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अध्याय सोलह / Chapter Sixteen

।16.1।
श्रीभगवानुवाच
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌ ॥ १ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान् बोले
अभयं - अभय
सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः - अन्तःकरण की निर्मलता, ज्ञानयोग में दृढ़ स्थिति
दानं - दान
दमश्च - इन्द्रियों का संयम
यज्ञश्च - यज्ञ
स्वाध्यायस्तप - स्वाध्याय
आर्जवम्‌ - शरीर मन वाणी की सरलता

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान् बोले -अभय, अन्तःकरण की निर्मलता, ज्ञान योग में दृढ़ स्थिति, दान, इन्द्रियों का संयम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, शरीर मन वाणी की सरलता |16.1|

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਂਨ ਬੋਲੇ - ਨਿਰਭੈ , ਮਨ ਦੀ ਨਿਰਮਲਤਾ , ਗਿਆਨ ਯੋਗ ਵਿੱਚ ਦ੍ਰਿੜ ਸਥਿਤੀ , ਦਾਨ , ਇੰਦਰੀਆਂ ਦਾ ਸੰਜਮ , ਯੱਗ , ਸਵਾਧਿਆਏ , ਤਪ , ਸਰੀਰ ਮਨ ਬਾਣੀ ਦੀ ਸਰਲਤਾ |16.1|

   Krishna said, Fearlessness, purity of heart, steadfastness in knowledge and Yoga, alms giving, control of the senses, sacrifice, self-study, austerity and recititude.|16.1|

।16.2।
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌ ॥ २ ॥

शब्दार्थ
अहिंसा - अहिंसा
सत्यमक्रोधस्त्यागः - सत्य, क्रोध न करना
शान्तिरपैशुनम्‌ - शान्ति, चुगली न करना
दया - दया
भूतेष्वलोलुप्त्वं - प्राणियों पर, न ललचाना
मार्दवं - कोमलता
ह्रीरचापलम्‌ - लज्जा, अचपलता

भावार्थ/Translation
   अहिंसा, सत्य भाषण, क्रोध न करना, शान्ति, चुगली न करना, प्राणियों पर दया, न ललचाना, कोमलता, लज्जा, अचपलता |16.2|

   ਅਹਿੰਸਾ , ਸੱਚ ਬੋਲਣਾ , ਕ੍ਰੋਧ ਨਾਂ ਕਰਣਾ , ਸ਼ਾਂਤੀ , ਚੁਗਲੀ ਨਾਂ ਕਰਣਾ , ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਉੱਤੇ ਤਰਸ , ਨਹੀਂ ਲਲਚਾਉਣਾ , ਕੋਮਲਤਾ , ਸ਼ਰਮ , ਅਚਪਲਤਾ |16.2|

   Non-injury, truth, freedom from anger, renunciation, tranquillity, absense of vilification, compassion to all beings, freedom from desire, gentleness, modesty, freedom from restlessness. |16.2|

।16.3।
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥ ३ ॥

शब्दार्थ
तेजः - तेज
क्षमा - क्षमा
धृतिः - धैर्य
शौचमद्रोहोनातिमानिता - शरीरकी शुद्धि, वैरभाव का न रहना और गर्व का अभाव
भवन्ति - हैं
सम्पदं - सम्पदा
दैवीमभिजातस्य - दैवी भाव को प्राप्त हुए के
भारत - हे अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन - तेज, क्षमा, धैर्य, शरीरकी शुद्धि, वैर भाव का न रहना और गर्व का अभाव, ये सभी दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए के लक्षण हैं |16.3|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ - ਤੇਜ , ਮਾਫੀ , ਸਬਰ , ਸ਼ਰੀਰ ਦੀ ਸ਼ੁੱਧੀ , ਦੁਸ਼ਮਣੀ ਦੇ ਭਾਵ ਦਾ ਨਾਂ ਰਹਿਨਾ ਅਤੇ ਗਰਵ ਦਾ ਨਾਂ ਹੋਣਾ , ਇਹ ਸਾਰੇ ਦੈਵੀ ਸੰਪਦਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਏ ਦੇ ਲੱਛਣ ਹਨ |16.3|

