्भीताः - कुछ भयभीत होकर
प्राञ्जलयो - हाथ जोड़े
गृणन्ति - गुणों का उच्चारण
स्वस्तीत्युक्त्वा - 'कल्याण हो' ऐसा कहकर
महर्षिसिद्धसङ्‍घा: - महर्षि और सिद्धों के समुदाय
स्तुवन्ति - स्तुति करते हैं
त्वां स्तुतिभिः - स्तोत्रों द्वारा
पुष्कलाभिः - उत्तम उत्तम

भावार्थ/Translation
   वे ही देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते हैं और कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़े आपके गुणों का उच्चारण करते हैं तथा महर्षि और सिद्धों के समुदाय 'कल्याण हो' ऐसा कहकर उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं ।11.21।

   ਉਹ ਹੀ ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਤੁਹਾਡੇ ਵਿੱਚ ਪਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕੁੱਝ ਡਰ ਕੇ ਹੱਥ ਜੋਡ਼ੇ ਤੁਹਾਡੇ ਗੁਣਾਂ ਦਾ ਉਚਾਰਣ ਕਰਦੇ ਹਣ ਅਤੇ ਮਹਾਰਿਸ਼ੀ ਅਤੇ ਸਿੱਧਾਂ ਦੇ ਸਮੁਦਾਏ 'ਕਲਿਆਣ ਹੋ' ਅਜਿਹਾ ਕਹਿਕੇ ਉੱਤਮ ਸ਼ਲੋਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਤੁਹਾਡੀ ਵਡਿਆਈ ਕਰਦੇ ਹਨ ।11.21।

   All the groups of demigods are entering into You. Some of them, very much afraid, are offering prayers with folded hands. Hosts of great sages and perfected beings, praising “May All be Well” are praying to You by singing the Vedic hymns.।11.21।

।11.22।
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्याविश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च ।
गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्‍घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥ २२ ॥

शब्दार्थ
रुद्रादित्या - रुद्र और आदित्य
वसवो ये च - तथा वसु
साध्याविश्वेऽश्विनौ - साध्यगण, विश्वेदेव
मरुतश्चोष्मपाश्च - मरुद्गण और पितरों का समुदाय
गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्‍घावीक्षन्ते - गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय देखते हैं
त्वां - आपको
विस्मिताश्चैव - विस्मित होकर
सर्वे - वे सब

भावार्थ/Translation
   जो रुद्र, आदित्य, वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं- वे सब भी विस्मित होकर आपको देखते हैं ।11.22।

   ਜੋ ਰੁਦਰ, ਆਦਿਤਅ, ਵਸੁ, ਸਾਧਗਣ, ਵਿਸ਼ਵੇਦੇਵ, ਅਸ਼ਵਿਨੀਕੁਮਾਰ, ਮਰੁਦਗਣ, ਪਿਤਰਾਂ ਦੇ ਸਮੁਦਾਏ ਅਤੇ ਗੰਧਰਵ, ਯਕਸ਼, ਰਾਕਸ਼ਸ ਅਤੇ ਸਿੱਧਾਂ ਦੇ ਸਮੁਦਾਏ ਹਨ - ਉਹ ਸਭ ਭੀ ਹੈਰਾਨ ਹੋ ਕੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਵੇਖਦੇ ਹਣ ।11.22।

   The Rudras, Adityas, Vasus, Sadhyas, Visvedevas, Asvins, Maruts, the manes and the hosts of celestial singers, Yakshas, demons and the perfected ones, are all looking at you, in great amazement.।11.22।

।11.23।
रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रंमहाबाहो बहुबाहूरूपादम्‌ ।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालंदृष्टवा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्‌ ॥ २३ ॥

शब्दार्थ
रूपं - रूप को
महत्ते - महान्
बहुवक्त्रनेत्रंमहाबाहो - हे महाबाहो, आपके बहुत मुखों और नेत्रोंवाले
बहुबाहूरूपादम्‌ - भुजाओं, जंघाओं और चरणोंवाले
बहूदरं - बहुत उदरोंवाले
बहुदंष्ट्राकरालंदृष्टवा - बहुत विकराल दाढ़ों वाले रूप को देखकर
लोकाः - सब प्राणी
प्रव्यथितास्तथाहम्‌ - तथा मैं व्यथित हो रहे हैं

भावार्थ/Translation
   हे महाबाहो, आपके बहुत मुखों और नेत्रों वाले, भुजाओं, जंघाओं और चरणों वाले, बहुत उदरों वाले, बहुत विकराल दाढ़ों वाले महान् रूप को देखकर सब प्राणी तथा मैं भी व्यथित हो रहे हैं ।11.23।

   ਹੇ ਮਹਾਬਾਹੋ, ਤੁਹਾਡੇ ਬਹੁਤ ਮੁੰਹਾਂ ਅਤੇ ਨੇਤਰਾਂ ਵਾਲੇ, ਭੁਜਾਵਾਂ, ਜੰਘਾਵਾਂ ਅਤੇ ਚਰਣਾਂ ਵਾਲੇ, ਬਹੁਤ ਉਦਰਾਂ ਵਾਲੇ, ਬਹੁਤ ਵਿਕਰਾਲ ਦਾੜਾਂ ਵਾਲੇ ਮਹਾਨ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ, ਸਭ ਪ੍ਰਾਣੀ ਅਤੇ ਮੈਂ ਵੀ ਦੁਖੀ ਹੋ ਰਹੇ ਹਾਂ ।11.23।

   O mighty-armed one, all the beings including me are disturbed at seeing Your great form, with its many faces, eyes, arms, thighs, legs, bellies and terrible teeth.।11.23।

।11.24।
नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णंव्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्‌ ।
दृष्टवा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ॥ २४ ॥

शब्दार्थ
नभःस्पृशं - आकाश को स्पर्श करने वाले
दीप्तमनेकवर्णंव्यात्ताननं - देदीप्यमान अनेक रूपों से युक्त तथा विस्तरित मुख
दीप्तविशालनेत्रम्‌ - प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त
दृष्टवा हि त्वां - आपको देखकर
प्रव्यथितान्तरात्मा - भयभीत अन्तःकरणवाला
धृतिं न - धैर्य नहीं
विन्दामि - प्राप्त हो रहा हूँ
शमं च - और शान्ति
विष्णो - हे विष्णो

भावार्थ/Translation
   हे विष्णो, आकाश के साथ स्पर्श किये हुए देदीप्यमान अनेक रूपों से युक्त तथा विस्तरित मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत हुआ मैं धैर्य और शान्ति को नहीं प्राप्त हो रहा हूँ ।11.24।

   ਹੇ ਵਿਸ਼ਣੋ, ਅਕਾਸ਼ ਦੇ ਨਾਲ ਛੋਹੰਦੇ ਹੋਏ, ਪਰਕਾਸ਼ ਨਾਲ ਚਮਚਮਾਂਦੇ ਅਨੇਕ ਰੂਪਾਂ ਨਾਲ ਭਰੇ ਅਤੇ ਵਿਸਤਰਿਤ ਮੂੰਹ ਅਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਵਿਸ਼ਾਲ ਨੇਤਰਾਂ ਨਾਲ ਭਰੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਵੇਖਕੇ ਭੈਭੀਤ ਹੋਇਆ ਮੈਂ ਸਬਰ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।11.24।

