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अध्याय आठ / Chapter Eight

।8.1।
अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥ १ ॥

शब्दार्थ
अर्जुन उवाच - अर्जुन ने कहा
किं तद्ब्रह्म - वह ब्रह्म क्या है
किमध्यात्मं - अध्यात्म क्या है
किं कर्म - कर्म क्या है
पुरुषोत्तम - हे पुरुषोत्तम
अधिभूतं - अधिभूत
च किं - से क्या
प्रोक्तमधिदैवं - कहा गया है, अधिदैव
किमुच्यते - क्या है
भावार्थ/Translation
   अर्जुन ने कहा, हे पुरुषोत्तम, वह ब्रह्म क्या है, अध्यात्म क्या है, कर्म क्या है, अधिभूत क्या है तथा अधिदैव क्या है ।8.1।

   ਅਰਜੁਨ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਹੇ ਪੁਰਸ਼ੋਤਮ, ਉਹ ਬ੍ਰਹਮਾ ਕੀ ਹੈ, ਅਧਿਆਤਮ ਕੀ ਹੈ, ਕਰਮ ਕੀ ਹੈ, ਅਧਿਭੂਤ ਕੀ ਹੈ ਅਤੇ ਅਧਿਦੈਵ ਕੀ ਹੈ ।8.1।

   Arjuna said, O best among men, What is that Brahman? What is Adhyatma? What is action? What is Adhibhuta? What is Adhidaiva? ।8.1।

।8.2।
अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥ २ ॥

शब्दार्थ
अधियज्ञः - अधियज्ञ
कथं कोऽत्र - यहाँ कौन है, कैसे
देहेऽस्मिन्मधुसूदन - वह इस शरीर में, हे मधुसूदन
प्रयाणकाले - अन्त समय में
च कथं - आप किस प्रकार
ज्ञेयोऽसि - जाने जाते हैं
नियतात्मभिः - संयत चित्त वाले

भावार्थ/Translation
   और हे मधुसूदन, यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस शरीर में कैसे है और संयत चित्त वालों को, अन्त समय में आप किस प्रकार जाने जाते हैं ।8.2।

   ਅਤੇ ਹੇ ਮਧੁਸੂਦਨ, ਇੱਥੇ ਅਧਿਯੱਗ ਕੌਣ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਇਸ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਕਿਵੇਂ ਹੈ ਅਤੇ ਕਾਬੂ ਵਿੱਚ ਕਿੱਤੇ ਚਿੱਤ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ, ਅਖੀਰ ਸਮੇਂ, ਤੁਸੀ ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਹੋ ।8.2।

   O Krishna, Who is Adhiyajna and how is he here in this body? And how you become known to the self-controlled, at the time of death? ।8.2।

।8.3।
श्रीभगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसञ्ज्ञितः ॥ ३ ॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्रीभगवान बोले
अक्षरं - विनाशरहित
ब्रह्म - ब्रह्म है
परमं - अति उत्तम
स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते - स्वभाव, अध्यात्म कहा जाता है
भूतभावोद्भवकरो - प्राणी मात्र की उत्पत्ति तथा वृद्धि का कारण
विसर्गः - क्रिया
कर्मसञ्ज्ञितः - कर्म नाम से कहा गया है

भावार्थ/Translation
   श्री भगवान बोले, जो अति उत्तम, विनाशरहित तत्त्व है वह ब्रह्म है, स्वभाव (अपना स्वरूप) अध्यात्म कहा जाता है तथा प्राणी मात्र की उत्पत्ति तथा वृद्धि का कारण, कर्म नाम से कहा गया है ।8.3।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਬੋਲੇ, ਜੋ ਅਤਿ ਉੱਤਮ, ਵਿਨਾਸ਼ਰਹਿਤ ਤੱਤਵ ਹੈ ਉਹ ਬ੍ਰਹਮਾ ਹੈ, ਸੁਭਾਅ (ਆਪਣਾ ਸਵਰੂਪ) ਅਧਿਆਤਮ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਅਤੇ ਵਾਧੇ ਦਾ ਕਾਰਨ, ਕਰਮ ਨਾਮ ਨਾਲ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ ।8.3।

   The blessed Lord said, Brahman is the Supreme and Imperishable; Its Self-knowledge is called Adhyatma; the activity which causes manifestation and sustainenance of beings is called action. ।8.3।

।8.4।
अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् ।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥ ४ ॥

