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अध्याय सात / Chapter Seven

।7.1।
श्रीभगवानुवाच
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥ १ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान् बोले
मय्यासक्तमनाः - मुझमें आसक्त मनवाला
पार्थ - हे पृथानन्दन (अर्जुन)
योगं - योग
युञ्जन्मदाश्रयः - अभ्यास से, मेरे आश्रित होकर
असंशयं - निःसन्देह
समग्रं मां - मेरे समग्ररूप को
यथा ज्ञास्यसि - जैसा जानेगा
तच्छृणु - उसको सुन

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् बोले हे अर्जुन- मुझ में आसक्त मन वाला, मेरे आश्रित होकर योग का अभ्यास करता हुआ, मेरे समग्र रूप को निःसन्देह जैसा जानेगा, तू उसको सुन ।7.1।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਬੋਲੇ, ਹੇ ਅਰਜੁਨ - ਮੇਰੇ ਤੇ ਮੋਹਿਤ ਮਨ ਵਾਲਾ, ਮੇਰੇ ਆਸਰੇ ਹੋ ਕੇ ਯੋਗ ਦਾ ਅਭਿਆਸ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ, ਮੇਰੇ ਸਮੁੱਚੇ ਰੂਪ ਨੂੰ ਨਿ:ਸੰਦੇਹ ਜਾਨੇਗਾ, ਤੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਸੁਣ ।7.1।

   Lord Krishna said, O Arjuna, hear how you shall without doubt know Me fully, with the mind intent on Me, practising Yoga and taking refuge in Me. ।7.1।

।7.2।
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥ २ ॥

शब्दार्थ
ज्ञानं - ज्ञान
तेऽहं - तेरे लिये मैं सविज्ञानमिदं - विज्ञान सहित (अनुभव से परखा हुआ)
वक्ष्याम्यशेषतः - सम्पूर्णता से कहूँगा
यज्ज्ञात्वा - जिस को जानने के बाद
नेह - इस संबंध में, नहीं
भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते - फिर यहाँ कुछ भी जानना बाकी रहेगा

भावार्थ/Translation
   तेरे लिये मैं विज्ञान सहित ज्ञान सम्पूर्णता से कहूँगा जिसको जाननेके बाद फिर यहाँ कुछ भी जानना बाकी नहीं रहेगा ।7.2।

   ਤੇਰੇ ਲਈ ਮੈਂ ਵਿਗਿਆਨ ਸਹਿਤ ਗਿਆਨ ਸੰਪੂਰਣਤਾ ਨਾਲ ਕਹਾਂਗਾ ਜਿਸਨੂੰ ਜਾਨ ਕੇ, ਫਿਰ ਇੱਥੇ ਕੁੱਝ ਵੀ ਜਾਨਣਾ ਬਾਕੀ ਨਹੀਂ ਰਹੇਗਾ ।7.2।

   I shall declare to you in full this knowledge combined with realisation, after knowing which nothing more here remains to be known. ।7.2।

।7.3।
मनुष्याणां सह्स्त्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥ ३ ॥

शब्दार्थ
मनुष्याणां - मनुष्यों में
सह्स्त्रेषु - हजारों
कश्चिद्यतति - कोई, प्रयत्न करता है
सिद्धये - सिद्धि के लिए
यततामपि - प्रयत्नशील, भी
सिद्धानां - साधकों में
कश्चिन्मां - कोई ही मुझे
वेत्ति तत्त्वतः - तत्त्व से जानता है

भावार्थ/Translation
   हजारों मनुष्यों में कोई ही पूर्णत्व की सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है और उन प्रयत्नशील साधकों में भी कोई ही मुझे तत्त्व से जानता है ।7.3।

   ਹਜਾਰਾਂ ਮਨੁੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਹੀ ਪੂਰਣਤਾ ਦੀ ਸਿੱਧੀ ਲਈ ਜਤਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਜਤਨਸ਼ੀਲ ਸਾਧਕਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕੋਈ ਹੀ ਮੈਨੂੰ ਤੱਤਵ ਨਾਲ ਜਾਣਦਾ ਹੈ ।7.3।

   Among thousands of men, one per chance strives for perfection; even among those strivers, only one per chance knows Me in essence.।7.3।

।7.4।
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहड्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ ४॥


शब्दार्थ
भूमिरापोऽनलो - पृथ्वी जल अग्नि
वायुः खं मनो - वायु, आकाश तथा मन
बुद्धिरेव च - बुद्धि और
अहड्कार - अहंकार
इतीयं मे भिन्ना - यह, विभक्त हुई मेरी
प्रकृतिरष्टधा - आठ प्रकार से, प्रकृति

भावार्थ/Translation
   पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश तथा मन, बुद्धि और अहंकार; यह आठ प्रकार से विभक्त हुई मेरी प्रकृति है ।7.4।

