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अध्याय बारह / Chapter Twelve

।12.1।
अर्जुन उवाच
एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥ १ ॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच - अर्जुन ने कहा
एवं सततयुक्ता - इस प्रकार, निरन्तर आप में लगे रहकर
ये भक्तास्त्वां - जो भक्त आप की
पर्युपासते - उपासना करते हैं
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं - जो अविनाशी निराकारकी
तेषां के - उनमें से
योगवित्तमाः - उत्तम योगवेत्ता
भावार्थ/Translation
   अर्जुन ने कहा - जो भक्त इस प्रकार निरन्तर आप में लगे रहकर आप की उपासना करते हैं और जो अविनाशी निराकार की ही उपासना करते हैं, उनमें से उत्तम योगवेत्ता कौन हैं ।12.1।

   ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਜੋ ਭਗਤ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਲਗਾਤਾਰ ਆਪ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਰਹਿ ਕੇ ਆਪ ਦੀ ਉਪਾਸਨਾ ਕਰਦੇ ਹਣ ਅਤੇ ਜੋ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਨਿਰਾਕਾਰ ਦੀ ਹੀ ਉਪਾਸਨਾ ਕਰਦੇ ਹਣ , ਦੋਨਾੰ ਵਿੱਚ ਉੱਤਮ ਯੋਗਵੇੱਤਾ ਕੌਣ ਹੈ ।12.1।

   Arjuna said: Which are considered to be more perfect, those who are always properly engaged in Your devotional service or those who worship the imperishable and the unmanifested. ।12.1।

।12.2।
श्रीभगवानुवाच
मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते ।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥ २ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान् ने कहा
मय्यावेश्य मनो - मेरे में मन को लगाकर
ये मां नित्ययुक्ता - निरन्तर मेरे में लगे हुए
उपासते - उपासना करते हैं
श्रद्धया - श्रद्धा से
परयोपेतास्ते - परम, उपासना करते हैं
मे युक्ततमा - सर्वश्रेष्ठ योगी हैं
मताः - मेरे मत में

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् ने कहा - मेरे में मन को लगाकर निरन्तर मेरे में लगे हुए जो भक्त परम श्रद्धा से उपासना करते हैं, वे मेरे मत में सर्वश्रेष्ठ योगी हैं ।12.2।

   ਸ੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਮਨ ਲਗਾ ਕੇ, ਲਗਾਤਾਰ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਜੋ ਭਗਤ ਪਰਮ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਉਪਾਸਨਾ ਕਰਦੇ ਹਣ , ਉਹ ਮੇਰੇ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸਰਬੋਤਮ ਯੋਗੀ ਹਣ ।12.2।

   Krishna said, Those who, fixing their mind on Me, worship Me, ever steadfast and endowed with supreme faith, are the best in Yoga in My opinion. ।12.2।

।12.3।
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते ।
सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम् ॥ ३ ॥

शब्दार्थ
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं - जो अविनाशी, अकथनीय और अव्यक्त की
पर्युपासते - उपासना करते हैं
सर्वत्रगमचिन्त्यं च - अचिन्त्य (मन-बुद्धि से परे), सर्वव्यापी
कूटस्थमचलं - कूटस्थ (सर्वश्रेष्ठ), अचल
ध्रुवम् - ध्रुव (नित्य)

भावार्थ/Translation
   जो अविनाशी, अकथनीय, अव्यक्त, मन-बुद्धि से परे, सर्वव्यापी, सर्वश्रेष्ठ, अचल, नित्य रूप की उपासना करते हैं ।12.3।

   ਜੋ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ , ਅਕੱਥ , ਅਡਿੱਠ , ਮਨ - ਬੁੱਧੀ ਤੋਂ ਪਰ੍ਹੇ , ਸਰਵਵਿਆਪੀ , ਸਰਬੋਤਮ , ਅਚਲ , ਨਿੱਤ ਰੂਪ ਦੀ ਉਪਾਸਨਾ ਕਰਦੇ ਹਣ ।12.3।

   Those who worship the imperishable, the indefinable, the unmanifest, the unthinkable, the omnipresent, the supreme personality, the immovable and the eternal. ।12.3।

।12.4।
सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः ।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः ॥ ४ ॥

शब्दार्थ
सन्नियम्येन्द्रियग्रामं - इन्द्रियोंको वशमें करके
सर्वत्र - सब जगह
समबुद्धयः - समबुद्धि वाले
ते प्राप्नुवन्ति - प्राप्त होते हैं
मामेव - मुझे ही
सर्वभूतहिते - प्राणिमात्र के हित
रताः - रत

