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अध्याय नौ / Chapter Nine

।9.1।
श्रीभगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥ १ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान् बोले
इदं - यह
तु ते - तेरे लिये
गुह्यतमं - अत्यन्त गोपनीय
प्रवक्ष्याम्यनसूयवे - दोषदृष्टि रहित कहूँगा
ज्ञानं विज्ञानसहितं - विज्ञान सहित ज्ञान
यज्ज्ञात्वा - जिसको जानकर
मोक्ष्यसेऽशुभात् - जिसको जानकर, अशुभ से
भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् अर्जुन को दोषदृष्टि रहित समझकर बोले, यह अत्यन्त गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान मैं कहूँगा, जिसको जानकर तू अशुभ से मुक्त हो जायगा ।9.1।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਅਰਜੁਨ ਨੂੰ ਦੋਸ਼ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਰਹਿਤ ਸਮਝ ਕੇ ਬੋਲੇ, ਇਹ ਅਤਿਅੰਤ ਗੁਪਤ ਵਿਗਿਆਨ ਸਹਿਤ ਗਿਆਨ ਮੈਂ ਕਹਾਂਗਾ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਜਾਨਕੇ ਤੂੰ ਅਸ਼ੁਭ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਏਂਗਾ ।9.1।

   The Lord Krishna said considering Arjuna as a person who does not indulge in fault finding, I shall declare this most secret knowledge, together with experience, by knowing which you shall be free from evil. ।9.1।

।9.2।
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् ।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥ २ ॥

शब्दार्थ
राजविद्या - उत्तम विद्या
राजगुह्यं - रहस्यों का राजा
पवित्रमिदमुत्तमम् - अति पवित्र तथा अति श्रेष्ठ
प्रत्यक्षावगमं - फल भी प्रत्यक्ष है
धर्म्यं - धर्ममय है
सुसुखं - बहुत सुगम है
कर्तुमव्ययम् - अविनाशी है और करने में

भावार्थ/Translation
   यह अति पवित्र तथा अति श्रेष्ठ, उत्तम विद्या रहस्यों का राजा है और इसका फल भी प्रत्यक्ष है यह धर्ममय है, अविनाशी है और करने में बहुत सुगम है ।9.2।

   ਇਹ ਅਤਿ ਪਵਿੱਤਰ ਅਤੇ ਅਤਿ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ, ਉੱਤਮ ਵਿਦਿਆ ਰਹੱਸਿਆਂ ਦਾ ਰਾਜਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਦਾ ਫਲ ਵੀ ਪ੍ਰਤੱਖ ਹੈ ਇਹ ਧਰਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ, ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਹੈ ਅਤੇ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਆਸਾਨ ਹੈ ।9.2।

   This is the royal science, royal mystery, supreme purifier, directly realizable. It is righteous, pleasant to practise and is imperishable. ।9.2।

।9.3।
अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप ।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥ ३ ॥

शब्दार्थ
अश्रद्दधानाः - श्रद्धारहित
पुरुषा - पुरुष
धर्मस्यास्य - इस धर्म में
परन्तप - हे अर्जुन
अप्राप्य - प्राप्त न होकर
मां - मुझे
निवर्तन्ते - भ्रमण करते हैं
मृत्युसंसारवर्त्मनि - मृत्युरूपी संसार मार्ग

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, इस धर्म में श्रद्धा न रखने वाले पुरुष मुझे प्राप्त न होकर मृत्युरूपी संसार में भ्रमण करते हैं ।9.3।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਇਸ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਰਧਾ ਨਹੀਂ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਪੁਰਖ, ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਾਂ ਹੋ ਕੇ, ਮ੍ਰਿਤ ਰੂਪ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਭ੍ਰਮਣ ਕਰਦੇ ਹਨ ।9.3।

   O Arjuna, Those who have no faith in this Dharma, keep wandering on the path of this world of death without attaining Me.।9.3।

।9.4।
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः ॥ ४ ॥

शब्दार्थ
मया - मेरे
ततमिदं - व्याप्त है
सर्वं - सम्पूर्ण
जगदव्यक्तमूर्तिना - जगत् अव्यक्त स्वरूप से
मत्स्थानि - मुझ में स्थित
सर्वभूतानि - सब प्राणी
न चाहं - परन्तु मैं नहीं
तेष्ववस्थितः - उनमें स्थित

भावार्थ/Translation
   यह सम्पूर्ण जगत् मेरे अव्यक्त स्वरूप से व्याप्त है, सब प्राणी मुझ में स्थित है, परन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूं ।9.4।

   ਇਹ ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ ਮੇਰੇ ਅਗਿਆਤ ਸਵਰੂਪ ਨਾਲ ਵਿਆਪਤ ਹੈ, ਸਭ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹਨ, ਪਰ ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਨਹੀਂ ਹਾਂ ।9.4।

   This entire universe is pervaded by Me, in an unmanifest form. All beings abide in Me, but I do not abide in them.।9.4।

।9.5।
न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् ।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः ॥ ५ ॥

शब्दार्थ
न च - नहीं हैं
मत्स्थानि - मुझ में स्थित
भूतानि - प्राणी
पश्य - देख
मे - मेरे
योगमैश्वरम् - ईश्वरीय योग
भूतभृन्न - प्राणियों का पालन करने वाला, नहीं है
च भूतस्थो - प्राणियों में स्थित
ममात्मा - मेरा आत्मा
भूतभावनः - प्राणियों को उत्पन्न करने वाला