शब्दार्थ
अधिभूतं - अधिभूत
क्षरो भावः - नश्वर वस्तु (पंचमहाभूत)
पुरुषश्चाधिदैवतम् - पुरुष अधिदैव है
अधियज्ञोऽहमेवात्र - मैं ही अधियज्ञ हूँ
देहे - इस शरीर में
देहभृतां वर - हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन, नश्वर वस्तु (पंचमहाभूत) अधिभूत है और पुरुष अधिदैव है इस शरीर में मैं ही अधियज्ञ हूँ ।8.4।

   ਹੇ ਦੇਹਧਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਅਰਜੁਨ, ਨਸ਼ਵਰ ਚੀਜ਼ (ਪੰਚਮਹਾਭੂਤ) ਅਧਿਭੂਤ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਖ ਅਧਿਦੈਵ ਹੈ ਇਸ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਹੀ ਅਧਿਯੱਗ ਹਾਂ ।8.4।

   O best among the embodied, Arjuna! My perishable Nature is Adhibhuta and the Purusha or the Soul is the Adhidaiva; I am the Adhiyajna here in this body.।8.4।

।8.5।
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥ ५ ॥

शब्दार्थ
अन्तकाले - अन्तकाल में
च मामेव - भी मेरा
स्मरन्मुक्त्वा - स्मरण करते हुए छोड़कर
कलेवरम् - शरीर
यः प्रयाति स - जो जाता है, वह
मद्भावं याति - मेरे को ही प्राप्त होता है
नास्त्यत्र - इसमें नहीं है
संशयः - सन्देह

भावार्थ/Translation
   जो मनुष्य अन्तकाल में भी मेरा स्मरण करते हुए शरीर छोड़कर जाता है, वह मेरे भाव को ही प्राप्त होता है, इसमें सन्देह नहीं है ।8.5।

   ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਅੰਤਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮੇਰਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਸਰੀਰ ਛੱਡ ਕੇ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮੇਰੇ ਭਾਵ ਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਹੈ ।8.5।

   And at the time of death, anyone who departs while thinking of Me alone, he attains My state. There is no doubt about this.।8.5।

।8.6।
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥ ६ ॥

शब्दार्थ
यं यं वापि - जिस जिस भी
स्मरन्भावं - भाव का स्मरण
त्यजत्यन्ते - अन्तकाल में छोड़ता है
कलेवरम् - शरीर
तं तमेवैति - उस उस को ही प्राप्त होता है
कौन्तेय - हे कुन्तीपुत्र अर्जुन
सदा - सदा
तद्भावभावितः -उस भाव से सदा भावित होता हुआ

भावार्थ/Translation
   हे कुन्तीपुत्र अर्जुन, मनुष्य अन्तकाल में जिस जिस भी भाव का स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता है, वह उस भाव से सदा भावित होता हुआ, उस उस भाव को ही प्राप्त होता है ।8.6।

   ਹੇ ਕੁਂਤੀਪੁੱਤਰ ਅਰਜੁਨ, ਮਨੁੱਖ ਅੰਤਕਾਲ ਵਿੱਚ ਜਿਸ ਜਿਸ ਵੀ ਭਾਵ ਦਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਸਰੀਰ ਛੱਡਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਉਸ ਭਾਵ ਦੇ ਵਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੋਇਆ, ਉਸ ਉਸ ਭਾਵ ਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।8.6।

   O Arjuna, In whatever state of mind and sphere of thoughts a human leaves the body, he becomes the embodiement of that feeling in the next birth.।8.6।

।8.7।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥ ७ ॥

शब्दार्थ
तस्मात्सर्वेषु - इसलिए तुम सब
कालेषु - काल में
मामनुस्मर - मेरा स्मरण करो
युध्य च - और युद्ध करो
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् - मुझमें अर्पण किये मन बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे

भावार्थ/Translation
   इसलिए तुम सब काल में मेरा स्मरण करो और युद्ध करो, मुझमें अर्पण किये मन बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे ।8.7।

   ਇਸ ਲਈ ਤੂੰ ਸਭ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮੇਰਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਕਰ, ਮੇਰੇ ਅਰਪਣ ਕੀਤੇ ਮਨ ਬੁੱਧੀ ਨਾਲ ਨਿ:ਸੰਦੇਹ ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਓਂਗਾ ।8.7।

   Therefore at all times remember Me and fight. With mind and intellect absorbed in Me, you will surely come to Me alone.।8.7।

।8.8।
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥ ८ ॥

शब्दार्थ
अभ्यासयोगयुक्तेन - अभ्यास योग से युक्त
चेतसा - चित्त से
नान्यगामिना - अन्यत्र न जाने वाले
परमं - परम
पुरुषं - पुरुष का
दिव्यं - दिव्य
याति - प्राप्त हो जाता है
पार्थानुचिन्तयन् - हे अर्जुन, चिन्तन करता हुआ