   ਧਰਤੀ , ਪਾਣੀ , ਅੱਗ, ਹਵਾ, ਅਕਾਸ਼ ਅਤੇ ਮਨ, ਬੁੱਧੀ ਅਤੇ ਹਉਂਮਾ ; ਇਹ ਅੱਠ ਤਰਾਂ ਨਾਲ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਮੇਰੀ ਕੁਦਰਤ ਹੈ ।7.4।

   Earth, water, fire, air, ether, mind, intellect and ego; this is the eightfold division of My nature.।7.4।

।7.5।
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् ।
जीवभूतां महबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥ ५ ॥

शब्दार्थ
अपरेयमितस्त्वन्यां - यह अपरा है, इससे भिन्न
प्रकृतिं - प्रकृति
विद्धि - जानो
मे पराम् - मेरी पराप्रकृति
जीवभूतां - जीवरूपी
महाबाहो - अर्जुन
ययेदं - जिससे यह
धार्यते - धारण किया जाता है
जगत् - भुवन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, यह अपरा प्रकृति है। इससे भिन्न मेरी जीवरूपी पराप्रकृति को जानो जिससे यह जगत धारण किया जाता है ।7.5।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਇਹ ਅਪਰਾ ਕੁਦਰਤ ਹੈ । ਇਸਤੋਂ ਭਿੰਨ ਮੇਰੀ ਜੀਵਰੂਪੀ ਪਰਾ ਕੁਦਰਤ ਨੂੰ ਜਾਨ, ਜਿਸਦੇ ਨਾਲ ਇਹ ਜਗਤ ਧਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।7.5।

   O Arjuna, this is my inferior energy, there is another, superior energy of Mine, which comprises the very life that sustains the universe. ।7.5।

।7.6।
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥ ६ ॥

शब्दार्थ
एतद्योनीनि - इन दोनों प्रकृतियों से ही
भूतानि - प्राणी
सर्वाणीत्युपधारय - सम्पूर्ण, तू ऐसा समझ
अहं कृत्स्नस्य - मैं सम्पूर्ण
जगतः - जगत का
प्रभवः - उत्पत्ति कारण
प्रलयस्तथा - तथा प्रलय

भावार्थ/Translation
   तू ऐसा समझ कि सम्पूर्ण प्राणी इन दोनों प्रकृतियों से ही उत्पन्न हैं और मैं सम्पूर्ण जगत का उत्पत्ति तथा प्रलय स्थान हूँ ।7.6।

   ਤੂੰ ਅਜਿਹਾ ਸੱਮਝ ਕਿ ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਨਾਂ ਕੁਦਰਤਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਪੈਦਾ ਹਨ ਅਤੇ ਮੈਂ ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ ਦਾ ਉਤਪੱਤੀ ਅਤੇ ਪਰਲੋ ਦੀ ਥਾਂ ਹਾਂ ।7.6।

   Know that these two (Natures) are the womb of all beings. So I am the source and dissolution of the whole universe.।7.6।

।7.7।
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥ ७ ॥

शब्दार्थ
मत्तः परतरं - मुझसे परे
नान्यत्किञ्चिदस्ति - अन्य किचिन्मात्र वस्तु नहीं है
धनञ्जय - अर्जुन
मयि सर्वमिदं - यह सम्पूर्ण जगत्, मुझमें
प्रोतं सूत्रे - सूत के धागे में, पिरोया हुआ है
मणिगणा इव - मणियों की तरह

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, मुझसे परे अन्य कोई वस्तु नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत् सूत के धागे में मणियों की तरह मुझ में पिरोया हुआ है ।7.7।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹੋਰ ਕੋਈ ਚੀਜ਼ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਇਹ ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ ਸੂਤ ਦੇ ਧਾਗੇ ਵਿੱਚ ਮਣੀਆਂ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਪਰੋਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।7.7।

   O Arjuna, There exists nothing beyond Me; all this is strung on Me just as the series of pearls on a string. ।7.7।

।7.8।
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥ ८ ॥

शब्दार्थ
रसोऽहमप्सु - मैं जल में रस हूँ,
कौन्तेय - हे अर्जुन
प्रभास्मि - प्रकाश (कान्ति) हूँ
शशिसूर्ययोः - चन्द्रमा और सूर्य में
प्रणवः - ओंकार हूँ
सर्ववेदेषु - सम्पूर्ण वेदों में
शब्दः खे - आकाश में शब्द
पौरुषं - पुरुषत्व (पुरुषार्थ) हूँ
नृषु - मानव में