भावार्थ/Translation
   वे सब प्राणी मुझमें स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख कि मैं प्राणियों का पालन करने वाला हूं लेकिन मैं इस सृष्टि का अंश नहीं हूं क्योंकि मैं सृष्टि का कारणस्वरूप हूँ ।9.5।

   ਉਹ ਸਭ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਨਹੀਂ ਹਨ, ਪਰ ਮੇਰੀ ਰੱਬੀ ਯੋਗ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕਿ ਮੈਂ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦਾ ਪਾਲਣ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਹਾਂ ਪਰ ਮੈਂ ਇਸ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦਾ ਅੰਸ਼ ਨਹੀਂ ਹਾਂ ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦਾ ਕਾਰਣ ਸਵਰੂਪ ਹਾਂ ।9.5।

   And yet everything that is created does not rest in Me. Behold My mystic opulence! Although I am the maintainer of all living entities, I am not a part of this cosmic manifestation, for My Self is the very source of creation.।9.5।

।9.6।
यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥ ६ ॥

शब्दार्थ
यथाकाशस्थितो - जैसे आकाश में स्थित रहती है
नित्यं - नित्य
वायुः - वायु
सर्वत्रगो - सब जगह विचरने वाली
महान् - महान
तथा - ऐसे ही
सर्वाणि - सम्पूर्ण
भूतानि - प्राणी
मत्स्थानीत्युपधारय - मुझ में ही स्थित रहते हैं

भावार्थ/Translation
   जैसे सब जगह विचरने वाली महान् वायु नित्य ही आकाश में स्थित रहती है, ऐसे ही सम्पूर्ण प्राणी मुझ में ही स्थित रहते हैं - ऐसा समझो ।9.6।

   ਜਿਵੇਂ ਸਭ ਜਗ੍ਹਾ ਵਿਚਰਨ ਵਾਲੀ ਮਹਾਨ ਹਵਾ ਨਿੱਤ ਹੀ ਅਕਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ, ਇੰਜ ਹੀ ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸਥਿਤ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ - ਅਜਿਹਾ ਸਮੱਝ ।9.6।

   Understand that as the mighty wind, blowing everywhere, rests always in the sky, all created beings rest in Me.।9.6।

।9.7।
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥ ७ ॥

शब्दार्थ
सर्वभूतानि - सम्पूर्ण प्राणी
कौन्तेय - अर्जुन
प्रकृतिं - प्रकृति
यान्ति - प्राप्त होते हैं
मामिकाम् - प्रकृति
कल्पक्षये - कल्प के अन्त में
पुनस्तानि - फिर उनकी
कल्पादौ - कल्प के प्रारम्भ में
विसृजाम्यहम् - मैं रचना करता हूँ

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, कल्पों के अन्त में सम्पूर्ण प्राणी मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं, और कल्पों के प्रारम्भ में मैं फिर उनकी रचना करता हूँ ।9.7।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਕਲਪਾਂ ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀ ਮੇਰੀ ਕੁਦਰਤ ਵਿੱਚ ਮਿਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਅਤੇ ਕਲਪਾਂ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਫਿਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ।9.7।

   O Arjuna, All beings, go into My Nature at the end of a Kalpa; I send them forth again at the beginning of Kalpa.।9.7।

।9.8।
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥ ८ ॥

शब्दार्थ
प्रकृतिं - प्रकृति के
स्वामवष्टभ्य - अपनी, वश में करके
विसृजामि - रचता हूँ
पुनः - बार
पुनः - बार
भूतग्राममिमं - इस प्राणि समुदाय को
कृत्स्नमवशं - पूर्ण परतन्त्र हुए
प्रकृतेर्वशात् - प्रकृति, वश में होने से

भावार्थ/Translation
   प्रकृति के वश में होने से, पूर्ण परतन्त्र हुए इस प्राणि समुदाय को, मैं अपनी प्रकृति को वश में करके बार बार रचता हूँ ।9.8।

   ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਵਸ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਕਰਕੇ, ਪਰਤੰਤਰ ਹੋਏ ਇਸ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸਮੁਦਾਏ ਨੂੰ, ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਕੁਦਰਤ ਨੂੰ ਵਸ ਵਿੱਚ ਕਰਕੇ ਵਾਰ ਵਾਰ ਰਚਦਾ ਹਾਂ ।9.8।

   Taking hold of My own nature I create again and again this entire host of beings, which are like slaves under the control of nature.।9.8।

।9.9।
न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ॥ ९ ॥

शब्दार्थ
न च मां - मुझ को नहीं
तानि - वे
कर्माणि - कर्म
निबध्नन्ति - बांधते
धनञ्जय - अर्जुन
उदासीनवदासीनमसक्तं - आसक्ति रहित और उदासीन के समान
तेषु - उन
कर्मसु - कर्मों में

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, उन कर्मों में आसक्ति रहित और उदासीन के समान स्थित, मुझ को वे कर्म नहीं बांधते ।9.9।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਆਸਕਤੀ ਰਹਿਤ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਨ ਦੇ ਸਮਾਨ ਸਥਿਤ, ਮੈਨੂੰ ਉਹ ਕਰਮ ਨਹੀਂ ਬੰਨਦੇ ।9.9।

   O Arjuna, These acts do not bind Me, I remain indifferent, unattached to those acts. ।9.9।

।9.10।
मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥ १० ॥

शब्दार्थ
मयाध्यक्षेण - मेरी अध्यक्षता में
प्रकृतिः - प्रकृति
सूयते - रचती है
सचराचरम् - चराचर जगत
हेतुनानेन - हेतु से
कौन्तेय - हे अर्जुन
जगद्विपरिवर्तते - परिवर्तन होता है

