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अध्याय तीन / Chapter Three

अर्जुन उवाच

।3.1।
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥ १॥

शब्दार्थ
ज्यायसी - श्रेष्ठ
चेत्कर्मणस्ते - अगर कर्म की अपेक्षा
मता - मानी जाती है
बुद्धि - ज्ञान
र्जनार्दन - हे कृष्ण
तत्किं - तब क्यों
कर्मणि घोरे मां - मुझको हिंसात्मक कर्म में
नियोजयसि - लगाते हैं
केशव - कृष्ण
भावार्थ/Translation
   हे कृष्ण, यदि आप कर्म की अपेक्षा बुद्धि को श्रेष्ठ मानते हैं तो मुझे युद्ध में क्यों लगा रहे हैं।3.1।

   ਹੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ, ਜੇ ਤੁਸੀਂ ਕਰਮ ਨਾਲੋਂ ਬੁੱਧੀ ਨੂੰ ਸ਼੍ਰੇਸ਼ਟ ਮੰਨਦੇ ਹੋਂ, ਤਾਂ ਮੈਂਨੂੰ ਯੁੱਧ ਕਰਨ ਨੂੰ ਕਿਉਂ ਕਹਿ ਰਹੇ ਹੋ।3.1।

   Lord Krishna! If you consider intelligence superior to action, why are you urging me to indulge in this war.।3.1।

।3.2।
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्॥ २॥

शब्दार्थ
व्यामिश्रेणेव - (आप) मिले जुले
वाक्येन बुद्धिं - वाक्य से बुद्धि
मोहयसीव मे - मोहित कर रहे हो
तदेकं वद - उस एक बात को कहिये
निश्चित्य - निश्चित रूप से
येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् - जिससे मैं कल्याण को प्राप्त करूँ

भावार्थ/Translation
   आप अपने मिले जुले वचनों से मेरी बुद्धि मोहित कर रहे हैं। आप निश्चय करके एक बात कहिये, जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊँ।3.2।

   ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਮਿਲੇ-ਜੁਲੇ ਕਥਨਾਂ ਨਾਲ ਮੇਰੀ ਬੁੱਧੀ ਨੂੰ ਮੋਹਿਤ ਕਰ ਰਹੇ ਹੋ। ਕਿਰਪਾ ਨਿਸ਼ਚੇ ਕਰਕੇ ਮੈਂਨੂੰ ਇਕ ਗੱਲ ਦੱਸੋ ਜਿਸ ਨਾਲ ਮੇਰੀ ਭਲਾਈ ਹੋਵੇ।3.2।

   You, with your confusing suggestions, are deluding my mind. Please decide one way that is beneficial and right for me to do and tell it to me.।3.2।

।3.3।
श्रीभगवानुवाच
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥ ३॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान् बोले
लोकेऽस्मिन्द्विविधा - इस लोक में दो प्रकार से
निष्ठा - निष्ठा
पुरा - पहले
प्रोक्ता - कही गयी
मयानघ - हे निष्पाप अर्जुन, मेरे द्वारा
ज्ञानयोगेन - ज्ञानयोग
साङ्ख्यानां - सांख्य दर्शन पर चलने वाले
कर्मयोगेन - कर्मयोग
योगिनाम् - कर्म योग दर्शन पर चलने वाले

भावार्थ/Translation
   श्रीभगवान् बोले - हे निष्पाप अर्जुन! इस मनुष्य लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले कही गयी है। उनमें ज्ञानियों की निष्ठा ज्ञान योग (सांख्य योग) से और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से होती है।3.3।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਬੋਲੇ - ਹੇ ਪਾਪ-ਰਹਿਤ ਅਰਜੁਨ, ਇਸ ਮਨੁੱਖ ਲੋਕ ਵਿਚ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪੱਖ ਮੇਰੇ ਦੁਆਰਾ ਕਹੇ ਗਏ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਚੋਂ ਗਿਆਨੀ ਗਿਆਨ ਯੋਗ (ਸਾੰਖਯ ਯੋਗ) ਨਾਲ ਅਤੇ ਯੋਗੀ ਕਰਮ ਯੋਗ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਹਨ।3.3।

   The Lord said - O sinless Arjuna, in this world, two types of faiths have been said by me that states the Gyan Yoga (Sankhya Yoga) for the wise and the Karma Yoga for the ascetics.।3.3।

।3.4।
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥ ४॥

शब्दार्थ
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं -कर्मों का आरम्भ किये बिना निष्कर्मता को प्राप्त नहीं
पुरुषोऽश्नुते - मनुष्य होता
न च सन्न्यसनादेव - न संन्यास से, वह सिद्धि
सिद्धिं - सफलता
समधिगच्छति - प्राप्त करता है

भावार्थ/Translation
   मनुष्य न तो कर्मों का आरम्भ किये बिना निष्कर्मता को प्राप्त होता है और न कर्मों के त्याग मात्र से सिद्धि को ही प्राप्त होता है।3.4।

   ਮਨੁੱਖ ਨਾ ਹੀ ਕਰਮਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰੇ ਬਿਨਾ ਨਿਸ਼ਕਰਮਤਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਿਰਫ ਕਰਮਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਕੇ ਸਿੱਧੀ (ਕਾਮਯਾਬੀ) ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।3.4।

   One doesn't secure worklessness by not beginning action, neither does he earn success merely by renouncing all the actions.।3.4।

।3.5।
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥ ५॥

शब्दार्थ
न हि कश्चित्क्षणमपि - क्षण मात्र भी कोई नहीं रह सकता
जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् - किसी भी अवस्था में कर्म किये बिना
कार्यते - करवा लेता है
ह्यवशः - वश हुए
कर्म - कर्म
सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः - सब प्रकृति से उत्पन्न गुणों

भावार्थ/Translation
   कोई भी क्षण मात्र भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता। क्योंकि प्रकृति से उत्पन्न गुणों के द्वारा वश में हुए, सब से कर्म करवा लिया जाता है।3.5।

   ਕੋਈ ਪਲ-ਭਰ ਵੀ ਬਿਨਾ ਕਰਮ ਕੀਤੇ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦਾ, ਕਿਉਂਕਿ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਗੁਣਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕਾਬੂ ਹੋਏ ਸਾਰਿਆਂ ਤੋਂ ਕਰਮ ਕਰਵਾ ਲਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।3.5।

   No one can spend even a single moment without action because all are forced to act, under the three characteristics (Gunas) of nature.।3.5।

।3.6।
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥ ६॥

शब्दार्थ
कर्मेन्द्रियाणि - कर्म इन्द्रियां (हाथ, पैर, मुंह, मल एवं मूत्र विसर्जन का स्थान)
संयम्य यृ - हठपूर्वक रोकना
आस्ते - करता है
मनसा - मन से
स्मरन् - चिन्तन
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा - इन्द्रियों को, मूढ़ बुद्धि मनुष्य
मिथ्याचारः - दम्भी
स उच्यते - कहा जाता है

