Chapter Navigation :    1   2   3   4   5   6   7   8   9  10  11  12  13  14  15  16  17  18
Verses :  1  2  3  4  5  6  7  8  9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35
36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71
72

अध्याय दो / Chaper Two
साङ्ख्ययोगः

।2.1।
सञ्जय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ।१॥

शब्दार्थ
तं तथा - उस को (अर्जुन को) इस प्रकार
कृपयाविष्टम- करुणा से व्याप्त
अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् -आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले
विषीदन्तमिदं - शोकयुक्त
वाक्यमुवाच - (यह) वचन कहे
मधुसूदनः - भगवान मधुसूदन (श्रीकृष्ण) ने
भावार्थ/Translation
   सञ्जय ने कहा, अर्जुन को इस प्रकार करुणा से व्याप्त, आँसुओं से पूर्ण, व्याकुल तथा शोकयुक्त देखकर भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहे।2.1।

   ਸੰਜੇ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਅਰਜੁਨ ਨੂੰ ਇਸ ਤਰਾਂ ਕਰੁਣਾ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਹੋਇਆ, ਘਬਰਾਇਆ ਹੋਇਆ ,ਦੁਖੀ ਅਤੇ ਹੰਝੂਆਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਦੇਖ ਕੇ ਭਗਵਾਨ ਮਧੁਸੂਦਨ ਨੇ ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ।2.1।

   Sanjaya said: Krishna saw Arjuna full of compassion, grief, depressed and full of tears. Thus Krishna spoke following words.।2.1।


।2.2।
श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥२॥

शब्दार्थ
्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा - तुमको कहां से
कश्मलमिदं- यह कलुषित भाव (मन में)
विषमे - विपत्तिकाल में (असमय)
समुपस्थितम् -आवेशित हुआ
अनार्यजुष्टम - अश्रेष्ठ पुरुषों का आचरण
स्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन- न स्वर्ग देने वाला , न कीर्ति देने वाला

भावार्थ/Translation
   श्रीभगवान बोले, (हे अर्जुन) यह कलुषित भाव तुम्हारे मन में कहां से आया, यह भाव न स्वर्ग देने वाला है, न कीर्ति देने वाला है तथा अश्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है।2.2।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਬੋਲੇ, (ਹੇ ਅਰਜੁਨ) ਇਹ ਕਲੁਸ਼ਿਤ ਵਿਚਾਰ ਤੇਰੇ ਮਨ ਵਿਚ ਕਿਂਵੇ ਆਇਆ, ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਨਾਂ ਤਾਂ ਸਵਰਗ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਨਾਂ ਕੀਰਤੀ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸ਼੍ਰੇਸ਼ਠ ਪੁਰਖ ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਆਚਰਨ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ।2.2।

   Lord Krishna said: O Arjuna, how have these impure feelings came in your mind? These do not lead to higher planets and neither result in fame. These type of feelings are shown by vicious persons.।2.2।


।2.3।
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥३॥

शब्दार्थ
क्लैब्यं मा - नपुसंकता
मा स्म गमः - न प्राप्त हो
पार्थ - हे अर्जुन
नैतत्त्वय्युपपद्यते- न उत्पन्न होने दे
क्षुद्रं- तुच्छ
हृदयदौर्बल्यं- हृदय की दुर्बलता
त्यक्त्वोत्तिष्ठ - छोङ कर खडा हो जा
परन्तप- शत्रुनाशक

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, नपुंसकता को मत प्राप्त हो और इस भाव को अपने में न उत्पन्न होने दे। हृदय की तुच्छ दुर्बलता को छोङ कर खडा हो जा।2.3।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ਨਪੁਂਸਕ ਨਾ ਬਨ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਨੂਂ ਆਪਣੇ ਵਿੱਚ ਨਾ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਦੇ, ਮਨ ਦੀ ਕਮਜੋਰੀ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਜਾ।2.3।

   O Arjuna, do not yield to this type impotent behaviour and don't allow these feelings to flourish in you. Give up such petty weakness of heart and arise.।2.3।


।2.4।
अर्जुन उवाच
कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन ।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥४॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच
कथं - कैसे
भीष्ममहं - मैं भीष्म से
संख्ये - युद्ध में
द्रोणं च - एवं द्रोण से
मधुसूदन - हे कृष्ण
इषुभिः- बाणों से
प्रतियोत्स्यामि - साथ लङूं
पूजार्हावरिसूदन - हे अरिसूदन (हे श्रीकृष्ण), जो पूजनीय हैं

भावार्थ/Translation
   अर्जुन ने कहा, हे शत्रुनाशक श्रीकृष्ण, मैं पूजनीय भीष्म एवं द्रोण से युद्ध में बाणों से कैसे लङूं ।2.4।

   ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਹੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸ਼੍ਰੀ ਕਿ੍ਸ਼ਣ, ਮੈਂ ਪੂਜਨੀਯ ਭੀਸ਼ਮ ਅਤੇ ਦਰੋਣ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਤੀਰਾਂ ਨਾਲ ਕਿਂਵੇ ਲੜ੍ਹਾਂ।2.4 ।

   Arjuna said: O killer of enemies, Krishna, how can I fight with arrows in battle with men like Bhishma and Drona, who are adorable.।2.4।


।2.5।
गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके ।
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् ॥५॥

शब्दार्थ
गुरूनहत्वा हि - गुरूजनों को न मारकर
महानुभावान्- महान व्यक्ति
श्रेयो - कल्याणकारी
भोक्तुं - खाना
भैक्ष्यमपीह लोके- भिक्षा का अन्न
हत्वार्थकामांस्तु - सांसारिक भोगों के लिए मारकर
गुरूनिहैव- गुरुजनों को
भुञ्जीय- भोगने के लिए
भोगान्- भोगने योग्य पदार्थ
रुधिरप्रदिग्धान्- खून से सने हुए

भावार्थ/Translation
   गुरूजनों को मारकर, खून से सने हुए सांसारिक भोगों को भोगने की अपेक्षा, महान गुरूजनों को न मारकर, भिक्षा का अन्न खाना कल्याणकारी है।2.5।

   ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ, ਖੂਨ ਨਾਲ ਭਰੇ ਹੋਏ, ਸਂਸਾਰਿਕ ਸੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਭੋਗਣ ਤੋਂ ਤਾਂ, ਮਹਾਨ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਨਾ ਮਾਰ ਕੇ, ਭੀਖ ਦਾ ਅੰਨ ਖਾਣਾ ਕਲਿਆਣਕਾਰੀ ਹੈ।2.5।

   It would be better to live in this world by begging than to live at the cost of the lives of my great teachers. If they are killed, all materialistic pleasures we enjoy,will be tainted with blood.।2.5।


।2.6।
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥६॥

शब्दार्थ
न चैतद्विद्मः -हम यह भी नहीं जानते
कतरन्नो - हमारे लिए
गरीयो- अच्छा है
यद्वा जयेम- जीत जाना
यदि वा नो जयेयुः- या हारना
यानेव हत्वा - जिनको मारकर
न जिजीविषाम- जीना नहीं चाहते
स्तेऽवस्थिताः- सामने खड़े हैं
प्रमुखे - प्रमुख
धार्तराष्ट्राः- कौरव

भावार्थ/Translation
   हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए जीत जाना अच्छा है या हारना अच्छा है, जिनको मारकर मैं जीना नहीं चाहता, वह प्रमुख कौरव (मुकाबले में) सामने खड़े हैं।2.6।

   ਅਸੀਂ ਇਹ ਵੀ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ ਕਿ ਸਾਡੇ ਲਈ ਜਿੱਤਣਾ ਚੰਗਾ ਹੈ ਜਾਂ ਹਾਰਨਾ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਜਿਹਨਾਂ ਨੂਂ ਮਾਰ ਕੇ ਮੈਂ ਜਿਉਂਣਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦਾ, ਉਹ ਪ੍ਰਮੁ੍ੱਖ ਕੌਰਵ (ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿਚ) ਸਾਹਮਣੇ ਖਲੌਤੇ ਹਨ।2.6।

   We do not even know whether it is better conquering them or being conquered by them. I don't care to live, after killing the prominent kaurava commandants, standing before us on the battlefield.।2.6।


।2.7।
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः ।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥७॥

शब्दार्थ
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः- कायरता के दोष से उत्पन्न स्वभाव
पृच्छामि त्वां - आपसे पूछता हूँ
धर्मसम्मूढचेताः- धर्म के विषय में मूर्ख
यच्छ्रेयः - जो कल्याणकारी हो
स्यान्निश्चितं - निश्चित ही
ब्रूहि तन्मे- वह मुझे कहिए
शिष्यस्तेऽहं - आपका शिष्य हूँ
शाधि मां- शिष्य हूँ
त्वां - आपका
प्रपन्नम् - शरणागत

भावार्थ/Translation
   कायरता के दोष से उत्पन्न स्वभाव से आवेशित तथा धर्म के विषय में मूर्ख मैं आपका शरणागत शिष्य आपसे पूछता हूँ, कि जो निश्चित ही मेरे लिए कल्याणकारी हो, वह मुझे कहिए।2.7।

   ਕਾਇਰਤਾ ਦੇ ਦੋਸ਼ ਨਾਲ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਅਤੇ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਵਿਚ ਮੂਰਖ, ਮੈਂ ਤੁਹਾਡਾ ਸ਼ਰਣਾਗਤ ਚੇਲਾ ਤੁਹਾਨੂੰ ਪੁੱਛਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੀ ਮੇਰੇ ਲਈ ਕਲਿਆਣਕਾਰੀ ਹੈ , ਓਹ ਮੈਨੂੰ ਦੱਸੋ।2.7।

   Now I am confused about my duty and have lost all composure because of miserly weakness. As your disciple I request you to tell me for certain what is best for me.।2.7।


।2.8।
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद् यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥८॥

शब्दार्थ
न हि प्रपश्यामि - नहीं देखता हूँ
ममापनुद्याद् - मेरा (शोक) दूर कर सके
यच्छोकमुच्छोषणम- शोषित करने वाले इस शोक को
इन्द्रियाणाम्- इन्द्रियों को
अवाप्य - प्राप्त हो
भूमावासपत्नमृद्धं-भूमि का निष्कण्टक तथा धन-धान्य सम्पन्न
राज्यं - राज्य
सुराणामपि - देवताओं का
चाधिपत्यम्- स्वामी पद भी

भावार्थ/Translation
   मैं ऐसा नहीं देखता कि भूमि का निष्कण्टक तथा धन-धान्य सम्पन्न राज्य, देवताओं का स्वामी पद भी मेरे इस इन्द्रियों को शोषित करने वाले शोक को दूर कर सके।2.8।

   ਮੈਂਨੂੰ ਨਹੀਂ ਲਗਦਾ ਕਿ ਭੂਮੀ ਦਾ ਨਿਸ਼ਕਂਟਕ ਅਤੇ ਧਨ ਨਾਲ ਸੰਪੰਨ ਰਾਜ, ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੇ ਰਾਜੇ ਦੀ ਗੱਦੀ ਵੀ ਮੇਰੇ ਇਸ ਇੰਦਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦੁੱਖ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰ ਸਕੇ।2.8।