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, प्रकृति मेरी अध्यक्षता में सम्पूर्ण चराचर जगत को फिर से रचती है इसी हेतु से जगत परिवर्तित होता है ।9.10।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਕੁਦਰਤ ਮੇਰੀ ਪ੍ਰਧਾਨਤਾ ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਣ ਚਰਾਚਰ ਜਗਤ ਨੂੰ ਦੁਬਾਰਾ ਰਚਦੀ ਹੈ ਇਸੇ ਹੇਤੁ ਨਾਲ ਜਗਤ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।9.10।

   O Arjuna, Under Me as supervisor, Nature produces the whole creation; because of this, the world revolves (creation and annihilation). ।9.10।

।9.11।
अवजानन्ति मां मूढा मांनुषीं तनुमाश्रितम् ।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्र्वरम् ॥ ११ ॥

शब्दार्थ
अवजानन्ति - नहीं जानते
मां मूढा - मूर्ख लोग
मांनुषीं - मनुष्य
तनुमाश्रितम् - शरीर के आश्रित
परं भावमजानन्तो - परमभाव को न जानते हुए
मम भूतमहेश्र्वरम् - प्राणियों के महान् ईश्वर, मेरे को

भावार्थ/Translation
   मूर्ख लोग मेरे सम्पूर्ण प्राणियों के महान् ईश्वररूप परम भाव को न जानते हुए मुझे साधारण मनुष्य मानकर मेरी उपेक्षा करते हैं ।9.11।

   ਮੂਰਖ ਲੋਕ ਮੇਰੇ ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਮਹਾਨ ਈਸ਼ਵਰਰੂਪ ਪਰਮ ਭਾਵ ਨੂੰ ਨਾਂ ਜਾਣਦੇ ਹੋਏ ਮੈਨੂੰ ਸਧਾਰਣ ਮਨੁੱਖ ਮੰਨ ਕੇ ਮੇਰੀ ਨਜ਼ਰਅੰਦਾਜ਼ੀ ਕਰਦੇ ਹਨ ।9.11।

   Fools disregard Me, dwelling in a human form, not knowing My higher nature, as the Supreme Lord of all beings. ।9.11।

।9.12।
मोघाशामोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥ १२ ॥

शब्दार्थ
मोघाशामोघकर्माणो - व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म
मोघज्ञाना - व्यर्थ ज्ञान
विचेतसः - विक्षिप्तचित्त
राक्षसीमासुरीं - राक्षसी, आसुरी
चैव - को ही
प्रकृतिं - प्रकृति
मोहिनीं - मोहिनी
श्रिताः - धारण किए रहते हैं

भावार्थ/Translation
   वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्त चित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को ही धारण किए रहते हैं ।9.12।

   ਉਹ ਫਜ਼ੂਲ ਆਸ, ਫਜ਼ੂਲ ਕਰਮ ਅਤੇ ਫਜ਼ੂਲ ਗਿਆਨ ਵਾਲੇ ਪਾਗਲ ਚਿੱਤ ਅਗਿਆਨੀਜਨ, ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ, ਆਸੁਰੀ ਅਤੇ ਮੋਹਣੀ ਕੁਦਰਤ ਨੂੰ ਹੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।9.12।

   They are of futile aspirations, futile actions, futile knowledge and wrong intellect; and take recourse to the delusive nature that is demoniac and devilish. ।9.12।

।9.13।
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् ॥ १३ ॥

शब्दार्थ
महात्मानस्तु - महात्मा लोग
मां पार्थ - हे अर्जुन
दैवीं - दैवी
प्रकृतिमाश्रिताः - स्वभाव के आश्रित
भजन्त्यनन्यमनसो - अनन्यमन से मेरा भजन
ज्ञात्वा - समझकर
भूतादिमव्ययम् - प्राणियों का आदि और अविनाशी

भावार्थ/Translation
   परन्तु हे अर्जुन, दैवी प्रकृति के आश्रित महात्मा लोग मेरे को सम्पूर्ण प्राणियों का आदि और अविनाशी समझकर अनन्यमन से मेरा भजन करते हैं ।9.13।

   ਪਰ ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਦੈਵੀ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਆਸ਼ਰਿਤ ਮਹਾਤਮਾ ਲੋਕ ਮੇਨੂੰ ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦਾ ਆਦਿ ਅਤੇ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਸੱਮਝ ਕੇ ਇੱਕ ਮਨ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਭਜਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ।9.13।

   But the great and noble souls, O Arjuna, partaking of My divine nature, worship Me with a single mind, knowing Me as the imperishable source of beings. ।9.13।

।9.14।
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रताः ।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥ १४ ॥

शब्दार्थ
सततं - निरन्तर
कीर्तयन्तो मां - मेरे नाम और गुणोंका कीर्तन करते हुए
यतन्तश्च - लगनपूर्वक
दृढव्रताः - दृढ निश्चय वाले
नमस्यन्तश्च मां - नमस्कार करते हुये, मेरी
भक्त्या - भक्तिपूर्वक
नित्ययुक्ता - नित्य युक्त
उपासते - उपासना करते हैं

भावार्थ/Translation
   नित्य युक्त मनुष्य दृढ़व्रती होकर लगन और भक्तिपूर्वक कीर्तन करते हुए तथा नमस्कार करते हुये निरन्तर मेरी उपासना करते हैं ।9.14।

   ਰੋਜ੍ਹਾਨਾ ਅਭਿਆਸ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਪੱਕਾ ਇਰਾਦਾ ਕਰ ਕੇ, ਲਗਨ ਅਤੇ ਭਗਤੀਪੂਰਵਕ ਕੀਰਤਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਨਮਸਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਨਿਰੰਤਰ ਮੇਰੀ ਉਪਾਸਨਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।9.14।