भावार्थ/Translation
   वे अपनी इन्द्रियोंको वश में करके प्राणी मात्र के हित में रत और सर्वत्र समबुद्धि वाले मनुष्य मुझे ही प्राप्त होते हैं ।12.4।

   ਉਹ ਆਪਣੀ ਇੰਦਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵੱਸ ਵਿੱਚ ਕਰ ਕੇ, ਹਰ ਪ੍ਰਾਣੀ ਦੇ ਹਿਤ ਵਿੱਚ ਰਤ ਅਤੇ ਚਹੁੰਪਾਸੀਂ ਸਮ ਬੁੱਧੀ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ, ਮੈਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਣ ।12.4।

   Having restrained all the senses, even-minded everywhere, intent on the welfare of all beings, come to Me only. ।12.4।

।12.5।
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् ।
अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते ॥ ५ ॥

शब्दार्थ
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् - अव्यक्त में आसक्त चित्तवाले को कष्ट अधिक होता है
अव्यक्ता हि - अव्यक्त में
गतिर्दुःखं - गति कठिनता से
देहवद्भिरवाप्यते - देहाभिमानियोंके द्वारा

भावार्थ/Translation
   अव्यक्त में आसक्त चित्तवाले को कष्ट अधिक होता है क्योंकि देहाभिमानियों के द्वारा अव्यक्त में गति कठिन है ।12.5।

   ਅਡਿੱਠ ਵਿੱਚ ਆਸਕਤ ਚਿੱਤ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ਕਸ਼ਟ ਵੱਧ ਹੁੰਦਾ ਹੈਂ ਕਿਉਂਕਿ​ ਦੇਹ ਅਭਿਮਾਨੀ ਲਈ ਅਡਿੱਠ ਵਿੱਚ ਗਤੀ ਔਖੀ ਹੈ ।12.5।

   For those attached to the unmanifested, advancement is very troublesome. To achieve the supreme in His unmanifested form is difficult for the embodied . ।12.5।

।12.6।
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि सन्न्यस्य मत्पराः ।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ॥ ६ ॥

शब्दार्थ
ये तु - परन्तु जो
सर्वाणि - सब
कर्माणि - कर्मों को
मयि - मेरे
सन्न्यस्य - अर्पण करके
मत्पराः - मेरे परायण होकर
अनन्येनैव - अनन्य भक्ति
योगेन मां - योग से मेरा ही
ध्यायन्त - ध्यान करते हुए
उपासते - उपासते हैं

भावार्थ/Translation
   परन्तु जो सब कर्मों को मेरे अर्पण करके और मेरे परायण होकर अनन्य भक्ति योग से मेरा ही ध्यान करते हुए उपासते हैं ।12.6।

   ਪਰੰਤੂ ਜੋ ਸਭ ਕਰਮ, ਮੇਰੇ ਅਰਪਣ ਕਰ ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਪਰਾਇਣ ਹੋ, ਇੱਕਾਗਰ ਭਗਤੀ ਯੋਗ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਹੀ ਧਿਆਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਉਪਾਸਦੇ ਹਣ ।12.6।

   But to those who worship and meditate Me with single-minded yoga, renouncing all actions in Me, regarding Me as the supreme goal. ।12.6।

।12.7।
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसासरसागरात् ।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥ ७ ॥

शब्दार्थ
तेषामहं - उन का मैं
समुद्धर्ता - उद्धार करने वाला
मृत्युसंसासरसागरात् - मृत्युरूप संसार सागर से
भवामि - होता हूँ
नचिरात्पार्थ - शीघ्र ही , हे अर्जुन
मय्यावेशितचेतसाम् - मुझ में ही स्थिर चित्त वाले

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, मुझ में ही स्थिर चित्त वालों का मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार सागर से उद्धार करने वाला होता हूँ ।12.7।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸਥਿਰ ਚਿੱਤ ਵਾਲ਼ਿਆਂ ਦਾ ਮੈਂ ਜਲਦੀ ਹੀ ਮ੍ਰਿਤੂਰੂਪ ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਤੋਂ ਉੱਧਾਰ ਕਰਨ ਵਾਲ਼ਾ ਹਾਂ ।12.7।