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन ! मैं जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रकाश हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार हूँ, आकाश में शब्द और मानवों में पुरुषत्व हूँ ।7.8।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ! ਮੈਂ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਰਸ ਹਾਂ , ਚੰਦਰਮਾ ਅਤੇ ਸੂਰਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਹਾਂ , ਸੰਪੂਰਣ ਵੇਦਾਂ ਵਿੱਚ ਓਂਕਾਰ ਹਾਂ , ਅਕਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸ਼ਬਦ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਮਰਦਾਨਗੀ ਹਾਂ ।7.8।

   O Arjuna, I am the taste of water, I am the effulgence of the moon and the sun; (the letter) Om in all the Vedas, the sound in space, and manhood in men. ।7.8।

।7.9।
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥ ९ ॥

शब्दार्थ
पुण्यो - पवित्र
गन्धः - गन्ध हूँ
पृथिव्यां च - पृथ्वी में
तेजश्चास्मि - तेज हूँ
विभावसौ - अग्नि में
जीवनं - जीवन
सर्वभूतेषु - सम्पूर्ण प्राणी
तपश्चास्मि - मैं तप हूँ
तपस्विषु - तपस्वियों में

भावार्थ/Translation
   पृथ्वी में पवित्र गन्ध हूँ, और अग्नि में तेज हूँ सम्पूर्ण प्राणियों में जीवन हूँ और तपस्वियों में मैं तप हूँ ।7.9।

   ਧਰਤੀ ਵਿੱਚ ਪਵਿਤਰ ਗੰਧ ਹਾਂ , ਅਤੇ ਅੱਗ ਵਿੱਚ ਤੇਜ ਹਾਂ, ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਜੀਵਨ ਹਾਂ ਅਤੇ ਤਪਸਵੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਤਪ ਹਾਂ ।7.9।

   I am the pure smell in the earth; I am the brilliance in the fire; I am the life-force in all beings, and austerity in ascetics.।7.9।

।7.10।
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् ।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥ १० ॥

शब्दार्थ
बीजं मां - कारण मुझे
सर्वभूतानां - सम्पूर्ण प्राणियों
विद्धि - जानो
पार्थ - अर्जुन
सनातनम् - सनातन
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि - मैं बुद्धिमानों की बुद्धि
तेजस्तेजस्विनामहम् - तेजस्वियों का तेज हूँ

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, सम्पूर्ण प्राणियों का सनातन कारण मुझे जानो, मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ ।7.10।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦਾ ਸਨਾਤਨ ਕਾਰਨ ਮੈਨੂੰ ਜਾਣ , ਮੈਂ ਅਕਲਮੰਦਾਂ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਅਤੇ ਤੇਜਸਵੀਆਂ ਦਾ ਤੇਜ ਹਾਂ ।7.10।

   O son of Partha ! Know Me as the eternal seed of all beings; I am the intellect of the intellectuals and the bprowess of all powerful men. ।7.10।

।7.11।
बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् ।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कमोऽस्मि भरतर्षभ ॥ ११ ॥

शब्दार्थ
बलं बलवतां - बलवानों का बल
चाहं - मैं हूँ
कामरागविवर्जितम् - कामना तथा आसक्ति से रहित
धर्माविरुद्धो - धर्म के अनुकूल
भूतेषु - सब प्राणियों में
कामोऽस्मि - काम मैं हूँ
भरतर्षभ - अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन - मैं बलवानों का कामना तथा आसक्ति से रहित बल हूँ और सब प्राणियों में धर्म के अनुकूल काम मैं हूँ ।7.11।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ - ਮੈਂ ਬਲਸ਼ਾਲੀ ਦਾ ਕਾਮਨਾ ਅਤੇ ਆਸਕਤੀ ਰਹਿਤ ਜੋਰ ਹਾਂ ਅਤੇ ਸਭ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਧਰਮ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਕੰਮ ਮੈਂ ਹਾਂ ।7.11।

   O Arjuna, I am the 'Strength devoid of attachment and desire' of the strong, and I am the Desire for righteousness as prescribed by Dharma.।7.11।

।7.12।
ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्र्च ये ।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥ १२ ॥

शब्दार्थ
ये चैव - जितने भी
सात्विका भावा - सात्त्विक भाव
राजसास्तामसाश्र्च ये - राजस और तामस
मत्त एवेति - मेरे से ही होते हैं
तान्विद्धि - ऐसा समझो
न त्वहं - मैं उनमें नहीं
तेषु ते मयि - वे मेरे में हैं

भावार्थ/Translation
   जितने भी सात्त्विक, राजस और तामस भाव हैं वे सब मेरे से ही होते हैं, ऐसा समझो। पर मैं उनमें (उनके आधीन) नहीं पर वे मेरे में हैं ।7.12।

   ਜਿੰਨੇ ਵੀ ਸਾੱਤਵਿਕ, ਰਾਜਸ ਅਤੇ ਤਾਮਸ ਭਾਵ ਹਨ ਉਹ ਸਭ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਅਜਿਹਾ ਸਮੱਝ। ਪਰੰਤੂ ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ( ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਧੀਨ ) ਨਹੀਂ, ਪਰ ਉਹ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਹਨ ।7.12।