   I do not see anything which can drive away this grief which is drying up my senses. I will not be able to dispel it even if I win a prosperous, unrivaled kingdom on earth or kingdom of demigods in heaven.।2.8।


।2.9।
सञ्जय उवाच
एवमुक्तवा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप ।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्तवा तूष्णीं बभूव ह ।।९।।

शब्दार्थ
सञ्जय उवाच
एवमुक्तवा - यह कहकर
हृषीकेशं - श्रीकृष्ण
गुडाकेशः - (निद्रा को जीतने वाले) अर्जुन
परन्तप- (शत्रु हंता) अर्जुन
न योत्स्य इति - युद्ध नहीं, यह कह कर
गोविन्दमुक्तवा - श्री कृष्ण ने कहा
तूष्णीं बभूव ह- चुप हो गया

भावार्थ/Translation
   सञ्जय ने कहा, निद्रा को जीतने वाला, शत्रु हंता अर्जुन श्रीकृष्ण से बोला, हे गोविन्द, युद्ध नहीं , यह कह कर चुप हो गया।2.9।

   ਸੰਜੇ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਨੀਂਦ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਾਲ਼ਾ ਤੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਅਰਜੁਨ, ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ ਨੂੰ ਕਹਿਂਦਾ ਹੈ, "ਹੇ ਗੋਵਿਂਦ ਯੁੱਧ ਨਹੀਂ ", ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਚੁੱਪ ਹੋ ਗਿਆ। 2.9 ।

   Sanjaya said: Arjuna, who can overpower the sleep and chastiser of enemies, told Krishna, “Govinda, no war,” and fell silent.।2.9।


।2.10।
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ।।१०।।

शब्दार्थ
तमुवाच - यह बोले
हृषीकेशः -श्रीकृष्ण
प्रहसन्निव- प्रसन्नता से
भारत - हे भरतवंशी (धृतराष्ट्र)
सेनयोरुभयोर्मध्ये - दोनों सेनाओं के बीच में
विषीदन्तमिदं - शोक करते हुए को
वचः- वचन

भावार्थ/Translation
   हे भरतवंशी धृतराष्ट्र, दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए अर्जुन को श्रीकृष्ण प्रसन्न भाव से यह वचन बोले।2.10।

   ਹੇ ਧ੍ਰਿਤਰਾਸ਼ਟਰ , ਸ਼ੋਕ ਨਾਲ ਭਰੇ ਅਰਜੁਨ ਨੂੰ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ ਨੇ ਪ੍ਰਸੰਨ ਸੁਭਾਅ ਨਾਲ, ਦੋਵਾਂ ਸੇਨਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਖੜ੍ਹੇ, ਇਹ ਵਚਨ ਬੋਲੇ।2.10।

   O descendant of Bharata (Dhritrashtra), at that time Krishna, smiling, spoke the following words to the grief-stricken Arjuna, in the midst of both the armies.।2.10।


।2.11।
श्री भगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ।।११।।

शब्दार्थ
अशोच्यान्- शोक न करने योग्य
अन्वशोचस्त्वं - तू शोक कर रहा है
प्रज्ञावादांश्च - विद्वानों की बातें
भाषसे-बोलना
गतासूनगतासूंश्च- मृतकों व जीवितों के लिए
नानुशोचन्ति- शोक नहीं करते
पण्डिताः- ज्ञानीजन

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान बोले - हे अर्जुन, तुम विद्वानों की तरह बातें कर रहे हो, परन्तु उनके लिए शोक कर रहे हो, जो शोक करने योग्य नहीं हैं। ज्ञानीजन मृतकों व जीवितों के लिए शोक नहीं करते।2.11।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਬੋਲੇ - ਹੇ ਅਰਜੁਨ ਤੂੰ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਦੀ ਤਰਾਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈਂ, ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਲਈ ਸ਼ੋਕ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈਂ, ਜੋ ਕਿ ਸ਼ੋਕ ਕਰਨ ਲਾਇਕ ਨਹੀਂ ਹਨ। ਸਿਆਣੇ ਲੋਕ, ਮਰੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਜਿਉਂਦਿਆਂ ਲਈ ਸ਼ੋਕ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ।2.11।

   The Lord said -- O Arjuna! you are talking like a wise man but you grieve for those who should not be grieved for. The wise grieve neither for the dead nor for the living.।2.11।


।2.12।
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ।।१२।।

शब्दार्थ
न त्वेवाहं -ऐसा नहीं है, मैं
जातु नासं - किसी काल में नहीं था
न त्वं नेमे - न तु, न ये
जनाधिपाः - राजा (समूह)
न चैव - न ऐसा ही है
न भविष्यामः -नहीं रहेंगे
सर्वे वयमतः - हम सब इसके
परम् - बाद में

भावार्थ/Translation
   ऐसा नहीं है कि मैं, तुम और ये राजा किसी काल में नहीं थे, ऐसा भी नही है कि हम सब भविष्य में नहीं रहेंगे।2.12।

   ਇਹ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ, ਤੂੰ ਅਤੇ ਇਹ ਰਾਜੇ ਕਿਸੇ ਕਾਲ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਇਹ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਭਵਿੱਖ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਰਹਾਂਗੇ।2.12।

   It is not that I, you and these kings did not exist at any time in the past (I, you and these kings were always there at any time in the past); And surely it is not that we all shall cease to exist in future (We will be always there in the future also).।2.12।



।2.13।
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ।।१३।।

शब्दार्थ
देहिनोऽस्मिन्यथा - जैसे देहधारी के
देहे - शरीर में
कौमारं - बालकपन
यौवनं - जवानी
जरा- वृद्धावस्था
तथा - और
देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र - अन्य शरीर की प्राप्ति से धीर पुरुष
न मुह्यति- मोहित नहीं होता

भावार्थ/Translation
   जैसे देहधारी के शरीर में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है; इसमें धीर पुरुष मोहित नहीं होता।2.13।

   ਜਿਵੇਂ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸ਼ਰੀਰ ਵਿਚ ਬਚਪਨ, ਜਵਾਨੀ ਅਤੇ ਬੁਢਾਪਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਓਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਦੂਸਰੇ ਸ਼ਰੀਰ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੁਂਦੀ ਹੈ, ਇਸ ਵਿਚ ਧੀਰ(ਧੀਰਜ ਰੱਖਣ ਵਾਲ਼ਾ) ਪੁਰਖ ਮੋਹਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ।2.13।

   Just as the self associated with a body faces childhood, youth and old age, similarly it passes into another body. A wise man is not deluded by that.।2.13।


।2.14।
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।१४।।

शब्दार्थ
मात्रास्पर्शास्तु - इन्द्रियों के विषय
कौन्तेय - अर्जुन
शीतोष्णसुखदुःखदाः-सर्दी-गर्मी और सुख दु:ख
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व - आने-जानेवाले और अनित्य को सहन करो
भारत- अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, इन्द्रियों के विषय सुख और दु:ख देने वाले हैं, जो सर्दी-गर्मी की तरह आने-जाने वाले और अनित्य हैं उनको सहन करो।2.14।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਸੁਖ ਅਤੇ ਦੁਖ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਹਨ, ਜੋ ਸਰਦੀ ਗਰਮੀ ਦੀ ਤਰਾਂ ਆਉਣ-ਜਾਉਣ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਆਰਜ਼ੀ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਹਿਨ ਕਰੋ।2.14।

   O Arjuna, sense-objects give rise to feelings of cold and heat, pleasure and pain. They come and go like winter and summer, and are impermanent. Tolerate them.।2.14।



।2.15।
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ।।१५।।

शब्दार्थ
यं हि न- ये सब नही
व्यथयन्त्येते - जिसको व्यथित नहीं करते
पुरुषं - मनुष्य
पुरुषर्षभ- हे पुरुषश्रेष्ठ (अर्जुन)
समदुःखसुखं - दु:ख और सुख में समान
धीरं - धीर
सोऽमृतत्वाय - वह अमरता
कल्पते- योग्य है

भावार्थ/Translation
   हे पुरुषश्रेष्ठ, जिस मनुष्य को इन्द्रियों के विषय व्यथित नहीं करते और जो दु:ख सुख में समान रहता है, वह धीर पुरुष अमृतत्व के योग्य है।2.15।

   ਹੇ ਮਹਾਨ ਪੁਰਖ, ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਭਰਮਾਉੰਦੇ ਨਹੀਂ ਅਤੇ ਜੋ ਦੁਖ-ਸੁਖ ਵਿਚ ਸਥਿਰ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਧੀਰ ਪੁਰਖ ਅਮਰੱਤਵ ਦੇ ਲਾਇਕ ਹੈ।2.15|

   O Arjuna, That person becomes eligible for immortality, whom sensual desires do not trouble and remains alike in pleasure and pain.।2.15।


।2.16।
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ।।१६।।

शब्दार्थ
नासतो- असत् नहीं
विद्यते : - अस्तित्व (विद्यमान)
भावो- है
नाभावो - अभाव नहीं है
विद्यते- अस्तित्व (विद्यमान)
सतः - सत्
उभयोरपि - दोनों का ही
दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः-तत्त्वदर्शियों ने निष्कर्ष निकाला है

भावार्थ/Translation
   असत् का तो अस्तित्व नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इन दोनों का तत्त्व, ज्ञानी पुरुषों ने देखा है।2.16।

   ਝੂਠ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਤੇ ਸੱਚ ਦੀ ਕਮੀ ਨਹੀਂ (ਸਬ ਜਗਾ ਮੌਜੂਦ) ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਦੋਹਾਂ ਦਾ ਤੱਤ ਗਿਆਨੀ ਪੁਰਖਾਂ ਨੇ ਦੇਖਿਆ ਹੈ।2.16।

   The unreal can never come into being, the real never ceases to be. The essence of these two is known to wisemen.।2.16।


।2.17।
अविनाशी तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ।।१७।।

शब्दार्थ
अविनाशी - जिसका विनाश नहीं हो सकता
तु तद्विद्धि - उसको जानो
येन सर्वमिदं ततम् - जो सर्वत्र व्याप्त है
विनाशमव्ययस्यास्य - इस अविनाशी का विनाश
न कश्चित्कर्तुमर्हति- कोई भी करने में समर्थ नहीं है

भावार्थ/Translation
   अविनाशी वह है, जो सर्वत्र व्याप्त है। इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है।2.17।

   ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਉਹ ਹੈ ਜੋ ਸ਼ਭ ਪਾਸੇ ਮੋਜੂਦ ਹੈ, ਇਸ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਦਾ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਕੋਈ ਸਮਰੱਥ ਨਹੀਂ ਹੈ ।2.17।

   But know That to be indestructible by which all this is pervaded. None can destroy this Immutable (Imperishable).।2.17।


।2.18।
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः ।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ।।१८।।

शब्दार्थ
अन्तवन्त - नाशवान
इमे देहा - ये शरीर
नित्यस्योक्ताः - नित्य रहनेवाले कहे गये हैं
शरीरिणः - शरीरी (देहधारी आत्मा)
अनाशिनोऽप्रमेयस्य - नाशरहित तथा जाना न सकने वाला
तस्माद्युध्यस्व - इसलिये, युद्ध करो
भारत- हे अर्जुन

