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अध्याय दस / Chapter 10

।10.1।
श्रीभगवानुवाच
भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥ १ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच -श्री भगवान् बोले
भूय - फिर
एव - से
महाबाहो - हे अर्जुन
श्रृणु - सुनो
मे परमं - मेरे परम
वचः - वचन को
यत्तेऽहं - जिसे मैं
प्रीयमाणाय - अपना प्रिय मानकर
वक्ष्यामि - कहूँगा
हितकाम्यया - हित की कामना से
भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् बोले - हे अर्जुन मेरे परम वचन को तुम फिर सुनो, जिसे मैं तुम्हें अपना प्रिय मानकर, तुम्हारे हित की कामना से कहूँगा |10.1|

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਬੋਲੇ - ਹੇ ਅਰਜੁਨ ਮੇਰੇ ਪਰਮ ਵਚਨ ਨੂੰ ਤੂੰ ਫਿਰ ਸੁਣ, ਜਿਨੂੰ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਆਪਣਾ ਪਿਆਰਾ ਮੰਨ ਕੇ, ਤੇਰੇ ਹਿੱਤ ਦੀ ਕਾਮਨਾ ਨਾਲ ਕਹਾਂਗਾ |10.1|

   Krishna said: O Arjuna, Listen again, Because you are My dear friend, for your benefit I shall speak to you further, giving you the ultimate knowledge.|10.1|

।10.2।
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः ।
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥ २ ॥

शब्दार्थ
न मे - मेरे, न
विदुः - जानते हैं
सुरगणाः - न देवता
प्रभवं - उत्पत्ति
न - न
महर्षयः - न महर्षि
अहमादिर्हि - मैं आदि हूँ
देवानां - देवताओं
महर्षीणां - महर्षियों का
च - और
सर्वशः - सब प्रकारसे

भावार्थ/Translation
   मेरी उत्पत्ति को न देवता जानते हैं और न महर्षि क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का आदि हूँ |10.2|

   ਮੇਰੀ ਉਤਪੱਤੀ ਨੂੰ ਨਾਂ ਦੇਵਤਾ ਜਾਣਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਨਾਂ ਮਹਾਰਿਸ਼ੀ ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਸਭ ਪ੍ਰਕਾਰ ਨਾਲ ਦੇਵਤਿਆਂ ਅਤੇ ਮਹਾ ਰਿਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਆਦਿ ਹਾਂ |10.2|

   Neither the demigods, nor the great seers know My origin. For, I am the first, in every respect, among the gods and great seers.|10.2|

।10.3।
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ ३ ॥

शब्दार्थ
यो मामजमनादिं - जो मुझको अजन्मा, अनादि
च वेत्ति - जानता है
लोकमहेश्वरम् - लोकों का महान् ईश्र्वर
असम्मूढः - मोहरहित
स मर्त्येषु - मनुष्यों में
सर्वपापैः - सम्पूर्ण पापों से
प्रमुच्यते - मुक्त हो जाता है

भावार्थ/Translation
   जो मुझको अजन्मा, अनादि और लोकों का महान् ईश्र्वर, ऐसे तत्त्व से जानता है, वह मोहरहित मनुष्य सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है |10.3|

   ਜੋ ਮੈਨੂੰ ਅਜਨਮਾ, ਅਨਾਦਿ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮਹਾਨ ਈਸ਼ਵਰ, ਅਜਿਹੇ ਤੱਤਵ ਤੋਂ ਜਾਣਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮੋਹਰਹਿਤ ਮਨੁੱਖ ਸੰਪੂਰਣ ਪਾਪਾਂ ਤੋਂ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ |10.3|

   He who knows Me as unborn and without a beginning and the great Lord of the worlds - he among the mortals is undeluded and is released from every sin. |10.3|

।10.4।
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥ ४ ॥

शब्दार्थ
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः - बुद्धि, ज्ञान, असम्मोह
क्षमा - क्षमा
सत्यं - सत्य
दमः - इंद्रियों को वश में करना
शमः - अन्तःकरण वश में करना
सुखं - सुख
दुःखं - दुःख
भवोऽभावो - उत्पत्ति-प्रलय
भयं - भय
चाभयमेव - और अभय
च - तथा

भावार्थ/Translation
   बुद्धि, ज्ञान, असम्मोह, क्षमा, सत्य, इंद्रियों को वश में करना, अन्तःकरण वश में करना, सुख, दुःख, उत्पत्ति-प्रलय, भय और अभय तथा |10.4|

   ਬੁੱਧੀ, ਗਿਆਨ, ਸੰਮੋਹ ਨਾਂ ਹੋਣਾ, ਮਾਫੀ, ਸੱਚ, ਇੰਦਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਸ ਵਿੱਚ ਕਰਣਾ, ਮਨ ਵਸ ਵਿੱਚ ਕਰਣਾ, ਸੁਖ, ਦੁੱਖ, ਉਤਪੱਤੀ - ਪਰਲੋ, ਡਰ ਅਤੇ ਨਿਡਰਤਾ ਅਤੇ |10.4|

   Intelligence, knowledge, freedom from doubt and delusion, forgiveness, truthfulness, control of the senses, control of the mind, happiness and distress, birth, death, fear, fearlessness and- |10.4|

।10.5।
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥ ५ ॥

शब्दार्थ
अहिंसा - अहिंसा
समता - समता
तुष्टिस्तपो - सन्तोष, तप
दानं - दान
यशोऽयशः - कीर्ति और अपकीर्ति
भवन्ति - होते हैं
भावा - भाव
भूतानां - प्राणियों के
मत्त एव - मुझसे ही
पृथग्विधाः - अलगअलग

भावार्थ/Translation
   अहिंसा, समता, सन्तोष, तप, दान, कीर्ति और अपकीर्ति, ऐसे ये प्राणियों के अलग अलग भाव मुझसे ही होते हैं |10.5|

   ਅਹਿੰਸਾ, ਸਮਤਾ, ਸੰਤੋਸ਼, ਤਪ, ਦਾਨ, ਕੀਰਤੀ ਅਤੇ ਅਪਜਸ, ਇਹ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਭਾਵ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ |10.5|

   Non-violence, equality,satisfaction, austerity, charity, fame and infamy, these different qualities of beings arise from Me alone. |10.5|