   Always chanting My glories, endeavoring with great determination, bowing down before Me, these steadfast men worship Me with devotion. ।9.14।

।9.15।
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते ।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥ १५ ॥

शब्दार्थ
ज्ञानयज्ञेन - ज्ञानयज्ञ द्वारा
चाप्यन्ये - दूसरे
यजन्तो - पूजन करते
मामुपासते - मेरी उपासना करते हैं
एकत्वेन - एकीभावसे
पृथक्त्वेन - पृथक भाव से
बहुधा - अनेक प्रकार से
विश्वतोमुखम् - विराट स्वरूप

भावार्थ/Translation
   कोई ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्न (एकत्व) भाव से पूजन करते हुए और कोई बहुत प्रकार से पृथक भाव से मेरे विराट स्वरूप की उपासना करते हैं ।9.15।

   ਕੋਈ ਗਿਆਨਯੱਗ ਦੁਆਰਾ ਅਭਿੰਨ (ਏਕੱਤਵ) ਭਾਵ ਨਾਲ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਕੋਈ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਕਾਰ ਨਾਲ, ਨਿਵੇਕਲਾ ਭਾਵ ਰੱਖ ਕੇ ਮੇਰੇ ਵਿਰਾਟ ਸਵਰੂਪ ਦੀ ਉਪਾਸਨਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।9.15।

   Some worship the lord by engaging in the knowledge sacrifice and consider Him as the one without a second, others worship in Him differently in multitude of ways considering His Universal form in different aspects. ।9.15।

।9.16।
अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहममौषधम् ।
मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् ॥ १६ ॥

शब्दार्थ
अहं क्रतुरहं - मैं क्रतु हूँ मैं
यज्ञः - यज्ञ हूँ
स्वधाहममौषधम् - स्वधा और औषध मैं हूँ
मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं - मैं मन्त्र हूँ, घी हूँ, अग्नि हूँ, मैं
हुतम् - हवन कर्म

भावार्थ/Translation
   मैं क्रतु हूँ, मैं यज्ञ हूँ, स्वधा और औषध मैं हूँ, मैं मन्त्र हूँ, घी हूँ, मैं अग्नि हूँ और हवन कर्म मैं हूँ ।9.16।

   ਮੈਂ ਅਨੁਸ਼ਠਾਨ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਯੱਗ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਭੇਟ ਹਾਂ ਅਤੇ ਦਵਾ ਮੈਂ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਮੰਤਰ ਹਾਂ, ਘੀ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਅੱਗ ਹਾਂ ਅਤੇ ਹਵਨ ਕਰਮ ਭੀ ਮੈਂ ਹਾਂ ।9.16।

   I am the ritual, I the sacrifice, the offering to the ancestors, the healing herb, the transcendental chant. I am the butter and the fire and the action of offering. ।9.16।

।9.17।
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।
वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥ १७ ॥

शब्दार्थ
पिताहमस्य - पिता, मैं ही इस
जगतो - जगत का
माता - माता
धाता - धारण करने वाला
पितामहः - पितामह हूँ
वेद्यं - जानने योग्य
पवित्रमोङ्कार - पवित्र ओंकार
ऋक्साम - ऋग्वेद, सामवेद
यजुरेव च - और यजुर्वेद भी

भावार्थ/Translation
   मैं ही इस जगत का पिता, माता, धारण करने वाला और पितामह हूँ जानने योग्य, पवित्र ओंकार, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं हूँ ।9.17।

   ਮੈਂ ਹੀ ਇਸ ਜਗਤ ਦਾ ਪਿਤਾ, ਮਾਤਾ, ਧਾਰਨ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਅਤੇ ਪਿਤਾਮਹ ਹਾਂ ਜਾਣਨ ਦੇ ਲਾਇਕ, ਪਵਿਤਰ ਓਂਕਾਰ, ਰਿਗਵੇਦ, ਸਾਮਵੇਦ ਅਤੇ ਯਜੁਰਵੇਦ ਵੀ ਮੈਂ ਹਾਂ ।9.17।

   I am the father of this universe, the mother, the support and the grandfather. I am the object of knowledge, the sacred syllable om. I am also the Rig, Sama and Yajur Vedas.।9.17।

।9.18।
गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत् ।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥ १८ ॥

शब्दार्थ
गतिर्भर्ता - लक्ष्य, पोषणकर्ता
प्रभुः - स्वामी
साक्षी - साक्षी
निवासः - सबका निवासस्थान
शरणं - शरण लेने योग्य
सुहृत् - सहृदयी
प्रभवः - उत्पत्ति
प्रलयः - प्रलय कर्ता
स्थानं - आधार
निधानं - निधान
बीजमव्ययम् - अविनाशी बीजरुप

भावार्थ/Translation
   परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका निवासस्थान, शरण लेने योग्य, सहृदयी, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार (प्रलयकाल में लयस्थान) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ ।9.18।

   ਪਰਮ ਧਾਮ, ਪਾਲਣ ਪੋਸ਼ਣ ਕਰਣ ਵਾਲਾ, ਸਬਦਾ ਸਵਾਮੀ, ਸ਼ੁਭ ਅਸ਼ੁਭ ਦਾ ਦੇਖਣ ਵਾਲਾ, ਸਬ ਦਾ ਨਿਵਾਸ ਸਥਾਨ, ਸ਼ਰਨ ਲੈਣ ਲਾਇਕ, ਸੁਹਿਰਦ, ਸਭ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ - ਪਰਲੋ ਦਾ ਹੇਤੁ, ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਆਧਾਰ (ਪਰਲੋ ਵਿੱਚ ਲਯ ਸਥਾਨ) ਅਤੇ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਕਾਰਨ ਵੀ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ ।9.18।