भावार्थ/Translation
   इस नाशवान शरीर में रहनेवाला शरीरी नित्य, नाशरहित तथा जाना न सकने वाला है। इसलिये, हे अर्जुन। युद्ध करो।2.18।

   ਇਸ ਨਾਸ਼ਵਾਨ ਸ਼ਰੀਰ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸ਼ਰੀਰੀ ਨਿੱਤ, ਨਾਸ਼ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਜਾਣਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ, ਇਸ ਲਈ ਹੇ ਅਰਜੁਨ ਯੁੱਧ ਕਰ।2.18।

   The embodied one in these destructible bodies is everlasting, indestructible and indeterminable. Therefore, O Arjuna, join the battle.।2.18।


।2.19।
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ।।१९।।

शब्दार्थ
य एनं वेत्ति - जो इसे जानता है
हन्तारं - मारने वाला
यश्चैनं - जो इसे
मन्यते - मानता है
हतम् - मरा हुआ
उभौ तौ न - दोनों ही इसे नहीं
विजानीतो - जानते
नायं - न
हन्ति - मारता है
न हन्यते - न मारा जाता है

भावार्थ/Translation
   जो इस शरीरी को मारने वाला मानता है और जो इसे मरा हुआ मानता है, वे दोनों ही इसे नहीं जानते; यह न मारता है और न मारा जाता है।।2.19।।

   ਜੋ ਇਸ ਸ਼ਰੀਰ ਨੂੰ ਮਰਨ ਵਾਲਾ ਮੰਨਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜੋ ਇਸ ਨੂੰ ਮਰਿਆ ਹੋਇਆ ਮੰਨਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਇਸ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ, ਇਹ ਨਾਂ ਤਾਂ ਮਾਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾ ਮਾਰਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।2.19।

   He who thinks of this incarnate One as the killer, and he who thinks of this One as the killed -- both of them do not know. This One does not kill, nor is It killed. ।2.19।


।2.20।
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।२0।।

शब्दार्थ
न जायते - न जन्मता है
म्रियते वा - और मरता है
कदाचिन्नायं - कभी नहीं
भूत्वा - यह (उत्पन्न) होकर
भविता वा- फिर होनेवाला
न भूयः-नहीं है
अजो - जन्मरहित
नित्यः - नित्य
शाश्वतोऽयं - सनातन
पुराणो - पुरातन
न हन्यते - न मारा जाता है
हन्यमाने- मारे जाने पर
शरीरे- शरीर के

भावार्थ/Translation
   यह न जन्मता है और न मरता ही है; यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला नहीं है। यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है; शरीरके मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।2.20।

   ਇਹ ਨਾ ਜਨਮ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਮਰਦਾ ਹੈ, ਇਹ ਪੈਦਾ ਹੋ ਕੇ ਦੁਬਾਰਾ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਇਹ ਅਜਨਮਾ, ਨਿੱਤ, ਸਨਾਤਨ ਅਤੇ ਪੁਰਾਤਨ ਹੈ, ਸ਼ਰੀਰ ਦੇ ਮਰ ਜਾਣ ਤੇ ਵੀ ਇਹ ਨਹੀਂ ਮਰਦਾ।2.20।

   It is not born, nor does It ever die. It is not that takes birth and will go through the cycle (of birth and death) to be born again. Unborn, eternal, ancient (changeless) and primeval, It is not slain when the body is slain.।2.20।



।2.21।
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् ।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ।।२१।।

शब्दार्थ
वेदाविनाशिनं - अविनाशी जानता है
नित्यं य - नित्य और
एनमजमव्ययम्- जन्मरहित तथा क्षयविहीन
कथं स पुरुषः -वह पुरुष कैसे
पार्थ - हे पार्थ (अर्जुन)
कं घातयति - कैसे मरवायेगा
हन्ति कम्-कैसे मारेगा
भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन ! जो पुरुष शरीरी को अविनाशी, नित्य, जन्मरहित तथा क्षयविहीन जानता है, वह किसे मरवायेगा और कैसे मारेगा।2.21।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਸ਼ਰੀਰ ਨੂੰ ਨਾਸ਼ ਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲਾ, ਨਿੱਤ, ਜਨਮ-ਮਰਨ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਅਤੇ ਅਟੱਲ ਜਾਣਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਕਿਸ ਨੂੰ ਮਰਵਾਉਗਾ ਅਤੇ ਕਿਵੇਂ ਮਾਰੁਗਾ ।2.21।

   O Arjuna, he who knows this One(Soul) as indestructible, eternal, birthless(unborn) and undecaying (immutable), how and whom does that person kill, or whom does he cause to be killed.।2.21।


।2.22।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।२२।।

शब्दार्थ
वासांसि -कपड़ों को
जीर्णानि - पुराने
यथा विहाय - जैसे छोड़कर
नवानि- नये
गृह्णाति - धारण करता है
नरोऽपराणि- मानव दूसरे
तथा शरीराणि - ऐसे ही शरीर को
विहाय जीर्णा- न्यन्यानि - पुराने छोड़कर अन्य
संयाति नवानि - नया लेता है
देही - शरीरी (आत्मा)

भावार्थ/Translation
   मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण करता है, ऐसे ही देही पुराने शरीर को छोड़कर दूसरे नये शरीर में चला जाता है ।।2.22।।

   ਮਨੁੱਖ ਜਿਵੇਂ ਪੁਰਾਣੇ ਕੱਪੜੇ ਛੱਡ ਕੇ ਨਵੇਂ ਕਪੜੇ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਤਰਾਂ ਹੀ ਦੇਹੀ ਪੁਰਾਣੇ ਸ਼ਰੀਰ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਨਵੇਂ ਸ਼ਰੀਰ ਵਿਚ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।2.22।

   As a man discards worn-out garments and puts on new ones, so does the embodied self discards Its worn-out body and enters into new one.।2.22।


।2.23।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।२३।।

शब्दार्थ
नैनं छिन्दन्ति - इसको काट नहीं सकते (खण्ड-खण्ड करना)
शस्त्राणि - शस्त्र (आयुध)
नैनं दहति - इसको जला नहीं सकती
पावकः- अग्नि
न चैनं - इसको नहीं
क्लेदयन्त्यापो - जल, गला सकता
न शोषयति - नहीं सुखा सकता
मारुतः- वायु

भावार्थ/Translation
   इस (आत्मा) को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती।2.23।

   ਇਸ (ਆਤਮਾ) ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰ ਕੱਟ ਨਹੀਂ ਸਕਦੇ , ਅੱਗ ਜਲਾ ਨਹੀਂ ਸਕਦੀ , ਜਲ ਗਲਾ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ਅਤੇ ਹਵਾ ਸੁਖਾ ਨਹੀਂ ਸਕਦੀ।2.23।

   Weapons can not cut It (soul), fire can not burn It, water can not moisten(wet) It, and air can not dry It.।2.23।


।2.24।
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ।।२४।।

शब्दार्थ
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य - न कटने वाली, न जलने वाली, न गलने वाली, न सुखने वाली
एव च- यह है
नित्यः सर्वगतः - नित्य, सर्वव्यापी
स्थाणुरचलोऽयं - स्थिर स्वभाव वाला, अचल (जङ)
सनातनः- अनादि

भावार्थ/Translation
   यह (आत्मा) न कटने वाली, न जलने वाली, न गलने वाली, न सुखने वाली है। यह नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर स्वभाव वाला, अचल, अनादि है।2.24।

   ਇਹ (ਆਤਮਾ) ਨਾ ਕਟਣ ਵਾਲੀ , ਨਾ ਜਲਣ ਵਾਲੀ , ਨਾ ਗਲਣ ਵਾਲੀ ਅਤੇ ਨਾ ਸੁਕਣ ਵਾਲੀ ਹੈ । ਇਹ ਨਿੱਤ, ਸਰਬਵਿਆਪੀ, ਸਥਿਰ ਸੁਭਾਅ ਵਾਲਾ, ਅਚਲ ਅਤੇ ਅਨਾਦਿ ਹੈ।2.24।

   This (Self) cannot be cut, burnt, wet, nor dried up. It is eternal, all-pervading, stable, immovable and ancient.।2.24।


।2.25।
अव्यक्तोऽयमचिन्तयोऽयमविकार्योऽयमुच्यते ।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ।।२५।।

शब्दार्थ
अव्यक्तोऽयमचिन्तयोऽयमविकार्योऽयमुच्यते- (देही) अव्यक्त (अदृश्य), अचिन्त्य(अकल्पनीय) और अविकारी(अपरिवर्तनीय) कहा जाता है
तस्मादेवं - इसलिए, इस प्रकार
विदित्वैनं - जानकर
नानुशोचितुमर्हसि- शोक करना उचित नहीं

भावार्थ/Translation
   (देही) अदृश्य, अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय कहा जाता है इसलिए इसे इस प्रकार जानकर तुमको शोक करना उचित नहीं है।2.25।

   (ਦੇਹੀ) ਨਾ ਦਿਖਣ ਵਾਲਾ, ਕਲਪਨਾ ਤੋਂ ਦੂਰ ਅਤੇ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਨੂੰ ਇਸ ਤਰਾਂ ਜਾਣ ਕੇ, ਤੈਨੂੰ ਸ਼ੋਕ ਕਰਨਾ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੈ।2.25।

   This (self) is said to be unmanifest, inconceivable and unchanging. After knowing this, it is not proper for you to grieve.।2.25।


।2.26।
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् ।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ।।२६।।

शब्दार्थ
अथ चैनं- अगर तुम इसे (देही को)
नित्यजातं -सदा जन्म लेने वाला
नित्यं वा -तथा सदा
मन्यसे -मानता है
मृतम् - मरने वाला
तथापि -फिर भी
त्वं महाबाहो- हे महाबाहो (अर्जुन)
नैवं -इसका नहीं
शोचितुमर्हसि-शोक करने योग्य

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, अगर तुम इसे (देही को) सदा जन्म लेने वाला तथा सदा मरने वाला मानता है, फिर भी यह शोक करने योग्य नहीं है।2.26।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਜੇ ਤੂੰ ਇਸ (ਦੇਹੀ) ਨੂੰ ਸਦਾ ਜਨਮ ਲੈਣ ਵਾਲਾ ਅਤੇ ਸਦਾ ਮਰਨ ਵਾਲਾ ਮੰਨਦਾ ਹੈਂ ਤਾਂ ਵੀ ਇਹ ਸ਼ੋਕ ਕਰਨ ਲਾਇਕ ਨਹੀਂ ਹੈ।2.26।

   O Arjuna, if you think of It as being constantly going through birth and death, even then, you should not grieve.।2.26।



।2.27।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ।।२७।।

शब्दार्थ
जातस्य - जन्मे हुए की
हि ध्रुवो - निश्चित है
मृत्युर्ध्रुवं -मृत्यु, निश्चित है
जन्म -जन्म
मृतस्य च- मरे हुए का
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न- इसका निवारण नहीं है
त्वं शोचितुमर्हसि- तेरे लिए शोक करने योग्य

भावार्थ/Translation
   जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है, मरे हुए का जन्म निश्चित है क्योंकि यह अपरिहार्य (अटल) है इसलिए इसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये।2.27।