   O Vishnu, on seeing you touching the sky, shining in many colours, with mouths wide open, with large fiery eyes , I am terrified at heart and find neither courage nor peace .।11.24।

।11.25।
दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानिदृष्टैव कालानलसन्निभानि ।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥ २५ ॥

शब्दार्थ
दंष्ट्राकरालानि च ते - आपके विकराल दाढ़ों वाले और
मुखानि - मुखों को
दृष्टैव - देखकर
कालानलसन्निभानि - प्रलयाग्नि के समान प्रज्वलित
दिशो न - न दिशाओं को
जाने न - जान रहा हूँ, न
लभे च - प्राप्त हो रहा हूँ
शर्म - शान्ति को
प्रसीद - आप प्रसन्न हो जाइए
देवेश - हे देवेश
जगन्निवास - हे जगन्निवास

भावार्थ/Translation
   आपके विकराल दाढ़ों वाले और प्रलयाग्नि के समान प्रज्वलित मुखों को देखकर, मैं न दिशाओं को जान रहा हूँ और न शान्ति को प्राप्त हो रहा हूँ इसलिए हे देवेश, हे जगन्निवास, आप प्रसन्न हो जाइए ।11.25।

   ਤੁਹਾਡੇ ਵਿਕਰਾਲ ਦਾੜਾਂ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਪ੍ਰਲਯ ਅਗਨੀ ਦੇ ਸਮਾਨ ਜਲਦੇ ਮੁਖਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਕੇ, ਮੈਂ ਨਾਂ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜਾਨ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ਅਤੇ ਨਾਂ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹਾਂ, ਇਸ ਲਈ ਹੇ ਦੇਵੇਸ਼, ਹੇ ਜਗੰਨਿਵਾਸ, ਤੁਸੀ ਖੁਸ਼ ਹੋ ਜਾਓ ।11.25।

   O Lord of lords, O refuge of the worlds, please be gracious to me. I have lost the sense of direction and find no comfort after seeing Your blazing deathlike faces and awful teeth.।11.25।

।11.26।
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसंघैः ।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ॥ २६ ॥

शब्दार्थ
अमी च - ये भी
त्वां - आप में
धृतराष्ट्रस्य - धृतराष्ट्र के
पुत्राः - पुत्र
सर्वे - समस्त
सहैवावनिपालसंघैः - राजाओं के समुदाय सहित
भीष्मो - भीष्म
द्रोणः - द्रोण
सूतपुत्रस्तथासौ - तथा कर्ण और
सहास्मदीयैरपि - सहित हमारे पक्ष के भी
योधमुख्यैः - प्रधान योद्धाओं के

भावार्थ/Translation
   ये समस्त धृतराष्ट्र के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित, भीष्म, द्रोण तथा कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धा - ।11.26।

   ਇਹ ਸਾਰੇ ਧਰਿਤਰਾਸ਼ਟਰ ਦੇ ਪੁੱਤ ਰਾਜਾਵਾਂ ਦੇ ਸਮੁਦਾਏ ਸਹਿਤ, ਭੀਸ਼ਮ, ਦਰੋਣ, ਕਰਣ ਅਤੇ ਸਾਡੇ ਪੱਖ ਦੇ ਵੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੋਧਾ ।11.26।

   All these sons of Dhritrashtra along with the hosts of kings, Bhishma, Drona, Karna and other principal warriors of our side- ।11.26।

।11.27।
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्‍गै ॥ २७ ॥

शब्दार्थ
वक्त्राणि ते - आपके मुखों में
त्वरमाणा - तीव्र वेग से
विशन्ति - प्रवेश करते हैं
दंष्ट्राकरालानि - विकराल दाढ़ों वाले
भयानकानि - भयानक
केचिद्विलग्ना - कई एक, फँसे हुए
दशनान्तरेषु - दांतों के बीच में
सन्दृश्यन्ते - दिख रहे हैं
चूर्णितैरुत्तमाङ्‍गै - चूर्ण हुए सिरों सहित

भावार्थ/Translation
   तीव्र वेग से आपके विकराल दाढ़ों वाले भयानक मुखों में प्रवेश करते हैं और कई एक चूर्ण हुए सिरों सहित आपके दांतों के बीच में फँसे हुए दिख रहे हैं ।11.27।

   ਤੇਜ ਵੇਗ ਨਾਲ ਤੁਹਾਡੇ ਵਿਕਰਾਲ ਦਾੜਾਂ ਵਾਲੇ ਭਿਆਨਕ ਮੁਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕਈ ਇੱਕ ਚੂਰਾ ਹੋਏ ਸਿਰਾਂ ਸਹਿਤ ਤੁਹਾਡੇ ਦੰਦਾ ਦੇ ਵਿੱਚ ਵਿੱਚ ਫੰਸੇ ਹੋਏ ਦਿਖ ਰਹੇ ਹਨ ।11.27।

   - are rushing into Your terrible jaws and fearful mouths. And some I see trapped with heads smashed between Your teeth. ।11.27।

।11.28।
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥ २८ ॥

शब्दार्थ
यथा - जैसे
नदीनां - नदियों के
बहवोऽम्बुवेगाः - बहुत से जलप्रवाह वेग से
समुद्रमेवाभिमुखा - समुद्र की ओर
द्रवन्ति - बहते हैं
तथा - वैसे ही
तवामी - ये आपके
नरलोकवीराविशन्ति - मनुष्यलोक के ये वीर प्रवेश करते हैं
वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति - आपके प्रज्वलित मुखों में

भावार्थ/Translation
   जैसे नदियों के बहुत से जलप्रवाह समुद्र की ओर वेग से बहते हैं, वैसे ही मनुष्यलोक के ये वीर योद्धागण आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश करते हैं ।11.28।

   ਜਿਵੇਂ ਨਦੀਆਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜਲਪ੍ਰਵਾਹ ਸਮੁੰਦਰ ਦੇ ਵੱਲ ਵੇਗ ਨਾਲ ਵਗਦੇ ਹਨ, ਉਂਜ ਹੀ ਧਰਤੀ ਦੇ ਇਹ ਵੀਰ ਯੋਧਾਗਣ ਤੁਹਾਡੇ ਜਲਦੇ ਹੋਇਆ ਮੁਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ।11.28।

   As the many waves of the rivers flow into the ocean, so do all these great warriors enter into Your blazing mouths.।11.28।

।11.29।
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगाविशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः ।
तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः॥ २९ ॥

शब्दार्थ
यथा प्रदीप्तं - जैसे प्रज्वलित
ज्वलनं - अग्नि में
पतंगाविशन्ति - पतंगे प्रवेश करते हैं
नाशाय - नाश के लिए
समृद्धवेगाः - अतिवेग से
तथैव - वैसे ही
नाशाय - नाश के लिए
विशन्ति - प्रवेश करते हैं
लोकास्तवापि - ही ये लोग भी
वक्त्राणि - मुखों में
समृद्धवेगाः - अतिवेग से

भावार्थ/Translation
   जैसे पतंगे अपने नाश के लिए प्रज्वलित अग्नि में अतिवेग से प्रवेश करते हैं, वैसे ही ये लोग भी अपने नाश के लिए आपके मुखों में अतिवेग से प्रवेश करते हैं ।11.29।