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, मनुष्य अभ्यास योग से युक्त और अन्यत्र न जाने वाले चित्त से परम दिव्य पुरुष का चिन्तन करता हुआ उसी को प्राप्त हो जाता है ।8.8।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਮਨੁੱਖ ਅਭਿਆਸ ਯੋਗ ਨਾਲ ਅਤੇ ਹੋਰ ਥਾਂ ਨਹੀਂ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਚਿੱਤ ਨਾਲ, ਪਰਮ ਸੁੰਦਰ ਪੁਰਖ ਦਾ ਚਿੰਤਨ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ, ਉਸੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।8.8।

   O Arjuna, With the mind made steadfast by steady practice and not moving towards any other thing,and constantly meditating upon the Supreme Person, that human being goes to Him . ।8.8।

।8.9।
कविं पुरणमनुशासितार-मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः ।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप-मादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥ ९ ॥

शब्दार्थ
कविं - सर्वज्ञ
पुरणमनुशासितार-मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः - पुरातन, सबके नियन्ता, सूक्ष्म से सूक्ष्म, चिन्तन करता है
सर्वस्य - सबका
धातारमचिन्त्यरूप-मादित्यवर्णं - सबके धारण-पोषण करने वाले अचिंत्यस्वरूप, सूर्यकी तरह प्रकाशस्वरूप
तमसः - अज्ञान से
परस्तात् - अत्यन्त परे

भावार्थ/Translation
   जो सर्वज्ञ, पुरातन, सबके नियन्ता, सूक्ष्म से सूक्ष्म, सबका धारण पोषण करने वाला, अज्ञान से अत्यन्त परे, सूर्य की तरह प्रकाश स्वरूप - ऐसे अचिन्त्य स्वरूप का चिन्तन करता है ।8.9।

   ਜੋ ਸਰਵੱਗ (ਸਭ ਕੁਝ ਜਾਨਣ ਵਾਲਾ), ਪੁਰਾਤਨ, ਸਭ ਦਾ ਨਿਅੰਤਾ, ਸੂਖਮ ਤੋਂ ਸੂਖਮ, ਸਬ ਦਾ ਪਾਲਣ ਪੋਸ਼ਣ ਕਰਨ ਵਾਲਾ, ਅਗਿਆਨ ਤੋਂ ਅਤਿਅੰਤ ਪਰੇ, ਸੂਰਜ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਵਰੂਪ - ਅਜਿਹੇ ਅਚਿੰਤ ਸਵਰੂਪ ਦਾ ਚਿੰਤਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।8.9।

   Whosoever meditates on the Omniscient, the Ancient, the Ruler, subtler than the subtle, the supporter and upholder of all, of inconceivable form, effulgent like the sun and beyond the darkness of ignorance.।8.9।

।8.10।
प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्-स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥ १० ॥

शब्दार्थ
प्रयाणकाले - अन्तकाल में
मनसाचलेन - अचल मन से
भक्त्या - भक्ति
युक्तो - युक्त
योगबलेन चैव - योगबल से
भ्रुवोर्मध्ये - भ्रकुटि के मध्य
प्राणमावेश्य - प्राण को स्थापन करके
सम्यक् स तं - अच्छी तरह से
परं पुरुषमुपैति - परम पुरुष, प्राप्त होता है
दिव्यम् - दिव्य

भावार्थ/Translation
   वह अन्तकाल में योगबल से प्राण को भ्रकुटि के मध्य अच्छी तरह से स्थापन करके अचल मन से भक्ति युक्त होकर, उस परम दिव्य पुरुष को प्राप्त होता है ।8.10।

   ਉਹ ਅੰਤਕਾਲ ਵਿੱਚ ਯੋਗਬਲ ਨਾਲ, ਪ੍ਰਾਣ ਨੂੰ ਭੌਂਹ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਕੇ, ਅਚਲ ਮਨ ਨਾਲ ਭਗਤੀ ਯੁਕਤ ਹੋ ਕੇ, ਉਸ ਪਰਮ ਸੁੰਦਰ ਪੁਰਖ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।8.10।

   At the time of death, with unshaken mind, filled with devotion, by the power of Yoga, fixing the whole life-breath in the middle of the two eyebrows, he reaches that Supreme Divine Person.।8.10।

।8.11।
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः ।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं सड़ग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥ ११ ॥