   I am the goal, the sustainer, the master, the witness, the abode, the refuge, and the most dear friend. I am the creation and the annihilation, the basis of everything, the resting place and the eternal seed. ।9.18।

।9.19।
तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥ १९ ॥

शब्दार्थ
तपाम्यहमहं - मैं ही तपता हूँ
वर्षं - वर्षा
निगृह्णाम्युत्सृजामि - निग्रह और उत्सर्जन करता हूँ
च - और
अमृतं - अमृत
चैव - और
मृत्युश्च - मृत्यु
सदसच्चाहमर्जुन - हे अर्जुन, सत् और असत् हूँ

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, मैं ही (सूर्य रूप में) तपता हूँ, मैं जल को ग्रहण करता हूँ और फिर उस को वर्षा रूप से देता हूँ मैं ही अमृत और मृत्यु एवं सत् और असत् हूँ ।9.19।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਮੈਂ ਹੀ (ਸੂਰਜ ਰੂਪ ਵਿੱਚ) ਤਪਦਾ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਖਿੱਚਦਾ ਹਾਂ ਅਤੇ ਫਿਰ ਉਸ ਨੂੰ ਵਰਖਾ ਰੂਪ ਚ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ ਮੈਂ ਹੀ ਅਮ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਮੌਤ, ਸਤ ਅਤੇ ਅਸਤ ਹਾਂ ।9.19।

   O Arjuna, I give heat, and I withhold and send forth the rain. I am immortality, and I am also death personified. Both the real and unreal (spirit and matter) are in Me. ।9.19।

।9.20।
त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा-यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते ।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ॥ २० ॥

शब्दार्थ
त्रैविद्या - तीन वेदों के ज्ञाता
मां सोमपाः - सोमरस को पीने वाले
पूतपापा-यज्ञैरिष्ट्वा - पापरहित मनुष्य यज्ञों के द्वारा मेरा पूजन करके
स्वर्गतिं - स्वर्ग की
प्रार्थयन्ते - प्रार्थना करते हैं
ते पुण्यमासाद्य - पुण्य के फल रूप
सुरेन्द्रलोक-मश्नन्ति - इन्द्रलोक को भोगते हैं
दिव्यान्दिवि - स्वर्ग में दिव्य
देवभोगान् - देवों के भोगों को

भावार्थ/Translation
   तीनों वेदों के ज्ञाता और सोमरस को पीने वाले जो पापरहित मनुष्य यज्ञों के द्वारा मेरा पूजन करके स्वर्ग की प्रार्थना करते हैं, वे पुण्य के फलरूप इन्द्रलोक को प्राप्त करके वहाँ स्वर्ग में देवों के दिव्य भोग भोगते हैं ।9.20।

   ਤਿੰਨਾਂ ਵੇਦਾਂ ਦੇ ਜਾਣਕਾਰ ਅਤੇ ਸੋਮਰਸ ਨੂੰ ਪੀਣ ਵਾਲੇ ਜੋ ਪਾਪਰਹਿਤ ਮਨੁੱਖ ਯੱਗਾਂ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਮੇਰਾ ਪੂਜਨ ਕਰਕੇ ਸਵਰਗ ਦੀ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਪੁੰਨਾ ਦੇ ਫਲਰੂਪ ਇੰਦਰਲੋਕ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਉੱਥੇ ਸਵਰਗ ਵਿੱਚ ਦੇਵਾਂ ਦੇ ਸੁੰਦਰ ਭੋਗ ਭੋਗਦੇ ਹਨ ।9.20।

   The knowers of the three Vedas, the drinkers of Soma, purified of all sins, worshipping Me by sacrifices, pray for the way to heaven; they reach the world of Indra and enjoy the divine pleasures of the heavenly-gods.।9.20।

।9.21।
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं-क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना-गतागतं कामकामा लभन्ते ॥ २१ ॥

शब्दार्थ
ते तं भुक्त्वा - वे उस, भोगकर
स्वर्गलोकं - स्वर्ग लोक को
विशालं-क्षीणे - विशाल, क्षीण होने पर
पुण्ये - पुण्य
मर्त्यलोकं - मृत्यु लोक को
विशन्ति - आते हैं
एवं - ऐसे
त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना - तीनों वेदों में कहे धर्म का आश्रय लेने वाले
गतागतं - आवागमन को प्राप्त होते हैं
कामकामा - भोगों की कामना वाले
लभन्ते - प्राप्त होते हैं

भावार्थ/Translation
   वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं ऐसे तीनों वेदों में कहे धर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों की कामना वाले आवागमन को प्राप्त होते हैं ।9.21।

   ਉਹ ਉਸ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸ੍ਵਰਗਲੋਕ ਨੂੰ ਭੋਗ ਕੇ ਪੁੰਨ ਖਤਮ ਹੋਣ ਤੇ ਮ੍ਰਿਤ ਲੋਕ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਜਿਹੇ ਤਿੰਨਾਂ ਵੇਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਹੇ ਧਰਮ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਭੋਗਾਂ ਦੀ ਕਾਮਨਾ ਵਾਲੇ ਮਰਨ-ਜੰਮਣ ਦੇ ਚੱਕਰ ਕੱਢਦੇ ਹਨ ।9.21।

   After enjoying vast heavenly sense pleasures, when the merits of their pious activities are exhausted, they return to this mortal planet again. Thus those who seek sense enjoyment by adhering to the principles of the three Vedas achieve only repeated birth and death. ।9.21।