   Know that all those states of Sattva, Rajas and Tamas (goodness, passion or ignorance) are from Me alone. But I am not in (not under) them; they are in Me.।7.12।

।7.13।
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥ १३ ॥

शब्दार्थ
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः - इन तीनों गुणरूप भावों से
सर्वमिदं - सब
जगत् - जगत
मोहितं - मोहित
नाभिजानाति - नहीं जानता
मामेभ्यः - इन गुणों से, मेरे को
परमव्ययम् - विलक्षण, अविनाशी

भावार्थ/Translation
   इन तीनों गुणरूप भावों से मोहित यह सब जगत् इन गुणों से परे विलक्षण, अविनाशी मेरे को नहीं जानता ।7.13।

   ਇਨਾਂ ਤਿੰਨਾਂ ਗੁਣਰੂਪ ਭਾਵਾਂ ਨਾਲ ਮੋਹਿਤ ਇਹ ਸਭ ਜਗਤ ਇਨਾਂ ਗੁਣਾਂ ਤੋਂ ਪਰੇ ਵਿਲੱਖਣ , ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਮੇਨੂੰ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦਾ ।7.13।

   Deluded by these three Nature qualities, this whole world does not know Me as distinct from them and immutable.।7.13।

।7.14।
दैवी ह्येषा गुणमयी मम मया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥ १४ ॥

शब्दार्थ
दैवी ह्येषा - यह दैवी
गुणमयी - त्रिगुण संपन्न
मम माया - मेरी माया
दुरत्यया - लांघने में कठिन
मामेव ये - जो मेरी
प्रपद्यन्ते - शरण में आते हैं
मायामेतां - इस माया को
तरन्ति ते - पार कर जाते हैं

भावार्थ/Translation
   यह दैवी त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है, परन्तु जो मेरी शरण में आते हैं वे इस माया को पार कर जाते हैं ।7.14।

   ਇਹ ਦੈਵੀ ਤਿੰਨ ਗੁਣਾਂ ਵਾਲੀ ਮੇਰੀ ਮਾਇਆ ਪਾਰ ਕਰਨੀ ਬਹੁਤ ਔਖੀ ਹੈ , ਪਰ ਜੋ ਮੇਰੀ ਸ਼ਰਨ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਇਸ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।7.14।

   Verily, this Divine Illusion of three Qualities of nature is difficult to surmount. Only those who devote themselves to Me alone; can accomplish it. ।7.14।

।7.15।
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥ १५ ॥

शब्दार्थ
न मां दुष्कृतिनो - पाप कर्म करने वाले, नहीं
मूढाः प्रपद्यन्ते - मूढ़, मेरे शरण होते
नराधमाः - नीच कर्म करने वाले
माययापहृतज्ञाना - माया से ज्ञान हर लिया गया है
आसुरं - आसुरी
भावमाश्रिताः - स्वभाव वाले

भावार्थ/Translation
   नीच कर्म करने वाले मूढ पुरुष मुझे नहीं भजते, माया के द्वारा जिनका ज्ञान हर लिया गया है वे आसुरी भाव को धारण करते हैं ।7.15।

   ਨੀਚ ਕਰਮ ਕਰਣ ਵਾਲੇ ਮੂਰਖ ਪੁਰਖ ਮੈਨੂੰ ਨਹੀਂ ਭਜਦੇ , ਮਾਇਆ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗਿਆਨ ਹਰ ਲਿਆ ਹੈ ਉਹ ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ ਭਾਵ ਨੂੰ ਧਾਰਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ।7.15।

   The evil-doers and the deluded, do not seek Me; whose knowledge is destroyed by illusion follow the ways of demons.।7.15।

।7.16।
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थाथी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ १६ ॥

शब्दार्थ
चतुर्विधा - चार प्रकार के
भजन्ते - भजते हैं
मां जनाः - मनुष्य मेरा
सुकृतिनोऽर्जुन - पवित्र कर्म करनेवाले
आर्तो - संकट दुख निवारण के लिए
जिज्ञासुरर्थाथी - मेरा यथार्थ जानने की इच्छा वाला, सांसारिक पदार्थों के लिए
ज्ञानी च - और ज्ञानी
भरतर्षभ - अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन , मेरा यथार्थ जानने की इच्छा वाला, सांसारिक पदार्थों की इच्छा वाला, दुख निवारण के लिए, और ज्ञानी ये चार प्रकार के पवित्र कर्म करने वाले मनुष्य मेरा भजन करते हैं ।7.16।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਮੇਰਾ ਯਥਾਰਥ ਜਾਣਨ ਦੀ ਇੱਛਾ ਵਾਲਾ, ਸਾਂਸਾਰਿਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਇੱਛਾ ਵਾਲਾ, ਦੁੱਖੋਂ ਛੁਟਕਾਰੇ ਦੇ ਲਈ , ਅਤੇ ਗਿਆਨੀ ਇਹ ਚਾਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਵਿੱਤਰ ਕਰਮ ਕਰਣ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਮੇਰਾ ਭਜਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ।7.16।