   O Arjuna, For those having fixed their minds upon Me, I am the swift deliverer from the ocean of birth and death. ।12.7।

।12.8।
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय ।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ॥ ८ ॥

शब्दार्थ
मय्येव मन - मेरे में मन को
आधत्स्व - लगा
मयि - मेरे में
बुद्धिं - बुद्धि को
निवेशय - लगा
निवसिष्यसि - निवास करेगा
मय्येव अत - मेरे में ही
ऊर्ध्वं न - इसके बाद, नहीं
संशयः - संशय

भावार्थ/Translation
   तू मेरे में मन को लगा और मेरे में बुद्धि को लगा, इसके बाद तू मेरे में ही निवास करेगा - इसमें संशय नहीं है ।12.8।

   ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਮਨ ਨੂੰ ਲਗਾ ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਬੁੱਧੀ ਨੂੰ ਲਗਾ, ਫਿਰ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਨਿਵਾਸ ਕਰੇਂਗਾ - ਇਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਹੈ ।12.8।

   Fix your mind in me and engage your intellect in me, after that you will dwell in me alone, there is no doubt. ।12.8।

।12.9।
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् ।
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ॥९ ॥

शब्दार्थ
अथ चित्तं - यदि मन को
समाधातुं - लगाने में
न शक्नोषि - समर्थ नहीं हो
मयि - मुझ में
स्थिरम् - स्थिर करने में
अभ्यासयोगेन - अभ्यासयोग के द्वारा
ततो - तो
मामिच्छाप्तुं - मुझे प्राप्त करने का प्रयत्न करो
धनञ्जय - हे धनंजय

भावार्थ/Translation
   हे धनंजय यदि तुम अपने मन को मुझ में स्थिर करके लगाने में समर्थ नहीं हो, तो अभ्यासयोग के द्वारा तुम मुझे प्राप्त करने का प्रयत्न करो ।12.9।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਜੇਕਰ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਮਨ ਨੂੰ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਸਥਿਰ ਲਗਾਉਣ ਵਿੱਚ ਸਮਰੱਥ ਨਹੀਂ ਹੈਂ , ਤਾਂ ਅਭਿਆਸਯੋਗ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦਾ ਜਤਨ ਕਰ ।12.9।

   O Arjuna, if you are not able to fix your mind upon Me, then try to reach me through the Yoga of Constant Practice. ।12.9।

।12.10।
अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव ।
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥ १० ॥

शब्दार्थ
अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि - अगर अभ्यास में भी असमर्थ है
मत्कर्मपरमो - तो मेरे लिये कर्म करने के परायण
भव - हो जा
मदर्थमपि - मेरे लिये भी
कर्माणि - कर्मों को करता हुआ
कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि -करता हुआ सिद्धि को प्राप्त हो जायगा

भावार्थ/Translation
   अगर अभ्यास में भी असमर्थ है, तो मेरे लिये कर्म करने के परायण हो जा। मेरे लिये कर्मों को करता हुआ तू सिद्धि को प्राप्त हो जाएगा ।12.10।

   ਜੇਕਰ ਅਭਿਆਸ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅਸਮਰਥ ਹੈਂ , ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਲਈ ਕਰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਪਰਾਇਣ ਹੋ ਜਾ, ਮੇਰੇ ਲਈ ਕਰਮ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਤੂੰ ਸਿੱਧੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਏਂਗਾ ।12.10।

   If you are incapable for this regular practice, then devote yourself to doing actions for me, because by working for Me you will come to the perfect stage. ।12.10।

।12.11।
अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः ।
सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान् ॥ ११॥

शब्दार्थ
अथैतदप्यशक्तोऽसि - यदि इसको भी, असमर्थ हो
कर्तुं - करने में
मद्योगमाश्रितः - मेरे योग के आश्रय
सर्वकर्मफलत्यागं - समस्त कर्मों के फल का त्याग
ततः - तो
कुरु - करो
यतात्मवान् - आत्मसंयम से युक्त

भावार्थ/Translation
   और यदि इसको भी करने में असमर्थ हो, तो आत्मसंयम से मेरी प्राप्ति के भाव का आश्रय लेकर, तुम समस्त कर्मों के फल का त्याग करो ।12.11।

   ਅਤੇ ਜੇਕਰ ਇਹ ਵੀ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਅਸਮਰਥ ਹੈਂ , ਤਾਂ ਆਤਮਸੰਯਮ ਨਾਲ ਮੈਂਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਭਾਵ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲੈ ਕੇ, ਤੂੰ ਸਾਰੇ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਫਲ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰ ।12.11।