।10.6।
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक ईमाः प्रजाः ॥ ६ ॥

शब्दार्थ
महर्षयः - महर्षि
सप्त - सात
पूर्वे - पहले
चत्वारो - चार (सनकादि)
मनवस्तथा - तथा मनु
मद्भावा - मेरे से पैदा हुए हैं
मानसा - मन से
जाता - पैदा
येषां - जिन से
लोक - संसार में
ईमाः - यह
प्रजाः - प्रजा है

भावार्थ/Translation
   सात महर्षि और उनसे भी पहले चार सनकादि तथा मनु - ये मेरे मन से पैदा हुए हैं, जिन से संसार में यह प्रजा है |10.6|

   ਸੱਤ ਮਹਾਰਿਸ਼ੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਚਾਰ ਸਨਕਾਦਿ ਅਤੇ ਮਨੂ - ਇਹ ਮੇਰੇ ਮਨ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪ੍ਰਜਾ ਹੈ |10.6|

   The seven great sages and before them the four other great sages and the Manus come from Me, born from My mind, and all beings descend from them. |10.6|

।10.7।
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ॥ ७ ॥

शब्दार्थ
एतां - जो इस
विभूतिं - विभूति
योगं - योग
च मम - मेरे
यो वेत्ति - जानता है
तत्त्वतः - तत्त्व से
सोऽविकम्पेन - अविचल
योगेन - योग द्वारा
युज्यते - युक्त हो जाता है
नात्र - नहीं है
संशयः - संशय

भावार्थ/Translation
   जो पुरुष मेरे इस विभूति योग को तत्त्व से जानता है, वह अविचल योग द्वारा युक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है |10.7|

   ਜੋ ਪੁਰਖ ਮੇਰੇ ਇਸ ਵਿਭੂਤੀ ਯੋਗ ਨੂੰ ਤੱਤਵ ਤੋਂ ਜਾਣਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਅਚਲ ਯੋਗ ਨਾਲ ਯੁਕਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਹੈ |10.7|

   One who is factually convinced of this majestic power of Mine engages in unalloyed devotional service; of this there is no doubt. |10.7|

।10.8।
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥ ८ ॥

शब्दार्थ
अहं - मैं
सर्वस्य - संपूर्ण (ब्रह्माण्ड)
प्रभवो - उत्पत्ति का कारण
मत्तः - मुझसे ही
सर्वं - सब
प्रवर्तते - सम्भव हो रहा है
इति - ऐसा
मत्वा - मानकर
भजन्ते - भजते हैं
मां बुधा - बुद्धिमान्‌
भावसमन्विताः - प्रीतिसहित

भावार्थ/Translation
   मैं ही संपूर्ण जगत्‌ की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब सम्भव हो रहा है, ऐसा मानकर प्रीतिसहित बुद्धिमान्‌ भक्त मुझे भजते हैं |10.8|

   ਮੈਂ ਹੀ ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ‌ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਦਾ ਕਾਰਨ ਹਾਂ ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਹੀ ਸਭ ਸੰਭਵ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਅਜਿਹਾ ਮੰਨ ਕੇ ਪ੍ਰੀਤੀ ਸਹਿਤ ਬੁੱਧੀਮਾਨ‌ ਭਗਤ ਮੈਨੂੰ ਭਜਦੇ ਹਨ |10.8|

   I am the source of all worlds. Everything emanates from Me. The wise who know this engage in My devotional service with all their hearts. |10.8|

।10.9।
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ९ ॥

शब्दार्थ
मच्चित्ता - मुझ में चित्त वाले
मद्गतप्राणा - मुझ में प्राण अर्पित करने वाले
बोधयन्तः - चर्चा
परस्परम् - परस्पर
कथयन्तश्च - कथन करते हुए
मां नित्यं - सदैव मेरा
तुष्यन्ति - सन्तुष्ट होते
च रमन्ति - रमते हैं
च - और

भावार्थ/Translation
   मुझ में चित्त वाले और मुझ में प्राण अर्पित करने वाले, सदैव परस्पर मेरी चर्चा व कथन करते हुए, सन्तुष्ट होते हैं और रमते हैं |10.9|

   ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਚਿੱਤ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਣ ਅਰਪਿਤ ਕਰਣ ਵਾਲੇ, ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਮੇਰੀ ਚਰਚਾ ਅਤੇ ਕਥਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ, ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਅਤੇ ਖੁਸ਼ ਹੁੰਦੇ ਹਨ |10.9|

   With their mind and their life wholly absorbed in Me, enlightening each other and ever speaking of Me, they are satisfied and delighted. |10.9|

।10.10।
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥ १० ॥

शब्दार्थ
तेषां - उन
सततयुक्तानां - निरन्तर मेरे में लगे हुए
भजतां - भजन करने वाले
प्रीतिपूर्वकम् - प्रेमपूर्वक
ददामि - देता हूँ
बुद्धियोगं - बुद्धियोग
तं - मैं
येन - जिससे
मामुपयान्ति - मेरी प्राप्ति हो जाती है
ते - उनको

भावार्थ/Translation
   उन निरन्तर मेरे में लगे हुए और प्रेमपूर्वक मेरा भजन करने वाले को मैं बुद्धियोग देता हूँ, जिससे उनको मेरी प्राप्ति हो जाती है |10.10|

   ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਿਰੰਤਰ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਪ੍ਰੇਮਪੂਰਵਕ ਮੇਰਾ ਭਜਨ ਕਰਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ਮੈਂ ਬੁੱਧੀਯੋਗ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਜਿਸਦੇ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੇਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ |10.10|

   To them who are ever steadfast, worshipping Me with love, I lovingly grant that mental disposition by which they come to Me. |10.10|

।10.11।
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः ।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥ ११ ॥

शब्दार्थ
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं - उन पर, अनुग्रह करने के लिए, मैं अज्ञान
तमः - अंधकार को
नाशयाम्यात्मभावस्थो - नष्ट कर देता हूँ, अन्तकरण में स्थित
ज्ञानदीपेन - ज्ञानरूप दीपक
भास्वता - प्रकाशमय

भावार्थ/Translation
   उन पर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं उनके अज्ञानमय अंधकार को प्रकाशमय ज्ञानरूप दीपक से नष्ट कर देता हूँ |10.11|

   ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਕਰਣ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤਹਕਰਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹੋਇਆ ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਗਿਆਨ ਰੂਪ ਅੰਧਕਾਰ ਨੂੰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਗਿਆਨਰੂਪ ਦੀਵੇ ਨਾਲ ਨਸ਼ਟ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ |10.11|

   Out of mere compassion for them, I, dwelling within their Self, destroy the darkness born of ignorance by the luminous lamp of knowledge. |10.11|

।10.12।
अर्जुन उवाच
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥ १२ ॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच - अर्जुन बोले
परं ब्रह्म - परम ब्रह्म
परं धाम - परम धाम
पवित्रं परमं - परम पवित्र
भवान् - आप हैं
पुरुषं - पुरुष
शाश्वतं - सनातन
दिव्यमादिदेवमजं - दिव्य एवं आदिदेव, अजन्मा
विभुम् - सर्वव्यापी

भावार्थ/Translation
   आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आप सनातन, दिव्य पुरुष, आदिदेव, अजन्मा और सर्वव्यापी हैं |10.12|

   ਤੁਸੀ ਪਰਮ ਬ੍ਰਹਮਾ, ਪਰਮ ਧਾਮ ਅਤੇ ਪਰਮ ਪਵਿਤਰ ਹੋ, ਕਿਉਂਕਿ ਤੁਸੀ ਸਨਾਤਨ, ਦਿਵਯ ਪੁਰਖ, ਆਦਿਦੇਵ, ਅਜਨਮਾ ਅਤੇ ਸਰਵਵਿਆਪੀ ਹੋ |10.12|

   You are the Supreme Personality of Godhead, the ultimate abode, the purest. You are the eternal, transcendental, original person, the unborn and all pervading. |10.12|

।10.13।
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥ १३ ॥

शब्दार्थ
आहुस्त्वामृषयः - ऋषि कहते हैं
सर्वे - सब
देवर्षिर्नारदस्तथा - देवर्षि नारद
असितो - असित
देवलो - देवल
व्यासः - व्यास
स्वयं - आप
चैव - भी
ब्रवीषि मे - कहते हैं

भावार्थ/Translation
   वैसे ही देवर्षि नारद, असित, देवल, व्यास और सब ऋषि कहते हैं और आप भी कहते हैं |10.13|

   ਉਂਜ ਹੀ ਦੇਵਰਿਸ਼ੀ ਨਾਰਦ, ਅਸਿਤ, ਦੇਵਲ, ਵਿਆਸ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਬ ਰਿਸ਼ੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਤੁਸੀ ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹੋ |10.13|

   All the great sages such as Närada, Asita, Devala and Vyäsa confirm this truth about You, and now You Yourself are declaring it to me. |10.13|

।10.14।
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्माँ वदसि केशव ।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ॥ १४ ॥

शब्दार्थ
सर्वमेतदृतं -इस सब सत्य
मन्ये - मानता हूँ
यन्माँ - जो मुझे
वदसि - कहते हैं
केशव - हे केशव
न हि ते - न तो
भगवन्व्यक्तिं - हे भगवन्‌, आपके स्वरूप को
विदुर्देवा - न देवता ही जानते हैं
न दानवाः - न तो दानव

भावार्थ/Translation
   हे केशव, जो भी मुझे आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्, आपके स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता |10.14|

   ਹੇ ਕੇਸ਼ਵ, ਜੋ ਵੀ ਮੈਨੂੰ ਤੁਸੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹੋ, ਇਸ ਸਾਰੇ ਨੂੰ ਮੈਂ ਸੱਚ ਮੰਨਦਾ ਹਾਂ । ਹੇ ਭਗਵਾਨ, ਤੁਹਾਡੇ ਸਵਰੂਪ ਨੂੰ ਨਾਂ ਦਾਨਵ ਜਾਣਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਨਾਂ ਦੇਵਤਾ |10.14|

   O Keshava, I totally accept as truth all that You have told me. Neither the demigods nor the demons can understand Your personality. |10.14|

।10.15।
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥ १५ ॥

शब्दार्थ
स्वयमेवात्मनात्मानं - स्वयं ही अपने आप को जानते हैं
वेत्थ त्वं - आप जानते हैं
पुरुषोत्तम - हे पुरुषोत्तम
भूतभावन - हे भूतों को उत्पन्न करने वाले
भूतेश - प्राणियों के ईश्र्वर
देवदेव - देवों के देव
जगत्पते - जगत्‌ के स्वामी

भावार्थ/Translation
   हे पुरुषोत्तम, भूतों को उत्पन्न करने वाले, प्राणियों के ईश्र्वर, देवों के देव, जगत् के स्वामी, आप स्वयं ही अपने आप को जानते हैं |10.15|

   ਹੇ ਪੁਰਸ਼ੋਤਮ, ਭੂਤਾਂ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਕਰਣ ਵਾਲੇ, ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਈਸ਼ਵਰ, ਦੇਵਾਂ ਦੇ ਦੇਵ, ਜਗਤ ਦੇ ਸਵਾਮੀ, ਤੁਸੀ ਆਪ ਹੀ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜਾਣਦੇ ਹੋ |10.15|

   You alone know Yourself by Your own, O Supreme Person, origin of all, Lord of all beings, God of gods, Lord of the universe. |10.15|

।10.16।
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥ १६ ॥

शब्दार्थ
वक्तुमर्हस्यशेषेण - संपूर्णता से कहने में समर्थ हैं
दिव्या - दिव्य
ह्यात्मविभूतयः - अपनी विभूतियों को
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं - जिन विभूतियों द्वारा आप इन सब लोकों को
व्याप्य - व्याप्त
तिष्ठसि - करते हैं

भावार्थ/Translation
   आप ही अपनी दिव्य विभूतियों को संपूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करते हैं |10.16|

   ਤੁਸੀ ਹੀ ਆਪਣੀਆਂ ਸੁੰਦਰ ਵਿਭੂਤੀਆਂ ਨੂੰ ਸੰਪੂਰਨਤਾ ਨਾਲ ਕਹਿਣ ਵਿੱਚ ਸਮਰਥ ਹੋ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਭੂਤੀਆਂ ਨਾਲ ਤੁਸੀ ਇੰਨਾ ਸਭ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵਿਆਪਤ ਕਰਦੇ ਹੋ |10.16|