   ਜੰਮੇ ਹੋਏ ਦੀ ਮੌਤ ਪੱਕੀ ਹੈ, ਮਰੇ ਹੋਏ ਦਾ ਜਨਮ ਤੈਅ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਨਿਯਮ ਅਟੱਲ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਸੰਬੰਧੀ ਤੈਨੂੰ ਸ਼ੋਕ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ।2.27।

   Death is certain for what is born; and birth is certain after death. Therefore you should not lament over a thing that is inevitable.।2.27।


।2.28।
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत ।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ।।२८।।

शब्दार्थ
अव्यक्तादीनि -जन्म से पहले अप्रकट
भूतानि - सभी प्राणी
व्यक्तमध्यानि- बीच में प्रकट (जन्म एवं मृत्यु के बीच)
भारत-हे अर्जुन
अव्यक्तनिधनान्येव - मरने के बाद अप्रकट
तत्र का -तो उसका क्या
परिदेवना- शोक करना

भावार्थ/Translation
   सभी प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद अप्रकट होंगे, केवल मध्य में प्रकट हैं; अतः इसमें शोक की बात क्या है।2.28।

   ਸਾਰੇ ਜੀਵ ਜਨਮ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਪ੍ਰਗਟ ਸੀ ਅਤੇ ਮਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅਪ੍ਰਗਟ ਹੋਣਗੇ, ਸਿਰਫ ਮੱਧ ਵਿਚ ਪ੍ਰਗਟ ਹਨ, ਇਸ ਵਿਚ ਸ਼ੋਕ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਕੀ ਗੱਲ ਹੈ।2.28।

   O Arjuna, all beings remain unmanifest in the beginning; become manifest in the middle, become unmanifest after death. What is there to grieve about.।2.28।



।2.29।
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः ।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ।।२९।।

शब्दार्थ
आश्चर्यवत्पश्यति- आश्चर्य की तरह देखता है
कश्चिदेन- माश्चर्यवद्वदति- अन्य कोई इसका आश्चर्य से कहता है
तथैव चान्यः -अन्य कोई इसको
आश्चर्यवच्चैनमन्यः -आश्चर्यकी तरह
शृणोति -सुनता है
श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव- सुनकर भी इसको नहीं जानता
कश्चित्- कोई

भावार्थ/Translation
   कोई इस (शरीरी) को आश्चर्य की तरह देखता है। अन्य कोई इसको आश्चर्य से कहता है तथा अन्य कोई इसको आश्चर्य की तरह सुनता है; और सुन करके भी कोई इसको नहीं जानता।2.29।

   ਕੋਈ ਇਸ (ਸ਼ਰੀਰੀ) ਨੂੰ ਹੈਰਾਨੀ ਨਾਲ ਦੇਖਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਹੋਰ ਇਸ (ਸ਼ਰੀਰੀ) ਨੂੰ ਹੈਰਾਨੀ ਨਾਲ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਇਸ ਨੂੰ ਹੈਰਾਨੀ ਨਾਲ ਸੁਣਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸੁਣ ਕੇ ਵੀ ਕੋਈ ਇਸ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦਾ।2.29।

   Someone visualizes It with amazement, someone talks of It as a wonder; and someone hears of It with astonishment. Hardly anyone realizes It even after hearing about It.।2.29।


।2.30।
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ।।३०।।

शब्दार्थ
देही - शरीरी
नित्यमवध्योऽयं - सदा अवध्य है
देहे सर्वस्य - सबके शरीर में
भारत- हे अर्जुन
तस्मात्सर्वाणि - तब, सभी के लिए
भूतानि - प्राणी
न त्वं शोचितुमर्हसि- तेरे लिए शोक करने योग्य नहीं

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, सबके शरीर में देही सदा अवध्य है, इसलिए किसी भी प्राणी के लिए तुम्हें शोक करना उचित नहीं।2.30।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਸਾਰਿਆਂ ਦੇ ਸ਼ਰੀਰ ਵਿਚ ਦੇਹੀ ਹਮੇਸ਼ਾ ਵੱਸਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਾਣੀ ਦੇ ਲਈ ਤੇਰਾ ਸ਼ੋਕ ਕਰਨਾ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ।2.30।

   The Self in the body of everyone, is ever indestructible, O Arjuna; therefore, you should not grieve for any creature.।2.30।


।2.31।
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि ।
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।।३१।।

शब्दार्थ
स्वधर्ममपि -अपने धर्म के अनुसार भी
चावेक्ष्य न -भी देखकर, नहीं
विकम्पितुमर्हसि-विचलित, होना चाहिये
धर्म्याद्धि - धर्मयुक्त
युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य- क्षत्रिय के लिये युद्ध से बढकर दूसरा कोई
न विद्यते - नहीं है

भावार्थ/Translation
   क्षत्रिय धर्म के अनुसार भी क्षत्रिय के लिये धर्मयुद्ध से बढकर दूसरा कुछ नहीं है। तुम्हें अपने धर्म से विचलित नहीं होना चाहिये।2.31।

   ਖੱਤਰੀ ਧਰਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਵੀ ਖੱਤਰੀ ਲਈ ਧਰਮ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕੇ ਹੋਰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਤੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਤੋਂ ਘਬਰਾਉਣਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੀਦਾ।2.31।

   For Kshatriya, there is no greater good than a righteous war. Considering it as your own duty, you should not waiver.।2.31।



।2.32।
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्।।३२।।

शब्दार्थ
यदृच्छया- अपने आप
चोपपन्नं - प्राप्त हुए
स्वर्गद्वारमपावृतम्-स्वर्ग के द्वार खुले हैं
सुखिनः- सुखी
क्षत्रियाः -क्षत्रिय
पार्थ -हे अर्जुन

लभन्ते- प्राप्त होता है
युद्धमीदृशम्-इस प्रकार के युद्ध को

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, अपने आप प्राप्त हुआ इस प्रकार का युद्ध स्वर्ग का खुला द्वार है और क्षत्रिय इससे सुख पाता है। ।2.32।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਅਪਣੇ ਆਪ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਇਸ ਤਰਾਂ ਦਾ ਯੁੱਧ ਸਵਰਗ ਦਾ ਖੁੱਲਾ ਰਸਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਖੱਤਰੀ ਇਸ ਨਾਲ ਸੁਖ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ।2.32।

   O Arjuna, war has come on its own accord which is an open door to the heaven and Kshatriyas gets delighted by fighting such a war.।2.32।


।2.33।
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङग्रामं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि।।३३।।

शब्दार्थ
अथ चेत्त्वमिमं - अगर तुम यह
धर्म्यं -धर्म के लिए
सङग्रामं न- युद्ध नहीं
करिष्यसि-करेगा
ततः स्वधर्मं- तो अपने धर्म
कीर्तिं च हित्वा- कीर्ति को खोकर
पापमवाप्स्यसि- पाप को प्राप्त होगा

भावार्थ/Translation
   अगर तुम यह धर्मयुद्ध नहीं करोगे, तो अपने धर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त होगा ।2.33।

   ਜੇ ਤੂੰ ਇਹ ਧਰਮ ਯੁੱਧ ਨਹੀ ਕਰੇਂਗਾ ਤਾਂ ਅਪਣੇ ਧਰਮ ਅਤੇ ਕੀਰਤੀ ਨੂੰ ਖੋ ਕੇ ਪਾਪ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਂਵੇਗਾ।2.33।

   If you will not fight this righteous war then you shall incur sin by avoiding your own duty and loosing your fame.।2.33।


।2.34।
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् ।
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ।।३४।।

शब्दार्थ
अकीर्तिं चापि - अपकीर्ति
भूतानि - प्राणी
कथयिष्यन्ति-कहेंगे
तेऽव्ययाम्-तेरी निरंतर (लगातार)
सम्भावितस्य -माननीय
चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते-दुष्कीर्ति मरण से बढकर है

भावार्थ/Translation
   सब लोग तुम्हारी अपकीर्ति को निरंतर कहते रहेंगे; और सम्मानित पुरुष के लिए अपयश मरण से अधिक है।2.34।

   ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਤੇਰੀ ਅਪਕੀਰਤੀ ਨੂੰ ਲਗਾਤਾਰ ਕਹਿਂਦੇ ਰਹਿਣਗੇ, ਅਤੇ ਸਨਮਾਨਿਤ ਪੁਰਸ਼ ਲਈ ਬੇਇਜਤੀ ਮਰਨ ਤੋਂ ਵੱਧਕੇ ਹੈ।2.34।

   People will speak ill of you for all time, and to an honoured person, dishonour is worse than death।2.34।



।2.35।
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः ।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ।।३५।।

शब्दार्थ
भयाद्रणादुपरतं - भय के कारण युद्ध से हटा हुआ
मंस्यन्ते - मानेंगे
त्वां महारथाः-महारथी तुझे
येषां च त्वं - जिनके लिए तुम
बहुमतो भूत्वा - बहुत सम्मानित हो
यास्यसि-प्राप्त होगा
लाघवम्- तुच्छता ( सम्मान के पद से गिरा हुआ)

भावार्थ/Translation
   महारथी लोग तुझे भयके कारण युद्ध से हटा हुआ मानेंगे। जिनके लिए तुम बहुत सम्मानित हो, वह तुम्हें सम्मान के पद से गिरा हुआ देखेंगे।2.35।

   ਮਹਾਰਥੀ ਲੋਕ ਤੈਨੂੰ ਡਰ ਦੇ ਕਾਰਣ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਹਟਿਆ ਹੋਇਆ ਮੰਨਣਗੇ ਜਿਨਾਂ ਲਈ ਤੂੰ ਬਹੁਤ ਸਨਮਾਨਿਤ ਹੈਂ, ਉਹ ਤੈਨੂੰ ਸਨਮਾਨ ਦੇ ਪਦ ਤੋਂ ਗਿਰਿਆ ਹੋਇਆ ਦੇਖਣਗੇ ।2.35।

   The great warriors will think that you have fled from battle in fear. These men who held you in high esteem will see you in disgrace.।2.35।


।2.36।
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः ।
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ।।३६।।

शब्दार्थ
अवाच्यवादांश्च - अकथनीय बोल
बहून्वदिष्यन्ति - बहुत कहेंगे
तवाहिताः-तुम्हारे शत्रु
निन्दन्तस्तव - तुम्हारी निन्दा करते हुए
सामर्थ्यं ततो - सार्मथ्य से
दुःखतरं नु किम् - अधिक दु:ख क्या होगा

भावार्थ/Translation
   तुम्हारे शत्रु तुम्हारे सार्मथ्य की निन्दा करते हुए बहुत कटु वचन कहेंगे, उससे अधिक दु:ख क्या होगा।2.36।

   ਤੇਰੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਤੇਰੀ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਆਲੋਚਨਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਬਹੁਤ ਕੌੜੇ ਵਚਨ ਕਹਿਣਗੇ, ਉਸ ਤੋਂ ਵੱਧ ਦੁਖ ਕੀ ਹੋਵੇਗਾ ।2.36।

   Your enemies will speak many indecent words while denigrating your might. Nothing can be more painful than that।2.36।