   If you are unable to do even this, then, with your self controlled, taking refuge in My Yoga, renounce the fruits of every action. ।12.11।

।12.12।
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते ।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ॥ १२ ॥

शब्दार्थ
श्रेयो हि - श्रेष्ठ है
ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं - अभ्यास से ज्ञान, ज्ञान से ध्यान
विशिष्यते - श्रेष्ठ है
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् - ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्मफल त्याग है त्याग से निरंतर शान्ति मिलती है

भावार्थ/Translation
   अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है, ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है और ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्मफल त्याग है, त्याग से निरंतर शान्ति मिलती है ।12.12।

   ਅਭਿਆਸ ਨਾਲ ਗਿਆਨ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਗਿਆਨ ਨਾਲ ਧਿਆਨ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਅਤੇ ਧਿਆਨ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਚੰਗਾ ਕਰਮਫਲ ਤਿਆਗ ਹੈ, ਤਿਆਗ ਨਾਲ ਲਗਾਤਾਰ ਸ਼ਾਂਤੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ।12.12।

   Knowledge is better than practice, and meditation is better than knowledge, Renunciation of the fruits of actions is better than meditation, peace ensues renunciation. ।12.12।

।12.13।
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।
निर्ममो निरहङकारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ १३ ॥

शब्दार्थ
अद्वेष्टा - द्वेषरहित है
सर्वभूतानां - सब प्राणियों के
मैत्रः - मित्र
करुण - करुणावान्
एव च - तथा है
निर्ममो - ममता रहित
निरहङकारः - अहंकार से रहित
समदुःखसुखः - सुख और दुख में सम
क्षमी - क्षमावान्

भावार्थ/Translation
   सब प्राणियों के प्रति जो द्वेषरहित है तथा सबका मित्र तथा करुणावान् है, जो ममता और अहंकार से रहित, सुख और दुख में सम और क्षमावान् है ।12.13।

   ਸਭ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਵੱਲ ਜੋ ਦਵੇਸ਼ਰਹਿਤ ਹੈ ਅਤੇ ਸਬਦਾ ਮਿੱਤਰ ਅਤੇ ਕਰੁਣਾਵਾਨ ਹੈ, ਜੋ ਮਮਤਾ ਅਤੇ ਹੰਕਾਰ ਤੋਂ ਰਹਿਤ , ਸੁੱਖ ਅਤੇ ਦੁੱਖ ਵਿੱਚ ਸਮ ਅਤੇ ਮਾਫ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ ।12.13।

   He who hates no creature, who is friendly and compassionate to all, who is free from attachment and egoism, balanced in pleasure and pain, and forgiving. ।12.13।

।12.14।
सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥ १४ ॥

शब्दार्थ
सन्तुष्टः - सन्तुष्ट
सततं - सदा
योगी - योगी
यतात्मा - संयतात्मा
दृढनिश्चयः - दृढ़निश्चयी
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो - मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किये हुए
मद्भक्तः - मेरा भक्त
स मे प्रियः - वह मुझे प्रिय है

भावार्थ/Translation
   जो संयतात्मा, दृढ़निश्चयी योगी सदा सन्तुष्ट है, जो मेरा भक्त, अपने मन और बुद्धि को मुझ में अर्पण किये हुए है, वह मुझे प्रिय है ।12.14।

   ਜੋ ਸੰਯਮੀ , ਦ੍ਰਿਢ ਨਿਸ਼ਚੈ ਵਾਲਾ ਯੋਗੀ ਸਦਾ ਤ੍ਰਿਪਤ ਹੈ , ਜੋ ਮੇਰਾ ਭਗਤ , ਆਪਣੇ ਮਨ ਅਤੇ ਬੁੱਧੀ ਨੂੰ ਮੇਰੇ ਅਰਪਣ ਕਰਦਾ ਹੈ , ਉਹ ਮੈਨੂੰ ਪਿਆਰਾ ਹੈ ।12.14।

   Ever content self-controlled, possessed of firm conviction, with the mind and intellect dedicated to Me. Such devtoee, is dear to Me. ।12.14।

।12.15।
यस्मान्नोद्विजतेलोको लोकान्नोद्विजते च यः ।
हर्षामर्षभयोद्वेर्गैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः ॥ १५ ॥