भावार्थ/Translation
   जो कर्मेन्द्रियों (सम्पूर्ण इन्द्रियों) को हठपूर्वक रोककर मन से इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मूढ़ बुद्धि वाला मनुष्य मिथ्याचारी, ढोंगी तथा पापाचारी कहा जाता है।3.6।

   ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੀਆਂ ਕਰਮ ਇੰਦਰੀਆਂ (ਸੰਪੂਰਣ ਇੰਦਰੀਆਂ) ਨੂੰ ਧੱਕੇ ਨਾਲ ਰੋਕ ਕੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਮਜ਼ਮੂਨਾਂ ਦਾ ਚਿੰਤਨ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮੂਰਖ ਬੁੱਧੀ ਵਾਲਾ ਮਨੁੱਖ ਮਿਥਿਆਚਾਰੀ, ਢੋਂਗੀ ਅਤੇ ਪਾਪਾਚਾਰੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।3.6।

   He who, forcefully restraining the organs of action, keeps thinking of the sense-objects in mind, he is of deluded understanding and is called a hypocrite.।3.6।

।3.7।
यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगसक्तः स विशिष्यते॥ ७॥

शब्दार्थ
यस्त्विन्द्रियाणि - जो इन्द्रियों को
मनसा - मन से
नियम्यारभतेऽर्जुन - हे अर्जुन, संयमित करके
कर्मेन्द्रियैः - कर्म इन्द्रियों से
कर्मयोगसक्तः - अनासक्ति से कर्मयोग का आचरण
स विशिष्यते - वह श्रेष्ठ है

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! जो मनुष्य मन से इन्द्रियों पर नियन्त्रण करके आसक्ति रहित होकर कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म योग का आचरण करता है, वह श्रेष्ठ है।3.7।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ! ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਮਨ ਵਿੱਚ ਇੰਦਰੀਆਂ ਉੱਤੇ ਕੰਟਰੋਲ ਕਰਕੇ, ਮੋਹ ਰਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਕਰਮ ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਕਰਮ ਯੋਗ ਦਾ ਚਾਲ ਚਲਣ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਹੈ।3.7।

   Those human beings excel, who become detached from the sense objects mentally, control his senses and engage in karma yoga.।3.7।

।3.8।
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥ ८॥

शब्दार्थ
नियतं कुरु कर्म - नियत कर्म करो
त्वं कर्म - तुम, कर्म
ज्यायो - श्रेष्ठ
ह्यकर्मणः - कर्म न करने की अपेक्षा
शरीरयात्रापि - शरीर निर्वाह
च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः - कर्म न करने से, भी नहीं होगा

भावार्थ/Translation
   तू तेरे लिए नियत किये हुए कर्म कर; क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं होगा।3.8।

   ਤੂੰ ਤੇਰੇ ਲਈ ਤੈਅ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਕਰਮ ਕਰ; ਕਿਉਂਕਿ ਕਰਮ ਨਾਂ ਕਰਣ ਦੇ ਨਾਲੋਂ ਕਰਮ ਕਰਣਾ ਚੰਗਾ ਹੈ ਅਤੇ ਕਰਮ ਨਾਂ ਕਰਣ ਨਾਲ ਤੇਰੇ ਸਰੀਰ ਦਾ ਗੁਜਾਰਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ।3.8।

   You perform the obligatory duties, for action is superior to inaction. And, through inaction, even the maintenance of your body will not be possible.।3.8।

।3.9।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर॥ ९॥

शब्दार्थ
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र - ईश्वरार्थ (यज्ञ के लिये, भागवत) कर्म के अतिरिक्त
लोकोऽयं - लोग
कर्मबन्धनः - कर्मों द्वारा बंधना
तदर्थं कर्म - भागवत कर्म
कौन्तेय - अर्जुन
मुक्तसङ्गः - आसक्ति को त्यागकर
समाचर - आचरण कर

भावार्थ/Translation
   धर्म पालन (शरीर धर्म, पुत्र धर्म, पति धर्म, पत्नी धर्म इत्यादि) तथा भागवत कर्मों के अन्यत्र कर्मों में लगा मनुष्य कर्मों से बँधता है, इसलिये हे कुन्ती नन्दन! तू आसक्ति-रहित होकर ईश्वरार्थ कर्मों के निमित्त आचरण कर।3.9।

   ਧਰਮ ਪਾਲਣ (ਸ਼ਰੀਰ ਧਰਮ, ਪੁੱਤਰ ਧਰਮ, ਪਤੀ ਧਰਮ, ਪਤਨੀ ਧਰਮ ਆਦਿ) ਅਤੇ ਭਾਗਵਤ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਬਿਨਾਂ ਹੋਰ ਕਰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਲੱਗਾ ਮਨੁੱਖ ਕਰਮਾਂ ਨਾਲ ਬੰਧ ਜਾੰਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਹੇ ਕੁਂਤੀ ਨੰਦਨ ! ਤੂੰ ਆਸਕਤੀ-ਰਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਰੱਬੀ ਕਰਮ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਚਾਲ ਚਲਣ ਕਰ।3.9।

   Man becomes bound by actions other than that action meant for God and for fulfilling his basic duties(duty for his body, for his parents, for her husband, for his wife etc.). Without being attached, O son of Kunti, you perform actions for Him.।3.9।

।3.10।
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्॥ १०॥

शब्दार्थ
सहयज्ञाः प्रजाः - यज्ञ सहित प्रजा
सृष्ट्वा - का निर्माण
पुरोवाच - आदिकाल में कहा
प्रजापतिः - सृष्टिकर्त्ता
अनेन प्रसविष्यध्वमेष - इस से वृद्धि को प्राप्त होओ
वोऽस्त्विष्टकामधुक् - इच्छित कामनाओं का देने वाला

भावार्थ/Translation
   प्रजापति (सृष्टिकर्त्ता) ने (सृष्टि के) आदि में यज्ञ सहित प्रजा का निर्माण कर कहा, इस यज्ञ द्वारा तुम वृद्धि को प्राप्त हो और यह कर्तव्य-कर्मरूप यज्ञ तुम्हारे लिये इच्छित कामनाओं को पूर्ण करने वाला हो।3.10।

   ਪ੍ਰਜਾਪਤੀ (ਸਿਰਜਣਹਾਰ) ਨੇ (ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੇ) ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਯੱਗ ਸਹਿਤ ਪ੍ਰਜਾ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰ ਕਿਹਾ, ਇਸ ਯੱਗ ਨਾਲ ਤੂਸੀਂ ਫਲਦੇ-ਫੁੱਲਦੇ ਰਹੋ ਅਤੇ ਇਹ ਕਰਤੱਵ-ਕਰਮ ਯੱਗ ਤੁਹਾਡੀਆਂ ਕਾਮਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਹੋਵੇ।3.10।

   Creator of this universe, at the time of creation, created creatures together with necessary action and declared: By means of this, you shalll propagate and flourish; and this process will also fulfill all your wishes.।3.10।