शब्दार्थ
यदक्षरं - जिसको अविनाशी
वेदविदो - वेद के जानने वाले
वदन्ति - कहते हैं
विशन्ति - जिसको प्राप्त करते हैं
यद्यतयो - यत्नशील साधक
वीतरागाः - रागरहित
यदिच्छन्तो - जिसकी प्राप्ति की इच्छा करते हुए
ब्रह्मचर्यं - ब्रह्मचर्य
चरन्ति - का आचरण करते हैं
तत्ते - उस
पदं - लक्ष्य
सड़ग्रहेण - संक्षेप में
प्रवक्ष्ये - कहूँगा

भावार्थ/Translation
   वेद के जानने वाले जिस को अविनाशी कहते हैं, आसक्ति रहित यत्नशील संन्यासी, जिसमें प्रवेश करते हैं और जिसकी प्राप्ति की इच्छा करते हुए ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं, उस परम पद को मैं तेरे लिए संक्षेप में कहूँगा ।8.11।

   ਵੇਦ ਦੇ ਜਾਣਨ ਵਾਲੇ ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਆਸਕਤੀ ਰਹਿਤ ਯਤਨਸ਼ੀਲ ਸੰਨਿਆਸੀ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਜਿਸਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੀ ਇੱਛਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਬ੍ਰਹਮਚਾਰੀ ਦਾ ਚਾਲ ਚਲਣ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਸ ਪਰਮ ਪਦ ਨੂੰ ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਲਈ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਕਹਾਂਗਾ ।8.11।

   I will tell you briefly about the Supreme Goal, which is declared imperishable by the knowers of Vedas, in which the passion-free and practising Yogis enter into, and aspiring for which people practice celibacy.।8.11।

।8.12।
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥ १२ ॥

शब्दार्थ
सर्वद्वाराणि - सब (इन्द्रियों के) द्वारों को
संयम्य - संयमित कर
मनो - मन को
हृदि - हृदय में
निरुध्य च - स्थिर करके
मूर्ध्न्याधायात्मनः - मस्तक में स्थापित करके
प्राणमास्थितो - प्राण को, स्थित हुआ
योगधारणाम् - योगधारणा में

भावार्थ/Translation
   सब (इन्द्रियों के) द्वारों को संयमित कर मन को हृदय में स्थिर करके और प्राण को मस्तक में स्थापित करके योगधारणा में स्थित हुआ ।8.12।

   ਸਭ (ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ) ਦਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੰਜਮ ਅਧੀਨ ਕਰ, ਮਨ ਨੂੰ ਹਿਰਦੇ ਵਿੱਚ ਸਥਿਰ ਕਰਕੇ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਣ ਨੂੰ ਮੱਥੇ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਤ ਕਰਕੇ, ਯੋਗਧਾਰਣਾ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹੋਇਆ ।8.12।

   Closing the gates of the body, drawing the forces of his mind into the heart and by the power of meditation concentrating his vital energy in the brain;engaged in the practice of concentration. ।8.12।

।8.13।
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥ १३ ॥

शब्दार्थ
ओमित्येकाक्षरं - ओऽम् इस एक अक्षर का
ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् - ब्रह्म, उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ
यः प्रयाति - करता है, जो
त्यजन्देहं स - शरीर का त्याग वह
याति - प्राप्त होता है
परमां - परम
गतिम् - गति

भावार्थ/Translation
   जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है ।8.13।

   ਜੋ ਪੁਰਖ ਓਮ ਇਸ ਇੱਕ ਅੱਖਰ ਬ੍ਰਹਮਾ ਦਾ ਉਚਾਰਣ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਮੇਰਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਸਰੀਰ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਪਰਮ ਗਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।8.13।

   He who departs by leaving the body while uttering the single syllable, Om, which is Brahman, and thinking of Me, he attains the supreme Goal. ।8.13।

।8.14।
अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥ १४ ॥

शब्दार्थ
अनन्यचेताः - अनन्य-चित्त होकर
सततं यो मां - सर्वदा मेरा
स्मरति - स्मरण करता है
नित्यशः - प्रतिदिन
तस्याहं - उस पुरुष
सुलभः - सहज ही प्राप्त
पार्थ - हे अर्जुन
नित्ययुक्तस्य - निरंतर मुझ में युक्त हुए
योगिनः - योगी के लिए