   O Arjuna, four kinds of pious men begin to render devotional service unto Me—the distressed, the desirer of wealth, the inquisitive for the transcendental knowledge and the wise.।7.16।

।7.17।
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥ १७ ॥

शब्दार्थ
तेषां - उनमें
ज्ञानी - ज्ञानी
नित्ययुक्त - नित्य लगा हुआ
एकभक्तिर्विशिष्यते - अनन्य भक्ति वाला, श्रेष्ठ
प्रियो हि - प्रिय हूँ
ज्ञानिनोत्यर्थमहं - ज्ञानी को मैं अत्यन्त
स च मम - और वह मुझे
प्रियः - प्रिय

भावार्थ/Translation
   उनमें भी मुझ में नित्य लगा हुआ अनन्य भक्ति वाला ज्ञानी श्रेष्ठ है क्योंकि ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह मुझे प्रिय है ।7.17।

   ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਨਿੱਤ ਲੱਗਿਆ ਹੋਇਆ, ਅਟੁੱਟ ਅਤੇ ਬੇਜੋੜ ਭਗਤੀ ਵਾਲਾ ਗਿਆਨੀ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਗਿਆਨੀ ਨੂੰ ਮੈਂ ਅਤਿਅੰਤ ਪਿਆਰਾ ਹਾਂ ਅਤੇ ਉਹ ਮੈਨੂੰ ਪਿਆਰਾ ਹੈ ।7.17।

   Of them, the man of Knowledge, endowed with constant steadfastness and one-pointed devotion, excels. For I am very much dear to the man of Knowledge, and he too is dear to Me.।7.17।

।7.18।
उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवनुत्तमां गतिम् ॥ १८ ॥

शब्दार्थ
उदाराः - उत्कृष्ट हैं
सर्व - सब
एवैते - पहले कहे हुए
ज्ञानी - ज्ञानी
त्वात्मैव - मेरा स्वरूप ही है
मे - मेरा
मतम् - मत है
आस्थितः - स्थिर बुद्धि
स हि - वह है
युक्तात्मा - मुझमें अच्छी प्रकार स्थित
मामेवनुत्तमां - अति उत्तम
गतिम् - गतिस्वरूप

भावार्थ/Translation
   (यद्यपि) ये सब उत्कृष्ट हैं परन्तु ज्ञानी तो मेरा स्वरूप ही है ऐसा मेरा मत है क्योंकि वह स्थिर बुद्धि ज्ञानी अति उत्तम गतिस्वरूप मुझमें अच्छी प्रकार स्थित है ।7.18।

   ( ਹਾਲਾਂਕਿ ) ਇਹ ਸਭ ਉੱਤਮ ਹਨ ਪਰ ਗਿਆਨੀ ਤਾਂ ਮੇਰਾ ਸਵਰੂਪ ਹੀ ਹੈ ਅਜਿਹਾ ਮੇਰਾ ਮਤ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸਥਿਰ ਬੁੱਧੀ ਗਿਆਨੀ, ਅਤਿ ਉੱਤਮ ਗਤੀ ਸਰੂਪ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਪੂਰੀ ਤਰਾਂ ਸਥਿਤ ਹੈ ।7.18।

   Noble indeed are all these; but I deem the wise man as My very Self; for, steadfast in mind he is established in Me alone as the supreme goal. ।7.18।

।7.19।
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ १९ ॥

शब्दार्थ
बहूनां - बहुत
जन्मनामन्ते - जन्मों के अन्तिम जन्म में
ज्ञानवान्मां - ज्ञानवान् मेरे
प्रपद्यते - शरण होता है
वासुदेवः - परमात्मा
सर्वमिति स - सब कुछ, ऐसा
महात्मा - महात्मा
सुदुर्लभः - अत्यन्त दुर्लभ है

भावार्थ/Translation
   बहुत जन्मों के अन्तिम जन्म में सब कुछ परमात्मा ही है ऐसा जो ज्ञानवान मेरे शरण होता है वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।7.19।

   ਬਹੁਤ ਜਨਮਾਂ ਦੇ ਬਾਦ ਆਖਰੀ ਜਨਮ ਵਿੱਚ, ਸਭ ਕੁੱਝ ਈਸਵਰ ਹੀ ਹੈ ਅਜਿਹਾ ਜੋ ਗਿਆਨਵਾਨ ਮੇਰੇ ਸ਼ਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮਹਾਤਮਾ ਅਤਿਅੰਤ ਦੁਰਲਭ ਹੈ ।7.19।