   ਜਿਵੇਂ ਪਤੰਗੇ ਆਪਣੇ ਨਾਸ਼ ਲਈ ਭੜਕੀਲੀ ਅੱਗ ਵਿੱਚ ਅਤੀਵੇਗ ਨਾਲ ਪਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਂਜ ਹੀ ਇਹ ਲੋਕ ਵੀ ਆਪਣੇ ਨਾਸ਼ ਲਈ ਤੁਹਾਡੇ ਮੁਖਾਂ ਵਿੱਚ ਅਤੀਵੇਗ ਨਾਲ ਪਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ।11.29।

   I see all people rushing full speed into Your mouths, as moths dash to destruction in a blazing fire.।11.29।

।11.30।
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः ।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रंभासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो ॥ ३० ॥

शब्दार्थ
लेलिह्यसे - बार-बार चाट रहे हैं
ग्रसमानः - ग्रसन करते हुए
समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः - आप प्रज्वलित मुखों के द्वारा इन समस्त लोकों का
तेजोभिरापूर्य - तेज के द्वारा परिपूर्ण
जगत्समग्रंभासस्तवोग्राः - आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत् को
प्रतपन्ति - तपा रहा है
विष्णो - हे विष्णो

भावार्थ/Translation
   हे विष्णो, आप प्रज्वलित मुखों के द्वारा इन समस्त लोकों का ग्रसन करते हुए बार-बार चाट रहे हैं आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत् को तेज के द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा है ।11.30।

   ਹੇ ਵਿਸ਼ਣੋ, ਤੁਸੀ ਜਲਦੇ ਹੋਏ ਮੁਖਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਇਨਾੰ ਸਭ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਭਕਸ਼ਣ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਵਾਰ - ਵਾਰ ਚੱਟ ਰਹੇ ਹੋ, ਤੁਹਾਡਾ ਉਗਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ ਨੂੰ, ਤੇਜ ਦੇ ਨਾਲ ਪਰਿਪੂਰਣ ਕਰਕੇ ਤਪਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।11.30।

   O Vishnu, You lick Your lips while devouring all the creatures from every side with flaming mouths, Your fierce light with radiance is scorching the the whole world.।11.30।

।11.31।
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यंन हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्‌ ॥ ३१ ॥

शब्दार्थ
आख्याहि - बताइये
मे को - मुझे यह
भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु - उग्ररूप वाले आपको नमस्कार हो
ते देववर - हे देवताओंमें श्रेष्ठ
प्रसीद - आप प्रसन्न होइये
विज्ञातुमिच्छामि - तत्त्वसे जानना चाहता हूँ
भवन्तमाद्यंन हि - आदिरूप आपको नहीं
प्रजानामि - जानता
तव प्रवृत्तिम्‌ - आपकी प्रवृत्तिको

भावार्थ/Translation
   हे देवताओं में श्रेष्ठ आपको नमस्कार हो। आप प्रसन्न होइये। मुझे यह बताइये कि उग्ररूपवाले आप कौन हैं, आदिरूप आपको मैं तत्त्वसे जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं जानता ।11.31।

   ਹੇ ਦੇਵਤਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ, ਤੁਹਾਨੂੰ ਨਮਸਕਾਰ ਹੈ । ਤੁਸੀ ਖੁਸ਼ ਹੋਵੋ । ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਦੱਸੋ, ਕਿ ਉਗਰ ਰੂਪਵਾਲੇ ਤੁਸੀ ਕੌਣ ਹੋ, ਆਦਿਰੂਪ ਤੁਹਾਨੂੰ ਮੈਂ ਤੱਤਵ ਤੋਂ ਜਾਨਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਤੁਹਾਡੀ ਕਰਣੀ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦਾ ।11.31।

   Tell me, who you are in this fierce form. Salutations to Thee, O God Supreme. Be kind to me. I desire to know Thee, the Primal being. I do not understand your working and actions.।11.31।

।11.32।
श्रीभगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥ ३२ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्रीभगवान् बोले
कालोऽस्मि - मैं काल हूँ
लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह - सम्पूर्ण लोकों का क्षय करने वाला बढ़ा हुआ, लोकों का संहार करनेके लिये
प्रवृत्तः - आया हूँ
ऋतेऽपि - बिना भी
त्वां न भविष्यन्ति - तुम्हारे नहीं रहेंगे
सर्वे येऽवस्थिताः सब खड़े हैं
प्रत्यनीकेषु - प्रतिपक्षमें
योधाः - योद्धालोग

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् बोले - मैं सम्पूर्ण लोकों का क्षय करने वाला महान काल हूँ और लोकों का संहार करनेके लिये आया हूँ। तुम्हारे प्रतिपक्ष में जो योद्धा लोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे युद्ध किये बिना भी नहीं रहेंगे ।11.32।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਬੋਲੇ - ਮੈਂ ਸੰਪੂਰਣ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਖਾਤਮਾ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਮਹਾਨ ਕਾਲ ਹਾਂ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸੰਹਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਆਇਆ ਹਾਂ । ਤੇਰੇ ਵਿਰੋਧੀ ਧੜੇ ਵਿੱਚ ਜੋ ਜੋਧਾ ਖੜੇ ਹਣ, ਉਹ ਸਭ ਤੇਰੇ ਲੜਾਈ ਕੀਤੇ ਬਿਨਾਂ ਵੀ ਨਹੀਂ ਰਹਣਗੇ ।11.32।

   Krishna said: I am Time, the great destroyer of the worlds, and I have come here to destroy all people. Even without your intervention, all the warriors here on both sides will be slain.।11.32।

।11.33।
तस्मात्त्वमुक्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ्‍क्ष्व राज्यं समृद्धम्‌ ।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्‌ ॥ ३३ ॥

शब्दार्थ
तस्मात्त्वमुक्तिष्ठ - इसलिए तुम खड़े हो जाओ
यशो - यशस्वी
लभस्व - बनो
जित्वा - जीतकर
शत्रून्भुङ्‍क्ष्व - शत्रुओं को, भोगो
राज्यं - राज्य को
समृद्धम्‌ - समृद्ध
मयैवैते - मेरे द्वारा
निहताः - मारे जा चुके हैं
पूर्वमेव - पहले से ही
निमित्तमात्रं - केवल निमित्त ही
भव - बनो
सव्यसाचिन्‌ - अर्जुन (बाएँ हाथ से भी बाण चलाने का अभ्यास होने से अर्जुन का नाम)

भावार्थ/Translation
   इसलिए तुम खड़े हो जाओ और यशस्वी बनो, शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो। ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। हे अर्जुन, तुम केवल निमित्त ही बनो ।11.33।

   ਇਸ ਲਈ ਤੂੰ ਖੜਾ ਹੋ ਜਾ ਅਤੇ ਯਸ਼ ਵਾਲਾ ਬਣ, ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਕੇ ਭਰੇ-ਪੁਰੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਭੋਗ । ਇਹ ਸਭ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਮੇਰੇ ਦੁਆਰਾ ਮਾਰੇ ਜਾ ਚੁੱਕੇ ਹਨ । ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਤੂੰ ਕੇਵਲ ਸਾਧਣ ਹੀ ਬਣ ।11.33।

   O Arjuna, Therefore you rise up, win glory; and defeating the enemies, enjoy a prosperous kingdom. All these have already been put to death by Me earlier; be you merely an instrument.।11.33।

।11.34।
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्‌ ।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठायुध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्‌ ॥ ३४ ॥