   O Arjuna, Vigour, forgiveness, fortitude, purity, absence of hatred, absence of pride; all these characterize divine nature.|16.3|

।16.4।
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌ ॥ ४ ॥

शब्दार्थ
दम्भो - दम्भ
दर्पोऽभिमानश्च - घमण्ड, अभिमान
क्रोधः - क्रोध
पारुष्यमेव - कठोरता
च - और
अज्ञानं - अज्ञान
चाभिजातस्य - प्राप्त हुए के लक्षण हैं
पार्थ - हे अर्जुन
सम्पदमासुरीम्‌ -आसुरी सम्पदा

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन - दम्भ, घमण्ड, अभिमान, क्रोध, कठोरता और अज्ञान - ये सभी आसुरी सम्पदा को प्राप्त हुए के लक्षण हैं |16.4|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ - ਦੰਭ , ਘਮੰਡ , ਹੰਕਾਰ , ਕ੍ਰੋਧ , ਕਠੋਰਤਾ ਅਤੇ ਅਗਿਆਨ - ਇਹ ਸਾਰੇ ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ ਸੰਪਦਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਏ ਦੇ ਲੱਛਣ ਹਨ |16.4|

   O Arjuna - Pomposity, arrogance, pride, anger, rudeness and ignorance; all these characterize to demoniac nature. |16.4|

।16.5।
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥ ५ ॥

शब्दार्थ
दैवी - दैवी
सम्पद्विमोक्षाय - सम्पत्ति मुक्ति के लिये
निबन्धायासुरी - आसुरी भाव बन्धन
मता - के लिये है
मा शुचः - शोक मत कर
सम्पदं - संपत्ति
दैवीमभिजातोऽसि - दैवी भाव के हो
पाण्डव - हे अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन - दैवी सम्पत्ति मुक्ति के लिये और आसुरी सम्पत्ति बन्धन के लिये है। तुम दैवी भाव के हो, इसलिये शोक मत करो |16.5|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ - ਦੈਵੀ ਜਾਇਦਾਦ ਮੁਕਤੀ ਲਈ ਅਤੇ ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ ਜਾਇਦਾਦ ਬੰਧਨ ਲਈ ਹੈ । ਤੂੰ ਦੈਵੀ ਭਾਵ ਦਾ ਹੈਂ , ਇਸ ਲਈ ਸੋਗ ਨਾਂ ਕਰ |16.5|

   The divine nature is conducive to liberation, and the demoniacal to bondage. Grieve not, O Arjuna, you art born with divine nature. |16.5|

।16.6।
द्वौ भूतसर्गौ लोकऽस्मिन्दैव आसुर एव च।
दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ में श्रृणु ॥ ६ ॥

शब्दार्थ
द्वौ - दो तरह के
भूतसर्गौ - प्राणियों की सृष्टि
लोकऽस्मिन्दैव - इस लोक में, दैवी
आसुर - आसुरी
एव च - और
दैवो - दैवी का
विस्तरशः - विस्तार से
प्रोक्त - कह दिया
आसुरं - आसुरी का
पार्थ - हे अर्जुन
में श्रृणु - मेरे से सुनो

भावार्थ/Translation
   इस लोक में दो तरह के प्राणियोंकी सृष्टि है - दैवी और आसुरी। दैवी का तो मैंने विस्तार से कह दिया, अब तुम मेरे से आसुरी का सुनो |16.6|

   ਇਸ ਲੋਕ ਵਿੱਚ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੀ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਹੈ - ਦੈਵੀ ਅਤੇ ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ । ਦੈਵੀ ਦਾ ਤਾਂ ਮੈਂ ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ ਕਹਿ ਦਿੱਤਾ , ਹੁਣ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਵਲੋਂ ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ ਦਾ ਸੁਣ |16.6|