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! जो पुरुष मुझ में अनन्य-चित्त होकर सर्वदा मेरा स्मरण करता है, उस निरंतर मुझ में युक्त योगी के लिए मैं सहज ही प्राप्त हूँ ।8.14।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ! ਜੋ ਪੁਰਖ ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਇੱਕ-ਚਿੱਤ ਹੋਕੇ ਸਦਾ ਮੇਰਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਲਗਾਤਾਰ, ਮੇਰੇ ਵਿੱਚ ਯੁਕਤ ਯੋਗੀ ਲਈ, ਮੈਂ ਸਹਿਜ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹਾਂ ।8.14।

   O Arjuna, To him who thinks constantly of Me, and of nothing else, to such an ever-faithful devotee, I am easily accessible. ।8.14।

।8.15।
मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महत्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥ १५ ॥

शब्दार्थ
मामुपेत्य - मुझे पाकर
पुनर्जन्म - पुनर्जन्म
दुःखालयमशाश्वतम् - दुःखस्थान, क्षणभंगुर
नाप्नुवन्ति - नहीं प्राप्त होते
महत्मानः - महात्माजन
संसिद्धिं - सिद्धि
परमां - परम
गताः - प्राप्त

भावार्थ/Translation
   परम सिद्धि को प्राप्त महात्माजन मुझे प्राप्त कर दुःखों के घर एवं क्षणभंगुर पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते ।8.15।

   ਪਰਮ ਸਿੱਧੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਮਹਾਤਮਾਜਨ ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ, ਦੁਖਾਂ ਦੇ ਘਰ ਅਤੇ ਛਿਣ ਭੰਗੁਰ ਪੁਨਰਜਨਮ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ।8.15।

   Having attained Me these great souls who have reached highest perfection, do not again take birth (here) which is the abode of sorrows and which is impermanent. ।8.15।

।8.16।
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥ १६ ॥

शब्दार्थ
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः - ब्रह्मलोक तक सभी लोक
पुनरावर्तिनोऽर्जुन - जहां जाकर फिर लौटना पङता है, हे अर्जुन
मामुपेत्य - मुझे प्राप्त होने पर
तु कौन्तेय - हे अर्जुन
पुनर्जन्म - पुनर्जन्म
न विद्यते - नहीं होता

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन ब्रह्मलोकतक सभी लोक पुनरावर्ती (जहां जाकर फिर लौटना पङता है) हैं परन्तु हे कौन्तेय मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता ।8.16।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਬਰਹਮ ਲੋਕ ਤਕ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਪੁਨਰਾਵਰਤੀ (ਜਿੱਥੇ ਜਾਕੇ ਫਿਰ ਪਰਤਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ) ਹਨ, ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਨ ਤੇ ਦੁਬਾਰਾ ਜਨਮ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।8.16।

   O Arjuna- You need to return back from all the worlds including the world of Brahma. But, O Arjuna, There is no re-birth after attaining me. ।8.16।

।8.17।
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः ।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ॥ १७ ॥

शब्दार्थ
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो - जो कि हजार वर्ष की है, ब्रह्मा जी के दिन की
विदुः - जानते हैं
रात्रिं - रात्रि को
युगसहस्रान्तां - एक हजार वर्ष की अवधि की
तेऽहोरात्रविदो - दिन और रात्रि को जानने वाले हैं
जनाः - जो लोग

भावार्थ/Translation
   जो लोग ब्रह्मा जी के एक दिन की अवधि जानते हैं, जो कि हजार वर्ष की है तथा एक हजार वर्ष की अवधि की एक रात्रि को जानते हैं, वे काल को जानने वाले पुरुष हैं ।8.17।

   ਜੋ ਲੋਕ ਬਰਹਮਾ ਜੀ ਦੇ ਇੱਕ ਦਿਨ ਦੀ ਮਿਆਦ ਜਾਣਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਹਜਾਰ ਸਾਲ ਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇੱਕ ਹਜਾਰ ਸਾਲ ਦੀ ਮਿਆਦ ਦੀ ਇੱਕ ਰਾਤ ਨੂੰ ਜਾਣਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਕਾਲ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਵਾਲੇ ਪੁਰਖ ਹਨ ।8.17।

   Those people who know the day of Brahma which is of a duration of a thousand Yugas (ages) and the night which is also of a thousand Yugas duration, they know day and night.।8.17।

।8.18।
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसञ्ज्ञके ॥ १८ ॥

शब्दार्थ
अव्यक्ताद्व्यक्तयः - अव्यक्त से व्यक्त (चराचर जगत्)
सर्वाः - सम्पूर्ण
प्रभवन्त्यहरागमे - दिन के आरम्भकाल में, पैदा होते हैं
रात्र्यागमे - रात्रि के आगमन पर
प्रलीयन्ते - लीन हो जाते हैं
तत्रैवाव्यक्तसञ्ज्ञके - उसी अव्यक्त में