   You are the only one capable to describe Your divine manifestations by which You pervade all these worlds.|10.16|

।10.17।
कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥ १७ ॥

शब्दार्थ
कथं - किस प्रकार
विद्यामहं - मैं जानूँ
योगिंस्त्वां - हे योगेश्वर, आपको
सदा - सदा
परिचिन्तयन् - ध्यान करता हुआ
केषु केषु - किन किन
च भावेषु - भावों में
चिन्त्योऽसि - चिन्तन करूँ
भगवन्मया - हे भगवन्‌

भावार्थ/Translation
   हे योगेश्वर - मैं किस प्रकार निरन्तर ध्यान करता हुआ आपको जानूँ, हे भगवन्‌, आप का किन किन भावों से चिन्तन करूँ |10.17|

   ਹੇ ਯੋਗੇਸ਼ਵਰ - ਮੈਂ ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਨਿਰੰਤਰ ਧਿਆਨ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਤੁਹਾਨੂੰ ਜਾਣਾਂ, ਹੇ ਭਗਵਾਨ‌, ਤੁਹਾਡਾ ਕਿਸ ਕਿਸ ਭਾਵ ਨਾਲ ਚਿੰਤਨ ਕਰਾਂ |10.17|

   O supreme Yogi, how shall I constantly think of You, and how shall I know You, O God, In what various forms are You to be remembered.|10.17|

।10.18।
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन ।
भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् ॥ १८ ॥

शब्दार्थ
विस्तरेणात्मनो - विस्तार से, अपने
योगं - योग
विभूतिं च - और विभूतियों को
जनार्दन - हे जनार्दन
भूयः - फिर
कथय - कहिये
तृप्तिर्हि - तृप्ति
श्रृण्वतो - सुनते
नास्ति - नहीं हो रही है
मेऽमृतम् - मेरी, अमृतमय

भावार्थ/Translation
   हे जनार्दन, आप अपने योग को और विभूतियों को विस्तार से फिर कहिये क्योंकि आपके अमृतमय वचन सुनते मेरी तृप्ति नहीं हो रही है |10.18|

   ਹੇ ਭਗਵਾਨ‌, ਤੁਸੀ ਆਪਣੇ ਯੋਗ ਨੂੰ ਅਤੇ ਵਿਭੂਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ ਫਿਰ ਕਹੋ ਕਿਉਂਕਿ ਤੁਹਾਡੇ ਅਮ੍ਰਤ ਵਰਗੇ ਵਚਨ ਸੁਣ ਕੇ ਮੇਰੀ ਤ੍ਰਿਪਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ |10.18|

   O Janardana, narrate to me again Your onw yoga and manifestations elaborately, I don't feel contended in hearing Your nectar like words.|10.18|

।10.19।
श्रीभगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥ १९ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्रीभगवान् बोले
हन्त ते - हाँ
कथयिष्यामि - कहूँगा
दिव्या - दिव्य
ह्यात्मविभूतयः - अपनी, विभूतियोंको
प्राधान्यतः - प्रधान
कुरुश्रेष्ठ - हे कुरुश्रेष्ठ
नास्त्यन्तो - अन्त नहीं है
विस्तरस्य मे - अन्त नहीं है

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् बोले - हाँ। मैं अपनी प्रधान दिव्य विभूतियों को तेरे लिये कहूँगा क्योंकि हे कुरुश्रेष्ठ, इन के विस्तार का अन्त नहीं है |10.19|

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਬੋਲੇ - ਹਾਂ । ਮੈਂ ਆਪਣੀਆਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸੁੰਦਰ ਵਿਭੂਤੀਆਂ ਤੇਰੇ ਲਈ ਕਹਾਂਗਾ ਕਿਉਂਕਿ ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਇਸ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਦਾ ਅੰਤ ਨਹੀਂ ਹੈ |10.19|

   Krishna said: Yes, I will tell you of My prominent splendorous manifestations, because, O Arjuna, the details are limitless.|10.19|

।10.20।
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥ २० ॥

शब्दार्थ
अहमात्मा - आत्मरूप से मैं ही
गुडाकेश - हे अर्जुन
सर्वभूताशयस्थितः -सर्व प्राणियों के अन्तःकरण में स्थित हूँ
अहमादिश्च - मैं आदि
मध्यं च - मध्य तथा
भूतानामन्त - प्राणियों के अन्त
एव च - भी हूँ

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, प्राणियोंके आदि, मध्य तथा अन्त में भी मैं ही हूँ और प्राणियों के अन्तःकरण में आत्मरूप से भी मैं ही स्थित हूँ |10.20|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਆਦਿ, ਵਿਚਕਾਰ ਅਤੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਆਤਮਰੂਪ ਨਾਲ ਵੀ ਮੈਂ ਹੀ ਸਥਿਤ ਹਾਂ |10.20|

   O Arjuna, I am the Self, seated in the hearts of all living entities. I am the beginning, the middle and the end of all.|10.20|

।10.21।
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥ २१ ॥

शब्दार्थ
आदित्यानामहं - मैं आदित्यों में
विष्णुर्ज्योतिषां - विष्णु, ज्योतियों में
रविरंशुमान् - सूर्य, किरणों वाला
मरीचिर्मरुतामस्मि - वायुओं में मरीचि हूँ
नक्षत्राणामहं - नक्षत्रों में मैं
शशी - चन्द्रमा हूँ

भावार्थ/Translation
   मैं आदित्यों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ, मैं वायुओं में मरीचि हूँ और नक्षत्रों में चन्द्रमा हूँ |10.21|

   ਮੈਂ ਆਦਿਤਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਅਤੇ ਜੋਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਕਿਰਨਾਂ ਵਾਲਾ ਸੂਰਜ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਹਵਾਂਵਾਂ ਵਿੱਚ ਮਰੀਚੀ ਅਤੇ ਨਕਸ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਚੰਦਰਮਾ ਹਾਂ |10.21|

   Of the Ädityas I am Vishnu, of lights I am the radiant sun, of the Maruts Iam Marichi, and among the stars I am the moon.|10.21|