।2.37।
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥३७॥

शब्दार्थ
हतो वा - मरकर (युद्ध में)
प्राप्स्यसि स्वर्गं - स्वर्ग प्राप्त करोगे
जित्वा वा - जीतकर
भोक्ष्यसे महीम् - पृथ्वी को भोगोगे (राज्य करोगे)
तस्मादुत्तिष्ठ - इसलिये , खड़े हो जाओ
कौन्तेय युद्धाय - कौन्तेय (अर्जुन) युद्ध कर
कृतनिश्चयः- निश्चय कर

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, युद्ध में मरकर तुम स्वर्ग प्राप्त करोगे या जीतकर पृथ्वी को भोगोगे, इसलिये युद्ध का निश्चय कर खड़े हो जाओ।2.37।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਮਰ ਕੇ ਤੁੰ ਸਵਰਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰੇਂਗਾ ਜਾਂ ਜਿੱਤ ਕੇ ਧਰਤੀ ਦਾ ਰਾਜ ਭੋਗੇਂਗਾ, ਇਸ ਲਈ ਯੁੱਧ ਦਾ ਨਿਸ਼ਚੈ ਕਰ ਕੇ ਖੜਾ ਹੋ ਜਾ।2.37।

   If slain, you will obtain heaven; or if victorious, you shall enjoy the earth. Therefore, O Arjuna, arise with a resolve (determination) to fight.।2.37।



।2.38।
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥३८॥

शब्दार्थ
सुखदुःखे समे - सुख-दुःख में समान
कृत्वा लाभालाभौ - लाभ-हानि
जयाजयौ- जय-पराजय
ततो युद्धाय - फिर युद्ध करो
युज्यस्व नैवं - इस प्रकार युद्ध करने से
पापमवाप्स्यसि - पाप नहीं होगा

भावार्थ/Translation
   जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख को समान जानकर युद्ध करो। इस प्रकार युद्ध करने से पाप नहीं होगा।2.38।

   ਹਾਰ-ਜਿੱਤ, ਲਾਭ-ਹਾਨੀ ਅਤੇ ਸੁਖ-ਦੁਖ ਨੂੰ ਇਕੋ ਜਿਹਾ ਜਾਣ ਕੇ ਯੁੱਧ ਕਰ । ਇਸ ਤਰਾਂ ਯੁੱਧ ਕਰਨ ਨਾਲ ਪਾਪ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ।2.38।

   Engage in battle, treating conquest and defeat, gain and loss and happiness and sorrow with equanimity. Fighting with this mindset, you will not incur sin.।2.38।



।2.39।
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु ।
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥३९॥

शब्दार्थ
एषा तेऽभिहिता - यह कहा गया
साङ्ख्ये- सांख्य विषयक
बुद्धिर्योगे- ज्ञान
त्विमां शृणु- तुम इसे सुनो
बुद्ध्या युक्तो -ज्ञान से युक्त
यया पार्थ -जिससे, हे अर्जुन
कर्मबन्धं - कर्म बन्धन
प्रहास्यसि- छुट सकते हो

भावार्थ/Translation
   यह विषय सांख्य योग के परिपेक्ष्य में कहा गया, अब इस विषय को इस बुद्धि (ज्ञानदृष्टि) से सुनो जिससे तुम कर्म करते हुए कर्मबन्धन से छुट सकते हो।2.39।

   ਇਹ ਵਿਸ਼ੇ ਸਾਂਖਅ ਯੋਗ ਦੇ ਪਰਿਪੇਖ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਗਿਆ, ਹੁਣ ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ ਨੂੰ ਇਸ ਨਜਰ ਨਾਲ ਸੁਣ ਕਿ ਜਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਤੂੰ ਕਰਮ ਬੰਧਨ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈਂ।2.39।

   I have narrated this topic in context of Sankhya Philosophy, now listen to it from a different view, endowed with that wisdom you will get rid of the bondage of action.।2.39।


।2.40।
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥४०॥

शब्दार्थ
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति- बीज नाश (क्रम नाश) नहीं होता
प्रत्यवायो न विद्यते- विघ्न (विपरीत फल) नहीं होता
स्वल्पमप्यस्य - बल्कि थोडा करने से
धर्मस्य - धर्म का
त्रायते- रक्षा करता है
महतो - महान
भयात्- भय से

भावार्थ/Translation
   इसके प्रयास (अनुकरण) से प्रारम्भ का नाश नहीं होता (फायदा ही है), उलटा फल भी नहीं होता बल्कि इस मार्ग का थोडा आचरण करने से भी महान भय से रक्षा होती है।2.40।

   ਇਸਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ (ਚੱਲਣ) ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ (ਜਿਥੋਂ ਛੱਡਿਆ, ਉਥੋਂ ਦੁਬਾਰਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ) , ਉਲਟਾ ਫਲ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਬਲਕਿ ਇਸ ਗਿਆਨ ਦਾ ਥੋੜਾ ਆਚਰਣ ਕਰਨ ਨਾਲ ਵੀ ਮਹਾਨ ਡਰ ਤੋਂ ਰੱਖਿਆ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।2.40।

   In this there is no loss of effort, nor is there any harm (contrary results). Even a little practice of this knowledge protects one from great fear. ।2.40।


।2.41।
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥४१॥

शब्दार्थ
व्यवसायात्मिका - निश्चय वाली
बुद्धिरेकेह - बुद्धि एक ही होती है
कुरुनन्दन - अर्जुन
बहुशाखा - बहुत भेदोंवाली
ह्यनन्ताश्च - अनंत होती है
बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् - निश्चयरहित बुद्धि

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, निश्चय वाली बुद्धि एक ही है (जिनको पता है कि क्या करणीय है और क्या करणीय नहीं है), निश्चयरहित पुरुष की बुद्धि बहुत भेदोंवाली अनंत होती है।2.41।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਨਿਸ਼ਚੇ ਵਾਲੀ ਬੁੱਧੀ ਇਕ ਹੀ ਹੈ, ਨਿਸ਼ਚੇ ਰਹਿਤ ਪੁਰਖ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਭੇਦ ਭਰੀ ਅਤੇ ਅਨੰਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।2.41।

   O Arjuna, the resolute mind is one-pointed (who knows what is to be done and what is to be avoided); the minds of the irresolute are many-branched and endless.।2.41।



।2.42।
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः ।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥४२॥

शब्दार्थ
यामिमां - इस प्रकारकी
पुष्पितां - मनोरम
वाचं - वाणी
प्रवदन्त्यविपश्चितः- अविवेकी पुरुष बोलते हैं
वेदवादरताः- - वेदों की परिभाषा में व्यस्त
पार्थ -हे अर्जुन
नान्यदस्तीति- दूसरा कुछ है ही नहीं
वादिनः - बोलने वाले

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, वेदों की परिभाषा में व्यस्त अविवेकी पुरुष इस प्रकार की मनोरम वाणी बोलते हैं कि (स्वर्गादि के बिना) दूसरा कुछ है ही नहीं ।2.42।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਵੇਦਾਂ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਰੁੱਝੇ ਵਿਵੇਕਹੀਨ ਪੁਰਖ, ਇਸ ਤਰਾਂ ਦੇ ਮਨੋਰਮ ਵਚਨ ਬੋਲਦੇ ਹਨ ਕਿ (ਸ੍ਵਰਗ ਆਦਿ ਤੋਂ ਬਿਨਾ) ਦੂਜਾ ਕੁਛ ਹੈ ਹੀ ਨਹੀ।2.42।

   O Arjuna, Those undiscerning people who are busy in the eulogising words of the Vedas, and utter flowery speeches, saying,there is nothing greater ( than the attainment of Heaven).।2.42।


।2.43।
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् ।
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥४३॥

शब्दार्थ
कामात्मानः - कामनाओं से युक्त
स्वर्गपरा - स्वर्ग को श्रेष्ठ मानने वाले
जन्मकर्मफलप्रदाम् - जन्म कर्म तथा फल देने वाली
क्रियाविशेषबहुलां - क्रियाओं का वर्णन करनेवाली
भोगैश्वर्यगतिं - भोग और ऐश्वर्यकी
प्रति - प्राप्तिके लिए

भावार्थ/Translation
   कामनाओं से युक्त, स्वर्ग को श्रेष्ठ मानने वाले, भोग और ऐश्वर्य को प्राप्त कराने वाली, जन्म कर्म तथा फल देने वाली अनेक क्रियाओं को बताते हैं।2.43।

   ਕਾਮਨਾ ਨਾਲ ਭਰੇ, ਸ੍ਵਰਗ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ, ਭੋਗ ਅਤੇ ਸੁਖ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਾਉਂਨ ਵਾਲੀਆਂ, ਜਨਮ ਕਰਮ ਅਤੇ ਫਲ ਦੇਣ ਵਾਲੀਆਂ ਬਹੁਤ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਦੱਸਦੇ ਹਨ।2.43।

   Full of desires, considering heaven as the only glorious goal, for the attainment of pleasure and grandeur, leading to new births as the result of their works, (Those people with such mindset) prescribe various specific actions (rites).।2.43।


।2.44।
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥४४॥

शब्दार्थ
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां- भोग तथा ऐश्वर्य में आसक्त मन वाले
तयापहृतचेतसाम्- उस वाणी से जिसका अन्तःकरण हर लिया गया है
व्यवसायात्मिका- निश्चय वाली
बुद्धिः - बुद्धि
समाधौ -परमात्मा में
न विधीयते - नहीं होती

भावार्थ/Translation
   उस पुष्पित वाणी से जिसका अन्तःकरण हर लिया गया है, जो भोग तथा ऐश्वर्य में आसक्त हो गया है , उन मनुष्यों की परमात्मा में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती।2.44।

   ਓਸ ਮਿੱਠੀ ਬੋਲੀ ਨਾਲ ਜਿਸਦਾ ਰੋਮ-ਰੋਮ ਵੱਸ ਵਿਚ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਜੋ ਭੋਗ ਅਤੇ ਸੁਖ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਵਿਚ ਲੀਨ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਉਹਨਾ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੀ ਰੱਬ ਵਿਚ ਟਿਕਾਊ ਬੁੱਧੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ।2.44।

   For those who are attached to pleasure and power, whose minds are drawn away by such flowery teaching, they don't develop resolute mind for meditation (Samadhi).।2.44।

।2.45।
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥४५॥

शब्दार्थ
त्रैगुण्यविषया- तीन गुणों से सम्बन्धित विषय
वेदा - वेदों का
निस्त्रैगुण्यो - तीनों गुणों से रहित
भवार्जुन - बनो, अर्जुन
निर्द्वन्द्वो - (सुखदुःखादि) द्वन्द्व रहित
नित्यसत्त्वस्थो - नित्य सत्त्व गुण में स्थित
निर्योगक्षेम - योगक्षेम रहित
आत्मवान्- आत्म परायण

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, वेदों का विषय तीन गुणों से सम्बन्धित है, तुम तीनों गुणों से रहित बनो, द्वन्द्व रहित तथा योगक्षेम रहित होकर, नित्य सत्त्व गुण में स्थित रहो एवं आत्म परायण बनो।2.45।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਵੇਦਾਂ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਤਿੰਨ ਗੁਣਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ, ਤੂੰ ਤਿੰਨ ਗੁਣਾ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਬਣ, ਭਰਮ ਰਹਿਤ ਅਤੇ ਯੋਗ੍ਖੇਮ ਰਹਿਤ ਹੋ ਕੇ, ਪ੍ਰਤੀਦਿਨ ਸੱਤਵ ਗੁਣ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਰਹਿ ਤੇ ਸ੍ਵੈਲੀਨ(ਆਤਮ ਪਰਾਇਣ) ਬਣ।2.45।