   O Arjuna, There are two types of beings in this world - the divine and the demoniac. The divine has been described at length. Now hear from Me about the demoniac. |16.6|

।16.7।
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥ ७ ॥

शब्दार्थ
प्रवृत्तिं - प्रवृत्ति
च निवृत्तिं - और निवृत्ति
च जना - लोग
न विदुरासुराः - आसुरी लोग नही जानते
न शौचं - न शुद्धि
नापि - और न
चाचारो - सदाचार ही
न सत्यं - न सत्य
तेषु विद्यते - उनमें होता है

भावार्थ/Translation
   आसुरी स्वभाव के लोग प्रवृत्ति और निवृत्ति को नही जानते, उनमें न शुद्धि होती है, न सदाचार और न सत्य ही होता है |16.7|

   ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ ਸੁਭਾਅ ਦੇ ਲੋਕ ਪ੍ਰਵਿਰਤੀ ਅਤੇ ਨਿਵ੍ਰੱਤੀ ਨੂੰ ਨਹੀ ਜਾਣਦੇ , ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾਂ ਸ਼ੁੱਧੀ, ਨਾਂ ਸਦਾਚਾਰ ਅਤੇ ਨਾਂ ਸੱਚ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ |16.7|

   The people of demoniac nature, know not what to do and what to refrain from; neither purity, nor right conduct nor truth is found in them. |16.7|

।16.8।
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्‌।
अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्‌ ॥ ८ ॥

शब्दार्थ
असत्यमप्रतिष्ठं - असत्य, आश्रयरहित
ते - वे
जगदाहुरनीश्वरम्‌ - कहते हैं कि जगत ईश्वर रहित है
अपरस्परसम्भूतं - यह परस्पर संबंध से
किमन्यत्कामहैतुकम्‌ - काम से सिवा और क्या कारण हो सकता है

भावार्थ/Translation
   वे कहते हैं कि यह जगत् आश्रयरहित, असत्य और ईश्वर रहित है, यह परस्पर संबंध से ही उत्पन्न हुआ है, काम से सिवा और क्या कारण हो सकता है |16.8|

   ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਣ ਕਿ ਇਹ ਜਗਤ ਸਹਾਰਾ ਰਹਿਤ , ਝੂਠ ਅਤੇ ਰੱਬ ਰਹਿਤ ਹੈ , ਇਹ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਸੰਬੰਧ ਨਾਲ ਹੀ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਹੈ , ਕਾਮ-ਵਾਸਨਾ ਤੋਂ ਸਿਵਾ ਹੋਰ ਕੀ ਕਾਰਨ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ |16.8|

   They say, This universe is without truth, without foundation, without a God, brought about by mutual union, with lust for its cause; what else.|16.8|

।16.9।
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः ॥ ९ ॥

शब्दार्थ
एतां - इस
दृष्टिमवष्टभ्य - दृष्टि का अवलम्बन करके
नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः - नष्ट स्वभाव के, अल्प बुद्धि वाले
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः - घोर कर्म करने वाले, जगत् का अहित चाहने वाले
क्षयाय - नाश करने के लिए
जगतोऽहिताः - जगत् का अहित चाहने वाले

भावार्थ/Translation
   इस दृष्टि का अवलम्बन करके नष्ट स्वभाव के अल्प बुद्धि वाले, घोर कर्म करने वाले लोग, जगत् का अहित चाहने वाले, उसका नाश करने के लिए उत्पन्न होते हैं |16.9|

   ਇਸ ਨਜ਼ਰ ਦੇ ਨਾਲ, ਨਸ਼ਟ ਸੁਭਾਅ ਦੇ ਘੱਟ ਬੁੱਧੀ ਵਾਲੇ , ਘੋਰ ਕਰਮ ਕਰਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕ , ਜਗਤ ਦਾ ਅਹਿਤ ਲੋਚਣ ਵਾਲੇ , ਉਸਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰਣ ਲਈ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ |16.9|