।9.22।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ २२ ॥

शब्दार्थ
अनन्याश्चिन्तयन्तो - जो अनन्य मेरा चिन्तन करते हुए
मां ये - जो मेरा
जनाः - भक्त
पर्युपासते - उपासना करते हैं
तेषां - उनका
नित्याभियुक्तानां - निरन्तर लगे हुए
योगक्षेमं - अप्राप्तकी प्राप्ति और प्राप्तकी रक्षा
वहाम्यहम् - मैं वहन करता हूँ

भावार्थ/Translation
   जो अनन्य भक्त मेरा चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, मेरे में निरन्तर लगे उनका योगक्षेम (अप्राप्तकी प्राप्ति और प्राप्तकी रक्षा) मैं वहन करता हूँ ।9.22।

   ਜੋ ਇੱਕੋ-ਚਿੱਤ ਭਗਤ ਮੇਰਾ ਚਿੰਤਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਮੇਰੀ ਉਪਾਸਨਾ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਨਿਰੰਤਰ ਲੱਗੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਯੋਗਖੇਮ (ਅਪ੍ਰਾਪਤ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਦੀ ਰੱਖਿਆ) ਦੀ ਸੰਭਾਲ ਮੈਂ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ।9.22।

   Those who always worship Me with exclusive devotion, meditating on Me, constantly and fully attached to me, to them I carry what they lack, and I preserve what they have.।9.22।

।9.23।
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥ २३ ॥

शब्दार्थ
येऽप्यन्यदेवता - जो अन्य देवताओं को
भक्ता - भक्त
यजन्ते - पूजते हैं
श्रद्धयान्विताः - श्रद्धा से युक्त
तेऽपि - वे भी
मामेव - मुझे ही
कौन्तेय - हे अर्जुन
यजन्त्यविधिपूर्वकम् - अविधिपूर्वक पूजते हैं

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, श्रद्धा से युक्त जो भक्त अन्य देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझे ही अविधिपूर्वक पूजते हैं |9.23|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਭਰੇ ਜੋ ਭਗਤ ਹੋਰ ਦੇਵਤਿਆਂ ਨੂੰ ਪੂਜਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਵੀ ਮੈਨੂੰ ਹੀ ਬਿਨਾਂ ਵਿਧੀ ਤੋਂ ਪੂਜਦੇ ਹਨ ।9.23।

   O Arjuna, Those who worship other gods with faith actually worship only Me, but in a wrong way.।9.23।

।9.24।
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥ २४ ॥

शब्दार्थ
अहं हि - मैं ही हूँ
सर्वयज्ञानां - संपूर्ण यज्ञों का
भोक्ता - भोक्ता
च प्रभुरेव - और स्वामी भी
च न तु - परंतु वे नहीं
मामभिजानन्ति - मुझे जानते
तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते - तत्त्व से

भावार्थ/Translation
   संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझे तत्त्व से नहीं जानते, और मार्ग से गिरते हैं ।9.24।

   ਸੰਪੂਰਣ ਯੱਗਾਂ ਦਾ ਭੋਕਤਾ ਅਤੇ ਸਵਾਮੀ ਵੀ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ, ਪਰ ਉਹ ਮੈਨੂੰ ਤੱਤਵ ਤੋਂ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ, ਅਤੇ ਅਸਲੀ ਰਸਤੇ ਤੋਂ ਡਿੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।9.24।

   I am the enjoyer as well as the master of all sacrifices. But they do not recognise Me correctly and hence they fall down from the actual path. ।9.24।

।9.25।
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ॥ २५ ॥

शब्दार्थ
यान्ति - प्राप्त होते हैं
देवव्रता - देवताओं के पूजक
देवान्पितृन्यान्ति - देवताओं को, पितरों को
पितृव्रताः - पितरों को पूजने वाले
भूतानि - भूतों को
यान्ति - प्राप्त होते हैं
भूतेज्या - भूतों को पूजने वाले
यान्ति - प्राप्त होते हैं
मद्याजिनोऽपि - मेरा पूजन करने वाले
माम् - मुझे

भावार्थ/Translation
   देवताओं के पूजक देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को जाते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले मुझे ही प्राप्त होते हैं ।9.25।

   ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੇ ਉਪਾਸਕ ਦੇਵਤਿਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਪਿੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਪੁਜੱਣ ਵਾਲੇ ਪਿੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਭੂਤਾਂ ਨੂੰ ਪੁਜੱਣ ਵਾਲੇ ਭੂਤਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਮੇਰਾ ਪੂਜਨ ਕਰਣ ਵਾਲੇ ਮੈਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।9.25।

   Those who worship the demigods will reach demigods; those who worship the ancestors go to the ancestors; those who worship ghosts and will take birth among such beings; and those who worship Me will come to Me. ।9.25।

।9.26।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥ २६ ॥

शब्दार्थ
पत्रं - पत्ते
पुष्पं - फूल
फलं - फल
तोयं - जल आदि
यो मे - जो मेरे
भक्त्या - भक्त
प्रयच्छति - अर्पण करता है
तदहं - उस को
भक्त्युपहृतमश्नामि - भक्तिपूर्वक समर्पित, स्वीकार करता हूँ
प्रयतात्मनः - निष्काम प्रेमी

भावार्थ/Translation
   जो भक्त पत्र, पुष्प, फल, जल आदि को भक्तिपूर्वक मेरे अर्पण करता है, उस मेरे निष्काम प्रेमी भक्त के भक्तिपूर्वक समर्पण को मैं स्वीकार करता हूँ ।9.26।