भावार्थ/Translation
   ब्रह्मा जी के दिन के आरम्भ काल में अव्यक्त से सम्पूर्ण चराचर जगत् पैदा होता है और रात के आगमन पर उसी अव्यक्त में लीन हो जाता है ।8.18।

   ਬਰਹਮਾ ਜੀ ਦੇ ਦਿਨ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਅਗਿਆਤ ਤੋਂ ਸੰਪੂਰਣ ਚਰਾਚਰ ਜਗਤ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਰਾਤ ਦੇ ਆਗਮਨ ਤੇ ਉਸੀ ਅਗਿਆਤ ਵਿੱਚ ਲੀਨ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।8.18।

   With the coming of day (of Brahma) all manifested things emerge from the Unmanifest and when night comes they merge in that itself which is called the Unmanifested. ।8.18।

।8.19।
भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।
रत्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ॥ १९ ॥

शब्दार्थ
भूतग्रामः स - यह प्राणिसमुदाय
एवायं - वही यह
भूत्वा - पुनः
प्रलीयते - लीन होता है
रत्र्यागमेऽवशः - रात्रि के समय, पर वश हुआ
पार्थ - अर्जुन
प्रभवत्यहरागमे - दिनके समय उत्पन्न होता है

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन वही यह प्राणी समुदाय पुनः पुनः उत्पन्न होकर प्रकृति के परवश हुआ दिन के समय उत्पन्न होता है और रात्रि के समय लीन होता है ।8.19।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਉਹੀ ਇਹ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦਾ ਸੰਸਾਰ ਬਾਰ ਬਾਰ ਪੈਦਾ ਹੋਕੇ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਪਰਾਧੀਨ ਹੋਇਆ ਦਿਨ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਰਾਤ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲੀਨ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।8.19।

   O Arjuna - All the beings in the creature, born again and again, comes forth at the coming of the day, and is dissolved at the coming of the night. ।8.19।

।8.20।
परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः ।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥ २0 ॥

शब्दार्थ
परस्तस्मात्तु - परन्तु उस
भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः - अव्यक्त से परे सनातन अव्यक्त भाव है
यः स - जो
सर्वेषु - समस्त
भूतेषु नश्यत्सु - प्राणियों के नष्ट होने पर भी
न विनश्यति - नष्ट नहीं होता

भावार्थ/Translation
   परन्तु उस अव्यक्त से परे जो सनातन अव्यक्त भाव है वह समस्त प्राणियों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता ।8.20।

   ਪਰ ਉਸ ਅਗਿਆਤ ਤੋਂ ਪਰੇ ਜੋ ਸਨਾਤਨ ਭਾਵ ਹੈ ਉਹ ਕੁਲ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਨਸ਼ਟ ਹੋਣ ਉੱਤੇ ਵੀ ਨਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।8.20।

   But beyond that Unmanifest there is eternal Unmanifest being which is not destroyed even when all beings perish. ।8.20।

।8.21।
अव्यक्तोक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् ।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥ २१ ॥

शब्दार्थ
अव्यक्तोक्षर - अव्यक्त और अक्षर
इत्युक्तस्तमाहुः उसी को कहा गया है
परमां - परम
गतिम् - गति
यं प्राप्य न - जिसको प्राप्त होने पर नहीं
निवर्तन्ते - लौटकर आते
तद्धाम - वह धाम है
परमं - परम
मम - मेरा

भावार्थ/Translation
   उसी को अव्यक्त, अक्षर और परमगति कहा गया है तथा जिसको प्राप्त होने पर फिर लौटकर नहीं आते वह मेरा परमधाम है ।8.21।

   ਉਸੀ ਨੂੰ ਅਗਿਆਤ, ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ਅਤੇ ਪਰਮਗਤੀ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਉੱਤੇ ਫਿਰ ਪਰਤ ਕੇ ਨਹੀਂ ਆਉਂਣਾ ਹੁੰਦਾ, ਉਹ ਮੇਰਾ ਪਰਮਧਾਮ ਹੈ ।8.21।

   He has been called as Unmanifested, Imperishable and Supreme Goal. After achieving that nobody comes back, That is my Supreme Adobe.।8.21।

।8.22।
पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्या ।
यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥ २२ ॥

शब्दार्थ
पुरुषः स - वह पुरुष
परः - परम
पार्थ - अर्जुन
भक्त्या - भक्ति से
लभ्यस्त्वनन्या - अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है
यस्यान्तःस्थानि - जिसके अन्तर्गत हैं
भूतानि येन - प्राणी जिससे
सर्वमिदं - सम्पूर्ण, यह
ततम् - व्याप्त है