   Holding this view, these people of ruined nature, small intellect and fierce deeds, come forth as the enemies of the world for its destruction.|16.9|

।16.10।
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।
मोहाद्‍गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः ॥ १० ॥

शब्दार्थ
काममाश्रित्य - कामनाओं का आश्रय लेकर
दुष्पूरं - कभी पूरी न होने वाली
दम्भमानमदान्विताः - दम्भ, अभिमान और मद में चूर रहने वाले
मोहाद्‍गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः - अपवित्र व्रत धारण करनेवाले मनुष्य मोह के कारण दुराग्रहों को धारण करके संसार में विचरते हैं

भावार्थ/Translation
   कभी पूरी न होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर दम्भ, अभिमान और मद में चूर रहने वाले तथा अपवित्र व्रत धारण करने वाले मनुष्य मोह के कारण दुराग्रहों को धारण करके संसार में विचरते हैं |16.10|

   ਕਦੇ ਪੂਰੀ ਨਾਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕਾਮਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲੈ ਕੇ ਦੰਭ , ਹੰਕਾਰ ਅਤੇ ਨਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਚੂਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਅਪਵਿਤ੍ਰ ਵਰਤ ਧਾਰਨ ਕਰਣ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਮੋਹ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਾੜੀ ਸੋਚ ਨੂੰ ਧਾਰਨ ਕਰਕੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਵਿਚਰਦੇ ਹਨ |16.10|

   Filled with insatiable desires, full of vanity, pride and arrogance, holding impious vows through delusion, they wander with impure resolves. |16.10|

।16.11।
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः ॥ ११ ॥

शब्दार्थ
चिन्तामपरिमेयां - अपार चिन्ताओं का
च प्रलयान्तामुपाश्रिताः - मृत्युपर्यन्त रहनेवाली, आश्रय लेनेवाले
कामोपभोगपरमाः - विषयी पदार्थों का संग्रह और भोग में लगे रहने वाले
एतावदिति - जो है, इतना ही है
निश्चिताः - मानते हैं

भावार्थ/Translation
   वे मृत्युपर्यन्त रहने वाली अपार चिन्ताओं से ग्रस्त, पदार्थों का संग्रह और उनका भोग करने में ही लगे रहने वाले और जो है, इतना ही है - ऐसा मानते हैं |16.11|

   ਉਹ ਮੌਤ ਤੱਕ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ ਬੇਹੱਦ ਚਿੰਤਾਵਾਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ , ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਸੰਗ੍ਰਿਹ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭੋਗ ਕਰਣ ਵਿੱਚ ਹੀ ਲੱਗੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਅਤੇ ਜੋ ਹੈ , ਇੰਨਾ ਹੀ ਹੈ - ਅਜਿਹਾ ਮੰਣਦਾ ਹੈ |16.11|

   They remain obsessed with unlimted worries ending only with death, engrossed in the collection of materialistic things, gratification of sense-objects; they feel sure that this is all. |16.11|

।16.12।
आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्‌ ॥ १२ ॥

शब्दार्थ
आशापाशशतैर्बद्धाः - आशा की सैकड़ों रस्सियों से बँधे
कामक्रोधपरायणाः काम क्रोध के वश
ईहन्ते - चाहते हैं
कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्‌ - विषय भोगों की पूर्ति के लिये, अन्यायपूर्वक धन संचय

भावार्थ/Translation
   वे आशा की सैकड़ों रस्सियों से बँधे हुए मनुष्य काम क्रोध के वश, विषय भोगों की पूर्ति के लिये, अन्यायपूर्वक धन संचय करना चाहते हैं |16.12|