   ਜੋ ਭਗਤ ਪੱਤ, ਪੁਸ਼ਪ, ਫਲ, ਪਾਣੀ ਆਦਿ ਨੂੰ ਭਗਤੀ ਨਾਲ ਮੇਰੇ ਅਰਪਣ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਮੇਰੇ ਨਿਸ਼ਕਾਮ ਪ੍ਰੇਮੀ ਭਗਤ ਦੇ ਭਗਤੀ ਭਰੇ ਸਮਰਪਣ ਨੂੰ ਮੈਂ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ।9.26।

   Whoever offers Me with devotion a leaf, a flower, a fruit or a little water that, so offered lovingly by the pure-minded, I accept.।9.26।

।9.27।
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥ २७ ॥

शब्दार्थ
यत्करोषि - जो करता है
यदश्नासि - खाता है
यज्जुहोषि - यज्ञ करता है
ददासि - दान देता है
यत् - जो
यत्तपस्यसि - तप करता है
कौन्तेय - हे अर्जुन
तत्कुरुष्व - कर दे
मदर्पणम् - वह सब मेरे अर्पण

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, तू जो करता है, खाता है, यज्ञ करता है, दान देता है, तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर दे ।9.27।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਤੂੰ ਜੋ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਖਾਂਦਾ ਹੈਂ, ਯੱਗ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਦਾਨ ਦਿੰਦਾ ਹੈਂ, ਤਪ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਉਹ ਸਭ ਮੇਰੇ ਅਰਪਣ ਕਰ ਦੇ ।9.27।

   O Arjuna, Whatever you do, eat, offer or give away, and whatever austerities you perform, do as an offering to Me. ।9.27।

।9.28।
शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः ।
सन्न्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥ २८ ॥

शब्दार्थ
शुभाशुभफलैरेवं - शुभ अशुभ फल रूप
मोक्ष्यसे - मुक्त हो जाओगे
कर्मबन्धनैः - कर्मबन्धनों से
सन्न्यासयोगयुक्तात्मा - संन्यास योग से युक्त चित्त हुए
विमुक्तो - विमुक्त होकर
मामुपैष्यसि - मुझे ही प्राप्त हो जाओगे

भावार्थ/Translation
   इस प्रकार तुम शुभ अशुभ फल रूप कर्मबन्धनों से मुक्त हो जाओगे और संन्यासयोग (सब कुछ मेरे अर्पण करनेवाला) से युक्त चित्त हुए तुम विमुक्त होकर मुझे ही प्राप्त हो जाओगे ।9.28।

   ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਤੂੰ ਸ਼ੁਭ ਅਸ਼ੁਭ ਫਲ ਰੂਪ ਕਰਮਬੰਧਨ ਤੋਂ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋ ਜਾਓੁਂਗੇ ਅਤੇ ਸੰਨਿਆਸਯੋਗ (ਸਭ ਕੁੱਝ ਮੇਰੇ ਅਰਪਣ ਕਰਨਾ) ਨਾਲ ਭਰੇ ਚਿੱਤ ਨਾਲ ਤੂੰ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਵੇਂਗਾ ।9.28।

   In this way you will be freed from bondage to work and its auspicious and inauspicious results. With your mind fixed on Me by this way of renunciation (to offer everything to GOD), you will be liberated and come to Me.।9.28।

।9.29।
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥ २९ ॥

शब्दार्थ
समोऽहं - समान हूँ, मैं
सर्वभूतेषु - सम्पूर्ण प्राणियों में
न मे - न मेरा
द्वेष्योऽस्ति - द्वेषी है
न प्रियः - न प्रिय
ये भजन्ति - भजन करते हैं
तु मां - परन्तु मेरा
भक्त्या - जो भक्तिपूर्वक
मयि ते - वे मेरे में
तेषु चाप्यहम् - और मैं उनमें हूँ

भावार्थ/Translation
   मैं सम्पूर्ण प्राणियों में समान हूँ, उन में न कोई मेरा द्वेषी है और न प्रिय है परन्तु जो भक्तिपूर्वक मेरा भजन करते हैं, वे मेरे में हैं और मैं उनमें हूँ ।9.29।

   ਮੈਂ ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਨ ਹਾਂ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾਂ ਕੋਈ ਮੇਰਾ ਦਵੇਸ਼ੀ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾਂ ਪਿਆਰਾ ਹੈ ਪਰ ਜੋ ਭਗਤੀ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਭਜਨ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਹਨ ਅਤੇ ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਹਾਂ ।9.29।

   I am equal to all beings; to Me none is hateful and none is dear; but whosoever worship Me with devotion, they are in Me and I am in them.।9.29।

।9.30।
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥ ३० ॥

शब्दार्थ
अपि - भी
चेत्सुदुराचारो - यदि कोई अतिशय दुराचारी
भजते - भजता है
मामनन्यभाक् - अनन्य भाव से मेरा
साधुरेव - साधु ही
स मन्तव्यः - मानना चाहिये
सम्यग्व्यवसितो - सम्यक् निश्चय वाला
हि सः - वह है

भावार्थ/Translation
   यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मुझे भजता है, उसे साधु ही मानना चाहिये, क्योंकि वह सम्यक् निश्चय वाला है ।9.30।

   ਜੇ ਕੋਈ ਦੁਰਾਚਾਰੀ ਵੀ ਇੱਕੋ ਭਾਵ ਨਾਲ ਮੈਨੂੰ ਭਜਦਾ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਸਾਧੁ ਹੀ ਮੰਨਣਾ ਚਾਹੀਦੇ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਚੰਗੇ ਨਿਸ਼ਚੇ ਵਾਲਾ ਹੈ ।9.30।