।10.22।
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ २२ ॥

शब्दार्थ
वेदानां - वेदों में
सामवेदोऽस्मि - मैं सामवेद हूँ
देवानामस्मि - देवताओं में हूँ
वासवः - इन्द्र
इन्द्रियाणां - इन्द्रियों में
मनश्चास्मि - मन हूँ
भूतानामस्मि - प्राणियों की, हूँ
चेतना - चेतना

भावार्थ/Translation
   मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवताओं में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और प्राणियों में चेतना हूँ |10.22|

   ਮੈਂ ਵੇਦਾਂ ਵਿੱਚ ਸਾਮਵੇਦ ਹਾਂ, ਦੇਵਤਿਆਂ ਵਿੱਚ ਇੰਦਰ ਹਾਂ, ਇੰਦਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮਨ ਹਾਂ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਚੇਤਨਾ ਹਾਂ |10.22|

   Of the Vedas I am the Sama Veda; of the demigods I am Indra; of the senses I am the mind; and in living beings I am the consciousness. |10.22|

।10.23।
रुद्राणां शङकरश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥ २३ ॥

शब्दार्थ
रुद्राणां - रुद्रों में
शङकरश्चास्मि - शंकर मैं हूँ
वित्तेशो - कुबेर
यक्षरक्षसाम् - यक्ष राक्षसों में
वसूनां - वसुओं में
पावकश्चास्मि - अग्नि हूँ
मेरुः - मेरु पर्वत
शिखरिणामहम् - शिखरों में, मैं हूँ

भावार्थ/Translation
   रुद्रों में शंकर और यक्ष राक्षसों में कुबेर मैं हूँ, वसुओं में अग्नि और शिखरों में मेरु पर्वत मैं हूँ |10.23|

   ਰੁਦਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ੰਕਰ ਅਤੇ ਯਕਸ਼ ਰਾਕਸ਼ਸਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁਬੇਰ ਮੈਂ ਹਾਂ, ਵਸੁਆਂ ਵਿੱਚ ਅੱਗ ਅਤੇ ਸ਼ਿਖਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮੇਰੁ ਪਹਾੜ ਮੈਂ ਹਾਂ |10.23|

   Of all the Rudras I am Lord Shiva, of the Yakshas and Rakshasas I am the Lord of wealth (Kubera), of the Vasus I am fire, and of mountains I am Meru. |10.23|

।10.24।
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥ २४ ॥

शब्दार्थ
पुरोधसां - पुरोहितों में
च मुख्यं - मुख्य
मां विद्धि - मेरा स्वरूप समझो
पार्थ - हे अर्जुन
बृहस्पतिम् - बृहस्पति को
सेनानीनामहं - सेनापतियों में
स्कन्दः - स्कन्द
सरसामस्मि - जलाशयों में, मैं हूँ
सागरः - समुद्र

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति को मुझे जानो। सेनापतियों में स्कन्द और जलाशयों में समुद्र मैं हूँ |10.24|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਪੁਰੋਹਿਤਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁੱਖ ਬ੍ਰਹਸਪਤੀ ਮੈਨੂੰ ਜਾਣ । ਸੇਨਾਪਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਕੰਦ ਅਤੇ ਜਲ ਸਰੋਤਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮੁੰਦਰ ਮੈਂ ਹਾਂ |10.24|

   O Arjuna, of priests, know Me to be the chief, Brihaspati. Of generals I am Skanda, and of water-bodies I am the ocean.|10.24|

।10.25।
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥ २५ ॥

शब्दार्थ
महर्षीणां - महर्षियों में
भृगुरहं - मैं भृगु
गिरामस्म्येकमक्षरम् - वाणी में एक अक्षर ओंकार
यज्ञानां - यज्ञों में
जपयज्ञोऽस्मि - जपयज्ञ
स्थावराणां - स्थिर रहने वालों में
हिमालयः - हिमालय हूँ

भावार्थ/Translation
   मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्‌‌ ओंकार हूँ। यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय हूँ |10.25|

   ਮੈਂ ਮਹਾਰਿਸ਼ੀਆਂ ਵਿੱਚ ਭ੍ਰਿਗੁ ਅਤੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਅੱਖਰ ਅਰਥਾਤ‌‌ ਓਂਕਾਰ ਹਾਂ । ਯੱਗਾਂ ਵਿੱਚ ਜਪ ਅਤੇ ਸਥਿਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹਿਮਾਲਾ ਹਾਂ |10.25|

   Of the great sages I am Bharigu; of vibrations I am the single-syllable Om. Of sacrifices I am the chanting, and of immovable things I am the Himalayas.|10.25|

।10.26।
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥ २६ ॥

शब्दार्थ
अश्वत्थः - पीपल का वृक्ष
सर्ववृक्षाणां - मैं सब वृक्षों में
देवर्षीणां च - देवर्षियों में
नारदः - नारद
गन्धर्वाणां - गन्धर्वों में
चित्ररथः - चित्ररथ
सिद्धानां - सिद्धों में
कपिलो - कपिल
मुनिः - मुनि

भावार्थ/Translation
   मैं सब वृक्षों में पीपल, देवर्षियों में नारद, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ |10.26|

   ਮੈਂ ਸਭ ਰੁੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪਿੱਪਲ, ਦੇਵਰਿਸ਼ੀਆਂ ਵਿੱਚ ਨਾਰਦ, ਗੰਧਰਵਾਂ ਵਿੱਚ ਚਿੱਤਰਰਥ ਅਤੇ ਸਿੱਧਾਂ ਵਿੱਚ ਕਪਿਲ ਮੁਨੀ ਹਾਂ |10.26|

   Of all trees I am the banyan tree, and of the divine sages I am Narada. Of the Gandharvas I am Chitraratha, and among perfected beings I am the sage Kapila.|10.26|

।10.27।
उच्चैः श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् ।
ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥ २७ ॥

शब्दार्थ
उच्चैःश्रवसमश्वानां - उच्चैःश्रवा घोड़ा
विद्धि - जान
माममृतोद्भवम् - अमृत के साथ प्रकट
ऐरावतं -ऐरावत
गजेन्द्राणां - हाथियों में
नराणां च - मनुष्यों में
नराधिपम् - राजा