   ਉਹ ਆਸ ਦੀਆਂ ਅਣਗਿਣਤ ਰੱਸੀਆਂ ਨਾਲ ਬੰਨੇ ਹੋਏ ਮਨੁੱਖ ਕੰਮ ਕ੍ਰੋਧ ਦੇ ਵਸ , ਵਿਸ਼ੇ ਭੋਗਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਦੇ ਲਈ , ਅੰਨਿਆਇ ਨਾਲ ਪੈਸਾ ਜਮਾ ਕਰਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਣ |16.12|

   Being bound by hundreds of ropes of longing; given over to their desire and anger, they endeavour to amass wealth by unjust means, for gratification of their desires. |16.12|

।16.13।
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्‌।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्‌ ॥ १३ ॥

शब्दार्थ
इदमद्य - आज यह
मया - मैंने
लब्धमिमं - पाया है
प्राप्स्ये - प्राप्त करूंगा
मनोरथम्‌ -मनोरथ को
इदमस्तीदमपि - मेरे पास इतना है
मे भविष्यति - भविष्य में
पुनर्धनम्‌ - और धन होगा

भावार्थ/Translation
   मैंने आज यह पाया है और इस मनोरथ को भी प्राप्त करूंगा, मेरे पास इतना है, भविष्य में और धन होगा |16.13|

   ਮੈਂ ਅੱਜ ਇਹ ਪਾਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਮਨੋਰਥ ਨੂੰ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਾਂਗਾ , ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਇੰਨਾ ਹੈ , ਭਵਿੱਖ ਵਿੱਚ ਹੋਰ ਜਿਆਦਾ ਪੈਸਾ ਹੋਵੇਗਾ |16.13|

   This I have gained today, and this desire I shall attain. this is mine and more wealth also shall be mine in future. |16.13|

।16.14।
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥ १४ ॥

शब्दार्थ
असौ - वह
मया - मेरे द्वारा
हतः - मारा गया
शchieverत्रुर्हनिष्ये - शत्रु, मार डालूँगा
चापरानपि - दूसरों को भी
ईश्वरोऽहमहं - मैं ईश्वर हूँ
भोगी - भोगने वाला
सिद्धोऽहं - सिद्ध हूँ
बलवान्सुखी - बलवान्‌ तथा सुखी हूँ

भावार्थ/Translation
   वह शत्रु मेरे द्वारा मारा गया और दूसरों को भी मैं मार डालूँगा। मैं ईश्वर हूँ, भोगने वाला हूँ, सिद्ध हूँ और बलवान्‌ तथा सुखी हूँ |16.14|

   ਉਹ ਵੈਰੀ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਦੂਸਿਰਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਮੈਂ ਮਾਰ ਦੇਵਾਂਗਾ । ਮੈਂ ਰੱਬ ਹਾਂ , ਭੋਗਣ ਵਾਲਾ ਹਾਂ , ਸਿੱਧ, ਬਲਵਾਂਨ‌ ਅਤੇ ਸੁਖੀ ਹਾਂ |16.14|

   That enemy has been killed by me, and I shall kill others as well. I am the lord, I am the enjoyer, I am an achiever, mighty and happy. |16.14|

।16.15।
आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः ॥ १५ ॥

शब्दार्थ
आढयोऽभिजनवानस्मि - मैं धनी, श्रेष्ठकुल वाला
कोऽन्योऽस्ति - दूसरा कौन है
सदृशो - समान
मया - मेरे
यक्ष्ये - यज्ञ करूँगा
दास्यामि - दान दूँगा
मोदिष्य - मौज करूँगा
इत्यज्ञानविमोहिताः - इस प्रकार अज्ञान से मोहित हैं

भावार्थ/Translation
   मैं धनी और श्रेष्ठकुल वाला हूँ। मेरे समान दूसरा कौन है, मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और मौज करूँगा, इस प्रकार वे अज्ञान से मोहित हैं |16.15|