   If even the most sinful man worships Me with undivided devotion, he must be regarded as holy, for he has rightly resolved.।9.30।

।9.31।
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥ ३१ ॥

शब्दार्थ
क्षिप्रं - शीघ्र
भवति - बन जाता है
धर्मात्मा - धर्मात्मा
शश्वच्छान्तिं - शाश्वत शान्ति
निगच्छति - प्राप्त होता है
कौन्तेय - हे अर्जुन
प्रतिजानीहि - निश्चयपूर्वक जान
न मे भक्तः - मेरा भक्त नहीं
प्रणश्यति - नष्ट होता

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, वह शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और शाश्वत शान्ति को प्राप्त होता है तुम निश्चयपूर्वक जानो कि मेरा भक्त का विनाश (पतन) नहीं होता ।9.31।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਉਹ ਜਲਦੀ ਹੀ ਧਰਮਾਤਮਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਦੀਵੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੂੰ ਨਿਸ਼ਚੈ ਨਾਲ ਜਾਣ ਕਿ ਮੇਰੇ ਭਗਤ ਦਾ ਨਾਸ਼ (ਪਤਨ) ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।9.31।

   O Arjuna, Quickly he becomes righteous and obtains everlasting peace. You know certainly, My devotee never perishes.।9.31।

।9.32।
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥ ३२ ॥

शब्दार्थ
मां हि - भी मेरे
पार्थ - हे अर्जुन
व्यपाश्रित्य - शरण होकर
येऽपि - जो कोई भी
स्युः - हों
पापयोनयः - पापात्मा
स्त्रियो - स्त्री
वैश्यास्तथा - वैश्य
शूद्रास्तेऽपि - शूद्र
यान्ति - पाते हैं
परां - परम
गतिम् - गति

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापात्मा जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति पाते हैं ।9.32।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ! ਇਸਤਰੀ, ਵੈਸ਼, ਸ਼ੂਦਰ ਅਤੇ ਪਾਪੀ ਜੋ ਕੋਈ ਵੀ ਹੋਣ, ਉਹ ਵੀ ਮੇਰੇ ਸ਼ਰਨ ਹੋ ਕੇ ਪਰਮਗਤੀ ਪਾਂਉਦੇ ਹਨ ।9.32।

   O Arjuna, those who take shelter in Me, though they be of lower birth - women, merchants (vaishyas) and workers (Shudras), can attain the supreme destination.।9.32।

।9.33।
किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥ ३३ ॥

शब्दार्थ
किं पुनर्ब्राह्मणाः - ब्राह्मण, फिर क्या कहना
पुण्या - पुण्यशील
भक्ता - भक्त
राजर्षयस्तथा - तथा राजर्षि
अनित्यमसुखं - अनित्य, सुखरहित
लोकमिमं - लोक को
प्राप्य - प्राप्त होकर
भजस्व - भजन कर
माम् - मेरा

भावार्थ/Translation
   फिर पुण्यशील ब्राह्मण तथा राजर्षि भक्तजन का क्या कहना इसलिये तू सुखरहित और अनित्य लोक प्राप्त करने पर मेरा भजन कर |9.33|

   ਫਿਰ ਪੁੰਣ ਕਰਣ ਵਾਲੇ ਬਾਹਮਣ ਅਤੇ ਰਾਜ ਰਿਸ਼ੀ ਭਗਤਾ ਦਾ ਕੀ ਕਹਿਣਾ ਇਸ ਲਈ ਤੂੰ ਸੁੱਖਰਹਿਤ ਅਤੇ ਅਸਥਿਰ ਲੋਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਣ ਉੱਤੇ ਮੇਰਾ ਭਜਨ ਕਰ ।9.33।

   What to speak of the holy Brahmanas as also of devout kind-sages! Having come to this transient and miserable world, worship Me.।9.33।

।9.34।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
ममेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः ॥ ३४ ॥

शब्दार्थ
मन्मना - मेरे में मन वाला
भव - हो
मद्भक्तो - मेरा भक्त हो
मद्याजी - मेरा पूजन करने वाला हो
मां नमस्कुरु - मेरे को नमस्कार कर
ममेवैष्यसि - मेरे को प्राप्त होगा
युक्त्वैवमात्मानं - अपने आपको मेरे में लगाकर
मत्परायणः - मेरे परायण हुआ

भावार्थ/Translation
   मेरे में मन वाला हो, मेरा भक्त हो, मेरा पूजन करने वाला हो और मेरे को नमस्कार कर इस प्रकार अपने आपको मेरे में लगाकर, मेरे परायण हुआ तू मेरे को प्राप्त होगा ।9.34।

   ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਮਨ ਲਗਾ, ਮੇਰਾ ਭਗਤ ਹੋ, ਮੇਰਾ ਪੂਜਨ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਬਣ ਅਤੇ ਮੇਨੂੰ ਨਮਸਕਾਰ ਕਰ ਇਸ ਤਰਾੰ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਕੇ, ਮੇਰੇ ਪਰਾਇਣ ਹੋਇਆ ਤੂੰ ਮੇਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਂਗਾ ।9.34।

   Engage your mind always in thinking of Me, become My devotee, offer obeisances to Me and worship Me. Being completely absorbed in Me and regarding Me as the supreme goal, surely you will come to Me. ।9.34।



ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे राजविद्याराजगुह्ययोगो नाम नवमोऽध्यायः ॥9.1-9.34॥

To be Completed by 1st October, 2015 (34 days)

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