।3.11।
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ॥ ११॥

शब्दार्थ
देवान्भावयतानेन - देवताओं की उन्नति करो
ते देवा - वे देवता
भावयन्तु वः - उन्नति करें
परस्परं - एक-दूसरे को
भावयन्तः - उन्नत करते हुए
श्रेयः - कल्याण
परमवाप्स्यथ - परम, को प्राप्त हो

भावार्थ/Translation
   तुम लोग इस कर्म-यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करो और वे देवतागण तुम्हारी उन्नति करें। इस प्रकार परस्पर उन्नति करते हुये तुम परम कल्याण प्राप्त करो।3.11।

   ਤੂਸੀਂ ਲੋਕ ਇਸ ਕਰਮ-ਯੱਗ ਦੁਆਰਾ ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੀ ਉੱਨਤੀ ਕਰੋ ਅਤੇ ਉਹ ਦੇਵਤਾ ਤੁਹਾਡੀ ਉੱਨਤੀ ਕਰਣਗੇ। ਇਸ ਤਰਾਂ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਦੀ ਉੱਨਤੀ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਤੂੰ ਪਰਮ ਕਲਿਆਣ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰੇਂਗਾ।3.11।

   By performing these defined works (Karma-Yagna), please the gods (devas), and the gods (devas) will support you. Thus nourishing one another, you will reach the highest good.।3.11।

।3.12।
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥ १२॥

शब्दार्थ
इष्टान्भोगान्हि - इच्छित भोग (पदार्थ)
वो देवा - देवता
दास्यन्ते - देते रहेंगे
यज्ञभाविताः - यज्ञ द्वारा पोषित
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो - उनके द्वारा दिये भोगों को, दूसरों की सेवा में लगाये बिना
यो भुङ्क्ते - उपभोग करता है
स्तेन एव सः - वह चोर है

भावार्थ/Translation
   यज्ञ द्वारा पोषित देवतागण तुम्हें इच्छित भोग प्रदान करेंगे। उनके द्वारा दिये हुये भोगों को जो पुरुष, उनको दिये बिना (दूसरों की सेवा में लगाये बिना) ही भोगता है, वह निश्चय ही चोर है।3.12।

   ਯੱਗ ਦੁਆਰਾ ਵਧੇ ਹੋਏ ਦੇਵਤਾਗਣ ਤੈਨੂੰ ਇੱਛਾ ਅਨੁਸਾਰ ਭੋਗ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਣਗੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਹੋਏ ਭੋਗਾਂ ਨੂੰ ਜੋ ਪੁਰਖ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ ਬਿਨਾਂ ਹੀ ਭੋਗਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਨਿਸ਼ਚੇ ਹੀ ਚੋਰ ਹੈ।3.12।

   The gods, pleased by the sacrifice, will bestow on you the enjoyments you desire. He who enjoys the bounty of the gods without giving them anything in return, is a thief.।3.12।

।3.13।
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ॥ १३॥

शब्दार्थ
यज्ञशिष्टाशिनः - यज्ञ में शेष बचे हुए
सन्तो - श्रेष्ठ पुरुष
मुच्यन्ते - मुक्त हो जाते हैं
सर्वकिल्बिषैः - सब पापों से
भुञ्जते ते त्वघं - पाप ही खाते हैं
पापा ये - पापी लोग
पचन्त्यात्मकारणात् - अपने लिये पकाते (कर्म करते)

भावार्थ/Translation
   यज्ञ में शेष बचा खाने वाले, श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं, जो अपने लिये पकाते (कर्म करते) हैं वे पापी लोग पाप ही खाते हैं।3.13।

   ਯੱਗ ਤੋਂ ਬਾਦ ਬਾਕੀ ਬਚਿਆ ਖਾਉਣ ਵਾਲੇ, ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਪੁਰਖ ਸਭ ਪਾਪਾਂ ਤੋਂ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਆਪਣੇ ਲਈ ਪਕਾਉਂਦੇ (ਕਰਮ ਕਰਦੇ) ਹਨ, ਉਹ ਪਾਪੀ ਲੋਕ ਪਾਪ ਹੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ।3.13।

   Pious men who eat the remnants of sacrifices are freed from all sins. But the sinful ones who cook (work) only for their own sake, earn only sin.।3.13।

।3.14।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥ १४॥

शब्दार्थ
अन्नाद्भवन्ति - अन्न से होते हैं
भूतानि - समस्त प्राणी
पर्जन्यादन्नसम्भवः - अन्न की उत्पत्ति वर्षा से
यज्ञाद्भवति - उत्पत्ति यज्ञ से
पर्जन्यो - वर्षा की
यज्ञः - यज्ञ
कर्मसमुद्भवः - कर्मों से उत्पन्न है

भावार्थ/Translation
   समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से, वर्षा की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।3.14।

   ਸਾਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਅਨਾਜ ਨਾਲ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਅਨਾਜ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਵਰਖਾ ਨਾਲ, ਵਰਖਾ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਯੱਗ ਨਾਲ ਅਤੇ ਯੱਗ ਕਰਮਾਂ ਨਾਲ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।3.14।

   From food are born the creatures; the origin of food is from rainfall; rainfall originates from offerings, which originates from action.।3.14।

।3.15।
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥ १५॥

शब्दार्थ
कर्म - कर्म को
ब्रह्मोद्भवं - ब्रह्म से उत्पन्न
विद्धि - जान
ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् - ब्रह्म को अक्षर से उत्पन्न हुआ जान
तस्मात्सर्वगतं - वह सर्वव्यापी
ब्रह्म - ब्रह्म
नित्यं - नित्य
यज्ञे - यज्ञ में
प्रतिष्ठितम् - स्थित है

भावार्थ/Translation
   कर्म को ब्रह्म से उत्पन्न जान, ब्रह्म को अक्षर (परमात्मा) से उत्पन्न हुआ जान, इसलिये वह सर्वव्यापी ब्रह्म नित्य यज्ञ में स्थित है।3.15।

   ਕਰਮ ਨੂੰ ਬ੍ਰਹਮਾ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਜਾਨ, ਬ੍ਰਹਮਾ ਨੂੰ ਅੱਖਰ (ਕਦੇ ਨਾਂ ਘਟਣ ਵਾਲਾ-ਈਸਵਰ) ਵਲੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਜਾਨ, ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਸਰਵਵਿਆਪੀ ਬ੍ਰਹਮਾ ਨਿੱਤ ਯੱਗ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹੈ।3.15।

   Know that action comes from Brahma and Brahma comes from the Imperishable (Akshara). Therefore, the all-pervading (Brahma) ever resides in sacrifice (offerings).।3.15।

।3.16।
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति॥ १६॥

शब्दार्थ
एवं प्रवर्तितं - इस प्रकार निर्मित
चक्रं - चक्र
नानुवर्तयतीह - अनुसार नहीं चलता
यः - वह
अघायुरिन्द्रियारामो - पापमय जीवन बिताने वाला, इन्द्रियों में रमण करने वाला
मोघं - व्यर्थ
पार्थ - हे अर्जुन
स जीवति - जीता है