शब्दार्थ
द्रोणं च - द्रोण और
भीष्मं - और
च जयद्रथं - जयद्रथ
च कर्णं - और कर्ण
तथान्यानपि - तथा और भी
योधवीरान्‌ - शूरवीर योद्धाओं
मया - मेरे द्वारा
हतांस्त्वं - मारे हुए
जहि मा - मार
व्यथिष्ठायुध्यस्व - खेद मत करो, युद्ध कर
जेतासि - जीतेगा
रणे - युद्ध में
सपत्नान्‌ - वैरियों को

भावार्थ/Translation
   द्रोण, भीष्म, जयद्रथ और कर्ण तथा और भी मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार, खेद मत कर, तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा, युद्ध कर ।11.34।

   ਦਰੋਣ, ਭੀਸ਼ਮ, ਜਯਦ੍ਰਥ, ਕਰਣ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵੀ ਮੇਰੇ ਦੁਆਰਾ ਮਾਰੇ ਹੋਏ ਸ਼ੂਰਬੀਰ ਯੋਧਾਵਾਂ ਨੂੰ ਤੂੰ ਮਾਰ, ਦੁੱਖ ਨਾਂ ਕਰ, ਤੂੰ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਵੈਰੀਆਂ ਨੂੰ ਜੀਤੇਂਗਾ, ਲੜਾਈ ਕਰ ।11.34।

   Drona, Bheeshma, Jayadratha, Karna and the other great warriors have already been destroyed by Me. Therefore, kill them and do not be disturbed. Simply fight, and you will vanquish your enemies in battle.।11.34।

।11.35।
संजय उवाच
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृतांजलिर्वेपमानः किरीटी ।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णंसगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ॥३५ ॥

शब्दार्थ
संजय उवाच - संजय ने कहा
एतच्छ्रुत्वा - इस को सुनकर
वचनं - वचन
केशवस्य - केशव के
कृतांजलिर्वेपमानः - हाथ जोड़े हुए, कांपता हुआ
किरीटी - मुकुटधारी
नमस्कृत्वा - नमस्कार करके
भूय एवाह - फिर बोला
कृष्णंसगद्गदं - श्रीकृष्ण के प्रति गद्गद्
भीतभीतः - पुन भयभीत हुआ
प्रणम्य - प्रणाम करके

भावार्थ/Translation
   संजय ने कहा - केशव के इस वचन को सुनकर मुकुटधारी अर्जुन हाथ जोड़े हुए, कांपता हुआ, नमस्कार करके, पुन भयभीत हुआ प्रणाम करके श्रीकृष्ण के प्रति गद्गद् वाणी से बोला ।11.35।

   ਸੰਜੈ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਕੇਸ਼ਵ ਦੇ ਇਸ ਵਚਨ ਨੂੰ ਸੁਣ ਕੇ ਮੁਕੁਟਧਾਰੀ ਅਰਜੁਨ ਹੱਥ ਜੋੜੇ ਹੋਏ, ਕੰਬਦਾ ਹੋਇਆ, ਨਮਸਕਾਰ ਕਰਕੇ, ਭੈਭੀਤ ਹੋਇਆ ਪਰਨਾਮ ਕਰਕੇ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਗਦਗਦ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਬੋਲਿਆ ।11.35।

   Sanjaya said Having heard that speech of Lord Krishna, Arjuna, with joined palms, trembling, prostrating himself, again addressed Krishna, in a choked voice, overwhelmed with fear.।11.35।

।11.36।
अर्जुन उवाच
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्‍घा: ॥३६॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच - अर्जुन ने कहा
स्थाने - योग्य ही है
हृषीकेश - श्रीकृष्ण
तव प्रकीर्त्या - आपके कीर्तन से
जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च - जगत् अति हर्षित होता है और अनुराग को भी प्राप्त होता है
रक्षांसि - राक्षस
भीतानि - भयभीत
दिशो - दिशाओं
द्रवन्ति - भागते हैं
सर्वे नमस्यन्ति - समस्त, नमस्कार करते हैं
च सिद्धसङ्‍घा: - सिद्धगणों के समुदाय

भावार्थ/Translation
   अर्जुन ने कहा - श्रीकृष्ण, यह योग्य ही है कि आपके कीर्तन से जगत् अति हर्षित होता है और अनुराग को भी प्राप्त होता है। भयभीत राक्षस लोग समस्त दिशाओं में भागते हैं और सिद्धगणों के समुदाय आपको नमस्कार करते हैं ।11.36।

   ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ, ਇਹ ਠੀਕ ਹੀ ਹੈ ਕਿ ਤੁਹਾਡੇ ਕੀਰਤਨ ਨਾਲ ਜਗਤ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਅਨੁਰਾਗ ਨੂੰ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਭੈਭੀਤ ਰਾਕਸ਼ਸ ਲੋਕ ਸਭ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਭੱਜਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਸਿੱਧਗਣਾਂ ਦੇ ਸਮੁਦਾਏ ਤੁਹਾਨੂੰ ਨਮਸਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।11.36।

   Arjuna said It is proper, O Krishna, that the world becomes delighted and attracted by Your praise; that the Raksasas, stricken with fear, run in all directions; and that all the groups of the Siddhas bow down to You.।11.36।

।11.37।
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ ॥३७ ॥

शब्दार्थ
कस्माच्च - कैसे करें
ते न - न
नमेरन्महात्मन्‌ - हे महात्मन्, नमस्कार
गरीयसे - सबसे श्रेष्ठ
ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे - ब्रह्मा के भी आदि कर्ता
अनन्त - हे अनन्त
देवेश - हे देवेश
जगन्निवास - हे जगन्निवास
त्वमक्षरं - अविनाशी आप ही हैं
सदसत्तत्परं यत्‌ - जो सत् असत् और इन दोनों से परे

भावार्थ/Translation
   हे महात्मन् ब्रह्मा के भी आदि कर्ता और सबसे श्रेष्ठ आपके लिए वे कैसे नमस्कार नहीं करें (क्योंकि) हे अनन्त, हे देवेश, हे जगन्निवास, सत् असत् और इन दोनों से परे अविनाशी आप ही हैं ।11.37।

   ਹੇ ਮਹਾਤਮਾ, ਬ੍ਰਹਮਾ ਦੇ ਆਦੀ ਕਰਤਾ ਅਤੇ ਸਭ ਤੋਂ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਤੁਹਾਡੇ ਲਈ, ਉਹ ਕਿਵੇਂ ਨਮਸਕਾਰ ਨਾਂ ਕਰਨ (ਕਿਉਂਕਿ) ਹੇ ਅਨੰਤ, ਹੇ ਦੇਵੇਸ਼, ਹੇ ਜਗੰਨਿਵਾਸ, ਸਤ ਅਸਤ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਨਾਂ ਤੋਂ ਪਰੇ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਤੁਸੀ ਹੀ ਹੋ ।11.37।

   O great one, greater even than Brahma, You are the original creator. Why then should they not offer their respectful obeisances unto You? O limitless one, God of gods, refuge of the universe! You are the imperishable individual self, the existent and the non-existent, and that which is beyond both. ।11.37।

।11.38।
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ ।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥३८ ॥