शब्दार्थ
यस्मान्नोद्विजतेलोको - जिससे कोई प्राणी उद्विग्न नहीं होता
लोकान्नोद्विजते - किसी प्राणी से उद्विग्न नहीं होता
च यः - और जो खुद भी
हर्षामर्षभयोद्वेर्गैर्मुक्तो - हर्ष, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से रहित है
यः स च - तथा जो, वह
मे प्रियः - मुझे प्रिय है

भावार्थ/Translation
   जिससे कोई प्राणी उद्विग्न नहीं होता और जो खुद भी किसी प्राणी से उद्विग्न नहीं होता तथा जो हर्ष, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से रहित है, वह मुझे प्रिय है ।12.15।

   ਜਿਸ ਤੋਂ ਕੋਈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਅਤੇ ਜੋ ਖ਼ੁਦ ਵੀ ਕਿਸੀ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤੋਂ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਅਤੇ ਜੋ ਆਨੰਦ , ਈਰਖਾ , ਭੈਅ ਅਤੇ ਉੱਤੇਜਨਾ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਹੈਂ , ਉਹ ਮੈਨੂੰ ਪਿਆਰਾ ਹੈ ।12.15।

   He by whom the world is not agitated and who cannot be agitated by the world, and who is freed from joy, jealousy, fear and anxiety he is dear to Me. ।12.15।

।12.16।
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः ।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥ १६ ॥

शब्दार्थ
अनपेक्षः - अपेक्षारहित
शुचिर्दक्ष - शुद्ध, दक्ष
उदासीनो - उदासीन
गतव्यथः - व्यथासे रहित
सर्वारम्भपरित्यागी - नये कर्मों के आरम्भ का सर्वथा त्यागी
यो मद्भक्तः - वह मेरा भक्त
स मे प्रियः - मुझे प्रिय है

भावार्थ/Translation
   जो अपेक्षारहित, शुद्ध, दक्ष, उदासीन, व्यथा से रहित और नये कर्मों के आरम्भ का सर्वथा त्यागी है, वह मेरा भक्त मुझे प्रिय है ।12.16।

   ਜੋ ਅਪੇਕਸ਼ਾ ਰਹਿਤ , ਸ਼ੁੱਧ , ਨਿਪੁੰਨ , ਉਦਾਸੀਨ , ਵਿਅਥਾ ਰਹਿਤ ਅਤੇ ਨਵੇਂ ਕਰਮ ਆਰੰਭ ਕਰਣ ਦਾ ਹਮੇਸ਼ਾ ਤਿਆਗ ਕਰਦਾ ਹੈਂ, ਉਹ ਮੇਰਾ ਭਗਤ ਮੈਨੂੰ ਪਿਆਰਾ ਹੈ ।12.16।

   He who does not expect, who is pure, expert, unconcerned, and free from pain, renouncing all new initiatives, he who is devoted to Me, is dear to Me. ।12.16।

।12.17।
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति ।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥ १७ ॥

शब्दार्थ
यो न हृष्यति - जो न हर्षित होता है
न द्वेष्टि - न द्वेष करता है
न शोचति - न शोक करता है
न काङ्क्षति - न आकांक्षा
शुभाशुभपरित्यागी - जो शुभ और अशुभ को त्याग देता है
भक्तिमान्यः - वह भक्त
स मे प्रियः - मुझे प्रिय है

भावार्थ/Translation
   जो न हर्षित होता है और न द्वेष करता है, न शोक करता है और न आकांक्षा तथा जो शुभ और अशुभ को त्याग देता है, वह भक्त मुझे प्रिय है ।12.17।

   ਜੋ ਨਾ ਖੁਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾ ਦੁਸ਼ਮਣੀ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਨਾ ਸ਼ੋਕ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾ ਉਮੀਦ, ਅਤੇ ਜੋ ਸ਼ੁੱਭ ਅਤੇ ਅਸ਼ੁਭ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਦਿੰਦਾ ਹੈਂ , ਉਹ ਭਗਤ ਮੈਨੂੰ ਪਿਆਰਾ ਹੈ ।12.17।

   He who neither rejoices, nor hates, nor grieves, nor desires, renouncing good and evil, and who is full of devotion, is dear to Me. ।12.17।

।12.18।
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः ।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ॥ १८ ॥