   ਮੈਂ ਧਨੀ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਕੁਲ ਵਾਲਾ ਹਾਂ । ਮੇਰੇ ਵਰਗਾ ਦੂਜਾ ਕੌਣ ਹੈ , ਮੈਂ ਯੱਗ ਕਰਾਂਗਾ , ਦਾਨ ਦੇਵਾਂਗਾ ਅਤੇ ਮੌਜ ਕਰਾਂਗਾ , ਇਸ ਤਰਾੰ ਉਹ ਅਗਿਆਨ ਨਾਲ ਮੋਹਿਤ ਹੈ |16.15|

   I am rich and born in a noble family. Who else is equal to me? I shall perform sacrifices, I shall do charity, I shall rejoice, thus they are deluded by ignorance. |16.15|

।16.16।
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥ १६ ॥

शब्दार्थ
अनेकचित्तविभ्रान्ता - अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले
मोहजालसमावृताः - मोह जाल में फँसे
प्रसक्ताः - आसक्त
कामभोगेषु - विषयभोगों में
पतन्ति - गिरते हैं
नरकेऽशुचौ - अपवित्र नरक में

भावार्थ/Translation
   अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले, मोह जाल में फँसे तथा विषयभोगों में आसक्त ये घोर, अपवित्र नरक में गिरते हैं |16.16|

   ਬਹੁਤ ਤਰਾਂ ਨਾਲ ਭਰਮਿਤ ਚਿੱਤ ਵਾਲੇ , ਮੋਹ ਜਾਲ ਵਿੱਚ ਫੰਸੇ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ੇ ਭੋਗਾਂ ਵਿੱਚ ਆਸਕਤ ਇਹ ਲੋਗ ਘੋਰ , ਅਪਵਿਤ੍ਰ ਨਰਕ ਵਿੱਚ ਡਿੱਗਦੇ ਹਨ |16.16|

   Perplexed by numerous thoughts, entangled in the net of delusion, infatuated by sense-pleasures, they fall into the hell. |16.16|

।16.17।
आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्‌ ॥ १७ ॥

शब्दार्थ
आत्मसम्भाविताः - अपने आप को ही श्रेष्ठ मानने वाले
स्तब्धा - अकड़ वाले
धनमानमदान्विताः - धन और मान के मद से युक्त
यजन्ते - पूजते
नामयज्ञैस्ते - नाममात्र के यज्ञों द्वारा
दम्भेनाविधिपूर्वकम्‌ - विधिरहित, दम्भपूर्वक

भावार्थ/Translation
   अपने आप को ही श्रेष्ठ मानने वाले , अकड़ वाले, धन और मान के मद से युक्त लोग, नाममात्र के यज्ञों द्वारा विधिरहित और दम्भपूर्वक यजन करते हैं |16.17|

   ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਹੀ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ , ਆਕੜ ਵਾਲੇ , ਪੈਸੇ ਅਤੇ ਮਾਨ ਦੇ ਨਸ਼ੇ ਨਾਲ ਭਰੇ ਲੋਕ , ਨਾਮ ਮਾਤਰ ਦੇ ਜੱਗਾਂ ਨਾਲ ਵਿਧਿਰਹਿਤ ਅਤੇ ਦੰਭ ਨਾਲ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਹਨ |16.17|

   Self-conceited, stubborn, full with arrogance of being rich and famous, they pretend to perform sacrifices for namesake, disregarding the established injunctions. |16.17|

।16.18।
अहङ्‍कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः ॥ १८ ॥

शब्दार्थ
अहङ्‍कारं - अहङ्कार
बलं - बल
दर्पं - घमण्ड
कामं - कामना
क्रोधं च - और क्रोध का
संश्रिताः - आश्रय लेने वाले
मामात्मपरदेहेषु - अपने और दूसरों के शरीरमें रहने वाले मुझ के साथ
प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः - द्वेष करते हैं तथा दोषदृष्टि रखते हैं