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, सम्पूर्ण प्राणी जिसके अन्तर्गत हैं और जिससे संसार व्याप्त है वह परम पुरुष अनन्यभक्ति से प्राप्त होने योग्य है ।8.22।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜਿਸਦੇ ਅੰਦਰ ਹਨ ਅਤੇ ਜਿਸਦੇ ਨਾਲ ਸੰਸਾਰ ਵਿਆਪਤ ਹੈ, ਉਹ ਪਰਮ ਪੁਰਖ ਅਟੂੱਟ ਭਗਤੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਲਾਇਕ ਹੈ ।8.22।

   O Arjuna, All beings dwell in Him, and He pervades all creations, that Supreme Lord is attainable with unswerving devotion.।8.22।

।8.23।
यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥ २३ ॥

शब्दार्थ
यत्र काले - जिस काल में
त्वनावृत्तिमावृत्तिं - पीछे लौटकर नहीं आते और पीछे लौटकर आते हैं
चैव - और
योगिनः - योगी
प्रयाता - शरीर छोड़कर गये हुए
यान्ति तं - उस, आते हैं
कालं - काल को
वक्ष्यामि - मैं कहूँगा
भरतर्षभ - हे अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, जिस काल में शरीर छोड़कर गये हुए योगी पीछे लौटकर नहीं आते (अनावृत्ति) और पीछे लौटकर आते हैं (आवृत्ति) उस काल को मैं कहूँगा ।8.23।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਜਿਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਰੀਰ ਛੱਡ ਕੇ ਗਏ ਹੁਏ ਯੋਗੀ ਪਿੱਛੇ ਪਰਤ ਕੇ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੇ (ਅਨਾਵਰਤੀ) ਅਤੇ ਪਿੱਛੇ ਪਰਤ ਕੇ ਆਉਂਦੇ ਹਨ (ਆਵਰਤੀ), ਉਸ ਕਾਲ ਨੂੰ ਮੈਂ ਕਹਾਂਗਾ ।8.23।

   O Arjuna - I will narrate you about the timings, based on which the departing Yogis either return back to the world or not.।8.23।

।8.24।
अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥ २४ ॥

शब्दार्थ
अग्निर्ज्योतिरहः - अग्नि व ज्योति स्वरूप दिन में
शुक्लः - शुक्लपक्ष
षण्मासा - छः मास
उत्तरायणम् - उत्तरायण
तत्र प्रयाता - से जाते हैं
गच्छन्ति ब्रह्म - ब्रह्म को प्राप्त होते हैं
ब्रह्मविदो - साधक
जनाः - जन

भावार्थ/Translation
   जो साधकजन अग्नि व ज्योति स्वरूप दिन में, शुक्लपक्ष में और उत्तरायण के छः मास वाले मार्ग से जाते हैं वे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं ।8.24।

   ਜੋ ਸਾਧਕਜਨ ਅੱਗ ਅਤੇ ਜੋਤੀ ਸਵਰੂਪ ਦਿਨ ਵਿੱਚ, ਸ਼ੁਕਲ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਉਤਰਾਇਣ ਦੇ ਛੇ ਮਹੀਨੇ ਵਾਲੇ ਰਸਤੇ ਤੋਂ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਬ੍ਰਹਮਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।8.24।

   Those who know Brahman and depart in the time of fire and light in the form of daytime, the bright fortnight, the six months of the northern path of the sun (the northern solstice) go to Brahman. ।8.24।

।8.25।
धूमो रात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासादक्षिणायनम् ।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्यनिवर्तते ॥ २५ ॥

शब्दार्थ
धूमो रात्रिस्तथा - धूमरूप रात्रि
कृष्णः षण्मासादक्षिणायनम् - कृष्णपक्ष और दक्षिणायन के छः मास
तत्र चान्द्रमसं - से चन्द्रमा की
ज्योतिर्योगी - ज्योति को योगी
प्राप्यनिवर्तते - प्राप्त कर लौटता है

भावार्थ/Translation
   धुंधलके का समय, रात्रि, कृष्णपक्ष और दक्षिणायन के छः मास वाले मार्ग से चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त कर योगी (संसार को) लौटता है ।8.25।