शब्दार्थ
समः - सम है
शत्रौ - शत्रु
च मित्रे - और मित्र में
च तथा - तथा में
मानापमानयोः - मान और अपमान
शीतोष्णसुखदुःखेषु - शीत उष्ण व सुख दुख
समः - में सम है
सङ्गविवर्जितः - और आसक्ति रहित है

भावार्थ/Translation
   जो शत्रु और मित्र में तथा मान और अपमान में सम है, जो शीत उष्ण व सुख दुख में सम है और आसक्ति रहित है ।12.18।

   ਜੋ ਦੁਸ਼ਮਣ ਅਤੇ ਮਿੱਤਰ ਵਿੱਚ, ਅਤੇ ਮਾਨ ਅਤੇ ਅਪਮਾਨ ਵਿੱਚ ਸਮ ਹੈ, ਜੋ ਠੰਡ ਗਰਮੀ ਅਤੇ ਸੁੱਖ ਦੁੱਖ ਵਿੱਚ ਸਮ ਹੈ ਅਤੇ ਆਸਕਤੀ ਰਹਿਤ ਹੈ ।12.18।

   He who is the same to foe and friend, and also in honour and dishonour, who is the same in cold and heat and in pleasure and pain, who is free from attachment. ।12.18।

।12.19।
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् ।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ॥ १९ ॥

शब्दार्थ
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् - जिसको निन्दा और स्तुति दोनों ही तुल्य है, जो मौनी है, जो किसी अल्प वस्तु से भी सन्तुष्ट है
अनिकेतः - रहने के स्थान सम्बन्धी आसक्ति से रहित
स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे - स्थिर बुद्धि का भक्त मुझे
प्रियो - प्रिय है
नरः - मनुष्य

भावार्थ/Translation
   जिसको निन्दा और स्तुति दोनों ही तुल्य है, जो मौनी है, जो किसी अल्प वस्तु से भी सन्तुष्ट है, जो रहने के स्थान सम्बन्धी आसक्ति से रहित है, वह स्थिर बुद्धि का भक्त मुझे प्रिय है ।12.19।

   ਜੋ ਨਿੰਦਾ ਅਤੇ ਉਸਤਤ ਦੋਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮ ਹੈ , ਜੋ ਮੌਨੀ ਹੈ , ਜੋ ਕਿਸੀ ਅਲਪ ਵਸਤੂ ਨਾਲ ਵੀ ਤ੍ਰਿਪਤ ਹੈ , ਜੋ ਰਹਿਣ ਦੇ ਸਥਾਨ ਸੰਬੰਧੀ ਆਸਕਤੀ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਹੈ , ਉਹ ਸਥਿਰ ਬੁੱਧੀ ਦਾ ਭਗਤ ਮੈਨੂੰ ਪਿਆਰਾ ਹੈ ।12.19।

   He to whom censure and praise are equal, who is silent, content with anything, does not have any special preference for home, of a steady mind, and full of devotion that man is dear to Me. ।12.19।

।12.20।
ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते ।
श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः ॥ २० ॥

शब्दार्थ
ये तु - जो मेरे में
धर्म्यामृतमिदं - धर्ममय अमृत का
यथोक्तं - पहले कहे हुए
पर्युपासते - अच्छी तरहसे सेवन करते हैं
श्रद्दधाना - श्रद्धा रखनेवाले
मत्परमा - मेरे परायण हुए
भक्तास्तेऽतीव - वे भक्त मुझे अत्यन्त
मे प्रियाः - प्रिय है

भावार्थ/Translation
   जो मेरे में श्रद्धा रखने वाले और मेरे परायण हुए भक्त पहले कहे हुए इस धर्ममय अमृत का अच्छी तरह से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझे अत्यन्त प्रिय हैं ।12.20।

   ਜੋ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਰਧਾ ਰੱਖਨ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਪਰਾਯਣ ਹੋਏ ਭਗਤ, ਪਹਿਲਾਂ ਕਹੇ ਹੋਏ ਇਸ ਧਰਮ ਯੁਕਤ ਅਮ੍ਰਿਤ ਦਾ ਚੰਗੀ ਤਰਾੰ ਸੇਵਨ ਕਰਦੇ ਹਣ ,ਉਹ ਭਗਤ ਮੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰੇ ਹਣ ।12.20।

   Those who have faith in me and are dependent on me, and follow this nectar of Dharma as described before, those devoted are very dear to me. ।12.20।


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे भक्तियोगो नाम द्वादशोऽध्यायः ॥12.1-12.20॥

To be Completed by 26th January, 2016 (20 days)

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