शब्दार्थ
त्वमादिदेवः - आप आदिदेव
पुरुषः - पुरुष
पुराणस्त्वमस्य - और पुराण हैं
विश्वस्य - जगत् के
परं निधानम्‌ - परम आश्रय
वेत्तासि - सब जाननेवाले
वेद्यं च - जानने योग्य
परं च - और परम
धाम त्वया - धाम हैं
ततं - आपसे व्याप्त है
विश्वमनन्तरूप - हे अनन्तरूप, यह विश्व

भावार्थ/Translation
   आप आदिदेव और पुराण (सनातन) पुरुष हैं। आप इस जगत् के परम आश्रय ज्ञाता, सब जानने वाले, जानने योग्य, और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप आपसे ही यह विश्व व्याप्त है ।11.38।

   ਤੁਸੀ ਆਦਿਦੇਵ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣ (ਸਨਾਤਨ) ਪੁਰਖ ਹੋ । ਤੁਸੀ ਇਸ ਜਗਤ ਦਾ ਪਰਮ ਸਹਾਰਾ, ਜਾਣਕਾਰ, ਸਭ ਜਾਨਨ ਵਾਲੇ, ਜਾਣਨ ਦੇ ਲਾਇਕ, ਅਤੇ ਪਰਮ ਧਾਮ ਹੋ । ਹੇ ਅਨੰਤਰੂਪ ਤੁਹਾਡੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਸੰਸਾਰ ਵਿਆਪਤ ਹੈ ।11.38।

   You are the primal God, the ancient Purusha, the supreme refuge of this universe, the knower, the knowable and the supreme Abode. O being of infinite forms, The universe is pervaded by you.।11.38।

।11.39।
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ ३९॥

शब्दार्थ
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः - वायु, यम, अग्नि, वरुण
शशाङ्‍क: - चन्द्रमा,
प्रजापतिस्त्वं - प्रजापति
प्रपितामहश्च - ब्रह्मा के भी कारण
नमो - नमस्कार
नमस्तेऽस्तु - नमस्कार
सहस्रकृत्वः - हजारों बार
पुनश्च - पुन
भूयोऽपि - आपको बारम्बार
नमो - नमस्कार
नमस्ते - नमस्कार है

भावार्थ/Translation
   आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजापति और प्रपितामह (ब्रह्मा के भी कारण) हैं आपके लिए हजारों बार नमस्कार, नमस्कार है, पुनः आपको बारम्बार नमस्कार, नमस्कार है ।11.39।

   ਤੁਸੀ ਹਵਾ, ਯਮ, ਅੱਗ, ਵਰੁਣ, ਚੰਦਰਮਾ, ਪ੍ਰਜਾਪਤੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਪਿਤਾਮਹ (ਬ੍ਰਹਮਾ ਦੇ ਵੀ ਕਾਰਨ) ਹੋ, ਤੁਹਾਡੇ ਲਈ ਹਜਾਰਾਂ ਵਾਰ ਨਮਸਕਾਰ, ਨਮਸਕਾਰ ਹੈ, ਫਿਰ ਤੁਹਾਨੂੰ ਬਾਰੰਬਾਰ ਨਮਸਕਾਰ, ਨਮਸਕਾਰ ਹੈ ।11.39।

   Thou art Vayu, Yama, Agni, Varuna, the moon, the Creator, and the great-grandfather. Salutations, salutations unto You, a thousand times, and again salutations, respectful obeisances unto You.।11.39।

।11.40।
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥४० ॥

शब्दार्थ
नमः - नमस्कार
पुरस्तादथ - आगे से
पृष्ठतस्ते - और पीछे से भी
नमोऽस्तु - आपको नमस्कार
ते सर्वत - सब ओर से ही
एव सर्व - हे सर्वात्मन्‌
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं - हे अनन्त सामर्थ्यवाले, अनन्त पराक्रमशाली
समाप्नोषि - व्याप्त किए हुए हैं
ततोऽसि - इससे आप ही
सर्वः - समस्त संसार को

भावार्थ/Translation
   हे अनन्त सामर्थ्यवाले! आपको आगे से और पीछे से भी नमस्कार! हे सर्वात्मन्‌! आपको सब ओर से ही नमस्कार हो, क्योंकि अनन्त पराक्रमशाली आप समस्त संसार को व्याप्त किए हुए हैं, इससे आप ही सर्वरूप हैं ।11.40।

   ਹੇ ਅਨੰਤ ਸਾਮਰਥ ਵਾਲੇ ! ਤੁਹਾਨੂੰ ਅੱਗੇ ਅਤੇ ਪਿੱਛੇ ਤੋਂ ਵੀ ਨਮਸਕਾਰ ! ਹੇ ਸਰਵਾਤਮਾ ! ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਭ ਵਲੋਂ ਹੀ ਨਮਸਕਾਰ, ਕਿਉਂਕਿ ਅਨੰਤ ਪਰਾਕਰਮਸ਼ਾਲੀ, ਤੁਸੀ ਕੁਲ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਵਿਆਪਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ, ਤੁਸੀ ਹੀ ਸਰਵਰੂਪ ਹੋ ।11.40।

   Obeisances to You from the front, from behind and from all sides! O unbounded power, You are the master of limitless might! You are all-pervading, and thus You are everything! ।11.40।

।11.41।
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।
अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥ ४१॥

शब्दार्थ
सखेति - आपको सखा
मत्वा - मानकर
प्रसभं - बिना सोचे समझे
यदुक्तं - जो कुछ कहा है
हे कृष्ण - हे कृष्ण
हे यादव - हे यादव
हे सखेति - हे सखे
अजानता - न जानते हुए
महिमानं - महिमा को
तवेदंमया - आपकी इस
प्रमादात्प्रणयेन - प्रमाद से अथवा प्रेम से
वापि - भी

भावार्थ/Translation
   आपको सखा मानकर आपकी इस महिमा को न जानते हुए मेरे द्वारा प्रमाद से अथवा प्रेम से भी हे कृष्ण, हे यादव, हे सखे इस प्रकार जो कुछ बिना सोचे समझे कहा है ।11.41।

   ਤੁਹਾਨੂੰ ਸੰਗੀ-ਸਾਥੀ ਮੰਨ ਕੇ ਤੁਹਾਡੀ ਇਸ ਵਡਿਆਈ ਨੂੰ ਨਾਂ ਜਾਣਦੇ ਹੋਏ ਮੇਰੇ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਮਾਦ ਅਤੇ ਪ੍ਰੇਮ ਨਾਲ ਵੀ ਹੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ, ਹੇ ਯਾਦਵ, ਹੇ ਸਖੇ, ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਜੋ ਕੁੱਝ ਬਿਨਾਂ ਸੋਚੇ ਸਮਝੇ ਕਿਹਾ ਹੈ ।11.41।

   Unaware of this majesty of Yours, and either from negligence or love, or considering You to be a friend, whatever I have rudely said as 'O Krsna, O Yadava, O Friend.' ।11.41।

।11.42।
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु ।
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्‌ ॥४२ ॥

शब्दार्थ
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि - विनोद के लिए, आप अपमानित किए गए हैं
विहारशय्यासनभोजनेषु - चलतेफिरते, सोतेजागते, उठतेबैठते, खातेपीते
एकोऽथवाप्यच्युत - अकेले अथवा, हे अच्युत
तत्समक्षंतत्क्षामये - वह सब, सखाओं के सामने, क्षमायाचना करता हूँ
त्वामहमप्रमेयम्‌ - आपसे मैं