भावार्थ/Translation
   घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न हुआ उच्चैःश्रवा, हाथियों में ऐरावत और मनुष्यों में राजा मुझको जान |10.27|

   ਘੋੜਿਆਂ ਵਿੱਚ ਅਮ੍ਰਿਤ ਦੇ ਨਾਲ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਉੱਚੈ:ਸ਼ਰਵਾ, ਹਾਥੀਆਂ ਵਿੱਚ ਐਰਾਵਤ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਰਾਜਾ ਮੈਨੂੰ ਜਾਨ |10.27|

   Of horses know Me to be Ucchaishrava, born during the churning of the ocean for nectar. Of elephants I am Airavata, and among men I am the King. |10.27|

।10.28।
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् ।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥ २८ ॥

शब्दार्थ
आयुधानामहं - मैं शस्त्रों में
वज्रं - वज्र
धेनूनामस्मि - गौओं में
कामधुक् - कामधेनु
प्रजनश्चास्मि - सन्तान उत्पत्ति हेतु, हूँ
कन्दर्पः - कामदेव हूँ
सर्पाणामस्मि - सर्पों में
वासुकिः - वासुकि हूँ

भावार्थ/Translation
   मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। सन्तान उत्पत्ति हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में वासुकि हूँ |10.28|

   ਮੈਂ ਸ਼ਸਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵਜਰ ਅਤੇ ਗਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਮਧੇਨੁ ਹਾਂ। ਔਲਾਦ ਉਤਪੱਤੀ ਹੇਤੁ ਕਾਮਦੇਵ ਹਾਂ ਅਤੇ ਸੱਪਾਂ ਵਿੱਚ ਵਾਸੂਕੀ ਹਾਂ |10.28|

   Of weapons I am the Vajra (thunderbolt); among cows I am the Kamadhenu. Of causes for procreation I am Kandarpa, and of serpents I am Vasuki. |10.28|

।10.29।
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥ २९॥

शब्दार्थ
अनन्तश्चास्मि - मैं शेषनाग
नागानां - नागों में
वरुणो - वरुण
यादसामहम् - जलजन्तुओं में
पितृणामर्यमा - पितरों में अर्यमा
चास्मि यमः - में यमराज हूँ
संयमतामहम् - नियमन करने वालों में

भावार्थ/Translation
   मैं नागों में शेषनाग और जलचरों में वरुण हूँ और पितरों में अर्यमा तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ |10.29|

   ਮੈਂ ਨਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਸ਼ਨਾਗ ਅਤੇ ਜਲਚਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰੁਣ ਹਾਂ ਅਤੇ ਪਿਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਅਰਿਅਮਾ ਅਤੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਰਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਯਮਰਾਜ ਮੈਂ ਹਾਂ |10.29|

   Of the Nagas I am Ananta, and among aquatics I am Varuna. Of departed ancestors I am Aryama, and among the dispensers of law I am Yama.|10.29|

।10.30।
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्र्च पक्षिणाम् ॥ ३० ॥

शब्दार्थ
प्रह्लादश्चास्मि - मैं प्रह्लाद
दैत्यानां - दैत्यों में
कालः - काल
कलयतामहम् - गणना करने वालों में
मृगाणां च - पशुओं में
मृगेन्द्रोऽहं - सिंह
वैनतेयश्र्च - गरुड़ हूँ
पक्षिणाम् - पक्षियों में

भावार्थ/Translation
   मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय हूँ तथा पशुओं में सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ |10.30|

   ਮੈਂ ਦੈਤਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਅਤੇ ਗਿਣਤੀ ਕਰਣ ਵਾਲਿਆਂ ਲਈ ਸਮਾਂ ਹਾਂ ਅਤੇ ਪਸ਼ੁਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਪੰਛੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗਰੁੜ ਹਾਂ |10.30|

   Among the Daitya demons I am Prahlada, among reckoners I am time, among animals I am the lion, and among birds I am Garuda. |10.30|

।10.31।
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् ।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥ ३१ ॥

शब्दार्थ
पवनः - वायु
पवतामस्मि - मैं पवित्र करने वालों में
रामः - राम
शस्त्रभृतामहम् - शस्त्रधारियों में हूँ
झषाणां - मत्स्यों में
मकरश्चास्मि - मगर हूँ
स्रोतसामस्मि - नदियों में हूँ
जाह्नवी - गंगा

भावार्थ/Translation
   मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में राम हूँ तथा मत्स्यों में मगर हूँ और नदियों में गंगा हूँ |10.31|

   ਮੈਂ ਪਵਿਤਰ ਕਰਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹਵਾ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰਧਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਰਾਮ ਹਾਂ ਅਤੇ ਮੱਛੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮਗਰ ਹਾਂ ਅਤੇ ਨਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗੰਗਾ ਹਾਂ |10.31|

   Of purifiers I am the wind, of the wielders of weapons I am Rama, of fishes I am the Crocodile, and of flowing rivers I am the Ganges. |10.31|

।10.32।
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥ ३२ ॥

शब्दार्थ
सर्गाणामादिरन्तश्च - सृष्टियों का आदि और अंत
मध्यं - मध्य
चैवाहमर्जुन - मैं ही हूँ, हे अर्जुन
अध्यात्मविद्या - अध्यात्मविद्या
विद्यानां - विद्याओं में
वादः - वाद
प्रवदतामहम् - विवाद के प्रकारों में

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि, अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का वाद (निर्णय के लिए किया जाने वाला तर्क) हूँ |10.32|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ! ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀਆਂ ਦਾ ਆਦਿ, ਅੰਤ ਅਤੇ ਵਿਚਕਾਰ ਵੀ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ । ਮੈਂ ਵਿਦਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਅਧਿਆਤਮ ਵਿਦਿਆ ਅਤੇ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਵਿਵਾਦ ਕਰਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦਾ ਵਾਦ (ਫ਼ੈਸਲੇ ਲਈ ਦਿੱਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਦਲੀਲ਼) ਹਾਂ |10.32|

   O Arjuna, of all creations I am the beginning and the end and also the middle. Of all sciences I am the spiritual science of the self, and Of those who argue, I am the fair reasoning.|10.32|