   O Arjuna, Vedas deal with three attributes (qualities) of nature. You must be free from the three Gunas and be free from the pairs of opposites. Be self-absorbed, abide in pure Sattva; never care to acquire things and to protect what has been acquired.।2.45।



।2.46।
यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके ।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः ॥४६॥

शब्दार्थ
यावानर्थ - जितना प्रयोजन रहता है
उदपाने - छोटे जलाशय
सर्वतः - सर्वत्र
सम्प्लुतोदके- परिपूर्ण जलराशि
तावान्सर्वेषु - उतना ही सभी
वेदेषु - वेदों में
ब्राह्मणस्य - ब्रह्म को जानने वाले
विजानतः- पण्डित (ज्ञानी) का

भावार्थ/Translation
   सब ओर से परिपूर्ण जलराशि के होने पर छोटे जलाशय का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म ज्ञानी का सभी वेदों में उतना ही प्रयोजन रहता है।2.46।

   ਸਭ ਪਾਸੋਂ ਭਰੀ ਹੋਈ ਜਲਰਾਸ਼ੀ ਦੇ ਹੋਣ ਨਾਲ, ਛੋਟੇ ਤਾਲਾਬ ਦਾ ਜਿੰਨਾ ਮਹੱਤਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਬ੍ਰਹਮ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਵਾਲੇ ਗਿਆਨੀ ਦਾ ਸਾਰੇ ਵੇਦਾਂ ਵਿਚ ਉਨਾ ਹੀ ਮਹੱਤਵ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।2.46।

   Vedas have no utility for a realized person as a man in front of a grand reservoir of water has no utility of a well.।2.46।



।2.47।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥४७॥

शब्दार्थ
कर्मण्येवाधिकारस्ते -कर्म करने में तुम्हारा अधिकार है
मा फलेषु -उसके फलों में
कदाचन - कभी नहीं
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा- कर्म फल का कारण मत समझो
ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि - कर्म न करने में आसक्ति न हो

भावार्थ/Translation
   कर्म करना तुम्हारा अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। अपने आपको कर्म फल का कारण मत समझो और तुम्हारी कर्म न करने में आसक्ति न हो।2.47।

   ਕਰਮ ਕਰਨਾ ਤੇਰਾ ਹੱਕ ਹੈ, ਓਸ ਦੇ ਫ਼ਲਾਂ ਤੇ ਕਦੇ ਨਹੀ। ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂ ਕਰਮ ਫਲ ਦਾ ਕਾਰਨ ਨਾ ਸਮਝ, ਅਤੇ ਕਰਮ ਨਾ ਕਰਨ ਵਿਚ ਤੇਰਾ ਲਗਾਵ ਨਾ ਹੋਵੇ।2.47।

   Your right is for action alone, not for the results. Do not consider yourself the reason of the results of action and do not be inclined(attached) to inaction.।2.47।



।2.48।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥४८॥

शब्दार्थ
योगस्थः - योग में स्थित हुये
कुरु - करो
कर्माणि - कर्म
सङ्गं - आसक्ति को
त्यक्त्वा - त्याग कर
धनंजय - हे अर्जुन
सिद्ध्यसिद्ध्योः - लाभ-हानि (सफलता-विफलता)
समो - समान
भूत्वा - होकर
समत्वं - समता
योग - योग
उच्यते- कहते हैं

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, सफलता-विफलता की आसक्ति को त्याग कर, सम होकर कर्म करो। समत्व (समता का भाव) ही योग कहलाता है।2.48।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਜਿੱਤ-ਹਾਰ ਦੇ ਲਗਾਵ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ, ਸਮ ਹੋ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰੋ। ਸਮਤਾ ਦਾ ਭਾਵ ਹੀ ਯੋਗ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ।2.48।

   O Arjuna, remaining even-minded in success and failure, perform actions in equanimity, abandoning attachment. Even-mindedness is said to be the Yoga.।2.48।



।2.49।
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनंजय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥४९॥

शब्दार्थ
दूरेण ह्यवरं - अत्यंत निम्न श्रेणी
कर्म -क्रिया
बुद्धियोगाद्धनंजय - बुद्धियोग से, हे अर्जुन
बुद्धौ - बुद्धि की
शरणमन्विच्छ - शरण लो
कृपणाः - कृपण (दीन)
फलहेतवः - फल की इच्छा करने वाले

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, बुद्धियोग (बिना फलेच्छा से कर्म करने तथा फलों पर अपना अधिकार न होने का भाव) से (सकाम) कर्म अत्यंत निम्न श्रेणी का है । तू बुद्धि की शरण ले; फल की इच्छा करने वाले बहुत कृपण हैं।2.49।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਬੁੱਧੀਯੋਗ ( ਬਿਨਾ ਫਲ ਦੀ ਇੱਛਾ ਤੋਂ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਫਲਾਂ ਤੇ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਨਾ ਜਤਾਉਂਣ ਦੀ ਭਾਵਨਾ) ਨਾਲੋ (ਸਕਾਮ ਕਰਮ) ਬਹੁਤ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦਾ ਹੈ , ਤੂੰ ਬੁੱਧੀ ਦੀ ਸ਼ਰਣ ਲੈ, ਫਲ ਦੀ ਇੱਛਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਬਹੁਤ ਕ੍ਰਿਪਣ ਹਨ।2.49।

   O Arjuna, Action with attachment is far inferior to action done with evenness of mind. Seek refuge in wisdom; who work with motive of fruit are miserable.।2.49।


।2.50।
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥५०॥

शब्दार्थ
बुद्धियुक्तो - बुद्धि (समता) से युक्त
जहातीह उभे - दोनों त्याग देता है
सुकृतदुष्कृते- पुण्य और पाप (अच्छे तथा बुरे काम)
तस्माद्योगाय - इसलिये योग में
युज्यस्व - लग जा (स्थिर हो जा)
योगः - योग
कर्मसु - कर्मों में
कौशलम् - कुशलता

भावार्थ/Translation
   बुद्धि (समता) से युक्त पुरूष अच्छे तथा बुरे कर्मफल, दोनों त्याग देता है इसलिये योग में स्थिर हो जा, कर्मों में कुशलता योग है।2.50।

   ਸਿਆਣਪ (ਸਮਤਾ) ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਪੁਰਖ ਚੰਗੇ ਅਤੇ ਬੁਰੇ ਫਲ, ਦੋਹਾਂ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਯੋਗ ਵਿਚ ਸਥਿਰ ਹੋ ਜਾ, ਕਰਮਾਂ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਹੀ ਯੋਗ ਹੈ।2.50।

   Possessed of wisdom, one rejects both virtue and vice (good and bad results of action). Be steadfast in Yoga. Yoga is skillfulness in action.।2.50।



।2.51।
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥५१॥

शब्दार्थ
कर्मजं - कर्मजन्य (कर्मों से फलीभूत)
बुद्धियुक्ता हि - बुद्धि से युक्त
फलं- फलों को
त्यक्त्वा - त्यागकर
मनीषिणः- ज्ञानीजन
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः - जन्म रूप बन्धन से मुक्त हुये
पदं - पद
गच्छन्त्यनामयम्- बिना कष्ट के प्राप्त होते हैं

भावार्थ/Translation
   बुद्धि युक्त मनीषी लोग कर्मजन्य फलों को त्यागकर बिना कष्ट के जन्मरूप बन्धन से मुक्त हुये पद को प्राप्त होते हैं।2.51।

   ਬੁੱਧੀ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਫਲ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਕੇ, ਬਿਨਾ ਤਕਲੀਫ਼ ਤੋਂ ਜਨਮ ਰੂਪ ਬੰਧਨ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋਈ ਪਦਵੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ।2.51।

   The wise who possess evenness of mind, relinquishing the fruits of action, are freed from the bondage of rebirth, and go to the place devoid of illness.



।2.52।
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥५२॥

शब्दार्थ
यदा ते - जब तेरी
मोहकलिलं - मोह की दलदल को
बुद्धिर्व्यतितरिष्यति- बुद्धि तर जायगी
तदा - तब
गन्तासि- जायगा
निर्वेदं - वैराग्य
श्रोतव्यस्य- सुनने योग्य
श्रुतस्य च - और सुने हुए

भावार्थ/Translation
   जब तेरी बुद्धि मोह रूपी दलदल को तर जायगी, तब तू सुने हुए और सुनने में आने वाले भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जायगा।2.52।

   ਜਦੋਂ ਤੇਰੀ ਬੁੱਧੀ ਮੋਹ ਰੂਪੀ ਦਲਦਲ ਤੋਂ ਪਾਰ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ , ਉਦੋਂ ਤੂੰ ਸੁਣੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸੁਣਨ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ, ਭੋਗਾਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਵੇਂਗਾ।2.52।

   When your mind will go beyond the tangle of delusion regarding sense objects, then you will acquire dispassion for what has to be heard and what has been heard about materialistic pleasures.।2.52।



।2.53।
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥५३॥

शब्दार्थ
्रुतिविप्रतिपन्ना -वेद-शास्त्रो के संशयपूर्ण वचन
ते यदा -जब
स्थास्यति-स्थिर हो जायेगी
निश्चला-अचल
समाधावचला- समाधि की तरह स्थिर हो
बुद्धिस्तदा -तुम्हारी बुद्धि
योगमवाप्स्यसि- योग को प्राप्त करोगे

भावार्थ/Translation
   जब वेद-शास्त्रो के संशयपूर्ण वचन सुनने से विचलित तुम्हारी बुद्धि अचल और स्थिर हो जायेगी तब तुम योग को प्राप्त करोगे।।2.53।

   ਜਦੋਂ ਵੇਦ-ਸ਼ਾਸ਼ਤਰਾਂ ਦੇ ਸ਼ੱਕੀ ਵਚਨ ਸੁਨਣ ਨਾਲ, ਭਟਕਦੀ ਹੋਈ ਤੇਰੀ ਬੁੱਧੀ ਅਚਲ ਅਤੇ ਸਥਿਰ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ ਓਦੋਂ ਤੂੰ ਯੋਗ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰੇਂਗਾ।2.53।

   When your mind will become unshakable and steadfast in the Self even after hearing different versions and interpretations of the Vedas, then you will attain Yoga.।2.53।



।2.54।
अर्जुन उवाच
स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव ।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥५४॥

शब्दार्थ
स्थितप्रज्ञस्य - स्थिर बुद्धिवाला
का भाषा - क्या लक्षण
समाधिस्थस्य - ध्यान में स्थित
केशव - कृष्ण
स्थितधीः किं - स्थिर बुद्धि वाला कैसे
प्रभाषेत - बोलता है
किमासीत- कैसे बैठता है
व्रजेत किम् - कैसे चलता है

भावार्थ/Translation
   अर्जुन बोला - हे केशव (कृष्ण) परमात्मा में स्थित स्थिर बुद्धिवाले मनुष्य के क्या लक्षण हैं? स्थिर बुद्धिवाला मनुष्य कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?।2.54।