भावार्थ/Translation
   वे अहङ्कार, बल, घमण्ड, कामना और क्रोध का आश्रय लेने वाले, अपने और दूसरों के शरीर में रहने वाले मुझ के साथ द्वेष करते हैं तथा दोषदृष्टि रखते हैं |16.18|

   ਉਹ ਅਹੰਕਾਰ , ਜੋਰ , ਘਮੰਡ , ਕਾਮਨਾ ਅਤੇ ਕ੍ਰੋਧ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲੈਣ ਵਾਲੇ , ਆਪਣੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰਿਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ, ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਦਵੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਦੋਸ਼ਦ੍ਰਿਸ਼ਟਿ ਰੱਖਦੇ ਹਨ |16.18|

   These people are engrossed in egoism, power, desire and anger. They are fault-finders and jealous of Me who lives in their own body and in those of all others.|16.18|

।16.19।
तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्‌।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ॥ १९ ॥

शब्दार्थ
तानहं - उन को मैं
द्विषतः - द्वेष करने वाले
क्रूरान्संसारेषु - क्रूर, संसार में
नराधमान्‌ - नीच
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव - अपवित्र मनुष्यों को, बारबार आसुरी, गिराता हूँ
योनिषु - योनियों में

भावार्थ/Translation
   उन द्वेष करनेवाले, संसार में क्रूर, नीच, अपवित्र मनुष्यों को मैं बारबार आसुरी योनियों में गिराता हूँ |16.19|

   ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲੇ , ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਕਰੂਰ , ਨੀਚ , ਅਪਵਿਤ੍ਰ ਮਨੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਮੈਂ ਬਾਰਬਾਰ ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ ਯੋਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗਿਰਾ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ |16.19|

   Those haters, cruel, the evil-doers and the most inauspicious of mankind, I hurl them into the demoniac wombs again and again. |16.19|

।16.20।
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्‌ ॥ २० ॥

शब्दार्थ
आसुरीं - आसुरी
योनिमापन्ना - योनि को प्राप्त होते हैं
मूढा - अविवेकी मनुष्य
जन्मनि - जन्म
जन्मनि - जन्म में
मामप्राप्यैव - मुझको न प्राप्त होकर
कौन्तेय - हे अर्जुन
ततो - फिर उससे भी
यान्त्यधमां - नीच , प्राप्त होते हैं
गतिम्‌ - गति को

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, वे अविवेकी मनुष्य मुझको न प्राप्त होकर ही जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अति नीच गति को ही प्राप्त होते हैं |16.20|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਉਹ ਮੂਰਖ ਮਨੁੱਖ ਮੈਨੂੰ ਨਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਕੇ ਹੀ ਜਨਮ - ਜਨਮ ਵਿੱਚ ਰਾਖ਼ਸ਼ੀ ਜਨਮ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ , ਫਿਰ ਉਸ ਤੋਂ ਵੀ ਅਤਿ ਨੀਚ ਗਤੀ ਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ |16.20|

   O Arjuna, These deluded people, not attaining Me, birth after birth get into the demoniac wombs and then go to even lower form of life. |16.20|

।16.21।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌ ॥ २१ ॥

शब्दार्थ
त्रिविधं - तीन प्रकार के
नरकस्येदं - ये नरक के
द्वारं - द्वार
नाशनमात्मनः - जीवात्माका पतन करनेवाले
कामः - काम
क्रोधस्तथा - क्रोध तथा
लोभस्तस्मादेतत्त्रयं - लोभ इन तीनों को
त्यजेत्‌ - त्याग देना चाहिए

भावार्थ/Translation
   काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार, जीवात्माका पतन करनेवाले हैं, इन तीनों को त्याग देना चाहिए |16.21|