।10.33।
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥ ३३ ॥

शब्दार्थ
अक्षराणामकारोऽस्मि - मैं अक्षरों में अकार हूँ
द्वन्द्वः - द्वंद्व
सामासिकस्य च - और समासों में
अहमेवाक्षयः - अक्षय मैं हूँ
कालो - काल
धाताहं - कर्मफल दाता
विश्वतोमुखः - सब ओर मुखवाला

भावार्थ/Translation
   मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व हूँ। काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला, सबका कर्मफल दाता भी मैं ही हूँ |10.33|

   ਮੈਂ ਅੱਖਰਾਂ ਵਿੱਚ ਅਕਾਰ ਹਾਂ ਅਤੇ ਸਮਾਸਾਂ ਵਿੱਚ ਦਵੰਦਵ ਹਾਂ । ਕਾਲ ਦਾ ਵੀ ਮਹਾਕਾਲ ਅਤੇ ਸਭ ਵੱਲ ਮੁਖਵਾਲਾ, ਸੱਬ ਦਾ ਕਰਮਫਲ ਦਾ ਦਾਤਾ ਵੀ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ |10.33|

   Of letters I am the letter A, and among compound words I am the dual compound. I am also inexhaustible time, dispenser of fruits of actions and having faces in all directions. |10.33|

।10.34।
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् ।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥ ३४ ॥

शब्दार्थ
मृत्युः - मृत्यु
सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च - मैं सर्वभक्षक, उत्पत्ति का कारण
भविष्यताम् - भविष्य में होने वालों
कीर्तिः - कीर्ति
श्रीर्वाक्च - श्री, वाणी
नारीणां - स्त्रियों में
स्मृतिर्मेधा - स्मरण शक्ति, उत्तम बुद्धि
धृतिः - धैर्य
क्षमा - क्षमा

भावार्थ/Translation
   मैं सर्वभक्षक मृत्यु और भविष्य में होने वालों की उत्पत्ति का कारण हूँ स्त्रियों में कीर्ति, श्री, वाणी, स्मरण शक्ति, उत्तम बुद्धि, धैर्य और क्षमा हूँ |10.34|

   ਮੈਂ ਸਰਵ ਭਕਸ਼ੀ ਮੌਤ ਅਤੇ ਭਵਿੱਖ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਦਾ ਕਾਰਨ ਹਾਂ ਤੀਵੀਂਆਂ ਵਿੱਚ ਕੀਰਤੀ, ਸ਼੍ਰੀ, ਬਾਣੀ, ਸਿਮਰਨ ਸ਼ਕਤੀ, ਉੱਤਮ ਬੁੱਧੀ, ਸਬਰ ਅਤੇ ਮਾਫੀ ਹਾਂ |10.34|

   I am all-devouring death, and I am the reason for the origin of all that is yet to be. Among women I am fame, fortune, fine speech, memory, intelligence, steadfastness and patience.|10.34|

।10.35।
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ॥ ३५ ॥

शब्दार्थ
बृहत्साम - बृहत्साम
तथा - तथा
साम्नां - गायन योग्य श्रुतियों में
गायत्री - गायत्री
छन्दसामहम् - छंद हूँ
मासानां - महीनों में
मार्गशीर्षोऽहमृतूनां - मार्गशीर्ष, और ऋतुओं में
कुसुमाकरः - वसंत मैं हूँ

भावार्थ/Translation
   गायन योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ |10.35|

   ਗਾਉਨ ਲਾਇਕ ਸ਼ਰੁਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਬ੍ਰਹਿਤਸਾਮ ਅਤੇ ਛੰਦਾਂ ਵਿੱਚ ਗਾਇਤਰੀ ਛੰਦ ਹਾਂ ਅਤੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮਾਰਗਸ਼ੀਰਸ਼ ਅਤੇ ਰਿਤੁਆਂ ਵਿੱਚ ਬਸੰਤ ਮੈਂ ਹਾਂ |10.35|

   Of the hymns in the Sama Veda I am the Brihat-sama, and of poetry I am the Gayatri. Of months I am November-December (Margshirsha), and of seasons I am spring.|10.35|

।10.36।
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥ ३६ ॥

शब्दार्थ
द्यूतं - जूआ
छलयतामस्मि - छल करनेवालों में
तेजस्तेजस्विनामहम् - तेजस्वियों में तेज मैं हूँ
जयोऽस्मि - मैं विजय हूँ
व्यवसायोऽस्मि - मैं प्रयत्नः (उद्यमशीलता) हूँ
सत्त्वं - सात्त्विक भाव
सत्त्ववतामहम् - सात्त्विक मनुष्यों का, मैं हूँ

भावार्थ/Translation
   छल करने वालों में जूआ और तेजस्वियों में तेज मैं हूँ। मैं विजय हूँ, मैं उद्यमशीलता हूँ और सात्त्विक मनुष्यों का सात्त्विक भाव मैं हूँ |10.36|

   ਛਲ ਕਰਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਜੂਆ ਅਤੇ ਤੇਜਸਵੀਆਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ ਮੈਂ ਹਾਂ । ਮੈਂ ਫਤਹਿ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਉਦੱਮਸ਼ੀਲ ਹਾਂ ਅਤੇ ਸਾਤਵਿਕ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦਾ ਸਾਤਵਿਕ ਭਾਵ ਮੈਂ ਹਾਂ |10.36|

   I am also the gambling of cheats, and of the splendid I am the splendor. I am victory, I am effort, and I am the goodness of the good people.|10.36|

।10.37।
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥ ३७ ॥

शब्दार्थ
वृष्णीनां - वृष्णियों में
वासुदेवोऽस्मि - मैं वासुदेव हूँ
पाण्डवानां - पाण्डवों में
धनञ्जयः - अर्जुन
मुनीनामप्यहं - मैं मुनियों में
व्यासः - व्यास
कवीनामुशना - कवियों में उशना
कविः - कवि

भावार्थ/Translation
   मैं वृष्णियों (यादवों) में वासुदेव हूँ और पाण्डवों में अर्जुन, मैं मुनियों में व्यास और कवियों में उशना कवि हूँ |10.37|