   At the end of many births the man of Knowledge attains Me, (realizing) that Vasudeva is all. Such a high-souled one is very rare.।7.19।

।7.20।
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥ २० ॥

शब्दार्थ
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः - जिन जिन भोग की कामना से जिनका ज्ञान हर लिया गया है
प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः - अन्य देवताओं के शरण हो जाते हैं
तं तं नियममास्थाय - उन उन नियम का पालन करते हुए
प्रकृत्या - स्वभाव से
नियताः - प्रेरित हुए
स्वया - अपने

भावार्थ/Translation
   जिन जिन भोग की कामना से जिनका ज्ञान हर लिया गया है ऐसे पुरुष अपने स्वभाव से प्रेरित हुए उन उन नियम का पालन करते हुए उन उन देवताओं को भजते हैं ।7.20।

   ਜਿਸ ਜਿਸ ਭੋਗ ਦੀ ਕਾਮਨਾ ਨਾਲ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗਿਆਨ ਹਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਅਜਿਹੇ ਪੁਰਖ ਆਪਣੇ ਸੁਭਾਅ ਵਲੋਂ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਹੋਏ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਿਯਮ ਦਾ ਪਾਲਣ ਕਰਦੇ , ਉਨ੍ਹਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇਵਤਿਆਂ ਨੂੰ ਭਜਦੇ ਹਨ ।7.20।

   Those whose intelligence has been stolen by material desires surrender unto demigods and follow the particular rules and regulations of worship according to their own natures. ।7.20।

।7.21।
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धायार्चितुमिच्छति ।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥ २१ ॥

शब्दार्थ
यो यो यां यां - जो-जो, जिस-जिस
तनुं भक्तः - देवता के भक्त
श्रद्धायार्चितुमिच्छति - श्रद्धा से पूजता है
तस्य तस्याचलां - उस-उस, स्थिर
श्रद्धां - श्रद्धाको
तामेव - उसी
विदधाम्यहम् - मैं, करता हूँ

भावार्थ/Translation
   जो-जो देवता के भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजता है, उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ ।7.21।

   ਜੋ - ਜੋ ਦੇਵਤੇ ਦੇ ਭਗਤ ਜਿਸ - ਜਿਸ ਦੇਵਤੇ ਦੇ ਸਰੂਪ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਪੂਜਦਾ ਹੈ , ਉਸ - ਉਸ ਭਗਤ ਦੀ ਸ਼ਰਧਾ ਨੂੰ, ਮੈਂ ਉਸੀ ਦੇਵਤੇ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸਥਿਰ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ।7.21।

   Whichever form (of a deity) any devotee wants to worship with faith, that very faith of his in a particular God, I strengthen.।7.21।

।7.22।
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हितान् ॥ २२ ॥

शब्दार्थ
स तया श्रद्धया - वह, उस श्रद्धा से
युक्तस्तस्याराधनमीहते - युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है
लभते च ततः - और उस, पूरी भी होती है
कामान्मयैव - कामना, मेरे द्वारा ही
विहितान्हितान् - विधान किए हुए

भावार्थ/Translation
   वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को प्राप्त करता है ।7.22।

   ਉਹ ਪੁਰਖ ਉਸ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ, ਉਸ ਦੇਵਤਾ ਦਾ ਪੂਜਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇਵਤਾ ਵਲੋਂ ਮੇਰੇ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਵਿਧਾਨ ਕੀਤੇ ਹੋਏ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਇੱਛਤ ਭੋਗਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ।7.22।

   Being imbued with that faith, that person engages in worshipping that form, and he gets those very desired results therefrom as they are dispensed by Me alone.।7.22।

।7.23।
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् ।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥ २३ ॥

शब्दार्थ
अन्तवत्तु - नाशवान्
फलं तेषां - उन का वह फल
तद्भवत्यल्पमेधसाम् - अल्प बुद्धि पुरुषों
देवान्देवयजो - देवताओं के पूजक देवताओं को
यान्ति - प्राप्त होते हैं
मद्भक्ता - मेरे भक्त
यान्ति मामपि - मुझे ही प्राप्त होते हैं

भावार्थ/Translation
   परन्तु उन अल्प बुद्धि पुरुषों का वह (देवताओं की पूजा का) फल नाशवान् होता है। देवताओं के पूजक देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं ।7.23।

   ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਘੱਟ ਬੁੱਧੀ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦਾ ਉਹ ( ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਦਾ ) ਫਲ ਨਾਸ਼ਵਾਂਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੇ ਉਪਾਸਕ ਦੇਵਤਿਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਭਗਤ ਮੈਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।7.23।