   ਅਰਜੁਨ ਬੋਲਿਆ- ਹੇ ਕੇਸ਼ਵ (ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ) ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਸਥਿਰ ਬੁੱਧੀ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਕੀ ਲੱਛਣ ਹਨ? ਸਥਿਰ ਬੁੱਧੀ ਵਾਲਾ ਮਨੁੱਖ ਕਿਵੇਂ ਬੋਲਦਾ ਹੈ, ਕਿਵੇਂ ਬੈਠਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਕਿਵੇਂ ਚੱਲਦਾ ਹੈ।2.54।

   Arjuna said - O Krishna, What is the description of him who has steady wisdom (stabilized intellect) and is in the superconscious state? How does such self-absorbed person speaks, sits and walks?।2.54।


।2.55।
श्रीभगवानुवाच।
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥५५॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच- श्री भगवान्‌ बोले
प्रजहाति -त्याग
यदा- जब
कामान्सर्वान्पार्थ -हे अर्जुन, सम्पूर्ण कामनाओं को
मनोगतान् - मन से
आत्मन्येवात्मना - अपने आपसे अपने आप में
तुष्टः - सन्तुष्ट
स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते- स्थिर बुद्धि वाला कहते हैं

भावार्थ/Translation
   श्रीभगवान् बोले - हे अर्जुन, जब कोई मन से सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग कर देता है और अपने आप से अपने आप में ही सन्तुष्ट (आत्मसंतुष्ट) रहता है, उसे स्थितप्रज्ञ कहते हैं ।।2.55।।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਬੋਲੇ- ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਜਦ ਕੋਈ ਦਿਲੋਂ ਸਾਰੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਓਸ ਨੂੰ ਸਥਿਤਪ੍ਰਗਯ (ਸਥਿਰ ਬੁੱਧੀ ਵਾਲਾ) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ।2.55।

   Krishna Said- O Arjuna, when someone relinquishes all the desires from the mind and is content in himself by the self, then he is the person with the steady wisdom.।2.55।


।2.56।
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥५६॥

शब्दार्थ
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः- दु:ख में जिसका मन उद्विग्न नहीं होता
सुखेषु - सुख में
विगतस्पृहः- अभिलाषा नष्ट
वीतरागभयक्रोधः - राग, भय और क्रोध नष्ट
स्थितधीर्मुनिरुच्यते- वह मुनि स्थितप्रज्ञ कहलाता है

भावार्थ/Translation
   दु:ख में जिसका मन उद्विग्न नहीं होता सुख की अभिलाषा नष्ट हो गयी है, मन से राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, वह मुनि स्थितप्रज्ञ कहलाता है।2.56।

   ਦੁੱਖ ਵਿੱਚ ਜਿਸਦਾ ਮਨ ਦੁਖੀ ਨਹੀ ਹੁੰਦਾ, ਸੁੱਖ ਦੀ ਇੱਛਾ ਖਤਮ ਹੋ ਗਈ ਹੈ, ਮਨ ਵਿਚੋ ਰਾਗ, ਡਰ ਅਤੇ ਗੁੱਸਾ ਖਤਮ ਹੋ ਗਏ ਹਨ ,ਓਹ ਮਨੁਖ ਸਥਿਤਪ੍ਰਗਯ ਕਹਾਓਂਦਾ ਹੈ।2.56।

   Whose mind is not shaken by adversity, who does not hanker after pleasures, and is free from attachment, fear and anger, is called a sage of steady wisdom. ।2.56।


।2.57।
यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् ।
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥५७॥

शब्दार्थ
यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य -जो सर्वत्र स्नेहरहित हुआ
शुभाशुभम्- शुभ या अशुभ
नाभिनन्दति- अनुराग नहीं करता
न द्वेष्टि -न द्वेष करता है
तस्य प्रज्ञा -उसकी बुद्धि
प्रतिष्ठिता- स्थिर है

भावार्थ/Translation
   जो सर्वत्र स्नेहरहित हुआ, शुभ या अशुभ वस्तु को पा कर न अनुराग करता है और न द्वेष करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है।2.57।

   ਜੋ ਸਭ ਇੱਛਾਵਾਂ ਤੋਂ ਰਹਿਤ (ਸਨੇਹ ਰਹਿਤ) ਹੋ ਚੁਕਾ ਹੈ, ਸ਼ੁਭ ਤੇ ਅਸ਼ੁਭ ਵਸਤੁ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਨਾ ਰਾਗ ਕਰਦਾ ਹੈ ਨਾ ਦੁਰਭਾਵਨਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਓਸਦੀ ਬੁਧੀ ਸਥਿਰ ਹੈ।2.57।

   He, who has no desire in anything; and who neither rejoices nor hates on getting good or bad, his intellect is properly stabilized.।2.57।



।2.58।
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेऽभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥५८॥

शब्दार्थ
यदा - जैसे
संहरते - समेट लेता है
चायं - वैसे
कूर्मोऽङ्गानीव- कछुवा अपने अंगों को
सर्वशः- सब ओर से
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेऽभ्यस्तस्य - इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से हटाना
प्रज्ञा - बुद्धि
प्रतिष्ठिता- स्थिर है

भावार्थ/Translation
   जैसे कछुवा सब ओर से अपने अंगों को समेट लेता है, वैसे ही जब कोई इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है।2.58।

   ਜਿਵੇਂ ਕੱਛੂ ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਅੰਗਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਓਸੇ ਤਰਾਂ ਜਦ ਕੋਈ ਇੰਦਰੀਆਂ ਨੂੰ ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਓਦੋਂ ਓਸ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਸਥਿਰ ਹੈ।2.58।

   When someone withdraws his senses from the sense-objects, like the tortoise which withdraws its limbs on all sides, his wisdom becomes steady. ।2.58।



।2.59।
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ॥५९॥

शब्दार्थ
विषया - इन्द्रियों के विषय
विनिवर्तन्ते - दूर हो जाते हैं
निराहारस्य -निराहारी (विषय भोग न करना)
देहिनः-मनुष्य के
रसवर्जं - विषय निवृत्त नहीं
रसोऽप्यस्य - रुचि भी
परं दृष्ट्वा - परम तत्व को देखने पर
निवर्तते - निवृत्त हो जाता है

भावार्थ/Translation
   विषय भोग न करने से मनुष्य के विषय तो दूर हो जाते हैं, परन्तु राग नहीं ; परम तत्व को देखने पर राग (रुचि) भी निवृत्त हो जाता है।2.59।

   ਵਿਸ਼ੇ ਨਾਂ ਭੋਗਣ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਤਾਂ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਪਰ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਰਾਗ ਨਹੀ, ਪਰਮ ਤੱਤ ਨੂੰ ਦੇਖਣ ਨਾਲ ਰਾਗ ਵੀ ਖਤਮ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।2.59।

   Leaving their taste behind, the sense-objects retreat from the embodied who abstain from food; his taste too disappears when he sees the Supreme. ।2.59।



।2.60।
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥६०॥

शब्दार्थ
यततो - यत्न करते हुए
ह्यपि -की भी
कौन्तेय- अर्जुन
पुरुषस्य- मनुष्य
विपश्चितः-विवेकयुक्त
इन्द्रियाणि- इन्द्रियां
प्रमाथीनि - क्षुब्ध (उत्तेजित)
हरन्ति - कर देती हैं (हर लेती हैं)
प्रसभं - बल से
मनः - मन को

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, यत्न करते हुए विवेकयुक्त मनुष्य के मन को, इन्द्रियां बलपूर्वक उत्तेजित कर देती हैं।2.60।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ,ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਵਿਵੇਕੀ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਮਨ ਨੂੰ ਇੰਦਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਉੱਤੇਜਿਤ ਕਰ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ।2.60।

   O Arjuna,The turbulent senses, forcefully carry away the mind of even a wise man, though he is ever striving.।2.60।



।2.61।
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥६१॥

शब्दार्थ
तानि -उन
सर्वाणि - सम्पूर्ण
संयम्य - वश में करके
युक्त - योगी
आसीत - बैठे
मत्परः- मेरे परायण होकर
वशे हि - वश में
यस्येन्द्रियाणि - जिसकी इन्द्रियाँ
तस्य - उसकी
प्रज्ञा - बुद्धि
प्रतिष्ठिता- प्रतिष्ठित है

भावार्थ/Translation
   योगी सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके मेरे परायण होकर बैठे; जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है।2.61।

   ਯੋਗੀ ਸਾਰੀਆਂ ਇੰਦਰੀਆਂ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਵਿੱਚ ਕਰ ਕੇ ਮੇਰੀ ਭਗਤੀ ਵਿੱਚ ਬੈਠੇ, ਜਿਸ ਦੀਆਂ ਇੰਦਰੀਆਂ ਕਾਬੂ ਵਿਚ ਹਨ, ਊਸ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਪ੍ਰਤਿਸ਼ਠਾਵਾਨ ਹੈ।2.61।

   Having restrained all of them he should sit in meditation (relying on me for everything); whose senses are under control, his wisdom is steady.।2.61।



।2.62।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते ।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥६२॥

शब्दार्थ
ध्यायतो - चिन्तन
विषयान्पुंसः- विषयों में, पुरुष की
सङ्गस्तेषूपजायते- आसक्ति हो जाती है
सङ्गात्संजायते- आसक्ति से उत्पन्न होता है
कामः - कामना
कामात्क्रोधोऽभिजायते - कामना से क्रोध पैदा होता है

भावार्थ/Translation
   विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उसमें आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से कामना और कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।2.62।

   ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪੁਰਖ ਦੀ ਉਸ ਵਿਚ ਰੁਚੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਰੁਚੀ ਨਾਲ ਇੱਛਾ ਅਤੇ ਇੱਛਾ ਨਾਲ ਗੁੱਸਾ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।2.62।

   When a man thinks of the objects, he gets attached to them; from attachment desire is born; from desire anger arises.।2.62।



।2.63।
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥६३॥

शब्दार्थ
क्रोधाद्भवति- क्रोध से होता है
सम्मोहः - सम्मोह
सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः- सम्मोह से स्मृति भ्रम
स्मृतिभ्रंशाद् - स्मृति भ्रष्ट होने
बुद्धिनाशो - बुद्धि नाश
बुद्धिनाशात्प्रणश्यति- बुद्धि नाश होने पर पतन

भावार्थ/Translation
   क्रोध से सम्मोह होता है , सम्मोह से स्मृति भ्रम, स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि नाश तथा बुद्धि नाश होने पर (मनुष्य का) पतन हो जाता है।2.63।

   ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨ ਬੇਕਾਬੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਮਨ ਬੇਕਾਬੂ ਹੋਣ ਨਾਲ ਦਿਮਾਗ ਨੂੰ ਭੁਲੇਖਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ,ਦਿਮਾਗ ਨੂੰ ਭੁਲੇਖਾ ਪੈਣ ਨਾਲ ਬੁੱਧੀ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਅਤੇ ਬੁੱਧੀ ਨਾਸ਼ ਹੋਣ ਤੇ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਪਤਨ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।2.63।

   From anger comes delusion; from delusion loss of memory; from loss of memory the destruction of discrimination; from destruction of discrimination he perishes.।2.63।