भावार्थ/Translation
   हे पार्थ! जो मनुष्य इस प्रकार प्रचलित सृष्टि-चक्र के अनुसार नहीं चलता, वह इन्द्रियों में रमण करनेवाला, पापी मनुष्य, संसार में व्यर्थ ही जीता है।3.16।

   ਹੇ ਅਰਜਨ ! ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਪ੍ਰਚੱਲਤ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ-ਚੱਕਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਨਹੀਂ ਚੱਲਦਾ, ਉਹ ਇੰਦਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਰਮਣ ਕਰਨ ਵਾਲਾ, ਪਾਪੀ ਮਨੁੱਖ, ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਵਿਅਰਥ ਹੀ ਜਿਉਂਦਾ ਹੈ।3.16।

   O Arjuna! who does not behave accrding to this cycle of world, indulges in senses, lives a sinful life; and he lives in vain.।3.16।

।3.17।
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥ १७॥

शब्दार्थ
यस्त्वात्मरतिरेव - जो अपने-आप में ही रमण करनेवाला
स्यादात्मतृप्तश्च - और अपने-आप में ही तृप्त तथा
मानवः - मनुष्य
आत्मन्येव - अपने-आप में
च सन्तुष्टस्तस्य - ही संतुष्ट
कार्यं न विद्यते - कोई कर्तव्य नहीं है

भावार्थ/Translation
   जो मनुष्य अपने-आप में ही रमण करने वाला और अपने-आप में ही तृप्त तथा अपने-आप में ही संतुष्ट है, उसके लिये कोई कर्तव्य नहीं है।3.17।

   ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਵਿੱਚ ਰਮਣ ਕਰਣ ਵਾਲਾ, ਆਪਣੇ-ਆਪ ਵਿੱਚ ਤ੍ਰਿਪਤ ਅਤੇ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਹੈ, ਉਸਦੇ ਲਈ ਕੋਈ ਕਰਤੱਵ ਨਹੀਂ ਹੈ।3.17।

   But the man who wanders in the self and do not need external objects for sensual pleasures, who is satisfied with the self, who rejoices in the self, for him nothing remains to be accomplished।3.17।

।3.18।
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः॥ १८॥

शब्दार्थ
नैव तस्य - उस का नहीं
कृतेनार्थो - कर्म करने से प्रयोजन
नाकृतेनेह - कर्म न करने से प्रयोजन
कश्चन - कोई
न चास्य - नहीं रहता है
सर्वभूतेषु - किसी भी प्राणी के साथ
कश्चिदर्थव्यपाश्रयः - अल्प मात्र भी स्वार्थ संबंध नहीं

भावार्थ/Translation
   उस का न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है, और न कर्म न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है। किसी भी प्राणी के साथ उसका अल्प मात्र भी स्वार्थ संबंध (आश्रय) नहीं रहता।3.18।

   ਉਸ ਦਾ ਨਾਂ ਤਾਂ ਕਰਮ ਕਰਣ ਦਾ ਕੋਈ ਕਾਰਣ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਅਤੇ ਨਾਂ ਹੀ ਕਰਮ ਨਾਂ ਕਰਣ ਦਾ ਕੋਈ ਕਾਰਣ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਾਣੀ ਦੇ ਨਾਲ ਉਸਦਾ ਕੋਈ ਵੀ ਸਵਾਰਥ ਸੰਬੰਧ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦਾ।3.18।

   He has no purpose to gain by work done or left undone. He need not maintain any selfish relation with anyone for fulfilling his needs.।3.18।

।3.19।
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥ १९॥

शब्दार्थ
तस्मादसक्तः - तुम अनासक्त होकर
सततं कार्यं - निरन्तर आचरण योग्य
कर्म समाचर - कर्म कर
असक्तो - आसक्तिरहित
ह्याचरन्कर्म - होकर कर्म करता हुआ
परमाप्नोति पूरुषः - मनुष्य परमात्मा को प्राप्त है

भावार्थ/Translation
   इसलिये तू निरन्तर आसक्ति रहित होकर कर्तव्य-कर्म का भलीभाँति आचरण कर; क्योंकि आसक्तिरहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।3.19।

   ਇਸ ਲਈ ਤੂੰ ਨਿਰੰਤਰ ਮੋਹ ਰਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਕਰਤੱਵ-ਕਰਮ ਦਾ ਭਲੀਭਾਂਤੀ ਆਚਰਣ ਕਰ; ਕਿਉਂਕਿ ਆਸਕਤੀ ਰਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਕਰਮ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।3.19।

   Therefore do your rightful duty continuously without attachment. For, a man who works without attachment attains to the Supreme।3.19।

।3.20।
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
लोकसङ्ग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि॥ २०॥

शब्दार्थ
कर्मणैव हि - कर्म के द्वारा ही
संसिद्धिमास्थिता - सफलता को प्राप्त हुए
जनकादयः - राजा जनक जैसे
लोकसङ्ग्रहमेवापि - लोकहित को
सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि - देखते हुए कर्म करो

भावार्थ/Translation
   राजा जनक जैसे अनेक महापुरुष भी कर्म के द्वारा ही सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। इसलिये लोकसंग्रह (लोकहित) को देखते हुए भी कर्म करना चाहिए।3.20।

   ਰਾਜਾ ਜਨਕ ਜਿਹੇ ਅਨੇਕ ਮਹਾਂਪੁਰਖ ਵੀ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਿੱਧੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਸ ਲਈ ਲੋਕਸੰਗ੍ਰਿਹ (ਲੋਕਹਿਤ) ਨੂੰ ਵੇਖਦੇ ਹੋਏ ਵੀ ਕਰਮ ਕਰਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।3.20।

   Janaka and others attained perfection verily by action only; even with a view to help the world (to help the world stay together, prevention of mankind going astray) you should keep on acting and doing good deeds.।3.20।

।3.21।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥ २१॥

शब्दार्थ
यद्यदाचरति - जैसा आचरण करता है
श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो - श्रेष्ठ पुरुष, अन्य वैसा ही करते हैं
जनः - लोग
स यत्प्रमाणं - वह जो प्रमाण
कुरुते - कर देता है
लोकस्तदनुवर्तते - लोग उसका अनुसरण करते हैं

भावार्थ/Translation
   श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करता है, अन्य लोग भी वैसा ही अनुकरण करते हैं; वह पुरुष जो कुछ प्रमाण कर देता है, लोग भी उसका अनुसरण करते हैं।3.21।

   ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਪੁਰਖ ਜਿਹੋ ਜਿਹਾ ਚਾਲ ਚਲਣ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਹੋਰ ਲੋਕ ਵੀ ਉਸਦੀ ਨਕਲ ਕਰਦੇ ਹਨ; ਉਹ ਪੁਰਖ ਜੋ ਕੁੱਝ ਪ੍ਰਮਾਣ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਲੋਕ ਵੀ ਉਸੇ ਤਰਾ਼ਂ ਕਰਦੇ ਹਨ।3.21।