भावार्थ/Translation
   हे अच्युत! आप जो मेरे द्वारा विनोद के लिए चलते फिरते, सोते जागते, उठते बैठते, खाते पीते में अकेले अथवा सखाओं के सामने अपमानित किए गए हैं- वह सब के लिए अचिन्त्य प्रभाव वाले आपसे मैं क्षमायाचना करता हूँ ।11.42।

   ਹੇ ਅਚਉੱਤ ! ਤੁਸੀ ਜੋ ਮੇਰੇ ਦੁਆਰਾ ਹਸੀ ਵਿੱਚ ਚਲਦੇ ਫਿਰਦੇ, ਸੋਂਦੇ ਜਾਗਦੇ, ਉਠਦੇ ਬੈਠਦੇ, ਖਾਂਦੇ ਪੀਂਦੇ, ਇਕੱਲੇ ਅਤੇ ਦੋਸਤਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਅਪਮਾਨਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹੋ - ਉਹ ਸਭ ਲਈ ਅਚਿੰਤਿ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਾਲੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਮੈਂ ਖਿਮਾ ਯਾਚਨਾ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ।11.42।

   O Krishna, In whatever way I may have insulted you for the sake of fun, while at play, resting, sitting or at eating, when alone or in company of friends, I beg pardon from you for all that, immeasurable one.।11.42।

।11.43।
पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्‌।
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥४३ ॥

शब्दार्थ
पितासि - पिता
लोकस्य - जगत् के
चराचरस्य - चराचर
त्वमस्य - आप ही इस
पूज्यश्च - पूजनीय
गुरुर्गरीयान्‌ - सर्वश्रेष्ठ गुरु
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः - आपके समान, आपसे अधिक, कोई नहीं हैं
कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव - कैसे होगा, तीनों लोकों में, अनन्त प्रभावशाली

भावार्थ/Translation
   आप इस चराचर जगत् के पिता, पूजनीय और सर्वश्रेष्ठ गुरु हैं। हे अनन्त प्रभावशाली भगवन् तीनों लोकों में आपके समान भी कोई नहीं हैं, तो फिर आपसे अधिक कैसे होगा ।11.43।

   ਤੁਸੀ ਇਸ ਚਰਾਚਰ ਜਗਤ ਦੇ ਪਿਤਾ, ਪੂਜਨੀਕ ਅਤੇ ਸੱਬ ਤੋਂ ਉੱਤਮ ਗੁਰੂ ਹੋ । ਹੇ ਅਨੰਤ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਭਗਵਾਨ, ਤਿੰਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਤੁਹਾਡੇ ਸਮਾਨ ਵੀ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੋ, ਤਾਂ ਫਿਰ ਤੁਹਾਡੇ ਤੋਂ ਜਿਆਦਾ ਕਿਵੇਂ ਹੋਵੇਗਾ ।11.43।

   For this cosmic manifestation, you are the father, Only one to worship, the supreme spiritual master. No one is equal to You, How then could there be anyone greater than You within the three worlds, O Lord of immeasurable power.।11.43।

।11.44।
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्‌।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्‌॥ ४४॥

शब्दार्थ
तस्मात्प्रणम्य - इसलिये प्रणाम करके
प्रणिधाय - प्रणिपात करके
कायंप्रसादये - शरीर के द्वारा, प्रसन्न करने के लिये
त्वामहमीशमीड्यम्‌ - आप ईश्वर को, स्तुति के योग्य, मैं
पितेव - पिता
पुत्रस्य - पुत्र के
सखेव - मित्र
सख्युः - मित्र के
प्रियः - प्रिय
प्रियायार्हसि - प्रिया के, आप भी
देव - हे भगवन्
सोढुम्‌ - क्षमा कीजिये

भावार्थ/Translation
   मैं शरीर के द्वारा साष्टांग प्रणिपात करके स्तुति के योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ। हे देव, जैसे पिता पुत्र के, मित्र अपने मित्र के और प्रिय अपनी प्रिया के करता है, वैसे ही आप भी मेरे अपराधों को क्षमा कीजिये ।11.44।

   ਮੈਂ ਸਰੀਰ ਦੇ ਨਾਲ ਸਾਸ਼ਟਾਂਗ ਪ੍ਰਣਿਪਾਤ ਕਰਕੇ ਵਡਿਆਈ ਦੇ ਲਾਇਕ ਤੁਹਾਨੂੰ ਰੱਬ ਨੂੰ ਖੁਸ਼ ਹੋਣ ਲਈ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦਾ ਹਾਂ । ਹੇ ਦੇਵ, ਜਿਵੇਂ ਪਿਤਾ ਪੁੱਤ ਦੇ, ਮਿੱਤਰ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਦੇ ਅਤੇ ਪਿਆਰਾ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਿਆ ਦੇ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉੰਜ ਹੀ ਤੁਸੀ ਵੀ ਮੇਰੇ ਗੁਨਾਹਾਂ ਨੂੰ ਮਾਫ ਕਰੋ ।11.44।

   You are the Supreme Lord, to be worshiped. Thus I fall down to offer You my respectful obeisances and ask Your mercy. Please forgive the wrongs I may have done, As a father forgives his son, or a friend forgives a friend, or a marriage partner forgives the other partner. ।11.44।

।11.45।
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देवरूपंप्रसीद देवेश जगन्निवास ॥४५ ॥

शब्दार्थ
अदृष्टपूर्वं - पहले नहीं देखा
हृषितोऽस्मि - हर्षित हो रहा हूँ
दृष्ट्वा - देखकर
भयेन च - भयसे
प्रव्यथितं - अत्यन्त व्यथित
मनो मे - मेरा मन
तदेव मे - अतः आप मुझे
दर्शय - दिखाइये
देवरूपंप्रसीद - देवरूप को, प्रसन्न होइये
देवेश - हे देवेश
जगन्निवास - हे जगन्निवास

भावार्थ/Translation
   मैंने ऐसा पहले नहीं देखा। इस रूप को देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और भय से मेरा मन अत्यन्त व्यथित हो रहा है। अतः आप मुझे अपने देवरूप को दिखाइये। हे देवेश हे जगन्निवास आप प्रसन्न होइये ।11.45।

   ਮੈਂ ਅਜਿਹਾ ਪਹਿਲਾਂ ਨਹੀਂ ਵੇਖਿਆ । ਇਸ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵੇਖਕੇ ਮੈਂ ਹਰਸ਼ਿਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ਅਤੇ ਡਰ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਮਨ ਅਤਿਅੰਤ ਦੁਖੀ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅਤ: ਤੁਸੀ ਮੈਨੂੰ ਆਪਣਾ ਦੇਵਰੂਪ ਦਿਖਾਓ । ਹੇ ਦੇਵੇਸ਼, ਹੇ ਜਗਣ ਨਿਵਾਸ, ਤੁਸੀ ਖੁਸ਼ ਹੋਵੋ ।11.45।

   I am delighted, having seen what has never been seen before; and yet my mind is distressed with fear. Show me that previous form only, O God; have mercy, O God of gods, O Abode of the universe.।11.45।

।11.46।
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्त॥ ४६॥

शब्दार्थ
किरीटिनं - मुकुटधारी
गदिनं - गदा
चक्रहस्तमिच्छामि - चक्र हाथ में लिए हुए
त्वां - आपको
द्रष्टुमहं - देखना चाहता हूँ
तथैव तेनैव - आप उस
रूपेण - रूप
चतुर्भुजेनसहस्रबाहो - हे सहस्रबाहो चतुर्भुज
भव - बन जाइए
विश्वमूर्ते - हे विश्वमूर्ते