।2.64।
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥६४॥

शब्दार्थ
रागद्वेषवियुक्तैस्तु -राग-द्वेष रहित
विषयानिन्द्रियैश्चरन्-इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा- अपने वश में किए हुए अन्तःकरण वाला
प्रसादमधिगच्छति-प्रसन्नता को प्राप्त होता है

भावार्थ/Translation
   अपने अधीन किए हुए अन्तःकरण वाला साधक, राग-द्वेष रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ प्रसन्नता को प्राप्त होता है।2.64।

   ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਮਨ ਵਾਲਾ ਸਾਧਕ, ਰਾਗ-ਨਫਰਤ ਰਹਿਤ ਇੰਦਰੀਆਂ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿੱਚਰਦਾ ਹੋਇਆ ਖੁਸ਼ੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।2.64।

   But the self-controlled man, moving among the sense-objects with the senses free from attraction and repulsion, attains to happiness.।2.64।



।2.65।
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते ।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ॥६५॥

शब्दार्थ
प्रसादे -प्रसन्नता प्राप्त होने पर
सर्वदुःखानां - समस्त दुःखों का
हानिरस्योपजायते- नाश हो जाता है
प्रसन्नचेतसो-प्रसन्न चित्त वालेकी
ह्याशु- शीघ्र
बुद्धिः- बुद्धि
पर्यवतिष्ठते- स्थिर हो जाती है

भावार्थ/Translation
   प्रसन्नता प्राप्त होने पर समस्त दुःखों का नाश हो जाता है, प्रसन्न चित्त वाले की बुद्धि शीघ्र स्थिर हो जाती है।2.65।

   ਖੁਸ਼ੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਦੁਖਾਂ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਖੁਸ਼ ਮਨ ਵਾਲੇ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਜਲਦੀ ਸਥਿਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।2.65।

   After getting to this stage of happiness, all his sorrows vanish, because the wisdom of one who has a serene mind soon becomes firmly established.।2.65।



।2.66।
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ॥६६।।

शब्दार्थ
नास्ति -नहीं होती
बुद्धिरयुक्तस्य- असमाहित बुद्धि (निश्चयात्मिका बुद्धि न होना)
न चायुक्तस्य - अयुक्त मन में
भावना- भावना
न चाभावयतः- भावनाहीन
शान्तिरशान्तस्य- शान्ति नहीं , शान्तिरहित
कुतः सुखम् - सुख कहां

भावार्थ/Translation
   जिसकी बुद्धि एवं भावना समाहित नहीं होती, ऐसी भावनाहीन को शान्ति नहीं मिलती। शान्तिरहित को सुख कैसे मिल सकता है?।2.66।

   ਜਿਸਦੀ ਬੁੱਧੀ ਅਤੇ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਮੇਲ ਨਹੀ ਹੁੰਦਾ, ਏਹੋ ਜਿਹੇ ਭਾਵਨਾਹੀਣ ਨੂੰ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨਹੀ ਮਿਲਦੀ,ਅਸ਼ਾੰਤ ਨੂੰ ਸੁੱਖ ਕਿੰਵੇ ਮਿਲ ਸਕਦਾ ਹੈ।2.66।

   For the unsteady there is no wisdom and self-absorbed feeling . And for an unmeditative man there is no peace. How can there be happiness for one without peace?।2.66।



।2.67।
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते ।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥६७॥

शब्दार्थ
इन्द्रियाणां हि -इन्द्रियों में से
चरतां -विचरती हुई
यन्मनोऽनुविधीयते-जिस इन्द्रिय का मन अनुकरण करता है
तदस्य - हर लेता है
हरति प्रज्ञां- बुद्धि को
वायुर्नावमिवाम्भसि- वायु नाव को जल में

भावार्थ/Translation
   अपने-अपने विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों में से जिस एक इन्द्रिय का भी मन अनुकरण करता है वह मन बुद्धि को हर लेता है, जैसे जल में नौका को वायु हर लेती है।2.67।

   ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿਚ ਵਿੱਚਰਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਇੰਦਰੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਜੇ ਇਕ ਇੰਦਰੀ ਦਾ ਵੀ ਮਨ ਧਿਆਨ (ਰਾਗ) ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮਨ ਬੁੱਧੀ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਵਿਚ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਕਿਸ਼ਤੀ ਨੂੰ ਹਵਾ ਕਾਬੂ ਵਿਚੋ ਕਰ ਲੈਂਦੀ ਹੈ।2.67।

   When the mind follows even one of the senses experiencing their objects, his understanding is carried away by them as the wind carries away a ship on the waters.।2.67।


।2.68।
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥६८॥

शब्दार्थ
तस्माद्यस्य- जिस पुरुष की
महाबाहो -हे अर्जुन
निगृहीतानि- वश में
सर्वशः-सर्वथा
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य- इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के विषयों से राग नहीं करती
प्रज्ञा -बुद्धि
प्रतिष्ठिता-स्थिर होती है

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, जिस पुरुष की इन्द्रियाँ , इन्द्रियों के विषयों से राग नहीं करती, उसकी बुद्धि स्थिर होती है।।2.68।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਜਿਸ ਪੁਰਖ ਦੀਆਂ ਇੰਦਰੀਆਂ, ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਵਿਚ ਰਾਗ ਨਹੀ ਕਰਦੀਆਂ, ਉਸਦੀ ਬੁੱਧੀ ਸਥਿਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।2.68।

   O Arjuna, Whose senses don't get attached to their objects, his wisdom is firmly set.।2.68।



।2.69।
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥६९॥

शब्दार्थ
या निशा-जो रात्रि
सर्वभूतानां - सब प्रणियों के लिए
तस्यां - उसमें
जागर्ति - जागता है
संयमी- संयमी
यस्यां - जहाँ
जाग्रति - जागते हैं
भूतानि सा - सब प्राणी
निशा - रात्रि
पश्यतो- देखने वाले
मुनेः-मुनि

भावार्थ/Translation
   सब प्रणियों के लिए जो रात्रि है, उसमें संयमी जागता है; और जब सब प्राणी जागते हैं, वह जानने वाले मुनि के लिए रात्रि है।2.69।

   ਸਾਰੇ ਮੱਨੁਖਾਂ ਲਈ ਜੋ ਰਾਤ ਹੈ ਓਸ ਵਿੱਚ ਧੀਰਜ ਰੱਖਣ ਵਾਲਾ ਉੱਠਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜਦੋ ਸਾਰੇ ਜੀਵ ਜਾਗਦੇ ਹਨ, ਓਹ ਜਾਨਣ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਰਾਤ ਹੈ।2.69।

   What is night for all beings, in it the controlled one is awake; when all beings are awake, that is the night to the sage who sees.।2.69।


।2.70।
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् ।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥७०॥

शब्दार्थ
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं-परिपूर्ण , अचल प्रतिष्ठित
समुद्रमापः-समुद्र में नदियोंका जल
प्रविशन्ति -मिलता है
यद्वत् -ऐसे ही
तद्वत्कामा यं- कामनाओं के
प्रविशन्ति -प्रवेश करने से
सर्वे - सभी
स -वह
शान्तिमाप्नोति न- शान्ति को प्राप्त होता है
कामकामी-कामना की इच्छा वाला

भावार्थ/Translation
   जैसे सम्पूर्ण नदियों का जल, अचल प्रतिष्ठित परिपूर्ण समुद्र में आकर मिलता है, ऐसे ही कामनाओं के प्रवेश करने से (जिस में विकार नहीं आता), वही शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों की कामना वाला नहीं।2.70।

   ਜਿਵੇਂ ਸਾਰੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਦਾ ਪਾਣੀ, ਅਚਲ ਸਮੁੰਦਰ ਵਿਚ ਆ ਕੇ ਮਿਲਦਾ ਹੈ , ਉਸ ਤਰਾਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਨਾਲ (ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਵਿਕਾਰ ਨਹੀਂ ਆਉਦਾਂ) ਓਹੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਭੋਗਾਂ ਦੀ ਇੱਛਾ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਨਹੀ।2.70।

   Just as rivers enter into the ocean continuously and ocean remains firmly established, similarly, When a human behaves in the same way when desires enter (does not gets distracted) -he attains peace; not he who longs for the objects of desire.।2.70।


।2.71।
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥७१॥

शब्दार्थ
विहाय कामान्यः -कामनाओं को त्याग कर
सर्वान्पुमांश्चरति -सम्पूर्ण पुरुष ,प्राप्त होता है
निःस्पृहः- बिना लालसा के
निर्ममो -ममभाव रहित
निरहङ्कारः-निरहंकार
स शान्तिमधिगच्छति-वह शान्ति प्राप्त करता है

भावार्थ/Translation
   जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग करके निर्मम, निरहंकार और बिना लालसा के विचरता है, वह शान्ति प्राप्त करता है।2.71।

   ਜੋ ਮੱਨੁਖ ਸਾਰੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰ ਕੇ ਬੇਰਹਿਮ,ਬਿਨਾ ਹੰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਲਚ ਦੇ ਵਿੱਚਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।2.71।

   That man attains peace who, abandoning all desires, moves about without longing, egoism and sense of possession.।2.71।



।2.72।
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥७२॥

शब्दार्थ
एषा ब्राह्मी- ब्रह्म को प्राप्त हुए की
स्थितिः -स्थिति है
पार्थ -अर्जुन
नैनां प्राप्य- प्राप्त होकर , नहीं
विमुह्यति- मोहित होता
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि -अन्तकाल में भी स्थित हो जाय
ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति-ब्रह्मनिर्वाण की प्राप्ति होती है

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, यह ब्रह्म प्राप्त हुए की स्थिति है, इसको प्राप्त होकर कोई मोहित नहीं होता। इस में यदि अन्तकाल में भी स्थित हो जाय, तो ब्रह्मनिर्वाण की प्राप्ति होती है।2.72।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਇਹ ਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਹੈ , ਇਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਕੇ ਕੋਈ ਮੋਹਿਤ ਨਹੀ ਹੁੰਦਾ, ਇਸ ਵਿੱਚ ਜੇ ਆਖਰੀ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਵੀ ਸਥਿਤ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਵੀ ਬ੍ਰਹਮ ਨਿਰਵਾਣ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।2.72।

   O Arjuna, This is the eternal state, Attaining to this, none is deluded. Even if one is established in this at the end of life, one attains to oneness with Brahman.।2.72।



ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेसाङ्ख्ययोगो नाम दवि्तियोऽध्यायः॥2.1-2.72॥

Completed on 21 January 2015 (72 Days)

किसी भी त्रुटि को सुधारने के लिए, सुझाव, जिज्ञासा, प्रतिक्रिया, टिप्पणी, आलोचना आदि deep108@yahoo.com पर ई-मेल करें।
Please send email to deep108@yahoo.com for Any corrections, discussion, doubts, suggestions, comments and feedback.
ਗਲਤੀ ਸੁਧਾਰਣ ਲਈ, ਆਲੋਚਨਾ, ਪ੍ਰਤੀਕ੍ਰਿਯਾ, ਟਿੱਪਣੀ, ਸੁਝਾਵ ਅਤੇ ਸ਼ੰਕਾ ਆਦਿ ਲਈ deep108@yahoo.com ਤੇ ਈ-ਮੇਲ ਕਰੋ।