   Whatever a great man does, other men also do. Whichever standard he sets, common people follows it.।3.21।

।3.22।
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥ २२॥

शब्दार्थ
न मे - मुझे न
पार्थास्ति - हे पार्थ
कर्तव्यं - कर्तव्य
त्रिषु - तीनों
लोकेषु - लोकों में
किञ्चन - कुछ
नानवाप्तमवाप्तव्यं - न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है
वर्त एव च - में ही लगा हूँ
कर्मणि - कर्म

भावार्थ/Translation
   हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, फिर भी मैं कर्तव्य-कर्म में ही लगा रहता हूँ।3.22।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ ! ਮੇਰਾ ਤਿੰਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਕਰਤੱਵ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾਂ ਹੀ ਕੋਈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਣ ਲਾਇਕ ਚੀਜ਼ ਅਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ, ਫਿਰ ਵੀ ਮੈਂ ਕਰਮ (ਬ੍ਰਮਾਂਡ ਨੂੰ ਸੁਚਾਰੂ ਰੂਪ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਲਈ) ਵਿੱਚ ਹੀ ਲਗਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ।3.22।

   There is no work prescribed for Me in all the three planetary systems. There is no desire which is beyond my reach , and yet I am engaged in prescribed duties and continue in action.।3.22।

।3.23।
यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥ २३॥

शब्दार्थ
यदि ह्यहं - क्योंकि, अगर मैं
न वर्तेयं - न लगा रहूँ
जातु - किसी समय
कर्मण्यतन्द्रितः - सावधान हुआ, कर्म में
मम वर्त्मानुवर्तन्ते - मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं
मनुष्याः - मनुष्य
पार्थ - हे अर्जुन
सर्वशः - सब प्रकार

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! अगर मैं किसी समय सावधान होकर कर्म न करूँ (तो बड़ी हानि हो जाय), क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।3.23।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ! ਜੇਕਰ ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਸਮੇਂ ਸੁਚੇਤ ਹੋ ਕੇ ਕਰਮ ਨਾਂ ਕਰਾਂ (ਤਾਂ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋ ਜਾਵੇ), ਕਿਉਂਕਿ ਮਨੁੱਖ ਸਭ ਪ੍ਰਕਾਰ ਨਾਲ ਮੇਰੇ ਹੀ ਰਸਤੇ ਦੀ ਨਕਲ ਕਰਦਾ ਹੈ।3.23।

   O Arjuna, if at any time I do not continue vigilantly in action, men will follow My path in every way. So men will also stop working and that will be the reason for great loss.।3.23।

।3.24।
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः॥ २४॥

शब्दार्थ
उत्सीदेयुरिमे - ये सब नष्ट-भ्रष्ट हो जायँ
लोका - लोक
न कुर्यां - न करूँ
कर्म चेदहम् - कर्म, यदि मैं
सङ्करस्य - सङ्करता
च कर्ता - करने वाला
स्यामुपहन्यामिमाः - नाश करने वाला बनूँ
प्रजाः - प्रजा

भावार्थ/Translation
   इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब लोक नष्ट हो जायें, मैं सङ्करता (अफरा-तफरी) का कारण बनूँ और इस समस्त प्रजा को नाश करने वाला बनूँ।3.24।

   ਇਸ ਲਈ ਜੇਕਰ ਮੈਂ ਕਰਮ ਨਾਂ ਕਰਾਂ ਤਾਂ ਇਹ ਸਭ ਲੋਕ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਉਣ, ਮੈਂ ਉਲਟ ਪੁਲਟ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣਾਂ ਅਤੇ ਇਸ ਕੁਲ ਪ੍ਰਜਾ ਨੂੰ ਨਾਸ਼ ਕਰਣ ਵਾਲਾ ਬਣਾਂ।3.24।

   If I do not do work, the world would be lost; and I will be the reason for causing chaos in life and thereby ruining all these people.।3.24।

।3.25।
सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसङ्ग्रहम्॥ २५॥

शब्दार्थ
सक्ताः - आसक्त हुए
कर्मण्यविद्वांसो - अज्ञानीजन, कर्म
यथा - जैसे
कुर्वन्ति - करते हैं
भारत - भारत (अर्जुन)
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसङ्ग्रहम् - विद्वान् पुरुष अनासक्त होकर, संसार के उद्धार की इच्छा से कर्म करे

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन ! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जैसे कर्म करते हैं वैसे ही विद्वान् पुरुष अनासक्त होकर, संसार के उद्धार (लोक कल्याण) की इच्छा से कर्म करे।3.25।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ! ਕਰਮ ਵਿੱਚ ਮੋਹਿਤ ਹੋਏ ਬੇਸਮਝ, ਜਿਵੇਂ ਕਰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਵਿਦਵਾਨ ਪੁਰਖ ਅਨਾਸਕਤ ਹੋ ਕੇ, ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਕਲਿਆਣ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨਾਲ ਕਰਮ ਕਰੇ।3.25।

   O Arjuna, as the unelightened poeple act with attachment to work, so should the enlightened person act, without attachment, for the ultimate benefit of the world.।3.25।

।3.26।
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्॥ २६॥

शब्दार्थ
न बुद्धिभेदं - बुद्धि में भ्रम
जनयेदज्ञानां - अज्ञानी, उत्पन्न न करे
कर्मसङ्गिनाम् - कर्मों में आसक्ति वाले
जोषयेत्सर्वकर्माणि - सभी कर्मों में, प्रवृत्त करे
विद्वान्युक्तः - ज्ञानी, सावधानी से
समाचरन् - अच्छी तरह से (सम बुद्धि से करता हुआ)

भावार्थ/Translation
   कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानी जनों की बुद्धि में भ्रम पैदा नहीं करना चाहिए; किंतु ज्ञानी सावधान होकर, (भागवत) कर्म भली भाँति करते हुए उन्हें भी वैसे प्रवृत्त करे।3.26।

   ਕਰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਮੋਹਿਤ, ਅਗਿਆਨੀ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਵਿੱਚ ਭੁਲੇਖਾ ਪੈਦਾ ਨਹੀਂ ਕਰਣਾ ਚਾਹੀਦਾ; ਪਰ ਗਿਆਨੀ ਸੁਚੇਤ ਹੋਕੇ, (ਭਾਗਵਤ) ਕਰਮ ਭਲੀ ਭਾਂਤੀ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸ ਵਿੱਚ ਲਗਾਵੇ।3.26।

   The enlightened man should not create doubts in the minds of the ignorant, who are attached to work. While himself doing the work in the right manner, he should diligently encourage them to do all the duties.।3.26।

।3.27।
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥ २७॥

शब्दार्थ
रकृतेः - प्रकृति
क्रियमाणानि - किये जाते हैं
गुणैः - गुणों से
कर्माणि - कर्म
सर्वशः - सम्पूर्ण
अहङ्कारविमूढात्मा - अहंकार से मोहित, मुर्ख पुरुष
कर्ताहमिति - मैं कर्ता हूँ
मन्यते - मानता है