भावार्थ/Translation
   मैं आपको उसी प्रकार मुकुटधारी, गदा और चक्र हाथ में लिए हुए देखना चाहता हूँ। हे विश्वमूर्ते हे सहस्रबाहो आप उस चतुर्भुजरूप के ही बन जाइए ।11.46।

   ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਉਸੀ ਤਰਾੰ ਮੁਕੁਟਧਾਰੀ, ਗਦਾ ਅਤੇ ਚੱਕਰ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਲਏ ਹੋਏ ਵੇਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ । ਹੇ ਵਿਸ਼ਵਮੂਰਤ, ਹੇ ਸਹਸਰਬਾਹੂ, ਤੁਸੀ ਉਸ ਚਤੁਰਭੁਜਰੂਪ ਦੇ ਵਿੱਚ ਆਉ ।11.46।

   I want to see You just as before, wearing a crown, wielding a mace, and holding a disc in hand. O You with thousand arms, O You of Cosmic form, appear with that very form with four hands.।11.46।

।11.47।
श्रीभगवानुवाच
मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदंरूपं परं दर्शितमात्मयोगात्‌ ।
तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यंयन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्‌ ॥४७ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्रीभगवान् बोले
मया प्रसन्नेन - मैंने प्रसन्न होकर
तवार्जुनेदंरूपं - हे अर्जुन, तुझे
परं - श्रेष्ठ
दर्शितमात्मयोगात्‌ - अपनी योगशक्ति से, दिखाया है
तेजोमयं - तेजोमय
विश्वमनन्तमाद्यंयन्मे - सबका आदि, अनन्त विश्वरूप
त्वदन्येन - तुम्हारे सिवाय
न दृष्टपूर्वम्‌ - पहले नहीं देखा है

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् बोले - हे अर्जुन, मैंने प्रसन्न होकर अपनी सामर्थ्य से यह श्रेष्ठ, तेजोमय, सबका आदि और अनन्त विश्वरूप तुझे दिखाया है, जिसको तुम्हारे सिवाय पहले किसी ने नहीं देखा है ।11.47।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਬੋਲੇ - ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਮੈਂ ਖੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣੀ ਸਾਮਰਥ ਨਾਲ ਇਹ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ, ਤੇਜ ਨਾਲ ਭਰਿਆ, ਸਭ ਦਾ ਆਦਿ ਅਤੇ ਅਨੰਤ ਵਿਸ਼ਵਰੂਪ ਤੈਨੂੰ ਦਿਖਾਇਆ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਤੇਰੇ ਇਲਾਵਾ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਸੇ ਨੇ ਨਹੀਂ ਵੇਖਿਆ ਹੈ ।11.47।

   Krishna said, O Arjuna, this Cosmic Form has graciously been shown to thee by Me by My own Yogic power; full of splendour, primeval, and infinite, it has never been seen before by anyone other than you.।11.47।

।11.48।
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।
एवं रूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर ॥४८ ॥

शब्दार्थ
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न - न वेदाध्ययन और न यज्ञ
दानैर्न - न दान
च क्रियाभिर्न - न क्रियायों के द्वारा
तपोभिरुग्रैः - न उग्र तपों के द्वारा
एवं रूपः - इस रूप में
शक्य - देखा जा सकता हूँ
अहं - मैं
नृलोके - मनुष्य लोक में
द्रष्टुं - देखा जा सकता हूँ
त्वदन्येन - तुम्हारे अतिरिक्त
कुरुप्रवीर - हे अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, तुम्हारे अतिरिक्त इस मनुष्य लोक में, मैं इस रूप में, न वेदाध्ययन और न यज्ञ, न दान और न क्रियायों और उग्र तपों के द्वारा ही देखा जा सकता हूँ ।11.48।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਤੁਹਾਡੇ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਮਨੁੱਖ ਲੋਕ ਵਿੱਚ, ਮੈਂ ਇਸ ਰੂਪ ਵਿੱਚ, ਨਾਂ ਵੇਦ ਪੜ ਕੇ ਅਤੇ ਨਾਂ ਯੱਗ, ਨਾਂ ਦਾਨ ਅਤੇ ਨਾਂ ਕਿਰਿਆ ਅਤੇ ਉਗਰ ਤਪਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਵੇਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹਾਂ ।11.48।

   O Arjuna, Neither by the study of the Vedas and sacrifices, nor by donations nor by rituals nor by severe austerities can I be seen in this form in the world of men by any other than you. ।11.48।

।11.49।
मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌।
व्यतेपभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥ ४९॥

शब्दार्थ
मा ते - मेरे इस
व्यथा - व्यथा और
मा च - मत प्राप्त हो
विमूढभावोदृष्ट्वा - मूढ़भाव को, देखकर
रूपं - रूप को
घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌
व्यतेपभीः - निर्भय
प्रीतमनाः - प्रसन्नचित्त होकर
पुनस्त्वंतदेव - फिर मेरे
मे रूपमिदं - उसी रूप को
प्रपश्य - देखो

भावार्थ/Translation
   मेरे इस रूप को देखकर तुम व्यथा और मूढ़भाव को मत प्राप्त हो। निर्भय और प्रसन्नचित्त होकर तुम फिर मेरे उसी रूप को देखो ।11.49।

   ਮੇਰੇ ਇਸ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਤੂੰ ਦੁਖੀ ਅਤੇ ਮੂੜ ਭਾਵ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਾਂ ਹੋ । ਨਿਰਭੇ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸੰਨ ਚਿੱਤ ਹੋ ਕੇ ਤੂੰ ਫਿਰ ਮੇਨੂੰ ਉਸੀ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵੇਖ ।11.49।

   Don't be afraid, nor bewildered on seeing this form of mine; with thy fear dispelled and with a cheerful heart, now see again the natural form of Mine.।11.49।

।11.50।
संजय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः ।
आश्वासयामास च भीतमेनंभूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ॥५० ॥

शब्दार्थ
संजय उवाच - संजय ने कहा
इत्यर्जुनं - अर्जुन से ऐसा
वासुदेवस्तथोक्त्वा - वासुदेव ने कहकर
स्वकं रूपं - अपने रूप को
दर्शयामास भूयः - फिर दर्शाया
आश्वासयामास - आश्वस्त किया
च भीतमेनंभूत्वा - और भयभीत को
पुनः - फिर
सौम्यवपुर्महात्मा - सौम्यरूप श्रीकृष्ण ने

भावार्थ/Translation
   संजय ने कहा - भगवान् वासुदेव ने अर्जुन से ऐसा कहकर फिर अपने रूप को दर्शाया, और फिर सौम्य रूप श्रीकृष्ण ने इस भयभीत अर्जुन को आश्वस्त किया ।11.50।

   ਸੰਜੈ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਭਗਵਾਂਨ ਵਾਸੁਦੇਵ ਨੇ ਅਰਜੁਨ ਨੂੰ ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਫਿਰ ਆਪਣੇ ਪੁਰਾਣੇ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵਿਖਾਇਆ, ਅਤੇ ਫਿਰ ਪਿਆਰੇ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ ਨੇ ਇਸ ਭੈਭੀਤ ਅਰਜੁਨ ਨੂੰ ਆਸ਼ਵਸਤ ਕੀਤਾ ।11.50।