   ਧੁੰਧਲਕੇ ਦਾ ਸਮਾਂ, ਰਾਤ, ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ ਪੱਖ ਅਤੇ ਦੱਖਣਾਯਨ ਦੇ ਛੇ ਮਹੀਨੇ ਵਾਲੇ ਰਸਤੇ ਤੋਂ ਚੰਦਰਮਾ ਦੀ ਜੋਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਯੋਗੀ (ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ) ਪਰਤਦਾ ਹੈ ।8.25।

   Those yogis who depart in the time of adjoining period of day-night, night, dark fortnight and the six months of the Southern solstice- having reached the lunar light, return to the world. ।8.25।

।8.26।
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुनः ॥ २६ ॥

शब्दार्थ
शुक्लकृष्णे - शुक्ल और कृष्ण
ह्येते - ये दोनों
जगतः - जगत्
शाश्वते - अनादिकालसे
मते - मान्य हैं
एकया - एक गति में
यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते - जाने वाले को लौटना नहीं पड़ता और दूसरी में लौटना पड़ता है
पुनः - पुनः

भावार्थ/Translation
   शुक्ल और कृष्ण - ये दोनों गतियाँ अनादिकाल से जगत् में मान्य हैं। इनमें से एक में लौटना नहीं पड़ता और दूसरी में लौटना पड़ता है ।8.26।

   ਸ਼ੁਕਲ ਅਤੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ - ਇਹ ਦੋਨੋਂ ਗਤੀਆਂ ਅਨਾਦਿਕਾਲ ਤੋਂ ਜਗਤ ਵਿੱਚ ਮੰਨੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇੱਕ ਵਿੱਚ ਪਰਤਣਾ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ ਅਤੇ ਦੂਜੀ ਵਿੱਚ ਪਰਤਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।8.26।

   The bright and the dark paths of the world are verily thought to be eternal; by the one a man goes not to return and by the other he returns.।8.26।

।8.27।
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयोक्तो भवार्जुन ॥ २७ ॥

शब्दार्थ
नैते - इन दो
सृती - मार्गों को
पार्थ - हे अर्जुन
जानन्योगी - जानने वाला योगी
मुह्यति - मोहित नहीं होता
कश्चन - कोई भी
तस्मात्सर्वेषु - तुम सब
कालेषु - काल में
योगयोक्तो - योगयुक्त
भवार्जुन - बनो, अर्जुन

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन - इन दो मार्गों को जानने वाला कोई भी योगी मोहित नहीं होता। इसलिए हे अर्जुन तुम सब काल में योगयुक्त बनो ।8.27।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ - ਇਹਨਾਂ ਦੋ ਮਾਰਗਾਂ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਵਾਲਾ ਕੋਈ ਵੀ ਯੋਗੀ ਮੋਹਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ। ਇਸ ਲਈ ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਤੂੰ ਹਰ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਯੋਗ ਅਭਿਆਸ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਬਣ ।8.27।

   Knowing these paths, O Arjuna, no Yogi is deluded; therefore at all times be steadfast in Yoga. ।8.27।

।8.28।
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् ।
अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ॥ २८ ॥

शब्दार्थ
वेदेषु - वेद अध्ययन
यज्ञेषु - यज्ञ
तपःसु - तप
चैव - और
दानेषु - दान करने में
यत्पुण्यफलं - जो पुण्य फल
प्रदिष्टम् - कहा गया है
अत्येति - पार कर
तत्सर्वमिदं - उस सबका
विदित्वा - जानकर
योगी - योगी
परं - परम
स्थानमुपैति - स्थान को प्राप्त होता है
चाद्यम् - और सनातन

भावार्थ/Translation
   योगी यह सब जानकर वेदाध्ययन, यज्ञ, तप और दान करने में जो पुण्य फल कहा गया है, उस सबको पार कर जाता है और सनातन परम स्थान को प्राप्त होता है ।8.28।

   ਯੋਗੀ ਇਹ ਸਭ ਜਾਨ ਕੇ ਵੇਦ ਅਧਿਐਨ, ਯੱਗ, ਤਪ ਅਤੇ ਦਾਨ ਕਰਣ ਵਿੱਚ ਜੋ ਪੁੰਨ ਫਲ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ, ਉਸ ਸਾਰਿਆ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਨਾਤਨ ਪਰਮ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।8.28।

   Having known this, the yogi transcends all those results of rigtheous deeds that are declared with regard to the Vedas, sacrifices, austerities and also charities, and he reaches the primordial supreme State. ।8.28।


ॐ तत्सदिति श्री मद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे अक्षर ब्रह्मयोगो नामाष्टमोऽध्यायः ॥8.1-8.28॥

To be Completed by 28th August, 2015 (28 days)

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