   That result of theirs who are of poor intellect is limited. The worshippers of gods go to the gods. My devotees go to Me alone. ।7.23।

।7.24।
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥ २४ ॥

शब्दार्थ
अव्यक्तं - अव्यक्त
व्यक्तिमापन्नं - मनुष्यकी तरह ही शरीर धारण करनेवाला
मन्यन्ते - मानते हैं
मामबुद्धयः - बुद्धिहीन मनुष्य मेरे
परं भावमजानन्तो - परमभाव को न जानते हुए
ममाव्ययमनुत्तमम् - सर्वश्रेष्ठ अविनाशी

भावार्थ/Translation
   बुद्धिहीन मनुष्य मेरे सर्वश्रेष्ठ अविनाशी परम भाव को न जानते हुए अव्यक्त (मन इन्द्रियों से परे) मुझे मनुष्यकी तरह ही शरीर धारण करने वाला मानते हैं ।7.24।

   ਨਾਸਮਝ ਮਨੁੱਖ ਮੇਰੇ ਸਾਰਿਆਂ ਤੋਂ ਉੱਤਮ, ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਪਰਮ ਭਾਵ ਨੂੰ ਨਾਂ ਜਾਣਦੇ ਹੋਏ, ਅਗਿਆਤ (ਮਨ ਇੰਦਰੀਆਂ ਤੋਂ ਪਰੇ) ਮੈਨੂੰ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਸਰੀਰ ਧਾਰਨ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਮੰਣਦੇ ਹਨ ।7.24।

   The unintelligent, unaware of My supreme state which is immutable and unsurpassable, think of Me as the unmanifest that has become manifest like any other human being.।7.24।

।7.25।
नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥ २५ ॥

शब्दार्थ
नाहं प्रकाशः - मैं प्रकट नहीं होता हूँ
सर्वस्य - सबको
योगमायासमावृतः - योगमाया से आवृत्त
मूढोऽयं - यह मोहित
नाभिजानाति - नहीं जानता
लोको - मनुष्य
मामजमव्ययम् - मुझे जन्मरहित अविनाशी

भावार्थ/Translation
   अपनी योगमाया से आवृत्त मैं सबको प्रत्यक्ष नहीं होता हूँ। यह मोहित मनुष्य मुझ जन्मरहित अविनाशी को नहीं जानता है ।7.25।

   ਆਪਣੀ ਯੋਗ-ਮਾਇਆ ਨਾਲ ਲੁਕਿਆ, ਮੈਂ ਸਾਰਿਆ ਨੂੰ ਪ੍ਰਤੱਖ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ। ਇਹ ਮੋਹਿਤ ਮਨੁੱਖ ਮੇਰੇ ਜਨਮਰਹਿਤ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਰੂਪ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦਾ ।7.25।

   Veiled by the Yoga-Maya, I am not manifest to all. This deluded world does not know Me, the unborn and imperishable. ।7.25।

।7.26।
वेदाहं समतीतानि वर्तमामानि चार्जुन ।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्र्चन ॥ २६ ॥

शब्दार्थ
वेदाहं - मैं जानता हूं
समतीतानि - पूर्व में व्यतीत हुए
वर्तमामानि - वर्तमान में स्थित
चार्जुन - अर्जुन
भविष्याणि - भविष्य में होने वाले
च भूतानि - प्राणियों
मां तु वेद - परन्तु मुझे, जानता
न कश्र्चन - कोई भी नहीं

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन पूर्व में व्यतीत हुए, वर्तमान में स्थित तथा भविष्य में होने वाले प्राणियों को मैं जानता हूँ परन्तु मुझे कोई भी पुरुष नहीं जानता ।7.26।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ਪਹਿਲਾਂ ਬਤੀਤ ਹੋਏ , ਵਰਤਮਾਨ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਅਤੇ ਭਵਿੱਖ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਨੂੰ ਮੈਂ ਜਾਣਦਾ ਹਾਂ ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਪੁਰਖ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦਾ ।7.26।

   O Arjuna, I know the past and the present as also the future beings; but no one knows Me! ।7.26।

।7.27।
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥ २७ ॥

शब्दार्थ
इच्छाद्वेषसमुत्थेन - इच्छा और द्वेष से उत्पन्न
द्वन्द्वमोहेन - द्वन्द्वमोह से
भारत - भरत वंश में उत्पन्न
सर्वभूतानि - सभी प्राणी
सम्मोहं सर्गे - सभी प्राणी, देह उत्पत्ति काल में ही
यान्ति - प्राप्त होते हैं
परन्तप - अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे भरत वंश में उत्पन्न अर्जुन, इच्छा और द्वेष से उत्पन्न द्वन्द्वमोह से सभी प्राणी देह उत्पत्ति काल में ही अविवेक को प्राप्त होते हैं ।7.27।