   Sanjaya said: The Supreme Personality, Krishna, having spoken thus to Arjuna, displayed His natural form, thus encouraging the fearful Arjuna.।11.50।

।11.51।
अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः॥ ५१॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच - अर्जुन बोले
दृष्ट्वेदं - इसे देखकर
मानुषं - मनुष्य
रूपं - रूप
तव - आपके
सौम्यं - सौम्य
जनार्दन - हे श्रीकृष्ण
इदानीमस्मि - इस समय हूँ
संवृत्तः - हो गया
सचेताः - शांत चित्त
प्रकृतिं - स्वाभाविक स्थिति को
गतः - प्राप्त हो गया हूँ

भावार्थ/Translation
   अर्जुन बोले - हे जनार्दन, आपके इस सौम्य मनुष्यरूप को देखकर मैं इस समय शांत चित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थितिको प्राप्त हो गया हूँ ।11.51।

   ਅਰਜੁਨ ਬੋਲੇ - ਹੇ ਜਨਾਰਦਨ, ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਪਿਆਰੇ ਮਨੁੱਖ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਮੈਂ ਇਸ ਸਮੇਂ ਸ਼ਾਂਤ ਚਿੱਤ ਹੋ ਗਿਆ ਹਾਂ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਕੁਦਰਤੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਆ ਗਿਆ ਹਾਂ ।11.51।

   Arjuna said: Having behold the human and pleasing form of Yours, O Krishna, I have now become composed in mind and I am restored to my normal nature.।11.51।

।11.52।
श्रीभगवानुवाच
सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम।
देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्‍क्षिणः॥५२ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्रीभगवान् ने कहा
सुदुर्दर्शमिदं - देखना अति दुर्लभ है
रूपं - रूप
दृष्टवानसि - देखा है
यन्मम - मेरा यह
देवा - देवता
अप्यस्य - भी इस
रूपस्य - रूप के
नित्यं - सदा
दर्शनकाङ्‍क्षिणः - दर्शन के इच्छुक रहते हैं

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् ने कहा - मेरा यह रूप देखना अति दुर्लभ है, जिसको तुमने देखा, देवतागण भी सदा इस रूप के दर्शन के इच्छुक रहते हैं ।11.52।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਮੇਰਾ ਇਹ ਰੂਪ ਵੇਖਣਾ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਲ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਤੂੰ ਵੇਖਿਆ, ਦੇਵਤਾਗਣ ਵੀ ਹਮੇਸ਼ਾ ਇਸ ਰੂਪ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇ ਇੱਛੁਕ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।11.52।

   Krishna said, This form of Mine which you have seen is very difficult to see; even the demigods are ever desirous of a vision of this form.।11.52।

।11.53।
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।
शक्य एवं विधो द्रष्टुं दृष्ट्वानसि मां यथा ॥ ५३॥

शब्दार्थ
नाहं - न हूँ
वेदैर्न - न वेदों से
तपसा - तप से
न दानेन - न दान से
न चेज्यया - न यज्ञ से ही
शक्य - सकता हूँ
एवं - इस
विधो - प्रकार
द्रष्टुं - देखा
दृष्ट्वानसि - देखा है
मां - मुझे
यथा - जैसा

भावार्थ/Translation
   न वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से ही मैं इस प्रकार देखा जा सकता हूँ, जैसा कि तुमने मुझे देखा है ।11.53।

   ਨਾਂ ਵੇਦਾਂ ਨਾਲ, ਨਾਂ ਤਪ ਨਾਲ, ਨਾਂ ਦਾਨ ਨਾਲ ਅਤੇ ਨਾਂ ਯੱਗ ਨਾਲ ਹੀ ਮੈਂ ਇਸ ਤਰਾਂ ਵੇਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹਾਂ, ਜਿਵੇਂ ਕ‌ਿ ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਵੇਖਿਆ ਹੈ ।11.53।

   Not through the Vedas, not by austerity, not by donations, nor even by sacrifice can I be seen in this form as you have seen Me.।11.53।

।11.54।
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन ।
ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥५४ ॥

शब्दार्थ
भक्त्या - भक्ति के द्वारा
त्वनन्यया - अनन्य
शक्य - योग्य
अहमेवंविधोऽर्जुन - अर्जुन
ज्ञातुं - जानने के लिए
द्रष्टुं - देखने के लिए
च - भी
तत्वेन - तत्व से
प्रवेष्टुं - प्राप्त करने के लिए
च परन्तप - परंतप

भावार्थ/Translation
   परन्तु हे परंतप अर्जुन! अनन्य भक्ति के द्वारा मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए तथा प्राप्त करने के लिए भी योग्य हूँ ।11.54।

   ਪਰ ਹੇ ਪਰੰਤਪ ਅਰਜੁਨ ! ਇੱਕੋ ਚਿੱਤੀ ਭਗਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਮੈਂ ਪ੍ਰਤੱਖ ਦੇਖਿਆ, ਤੱਤ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹਾਂ ।11.54।

   O Arjuna, but by single-minded devotion I can be known and seen in reality and also entered into.।11.54।

।11.55।
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्‍गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ॥ ५५॥

शब्दार्थ
मत्कर्मकृन्मत्परमो - मेरे लिए ही कर्म करने वाला है
मद्भक्तः - मेरा भक्त
सङ्‍गवर्जितः - संगरहित है
निर्वैरः - वैरभाव से रहित है
सर्वभूतेषु - सम्पूर्ण प्राणियों
यः स - वह
मामेति - मुझे प्राप्त होता है
पाण्डव - हे अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, जो मेरे लिए ही कर्म करने वाला है, और मेरे ही परायण है, जो मेरा भक्त है तथा संगरहित है, जो सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति वैरभाव से रहित है, वह मुझे प्राप्त होता है ।11.55।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਜੋ ਮੇਰੇ ਲਈ ਹੀ ਕਰਮ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਹੀ ਪਰਾਇਣ ਹੈ, ਜੋ ਮੇਰਾ ਭਗਤ ਹੈ ਅਤੇ ਸੰਗਰਹਿਤ ਹੈ, ਜੋ ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਵੈਰਭਾਵ ਵਲੋਂ ਰਹਿਤ ਹੈ, ਉਹ ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।11.55।

   O Arjuna, He who does all actions for Me, who looks upon Me as the Supreme, who is devoted to Me, who is free from attachment, who has no enmity towards any creature, he comes to Me.।11.55।


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः ॥11.1-11.55॥

To be Completed by 6th January, 2016 (55 days)

किसी भी त्रुटि को सुधारने के लिए, सुझाव, जिज्ञासा, प्रतिक्रिया, टिप्पणी, आलोचना आदि deep108@yahoo.com पर ई-मेल करें।
Please send email to deep108@yahoo.com for Any corrections, discussion, doubts, suggestions, comments and feedback.
ਗਲਤੀ ਸੁਧਾਰਣ ਲਈ, ਆਲੋਚਨਾ, ਪ੍ਰਤੀਕ੍ਰਿਯਾ, ਟਿੱਪਣੀ, ਸੁਝਾਵ ਅਤੇ ਸ਼ੰਕਾ ਆਦਿ ਲਈ deep108@yahoo.com ਤੇ ਈ-ਮੇਲ ਕਰੋ।