भावार्थ/Translation
   सम्पूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं, अहंकार से मोहित, मुर्ख पुरुष मान लेता है कि मैं कर्ता हूँ।3.27।

   ਸੰਪੂਰਣ ਕਰਮ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਹੈਂਕੜੀ ਅਤੇ ਮੁਰਖ ਮੰਨਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਕਰਦਾ ਹਾਂ।3.27।

   While actions are being done in every way by the qualities (gunas) of nature, one who is deluded by egoism thinks that, 'I am the doer.।3.27।

।3.28।
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते॥ २८॥

शब्दार्थ
तत्त्ववित्तु - तत्त्व से जानने वाला
महाबाहो - हे अर्जुन
गुणकर्मविभागयोः - गुण-विभाग और कर्म-विभाग को
गुणा - गुण
गुणेषु - गुणों में
वर्तन्त - बरत रहे हैं
इति - ऐसा
मत्वा - मानकर
न सज्जते - आसक्त नहीं होता

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! गुण-विभाग और कर्म-विभाग को तत्त्व से जानने वाला मानता है कि सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं और उनमें आसक्त नहीं होता।3.28।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ! ਗੁਣ-ਵਿਭਾਗ ਅਤੇ ਕਰਮ-ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਤੱਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਵਾਲਾ ਮੰਨਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸੰਪੂਰਣ ਗੁਣ ਹੀ ਗੁਣਾਂ ਵਿੱਚ ਬਰਤ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਮੋਹਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ।3.28।

   O Arjuna, one who is a knower of the varieties (divisions) of the gunas (qualities) and actions does not become attached. He knows well that it is the senses, which are moving amongst sense objects and does not identify himself with the senses.।3.28।

।3.29।
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्॥ २९॥

शब्दार्थ
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः - प्रकृति के गुणों से मूढ बने हुए मनुष्य
सज्जन्ते - आसक्त रहते हैं
गुणकर्मसु - गुणों में और कर्मों में
तानकृत्स्नविदो - उन अपूर्ण जानने वाले
मन्दान्कृत्स्नविन्न - मन्द बुद्धि अज्ञानी को न
विचालयेत् - विचलित करना

भावार्थ/Translation
   प्रकृति के गुणों से मूढ बने हुए मनुष्य, गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं; उन अपूर्ण जानने वाले मन्दबुद्धि अज्ञानियों को, ज्ञानी विचलित न करे।3.29।

   ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਕਾਰਣ ਮੂਰਖ ਬਣੇ ਮਨੁੱਖ, ਗੁਣਾਂ ਅਤੇ ਕਰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਆਸਕਤ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ; ਉਨ੍ਹਾਂ ਮੰਦਬੁੱਧੀ ਅਗਿਆਨੀਆਂ ਨੂੰ, ਗਿਆਨੀ ਵਿਚਲਿਤ ਨਾਂ ਕਰੇ ।3.29।

   Those who are wholly deluded by the gunas of Nature become attached to the activities of the gunas. These people of dull intellect should not be disturbed by the knowers.।3.29।

।3.30।
मयि सर्वाणि कर्माणि सन्न्यस्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः॥ ३०॥

शब्दार्थ
मयि - मुझे
सर्वाणि - सभी
कर्माणि - कर्मों को
सन्न्यस्याध्यात्मचेतसा - अंतःकरण से, जानते हुए, अर्पण करो
निराशीर्निर्ममो - आशा और ममता से रहित
भूत्वा - होकर
युध्यस्व - युद्ध करो
विगतज्वरः - संताप रहित

भावार्थ/Translation
   आशा तथा ममता रहित हुए, सम्पूर्ण कर्मों को अंतःकरण से समझ कर मुझे अर्पण करो, और संताप रहित हुए युद्ध करो।3.30।

   ਆਸ ਤੇ ਮਮਤਾ ਰਹਿਤ ਹੋਇਆ, ਸੰਪੂਰਣ ਕਰਮਾਂ ਨੂੰ ਅੰਤਕਰਣ ਨਾਲ ਸਮਝ ਕੇ, ਮੈਨੂੰ ਅਰਪਣ ਕਰ, ਅਤੇ ਸੰਤਾਪ ਰਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਲੜਾਈ ਕਰ।3.30।

   Without any expectations and egoism, with full knowledge surrender all your works unto Me, and fight without any agony.।3.30।

।3.31।
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः॥ ३१॥

शब्दार्थ
ये मे मतमिदं - मेरे इस मत का
नित्यमनुतिष्ठन्ति - सदा पालन करते हैं
मानवाः - मनुष्य
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो - श्रद्धा से, दोष बुद्धि से रहित
मुच्यन्ते - मुक्त हो जाते हैं
तेऽपि - वे
कर्मभिः - कर्म (बन्धन) से

भावार्थ/Translation
   जो मनुष्य दोष बुद्धि से रहित और श्रद्धा से सदा मेरे इस मत का पालन करते हैं, वे कर्मों से (बन्धन से) मुक्त हो जाते हैं।3.31।

   ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਦੋਸ਼ ਬੁੱਧੀ ਰਹਿਤ ਅਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਹਮੇਸ਼ਾ ਮੇਰੇ ਇਸ ਮਤ ਦਾ ਪਾਲਣ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਬੰਧਨ ਤੋਂ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ।3.31।

   Those men who constantly practise this teaching of Mine with faith and without finding fault in it, are freed from actions.।3.31।

।3.32।
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः॥ ३२॥

शब्दार्थ
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो - जो दोष दृष्टि वाले
नानुतिष्ठन्ति - पालन नहीं करते
मे मतम् - मेरे मत का
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि - सब ज्ञानों में शुन्य (मुर्ख), समझो
नष्टानचेतसः - अविवेकी, नष्ट हुए

भावार्थ/Translation
   परन्तु जो दोष दृष्टि वाले, मेरे इस मत का पालन नहीं करते, उन सब ज्ञानों में शुन्य, अविवेकी चित्तवालों को नष्ट हुये समझो।3.32।

   ਪਰ ਜੋ ਨੁਕਸ ਕੱਢਣ ਵਾਲੇ, ਮੇਰੇ ਇਸ ਮਤ ਦਾ ਪਾਲਣ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਗਿਆਨਾਂ ਵਿੱਚ ਜ੍ਹੀਰੋ, ਮੂਰਖ ਚਿੱਤ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਨਸ਼ਟ ਹੋਇਆ ਸਮਝ।3.32।

   But those fault-finding people who do not follow My teaching, who are deluded about all knoweldge and devoid of discrimination will ruin themselves.।3.32।

।3.33।
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति॥ ३३॥

शब्दार्थ
सदृशं - अनुसार
चेष्टते - चेष्टा करता है
स्वस्याः - अपनी
प्रकृतेर्ज्ञानवानपि - ज्ञानी भी प्रकृति के
प्रकृतिं यान्ति - प्रकृति को प्राप्त
भूतानि - प्राणी
निग्रहः - निषेध
किं करिष्यति - क्या करेगा