   ਕੰਮ , ਕ੍ਰੋਧ ਅਤੇ ਲੋਭ - ਇਹ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਨਰਕ ਦੇ ਦਵਾਰ , ਜੀਵਾਤਮਾ ਦਾ ਪਤਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹਨ , ਇੰਨਾ ਤਿੰਨਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ |16.21|

   Lust, anger and greed are three gates of hell. These ruin the Self, so these three should be abandoned.|16.21|

।16.22।
एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्‌ ॥ २२ ॥

शब्दार्थ
एतैर्विमुक्तः - इन से रहित हुआ
कौन्तेय - हे अर्जुन
तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः - जो मनुष्य, नरक के तीनों दरवाजों से
आचरत्यात्मनः आचरण करता है, अपने
श्रेयस्ततो - कल्याण का
याति - प्राप्त होता है
परां - परम
गतिम्‌ - गति को

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, इन नरक के तीनों दरवाजों से रहित हुआ, जो मनुष्य अपने कल्याण का आचरण करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है |16.22|

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ , ਇਸ ਨਰਕ ਦੇ ਤਿੰਨਾਂ ਦਰਵਾਜਿਆਂ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਹੋਇਆ , ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਕਲਿਆਣ ਦਾ ਚਾਲ ਚਲਣ ਕਰਦਾ ਹੈ , ਉਹ ਪਰਮ ਗਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ |16.22|

   O Arjuna, a person who is free from these three doors to darkness, practices for the good of the soul, he attains the highest Goal.|16.22|

।16.23।
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्‌ ॥ २३ ॥

शब्दार्थ
यः - जो
शास्त्रविधिमुत्सृज्य - शास्त्र विधि को त्यागकर
वर्तते - आचरण करता है
कामकारतः - अपनी इच्छा से मनमाना
न स - वह न
सिद्धिमवाप्नोति - सिद्धि को प्राप्त होता है
न सुखं - न सुख को
न परां - न परम
गतिम्‌ - गति को

भावार्थ/Translation
   जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को और न सुख को ही |16.23|

   ਜੋ ਪੁਰਖ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਧੀ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਕੇ ਆਪਣੀ ਇੱਛਾ ਨਾਲ ਮਨਮਾਨਾ ਚਾਲ ਚਲਣ ਕਰਦਾ ਹੈ , ਉਹ ਨਾਂ ਸਿੱਧੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ , ਨਾਂ ਪਰਮਗਤੀ ਨੂੰ ਅਤੇ ਨਾਂ ਸੁਖ ਨੂੰ ਹੀ |16.23|

   He, who neglects the injunction of the scriptures, and acts according to his own will-he attains neither the perfection, nor happiness nor the highest state. |16.23|

।16.24।
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ॥ २४ ॥

शब्दार्थ
तस्माच्छास्त्रं - तेरे लिए, शास्त्र ही
प्रमाणं - प्रमाण है
ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ - कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में
ज्ञात्वा - जानकर
शास्त्रविधानोक्तं - शास्त्र विधि से नियत
कर्म - कर्म ही
कर्तुमिहार्हसि - करने योग्य है

भावार्थ/Translation
   इससे तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है। इसलिए शास्त्र विधि से नियत कर्म ही करने योग्य है |16.24|

   ਇਸਲਈ ਇਸ ਕਰਤੱਵ ਅਤੇ ਅਕਰਤੱਵ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਸਤਰ ਹੀ ਪ੍ਰਮਾਣ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਧੀ ਨਾਲ ਨਿਅਤ ਕਰਮ ਹੀ ਕਰਣ ਲਾਇਕ ਹੈ |16.24|

   Therefore, by considering the scripture as your authority in determining as to what is to be done and what is not to be done, you should perform action, laid down by the regulations of the scriptures. |16.24|


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्नीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन दैवासुरसम्पद्विभागयोगो नाम षोडशोऽध्यायः ॥16.1-16.24॥

To be Completed by 11th May, 2016 (24 days)

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