   ਮੈਂ ਵ੍ਰਿਸ਼ਣੀਆਂ (ਯਾਦਵਾਂ) ਵਿੱਚ ਵਾਸੁਦੇਵ ਹਾਂ ਅਤੇ ਪਾਂਡਵਾਂ ਵਿੱਚ ਅਰਜੁਨ, ਮੈਂ ਮੁਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਸ ਅਤੇ ਕਵੀਆਂ ਵਿੱਚ ਉਸ਼ਨਾ ਕਵੀ ਹਾਂ |10.37|

   Of Vrishnis I am Vasudeva, and of the Pandavas I am Arjuna. Of the sages I am Vyasa, and among great thinkers I am Ushana. |10.37|

।10.38।
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥ ३८ ॥

शब्दार्थ
दण्डो - दण्ड
दमयतामस्मि - दमन करने वालों में मैं
नीतिरस्मि - नीति मैं हूँ
जिगीषताम् - विजय चाहने वालों में
मौनं - मौन
चैवास्मि - मैं हूँ
गुह्यानां - गोपनीय भावों में
ज्ञानं - ज्ञान हूँ
ज्ञानवतामहम् - ज्ञानवानों में मैं

भावार्थ/Translation
   दमन करने वालों में दण्डनीति और विजय चाहने वालों में नीति मैं हूँ। गोपनीय भावों में मौन और ज्ञान वानों में ज्ञान मैं हूँ |10.38|

   ਦਮਨ ਕਰਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦੰਡਨੀਤੀ ਅਤੇ ਫਤਹਿ ਲੋਚਣ ਵਾਲੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਨੀਤੀ ਹਾਂ । ਗੁਪਤ ਭਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਚੁੱਪ ਅਤੇ ਗਿਆਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗਿਆਨ ਮੈਂ ਹਾਂ |10.38|

   Of those that punish, I am the principle of punishment. Of these that seek victory, I am policy. Of secret things I am silence, and of the wise I am the wisdom.|10.38|

।10.39।
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥ ३९ ॥

शब्दार्थ
यच्चापि - जो है
सर्वभूतानां - सम्पूर्ण प्राणियों का
बीजं - बीज
तदहमर्जुन - वह मैं हूँ, हे अर्जुन
न तदस्ति - नहीं है
विना - बिना
यत्स्यान्मया - मुझसे रहित, कोई भी,
भूतं -प्राणी
चराचरम् - चर अचर

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज है, वह मैं ही हूँ क्योंकि मेरे बिना कोई भी चर अचर प्राणी नहीं है |10.39|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦਾ ਜੋ ਬੀਜ ਹੈ, ਉਹ ਮੈਂ ਹੀ ਹਾਂ ਕਿਉਂਕਿ ਮੇਰੇ ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਵੀ ਚਰ ਅਚਰ ਪ੍ਰਾਣੀ ਨਹੀਂ ਹੈ |10.39|

   O Arjuna, I am the generating seed of all existences. There is no being—moving or nonmoving—that can exist without Me. |10.39|

।10.40।
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥ ४० ॥

शब्दार्थ
नान्तोऽस्ति - अन्त नहीं है
मम - मेरी
दिव्यानां - दिव्य
विभूतीनां - विभूतियों का
परन्तप - हे अर्जुन
एष तूद्देशतः - यह तो
प्रोक्तो - कहा है
विभूतेर्विस्तरो - विभूतियों का जो विस्तार
मया - मैंने

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, मेरी दिव्य विभूतियों का अन्त नहीं है। मैंने विभूतियों का विस्तार केवल संक्षेप से कहा है |10.40|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਮੇਰੀ ਸੁੰਦਰ ਵਿਭੂਤੀਆਂ ਦਾ ਅੰਤ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਮੈਂ ਵਿਭੂਤੀਆਂ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਕੇਵਲ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਹੈ |10.40|

   O Arjuna, there is no end to My divine manifestations. I have spoken only a brief of My infinite manifestations.|10.40|

।10.41।
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥ ४१ ॥

शब्दार्थ
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं - जो-जो भी विभूतियुक्त
श्रीमदूर्जितमेव वा - कांतियुक्त और शक्तियुक्त
तत्तदेवावगच्छ - उस को ही जानो
त्वं - उस को
मम - मेरे
तेजोंऽशसम्भवम् - तेज के अंश से उत्पन्न

भावार्थ/Translation
  

   जो-जो भी ऐश्वर्य युक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस को मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न जानो |10.41| ਜੋ - ਜੋ ਵੀ ਐਸ਼ਵਰਿਆ ਵਾਲੀ, ਕਾਂਤੀ ਵਾਲੀ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀ ਵਾਲੀ ਚੀਜ਼ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਮੇਰੇ ਤੇਜ ਦੇ ਅੰਸ਼ ਨਾਲ ਹੀ ਪੈਦਾ ਜਾਨ |10.41|

   Whatever being there is glorious, prosperous or powerful, know that to be a manifestation of My splendour. |10.41|

।10.42।
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥ ४२ ॥

शब्दार्थ
अथवा - अथवा
बहुनैतेन किं - इस बहुत
ज्ञातेन - जानने से
तवार्जुन - तेरा हे अर्जुन
विष्टभ्याहमिदं - धारण करके, मैं इस
कृत्स्नमेकांशेन - एक अंश मात्र से संपूर्ण
स्थितो - स्थित हूँ
जगत् - जगत्‌ को

भावार्थ/Translation
   अथवा हे अर्जुन! इस बहुत जानने से तेरा क्या है। मैं इस संपूर्ण जगत्‌ को एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ |10.42|

   ਅਤੇ ਹੇ ਅਰਜੁਨ ! ਤੂੰ ਬਹੁਤ ਜਾਣ ਕੇ ਕੀ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਮੈਂ ਇਸ ਸੰਪੂਰਣ ਜਗਤ‌ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਇੱਕ ਅੰਸ਼ ਨਾਲ ਧਾਰਨ ਕਰਕੇ ਸਥਿਤ ਹਾਂ |10.42|

   But Arjuna, what need is there for all this detailed knowledge, With a single fragment of Myself I pervade and support this entire universe.|10.42|




ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विभूतियोगो नाम दशमोऽध्यायः ॥10.1-10.42॥

To be Completed by 12th November, 2015 (42 days)

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