भावार्थ/Translation
   सम्पूर्ण प्राणी अपनी प्रकृति अनुसार व्यवहार करते हैं। ज्ञानी भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है। किसी का (कुछ करने या न करने का) हठ क्या करेगा?।3.33।

   ਸੰਪੂਰਣ ਪ੍ਰਾਣੀ ਆਪਣੀ ਕੁਦਰਤ ਅਨੁਸਾਰ ਵਰਤਦੇ ਹਨ। ਗਿਆਨੀ ਵੀ ਆਪਣੀ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਵਿਚਰਦਾ ਹੈ। ਕਿਸੇ ਦੀ (ਕੁੱਝ ਕਰਣ ਜਾਂ ਨਾਂ ਕਰਣ ਦੀ) ਜਿੱਦ ਕੀ ਕਰੇਗੀ ?।3.33।

   Even the man of knowledge acts according to his nature; all beings follow their nature. What can restraint do?।3.33।

।3.34।
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥ ३४॥

शब्दार्थ
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे - प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में
रागद्वेषौ - राग और द्वेष
व्यवस्थितौ - स्थित हैं
तयोर्न - इनके नहीं
वशमागच्छेत्तौ - वश में होना
ह्यस्य - वे इसके
परिपन्थिनौ - मार्ग मे विघ्न डालने वाले

भावार्थ/Translation
   प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष स्थित हैं, इनके वश मत हो। वे दोनों (राग और द्वेष) ही कल्याण मार्ग में विघ्न डालने वाले हैं।3.34।

   ਸਾਰੀਆਂ ਇੰਦਰੀਆਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰਾਗ ਅਤੇ ਨਫਰਤ ਸਥਿਤ ਹਨ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵੱਸ ਨਾਂ ਹੋ। ਇਹ ਦੋਨੋਂ (ਰਾਗ ਅਤੇ ਦਵੇਸ਼) ਹੀ ਕਲਿਆਣ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿੱਚ ਵਿਘਨ ਪਾਉਣ ਵਾਲੇ ਹਨ।3.34।

   Each sense has fixed attachment and aversion for its corresponding objects. These two (attachment and aversion) are the main obstacles on the path to goodness.।3.34।

।3.35।
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥ ३५॥

शब्दार्थ
श्रेयान्स्वधर्मो - अपना धर्म श्रेष्ठ है
विगुणः - गुणरहित
परधर्मात्स्वनुष्ठितात् - दूसरे के धर्म से, भली प्रकार आचरित
स्वधर्मे - अपना धर्म
निधनं - मरना
श्रेयः - कल्याणकारक
परधर्मो - दूसरे के धर्म से
भयावहः - भय से भरा

भावार्थ/Translation
   अच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से, गुण रहित अपना धर्म श्रेष्ठ है। स्वधर्म में मरना भी कल्याणकारक है, दूसरे के धर्म का अनुकरण भयजनक व अनर्थकारी है।3.35।

   ਚੰਗੀ ਤਰਾੰ ਕੀਤੇ ਦੂੱਜੇ ਦੇ ਧਰਮ ਨਾਲੋਂ, ਗੁਣ ਰਹਿਤ ਆਪਣਾ ਧਰਮ (ਕੰਮ) ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਹੈ। ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਮਰਨਾ ਵੀ ਕਲਿਆਣਕਾਰੀ ਹੈ, ਦੂੱਜੇ ਦੇ ਧਰਮ ਦੀ ਨਕਲ ਭਯਾਨਕ ਅਤੇ ਅਨਰਥਕਾਰੀ ਹੈ।3.35।

   One's own duty performed with low quality is better, than the duty of another well discharged. Better is death in one's own duty; the duty of another is fraught with fear and danger.।3.35।

।3.36।
अर्जुनुवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥ ३६॥

शब्दार्थ
अर्जुनुवाच - अर्जुन बोले
अथ केन - फिर किससे
प्रयुक्तोऽयं - प्रेरित होकर, यह
पापं - पाप
चरति - आचरण
पूरुषः - मनुष्य
अनिच्छन्नपि - न चाहता हुआ भी
वार्ष्णेय - हे कृष्ण
बलादिव - जबर्दस्ती
नियोजितः - लगाये हुए की तरह

भावार्थ/Translation
   हे कृष्ण, फिर यह मनुष्य न चाहता हुआ भी जबर्दस्ती लगाये हुए की तरह किस से प्रेरित होकर पापका आचरण करता है?।3.36।

   ਹੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਣ, ਫਿਰ ਇਹ ਮਨੁੱਖ ਨਾਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੋਇਆ ਵੀ ਜਬਰਦਸਤੀ ਲਗਾਏ ਹੋਏ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ, ਕਿਸ ਵਲੋਂ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਹੋ ਕੇ ਪਾਪ ਦਾ ਚਾਲ ਚਲਣ ਕਰਦਾ ਹੈ?।3.36।

   O Krishna, Humans behaves against his wish, impelled and induced by some force to do cerain actions, which are not advisable. Who impells him to do these actions.।3.36।

।3.37।
श्रीभगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥ ३७॥

शब्दार्थ
श्रीभगवानुवाच - श्री भगवान् ने कहा
काम एष - कामना
क्रोध एष - क्रोध
रजोगुणसमुद्भवः - रजोगुण में उत्पन्न
महाशनो - भक्षक
महापाप्मा - महापापी
विद्ध्येनमिह - इसे जानो
वैरिणम् - शत्रु

भावार्थ/Translation
   श्रीभगवान् ने कहा - रजोगुण में उत्पन्न हुई यह कामना तथा क्रोध ही है; जो भक्षक और महापापी है, इसे अपना शत्रु जानो।3.37।

   ਸ਼੍ਰੀ ਭਗਵਾਨ ਨੇ ਕਿਹਾ - ਰਜੋਗੁਣ ਵਿੱਚ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ਇਹ ਕਾਮਨਾ ਅਤੇ ਕ੍ਰੋਧ ਹੀ ਹੈ; ਜੋ ਭਕਸ਼ਕ ਅਤੇ ਮਹਾਪਾਪੀ ਹੈ, ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਵੈਰੀ ਜਾਣ।3.37।

   Lord Krishna said - It is desire and anger both born of quality of Rajas, all-devouring, all-sinful; know this as your foe.।3.37।

।3.38।
धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्॥ ३८॥

शब्दार्थ
धूमेनाव्रियते - धुयें से ढक जाता है
वह्निर्यथादर्शो - अग्नि, जैसे दर्पण
मलेन च - धूलि से
यथोल्बेनावृतो - गर्भाशय से ढका रहता है
गर्भस्तथा - जैसे भ्रूण (गर्भ)
तेनेदमावृतम् - उस (काम) के द्वारा यह (ज्ञान) आवृत होता है