   ਹੇ ਭਰਤ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਵਿੱਚ ਪੈਦਾ ਅਰਜੁਨ, ਇੱਛਾ ਅਤੇ ਦਵੇਸ਼ ਨਾਲ ਪੈਦਾ ਮੋਹ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ, ਸਾਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਦੇਹ ਉਤਪੱਤੀ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਹੀ, ਅਗਿਆਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।7.27।

   O scion of the Bharata dynasty Arjuna, By the delusion of the pairs of opposites arising from desire and aversion, all beings are subject to delusion at birth. ।7.27।

।7.28।
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥ २८ ॥

शब्दार्थ
येषां त्वन्तगतं - जिन पाप नष्ट हो गया है
पापं जनानां - पुरुषों का पाप
पुण्यकर्मणाम् - पुण्यकर्मी
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता - वे द्वन्द्वमोह से रहित
भजन्ते मां - मुझे भजते हैं
दृढव्रताः - दृढ़वती

भावार्थ/Translation
   परन्तु जिन पुण्यकर्मी पुरुषों का पाप नष्ट हो गया है वे द्वन्द्वमोह से रहित और दृढ़वती पुरुष मुझे भजते हैं ।7.28।

   ਪਰ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਪੁੰਣ ਕਰਮੀ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦਾ ਪਾਪ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਉਹ ਮੋਹ ਦੇ ਚੱਕਰ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਅਤੇ ਪੱਕੇ ਇਰਾਦੇ ਵਾਲੇ ਪੁਰਖ ਮੈਨੂੰ ਭਜਦੇ ਹਨ ।7.28।

   But those men of virtuous deeds, whose sin has come to an end, they being free from the delusion of pairs of opposites, worship Me with firm resolve.।7.28।

।7.29।
जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥ २९ ॥

शब्दार्थ
जरामरणमोक्षाय - बुढापे और मरण से मुक्ति पाने के लिए
मामाश्रित्य - मेरे शरणागत होकर
यतन्ति ये - जो यत्न करते हैं
ते ब्रह्म - वे, ब्रह्म को
तद्विदुः - जानते हैं
कृत्स्नमध्यात्मं - सम्पूर्ण अध्यात्म को
कर्म चाखिलम् - सम्पूर्ण कर्म को

भावार्थ/Translation
   जो मेरे शरणागत होकर बुढापेऔर मरण से मुक्ति पाने के लिए यत्न करते हैं वे पुरुष उस परमात्मा को, सम्पूर्ण अध्यात्म को और सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं ।7.29।

   ਜੋ ਮੇਰੇ ਸ਼ਰਣਾਗਤ ਹੋ ਕੇ ਬੁਢਾਪੇ ਅਤੇ ਮਰਨ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਪਾਉਣ ਲਈ ਜਤਨ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਪੁਰਖ ਉਸ ਈਸਵਰ ਨੂੰ , ਸੰਪੂਰਣ ਅਧਿਆਤਮ ਨੂੰ ਅਤੇ ਸੰਪੂਰਣ ਕਰਮ ਨੂੰ ਜਾਣਦੇ ਹਨ ।7.29।

   Those who strive for liberation from old age and death, taking refuge in Me, realise in full Supreme Brahman, the whole knowledge of the Self and all action.।7.29।

।7.30।
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥ ३० ॥

शब्दार्थ
साधिभूताधिदैवं - जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव
मां साधियज्ञं - तथा अधियज्ञ के सहित
च ये विदुः - मुझे जानते हैं
प्रयाणकालेऽपि - अन्तकाल में भी
च मां ते - वे मुझे ही
विदुर्युक्तचेतसः - मुझे जानते हैं, युक्तचित्त वाले पुरुष

भावार्थ/Translation
   जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव तथा अधियज्ञ के सहित मुझे जानते हैं वे युक्तचित्त वाले पुरुष अन्तकाल में भी मुझे जानते हैं ।7.30।

   ਜੋ ਪੁਰਖ ਅਧਿਭੂਤ ਅਤੇ ਅਧਿਦੈਵ ਅਤੇ ਅਧਿਯੱਗ ਦੇ ਸਹਿਤ ਮੈਨੂੰ ਜਾਣਦੇ ਹਨ ਉਹ ਸਮਾਨ ਚਿੱਤ ਵਾਲੇ ਪੁਰਖ ਅੰਤਕਾਲ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮੈਨੂੰ ਜਾਣਦੇ ਹੈ ।7.30।

   And those who know Me with the Adhibhuta, Adhidaiva and the Adhiyajna, they too, with their minds fixed in meditation, know Me even at the hour of death.।7.30।


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानविज्ञानयोगो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥7.1-7.30॥

To be Completed by 31st July, 2015 (30 days)

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