भावार्थ/Translation
   जैसे धुयें से अग्नि और धूलि से दर्पण ढक जाता है तथा जैसे भ्रूण गर्भाशय से ढका रहता है, वैसे उस (कामना) के द्वारा यह (ज्ञान) आवृत होता है।3.38।

   ਜਿਵੇਂ ਧੂਆਂ ਅੱਗ ਨੂੰ, ਧੂੜ ਦਰਪਣ ਨੂੰ ਅਤੇ ਗਰਭ ਭਰੂਣ ਨੂੰ ਢਕ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਉਸੇ ਤਰਾਂ (ਕਾਮਨਾ) ਦੇ ਨਾਲ ਇਹ (ਗਿਆਨ) ਢਕਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।3.38।

   As fire is enveloped by smoke, as a mirror by dirt, and as a foetus remains enclosed in the womb, so in this knowledge is shrouded by the desire.।3.38।

।3.39।
आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥ ३९॥

शब्दार्थ
आवृतं - आवृत्त
ज्ञानमेतेन - ज्ञान को
ज्ञानिनो - ज्ञानियों के
नित्यवैरिणा - नित्य वैरी
कामरूपेण - कामना रूप
कौन्तेय - हे अर्जुन
दुष्पूरेणानलेन च - अग्नि के समान, मुश्किल से बुझने वाले

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन! इस अग्निके समान, मुश्किल से बुझने वाली, ज्ञानियों की नित्य वैरी, कामना ने, ज्ञान को आवृत्त कर दिया (ढक दिया) है।3.39।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ! ਇਸ ਅੱਗ ਦੀ ਤਰਾਂ, ਮੁਸ਼ਕਲ ਨਾਲ ਬੁੱਝਣ ਵਾਲੀ, ਗਿਆਨੀਆਂ ਦੀ ਨਿੱਤ ਵੈਰੀ, ਕਾਮਨਾ ਨੇ, ਗਿਆਨ ਨੂੰ ਢਕ ਦਿੱਤਾ ਹੈ।3.39।

   O Arjuna! The wise person's pure consciousness is covered by his eternal enemy in the form of lust, which is never satisfied and which burns like fire.।3.39।

।3.40।
इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥ ४०॥

शब्दार्थ
इन्द्रियाणि - इन्द्रियाँ
मनो - मन
बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते - बुद्धि, इसके निवासस्थान कहे जाते हैं
एतैर्विमोहयत्येष - यह इनके द्वारा, मोहित करता है
ज्ञानमावृत्य - ज्ञान को आच्छादित
देहिनम् - मनुष्य को

भावार्थ/Translation
   इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि - ये सब कामना के निवासस्थान कहे जाते हैं। यह कामना इनके द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके मनुष्य को मोहित करता है ।3.40।

   ਇੰਦਰੀਆਂ, ਮਨ ਅਤੇ ਬੁੱਧੀ - ਇਹ ਸਭ ਕਾਮਨਾ ਦੇ ਨਿਵਾਸ ਕਹੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਕਾਮਨਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਗਿਆਨ ਨੂੰ ਢਕ ਕੇ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਮੋਹਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ।3.40।

   Senses, mind and intellect are said to be the seat of desire; through these it deludes the humans by veiling his wisdom.।3.40।

।3.41।
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥ ४१॥

शब्दार्थ
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ - तू सबसे पहले इन्द्रियों को
नियम्य - नियमित करके
भरतर्षभ - हे अर्जुन
पाप्मानं - पापी काम को
प्रजहि - बल पूर्वक
ह्येनं - इस को अवश्य ही
ज्ञानविज्ञाननाशनम् - ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले

भावार्थ/Translation
   इसलिये हे अर्जुन! तू सबसे पहले इन्द्रियों को वश में करके, इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले, महान पापी काम को अवश्य ही बल पूर्वक खत्म कर।3.41।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ! ਤੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇੰਦਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਸ ਵਿੱਚ ਕਰਕੇ, ਇਸ ਗਿਆਨ ਅਤੇ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰਣ ਵਾਲੇ, ਮਹਾਨ ਪਾਪੀ ਕਾਮਨਾ-ਵਾਸਨਾ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰ ਹੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ ਖਤਮ ਕਰ।3.41।

   O Arjuna! First control your senses and then try to slay this sinful enemy in the form of desire that destroys knowledge and wisdom.।3.41।

।3.42।
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥ ४२॥

शब्दार्थ
इन्द्रियाणि - इन्द्रियाँ
पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः - श्रेष्ठ कहते हैं, इन्द्रियों से
परं मनः - मन, श्रेष्ठ
मनसस्तु - मन से
परा बुद्धिर्यो - बुद्धि श्रेष्ठ है
बुद्धेः - बुद्धि से श्रेष्ठ
परतस्तु सः - वह श्रेष्ठ है

भावार्थ/Translation
   इन्द्रियां स्थूल शरीर से श्रेष्ठ हैं; इन्द्रियों से श्रेष्ठ मन है, मन से भी श्रेष्ठ बुद्धि है और बुद्धि से भी श्रेष्ठ वह (आत्मा) है।3.42।

   ਇੰਦਰੀਆਂ ਸਥੂਲ ਸਰੀਰ ਨਾਲੋਂ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਹਨ; ਇੰਦਰੀਆਂ ਨਾਲੋਂ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਮਨ ਹੈ, ਮਨ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਬੁੱਧੀ ਹੈ ਅਤੇ ਬੁੱਧੀ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਉਹ (ਆਤਮਾ) ਹੈ।3.42।

   Senses are superior to the body; mind is superior to the senses; intellect is superior to the mind; one who is superior even to the intellect is He (the Self).।3.42।

।3.43।
एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्॥ ४३॥

शब्दार्थ
एवं बुद्धेः - इस तरह बुद्धि से
परं बुद्ध्वा - श्रेष्ठ जानकर
संस्तभ्यात्मानमात्मना - अपने द्वारा अपने-आपको नियमित करके
जहि शत्रुं - शत्रु को हरा दो
महाबाहो - हे अर्जुन
कामरूपं - कामरूप
दुरासदम् - मुश्किल से हारने वाले

भावार्थ/Translation
   हे अर्जुन, इस तरह बुद्धि से आत्मा को श्रेष्ठ जानकर, अपने द्वारा अपने-आपको नियमित करके, तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल।3.43।

   ਹੇ ਅਰਜੁਨ, ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬੁੱਧੀ ਨਾਲੋਂ ਆਤਮਾ ਨੂੰ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਜਾਨ ਕੇ, ਆਪਣੇ ਦੁਆਰਾ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਨੂੰ ਨਿਯਮਤ ਕਰਕੇ, ਤੂੰ ਇਸ ਕਾਮਰੂਪ ਵੱਡੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦੇ।3.43।

   O Arjuna! Thus knowing the self as superior to the intellect and restraining the self by the self, slay the powerful enemy in the form of desire.।3.43।


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥3.1-3.43॥

To be Completed by 5th March, 2015 ( 43 Days)

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